योना 4:1-11

4  यह बात योना को बहुत बुरी लगी और वह आग-बबूला हो उठा।  उसने यहोवा से प्रार्थना की, “हे यहोवा, आखिर वही हुआ न, जो मैं अपने देश में रहते वक्‍त सोच रहा था! इसीलिए मैंने तरशीश भागने की कोशिश की।+ मैं जानता था कि तू करुणा करनेवाला और दयालु परमेश्‍वर है, क्रोध करने में धीमा और अटल प्यार से भरपूर है।+ मैं जानता था कि तू अपना मन बदल लेगा और सज़ा नहीं देगा।  अब हे यहोवा, मेहरबानी करके मेरी जान ले ले। जीने से तो अच्छा है कि मैं मर जाऊँ।”+  यहोवा ने पूछा: “क्या तेरा गुस्से से भड़कना सही है?”  फिर योना शहर के बाहर गया और उसके पूरब में जाकर एक जगह बैठ गया। वहाँ उसने अपने लिए एक छप्पर बनाया और यह सोचकर उसकी छाया में बैठा रहा कि देखूँ शहर का क्या होता है।+  तब यहोवा परमेश्‍वर ने घीए की एक बेल* उगायी और उसे ऐसा फैलाया कि योना के सिर पर अच्छी छाया हो और उसे आराम मिले। घीए की बेल देखकर योना बहुत खुश हुआ।  लेकिन अगले दिन पौ फटते ही, सच्चे परमेश्‍वर ने एक कीड़ा भेजा। कीड़े ने बेल को ऐसा खाया कि बेल सूख गयी।  फिर जब सूरज निकला तो परमेश्‍वर ने पूरब से झुलसा देनेवाली हवा चलायी। चिलचिलाती धूप योना के सिर पर ऐसी पड़ी कि वह बेहोश होने लगा। वह मौत माँगने लगा और कहने लगा, “जीने से तो अच्छा है कि मैं मर जाऊँ।”+  परमेश्‍वर ने योना से पूछा, “क्या घीए की बेल के लिए तेरा गुस्से से भड़कना सही है?”+ योना ने कहा, “हाँ, मेरा भड़कना सही है। मुझे इतना गुस्सा आ रहा है कि मैं मर जाना चाहता हूँ।” 10  पर यहोवा ने कहा, “जिस घीए की बेल के लिए न तूने मेहनत की न जिसे बढ़ाया, जो एक रात में उगी और एक ही रात में मर गयी, उस पर तू तरस खा रहा है। 11  तो क्या मैं उस बड़े शहर नीनवे+ पर तरस न खाऊँ, जहाँ 1,20,000 से भी ज़्यादा लोग हैं, जो सही-गलत में* फर्क तक नहीं जानते और जहाँ बहुत-से जानवर भी हैं?”+

कई फुटनोट

या शायद, “अरंडी का पौधा।”
या “जो अपने दाएँ हाथ और बाएँ हाथ में।”

अध्ययन नोट

तसवीर और ऑडियो-वीडियो