भजन 27:1-14
दाविद की रचना।
27 यहोवा मेरा प्रकाश+ और मेरा उद्धारकर्ता है।
फिर मुझे डर किसका?+
यहोवा मेरे जीवन का मज़बूत गढ़ है।+
फिर मैं किसी से क्यों खौफ खाऊँ?
2 दुष्ट मुझे फाड़ खाने के लिए मुझ पर टूट पड़े,+मगर मेरे बैरी और दुश्मन खुद लड़खड़ाकर गिर पड़े।
3 चाहे कोई सेना मेरे खिलाफ छावनी डाले,तब भी मेरा दिल नहीं डरेगा।+
चाहे मेरे खिलाफ युद्ध छिड़ जाए,तब भी मेरा भरोसा अटल रहेगा।
4 मैंने यहोवा से सिर्फ एक चीज़ माँगी है,यही मेरी दिली तमन्ना हैकि मैं सारी ज़िंदगी यहोवा के भवन में निवास करूँ+ताकि यहोवा की मनोहरता निहार सकूँऔर उसके मंदिर* को एहसान-भरे दिल से* देखता रहूँ।+
5 क्योंकि संकट के दिन वह मुझे अपने आसरे में छिपा लेगा,+अपनी गुप्त जगह में, अपने तंबू में छिपा लेगा,+वह मुझे ऊँची चट्टान पर चढ़ा देगा।+
6 अब मेरा सिर दुश्मनों से ऊँचा हो गया है जो मुझे घेरे हुए हैं,मैं परमेश्वर के तंबू में खुशी से जयजयकार करते हुए बलिदान चढ़ाऊँगा,यहोवा की तारीफ में गीत गाऊँगा।*
7 हे यहोवा, जब मैं पुकारूँ तो मेरी सुनना,+मुझ पर कृपा करना और मुझे जवाब देना।+
8 मेरे मन ने कहा है कि तूने यह आज्ञा दी है,“मेरी मंज़ूरी पाने के लिए मेहनत करता रह।”
हे यहोवा, मैंने तेरी मंज़ूरी पाने की ठान ली है।+
9 मुझसे मुँह न फेर लेना,+न ही गुस्से में आकर अपने सेवक को ठुकरा देना।
तू मेरा मददगार है,+मेरा उद्धार करनेवाले परमेश्वर, मुझे त्याग न देना, मुझे छोड़ न देना।
10 चाहे मेरे माता-पिता मुझे छोड़ दें,+फिर भी यहोवा मुझे अपना लेगा।+
11 हे यहोवा, मुझे अपनी राह सिखा,+दुश्मनों से बचाने के लिए मुझे सीधाई की राह पर ले चल।
12 मुझे मेरे बैरियों के हवाले न कर,+क्योंकि मेरे खिलाफ झूठे गवाह उठ खड़े हुए हैं,+वे मुझे मारने-पीटने की धमकी देते हैं।
13 अगर मुझे विश्वास न होता कि यहोवा मेरे जीते-जी* भलाई करेगा,तो न जाने मेरा क्या होता!*+
14 यहोवा पर आशा रख,+हिम्मत से काम ले, अपना दिल मज़बूत रख।+
हाँ, यहोवा पर आशा रख।
कई फुटनोट
^ या “पवित्र-स्थान।”
^ या “ध्यान करते हुए।”
^ या “संगीत बजाऊँगा।”
^ शा., “जीवितों के देश में।”
^ या शायद, “बेशक, मुझे विश्वास है कि मैं जीते-जी यहोवा की भलाई देखूँगा।”