गीत 17
“मैं चाहता हूँ”
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1. प्यार का रूप लोगों ने देखा
जब यीशु धरती पे आया।
सबके दुख को समझा,
की सब पे कृपा
बोली और कामों से सदा।
दीनों का रखा था खयाल,
बीमारी से करके बहाल।
याह ने सौंपा जो काम, कर दिया खूब,
कहके दिल से, ‘हाँ, चाहता हूँ।’
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2. यीशु के जैसे ही चलने
हमारी हों रोज़ कोशिशें।
जब लोगों से मिलते,
सिखाते प्यार से
कि वो भी इस राह चल सकें।
हो दुख में अनाथ या विधवा,
या मुश्-किल में दोस्त हो तेरा,
तो फिर देने मदद रह तैयार तू
और बोल दिल से, ‘हाँ, चाहता हूँ।’
(यूह. 18:37; इफि. 3:19; फिलि. 2:7 भी देखें।)