कुरिंथियों के नाम दूसरी चिट्ठी 12:1-21
12 शेखी मारने से कोई फायदा तो नहीं, फिर भी मुझे ऐसा करना ही होगा। मगर अब मैं प्रभु के दिखाए चमत्कारी दर्शनों+ और उससे मिले संदेशों के बारे में बताना चाहूँगा।
2 मैं मसीह में एक आदमी को जानता हूँ जिसे 14 साल पहले तीसरे स्वर्ग में उठा लिया गया था। उसे शरीर के साथ उठाया गया या शरीर के बिना, यह मैं नहीं जानता परमेश्वर ही जानता है।
3 हाँ, मैं उस आदमी को जानता हूँ। उसे शरीर के साथ उठाया गया या शरीर के बिना, यह मैं नहीं जानता परमेश्वर ही जानता है।
4 उसे उठाकर फिरदौस में ले जाया गया और उसने ऐसी बातें सुनीं जो बोली नहीं जा सकतीं और जिन्हें कहने की एक इंसान को इजाज़त नहीं।
5 मैं ऐसे इंसान के बारे में शेखी मारूँगा, मगर जहाँ तक मेरी बात है मैं अपनी कमज़ोरियों को छोड़ किसी और बात पर शेखी नहीं मारूँगा।
6 अगर मैं कभी शेखी मारना भी चाहूँ, तो मैं मूर्ख नहीं ठहरूँगा क्योंकि मैं सच ही कहूँगा। लेकिन मैं शेखी नहीं मारता ताकि कोई भी मुझे ज़्यादा श्रेय न दे, सिवा उन बातों के जो उसने मुझे करते देखा है और बोलते सुना है।
7 कोई मुझे सिर्फ इसलिए बड़ा न समझे कि मुझ पर अनोखे रहस्य प्रकट किए गए हैं।
कहीं मैं घमंड से फूल न जाऊँ इसलिए मेरे शरीर में एक काँटा चुभाया गया है+ जो शैतान के एक दूत जैसा है ताकि वह मुझे थप्पड़ मारता* रहे जिससे कि मैं खुद को हद-से-ज़्यादा बड़ा न समझूँ।
8 मैंने प्रभु से तीन बार गिड़गिड़ाकर बिनती की थी कि यह काँटा निकाल दिया जाए।
9 मगर प्रभु ने मुझसे कहा, “मेरी महा-कृपा तेरे लिए काफी है। जब तू कमज़ोर होता है तब मेरी ताकत पूरी तरह दिखायी देती है।”+ इसलिए मैं बड़ी खुशी से अपनी कमज़ोरियों के बारे में शेखी मारूँगा ताकि मसीह की ताकत तंबू की तरह मेरे ऊपर छायी रहे।
10 मैं मसीह की खातिर कमज़ोरियों में, बेइज़्ज़ती में, तंगी में, ज़ुल्मों और मुश्किलों में खुश होता हूँ। क्योंकि जब मैं कमज़ोर होता हूँ, तभी ताकतवर होता हूँ।+
11 मैं मूर्ख बना। तुमने मुझे ऐसा बनने के लिए मजबूर किया। होना तो यह चाहिए था कि तुम मेरी तरफ से बोलते क्योंकि मैं तुम्हारे महा-प्रेषितों से एक बात में भी कम नहीं हूँ, भले ही मैं तुम्हारी नज़र में कुछ नहीं।+
12 सच तो यह है कि तुमने खुद अपनी आँखों से मेरे प्रेषित-पद के सबूत देखे थे, जो मैंने बहुत धीरज धरते हुए,+ साथ ही चिन्ह और चमत्कार और शक्तिशाली कामों से दिखाए थे।+
13 मैंने तुम पर किसी भी तरह का बोझ नहीं डाला, सिर्फ इसी मामले में तुम दूसरी मंडलियों से अलग हो।+ क्या मैंने कुछ गलत किया? अगर हाँ, तो मुझे माफ करना।
14 देखो! यह तीसरी बार है कि मैं तुम्हारे पास आने के लिए तैयार हूँ, फिर भी मैं तुम पर बोझ नहीं बनूँगा क्योंकि मैं तुम्हारी दौलत नहीं चाहता,+ तुम्हें चाहता हूँ। बच्चों+ से उम्मीद नहीं की जाती कि वे माँ-बाप के लिए पैसे बचाकर रखें, बल्कि माँ-बाप से उम्मीद की जाती है कि वे बच्चों के लिए पैसे बचाकर रखें।
15 मैं तुम्हारी खातिर हँसते-हँसते खर्च करूँगा, यहाँ तक कि खुद भी पूरी तरह खर्च हो जाऊँगा।+ जब मैं तुमसे इतना प्यार करता हूँ तो क्या मुझे कम प्यार मिलना चाहिए?
16 मैंने तुम पर कोई बोझ नहीं डाला,+ फिर भी तुम कहते हो कि मैं चालाक था और मैंने तुम्हें छल से फँसा लिया।
17 और मैंने जितनों को भी तुम्हारे पास भेजा, उनमें से एक के ज़रिए भी मैंने तुम्हारा फायदा नहीं उठाया। क्या उठाया?
18 मैंने तीतुस से गुज़ारिश की और उसके साथ एक भाई को भेजा। तीतुस ने तुम्हारा बिलकुल भी फायदा नहीं उठाया, क्या उठाया?+ क्या हमने एक ही तरह का जज़्बा नहीं दिखाया? क्या हम एक ही राह पर नहीं चले?
19 क्या अब तक तुम यह सोच रहे हो कि हम तुम्हारे सामने अपनी सफाई पेश कर रहे हैं? हम तुम्हारे सामने नहीं, परमेश्वर के सामने मसीह में सफाई दे रहे हैं। लेकिन प्यारे भाइयो, हम सबकुछ तुम्हें मज़बूत करने के लिए करते हैं।
20 मुझे डर है कि जब मैं तुम्हारे पास आऊँ तो मैं तुम्हें ऐसा न पाऊँ जैसा मैं चाहता हूँ और तुम भी मुझे वैसा न पाओ जैसा तुम चाहते हो। कहीं ऐसा न हो कि तुममें तकरार, जलन, गुस्से से आग-बबूला होना, झगड़े, पीठ पीछे बदनाम करना, चुगली लगाना,* घमंड से फूलना और हंगामे पाए जाएँ।
21 जब मैं दोबारा तुम्हारे पास आऊँ तो मेरा परमेश्वर कहीं तुम्हारे सामने मुझे शर्मिंदा न करे और मुझे ऐसे कई लोगों के लिए शोक न मनाना पड़े जिन्होंने पहले पाप किया था और जो अशुद्धता, नाजायज़ यौन-संबंध* और निर्लज्ज कामों* में लगे रहे और पश्चाताप नहीं किया।