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गीत 141

शांति चाहनेवालों की खोज!

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(लूका 10:6)

  1. ‘याह का व-चन सुन ले ज-हाँ त-माम!’

    हु-कुम यी-शु का था, उस-ने

    दि-लो-जाँ से कि-या वो काम।

    प्यार वो कर-ता था याह की भे-ड़ों से,

    सु-बह से शाम

    उन्‌-हें ढूँ-ढ़ा दर-ब-दर चल के।

    हम भी ख-बर दे-ते य-हाँ,

    छट जा-ए-गी गम की घ-टा,

    बर-सा-ए-गा जल्द हम पे

    बर-क़-तें याह।

    (कोरस)

    खो-जें उन्‌-हें

    जो सच की राह पे चल-ना चा-हें।

    शां-ति-प-संद,

    जो याह से रिश्-ता जोड़-ना चा-हें।

    को-ई क-सर

    ना छो-ड़ें हम।

  2. लाख चा-हें तो भी वक्‍त रु-के न-हीं,

    रु-कें हम भी भ-ला कै-से

    स-भी की जा-नें हैं कीम-ती।

    प्यार कह-ता है फिर उन-से जा-के मिल,

    ल-गा मर-हम, पा-एँ चैन वो,

    जा-एँ फिर से खिल।

    मि-ले जब भी नेक-दिल को-ई,

    भर जा-ती है दिल में खु-शी,

    ऐ-सी खु-शी पा-ने को हम हैं बे-ताब।

    (कोरस)

    खो-जें उन्‌-हें

    जो सच की राह पे चल-ना चा-हें।

    शां-ति-प-संद,

    जो याह से रिश्-ता जोड़-ना चा-हें।

    को-ई क-सर

    ना छो-ड़ें हम।