गीत 45
मेरे मन के विचार
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1. तनहा रहूँ या सबके बीच,
सोचूँ मैं बातें बस ऐसी,
जिनसे मिले तुझे खुशी
और मुझको दें समझ तेरी।
बेचैन होके खयालों में,
रात-भर लूँ जब मैं करवटें,
हो ऐसा मैं करूँ तब याद,
अच्छी और नेक तेरी हर बात।
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2. अनमोल हैं बातें सब तेरी,
सीधी हैं, सच्ची और भली;
सोचूँ गहराई से जब मैं,
पाऊँ सुकून और चैन इनसे।
चलने को पथ पे ये तेरे,
हौस-ला भी देती हैं मुझे,
क्यों ना रहूँ डूबा इनमें,
जिससे सदा सुख पाऊँ मैं।
(भज. 49:3; 63:6; 139:17, 23; फिलि. 4:7, 8; 1 तीमु. 4:15 भी देखें।)