भजन 107:1-43
107 यहोवा का शुक्रिया अदा करो क्योंकि वह भला है,+उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।+
2 जिन्हें यहोवा ने छुड़ाया है,* वे यही कहें,जिन्हें उसने दुश्मन के हाथ* से छुड़ाया है,+
3 देश-देश से इकट्ठा किया है,+पूरब से, पश्चिम से,* उत्तर से और दक्षिण से, वे ऐसा ही कहें।+
4 वे वीराने में, जंगल में भटकते-फिरते रहे,उन्हें किसी शहर का रास्ता न मिला कि वे जाकर बस जाते।
5 वे भूखे-प्यासे थे,थक-हारकर पस्त हो चुके थे।
6 संकट में वे यहोवा को पुकारते रहे,+उसने उन्हें बदहाली से बाहर निकाला।+
7 वह उन्हें सही रास्ते से ले गया+कि वे एक ऐसे शहर पहुँचें जहाँ वे बस जाएँ।+
8 यहोवा के अटल प्यार के लिए,इंसानों की खातिर उसके आश्चर्य के कामों के लिए+लोग उसका शुक्रिया अदा करें।+
9 क्योंकि उसने प्यासों की प्यास बुझायी,भूखों को अच्छी चीज़ें खिलाकर संतुष्ट किया।+
10 कुछ लोग घोर अंधकार में जी रहे थे,कैदी लोहे की ज़ंजीरों में जकड़े दुख झेल रहे थे।
11 वे परमेश्वर के वचन के खिलाफ गए थे,उन्होंने परम-प्रधान की सलाह को तुच्छ जाना था।+
12 इसलिए उसने उन पर तकलीफें लाकर उनके दिलों को दीन किया,+वे लड़खड़ाकर गिर पड़े, उनकी मदद करनेवाला कोई न था।
13 संकट में उन्होंने मदद के लिए यहोवा को पुकारा,उसने उन्हें बदहाली से छुड़ाया।
14 वह उन्हें घोर अंधकार से बाहर ले आया,उनकी बेड़ियाँ तोड़ दीं।+
15 यहोवा के अटल प्यार के लिए,+इंसानों की खातिर उसके आश्चर्य के कामों के लिएलोग उसका शुक्रिया अदा करें।
16 उसने ताँबे के फाटक तोड़ डाले,लोहे के बेड़ों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए।+
17 जो मूर्ख थे उन्हें दुख झेलना पड़ा,+अपने अपराधों और गुनाहों की वजह से दुख झेलना पड़ा।+
18 उनकी भूख मर गयी,वे कब्र के दरवाज़ों तक पहुँच गए।
19 वे संकट में मदद के लिए यहोवा को पुकारते,वह उन्हें बदहाली से छुड़ाता।
20 वह अपने वचन के ज़रिए उनकी बीमारी दूर करता,+उन्हें उन गड्ढों से बाहर निकालता जहाँ वे फँस गए थे।
21 यहोवा के अटल प्यार के लिए,इंसानों की खातिर उसके आश्चर्य के कामों के लिएलोग उसका शुक्रिया अदा करें।
22 वे उसके लिए धन्यवाद-बलि चढ़ाएँ,+खुशी से जयजयकार करते हुए उसके कामों का ऐलान करें।
23 जो जहाज़ों से समुंदर पर सफर करते हैं,विशाल सागर से होकर व्यापार का माल लाते-ले जाते हैं,+
24 उन्होंने यहोवा के काम देखे हैं,वे खूबसूरत चीज़ें देखी हैं जो उसने समुंदर में रची हैं+
25 कि उसके हुक्म पर कैसे आँधी चलती है+और सागर की लहरों को उठाती है।
26 वे आसमान की ऊँचाई तक उठते हैं,समुंदर की गहराइयों में डूब जाते हैं।
खतरा मँडराता देखकर उनकी हिम्मत टूट जाती है।
27 वे एक मतवाले की तरह लड़खड़ाते हैं, गिरते-पड़ते हैं,उनका सारा हुनर बेकार हो जाता है।+
28 तब वे संकट में यहोवा को पुकारते हैं+और वह उन्हें बदहाली से छुड़ाता है।
29 वह आँधी को शांत कर देता है,समुंदर की लहरें खामोश हो जाती हैं।+
30 लहरों का थमना देखकर वे खुश होते हैं,वह उन्हें उनके मनचाहे बंदरगाह पर ले जाता है।
31 यहोवा के अटल प्यार के लिए,इंसानों की खातिर उसके आश्चर्य के कामों के लिए+लोग उसका शुक्रिया अदा करें।
32 वे लोगों की मंडली में उसे ऊँचा उठाएँ,+बुज़ुर्गों की सभा* में उसकी तारीफ करें।
33 वह नदियों को रेगिस्तान में बदल देता है,पानी के सोतों को सूखी ज़मीन में+
34 और उपजाऊ ज़मीन को नमकवाली ज़मीन में बदल देता है,+वहाँ के रहनेवालों की दुष्टता की वजह से वह ऐसा करता है।
35 वह रेगिस्तान को नरकटोंवाले तालाब मेंऔर सूखी ज़मीन को पानी के सोतों में बदल देता है।+
36 वह भूखों को वहाँ बसाता है+ताकि वे शहर बसाकर उसमें रह सकें।+
37 वे खेत बोते हैं और अंगूरों के बाग लगाते हैं,+जहाँ बढ़िया फसलें होती हैं।+
38 वह उन्हें आशीष देता है और उनकी गिनती खूब बढ़ती है,वह उनके मवेशियों की गिनती घटने नहीं देता।+
39 मगर ज़ुल्म, कहर और दुख की वजह सेदोबारा उनकी गिनती कम हो जाती है और वे बेइज़्ज़त किए जाते हैं।
40 वह रुतबेदार लोगों का अपमान करवाता है,उन्हें वीरानों में भटकाता है जहाँ कोई रास्ता नहीं।+
41 मगर वह गरीबों को ज़ुल्म से बचाता है,*+उनके परिवार को भेड़ों के झुंड की तरह बढ़ाता है।
42 यह देखकर सीधे-सच्चे लोग आनंद-मगन होते हैं,+मगर सभी दुष्ट अपना मुँह बंद कर लेते हैं।+
43 जो कोई बुद्धिमान है, वह इन बातों पर ध्यान देगा,+यहोवा के अटल प्यार के कामों पर गौर से सोचेगा।+
कई फुटनोट
^ या “वापस खरीद लिया है।”
^ या “की ताकत।”
^ या “उदयाचल और अस्ताचल से।”
^ शा., “बैठक।”
^ या “ऊँचे पर रखता है,” यानी पहुँच से बाहर।