उनके विश्वास की मिसाल पर चलिए
‘हालाँकि वह मर चुका है, फिर भी वह आज भी बोलता है’
दोपहर का समय है। हाबिल अपनी भेड़ों के झुंड के साथ पहाड़ की एक ढलान पर है। भेड़ें चुप-चाप घास चर रही हैं और हाबिल की नज़र उन पर है। अचानक उसकी नज़र भेड़ों से हटकर एक ऐसी जगह पर जा टिकती है जहाँ धुँधली-सी रौशनी दिखायी देती है। वह समझ जाता है कि यह रौशनी उसी तलवार की वजह से है, जो जलती रहती है और गोल-गोल घूमती है और अदन के बाग का रास्ता रोके हुए है। एक वक्त था जब उसके माँ-बाप, आदम और हव्वा उस बाग में रहते थे। लेकिन अब न तो वे और न ही उनके बच्चे इस बाग में कदम रख सकते हैं। हलकी हवा चल रही है और हाबिल के बाल उड़ रहे हैं। तभी वह आकाश की तरफ देखता है और अपने सृष्टिकर्ता के बारे में सोचने लगता है। हाबिल का बस एक ही अरमान है कि इंसान और परमेश्वर के बीच आयी दूरी किसी तरह मिट जाए।
हाबिल आज भी हमसे बात करता है। क्या आप उसे सुन सकते हैं? आप शायद सोचें, यह कैसे हो सकता है? उसे तो मरे हुए सदियाँ बीत चुकी हैं। उसका शरीर तो कब का मिट्टी में मिल गया होगा। और फिर बाइबल भी तो कहती है: “मरे हुए कुछ भी नहीं जानते।” (सभोपदेशक 9:5, 10) यही नहीं, हाबिल की कही एक भी बात बाइबल में दर्ज़ नहीं है। तो फिर वह हमसे बात कैसे कर सकता है?
प्रेषित पौलुस ने परमेश्वर की प्रेरणा से लिखा: “हालाँकि हाबिल मर चुका है फिर भी इसी विश्वास की वजह से वह आज भी बोलता है।” (इब्रानियों 11:4) जी हाँ, हाबिल अपने विश्वास की वजह से हमसे बात करता है। धरती पर वह पहला इंसान था जिसने यह बेहतरीन गुण अपने अंदर पैदा किया। उसने इतने ज़बरदस्त तरीके से विश्वास दिखाया कि आज भी वह हमारे लिए एक बढ़िया मिसाल और आदर्श है। अगर हम उसके विश्वास की मिसाल पर चलें, तो यह ऐसा होगा मानो हाबिल हमसे बात कर रहा है और हम उसकी ध्यान से सुन रहे हैं।
लेकिन जब बाइबल में हाबिल का इतना कम ज़िक्र किया गया है, तो हम उसके और उसके विश्वास के बारे में क्या सीख सकते हैं? आइए देखें।
उसका बचपन
हाबिल का जन्म, इंसान की सृष्टि के कुछ समय बाद हुआ था। यीशु मसीह ने हाबिल के बारे में कहा कि वह “दुनिया की शुरूआत” में जीया था। (लूका 11:50, 51) यीशु ने जिस “दुनिया” के बारे में कहा, उसका मतलब था ऐसे इंसान जिन्हें पाप से छुटकारा पाने की आशा है। हालाँकि हाबिल धरती पर रहनेवाला चौथा इंसान था, मगर ऐसा लगता है कि परमेश्वर की नज़र में वह ही पहला इंसान था जिसे पाप से छुटकारा मिल सकता था। * इससे साफ है कि हाबिल का बचपन अच्छे माहौल में नहीं बीता।
इंसानी परिवार की शुरूआत हुए अभी कुछ ही समय हुआ था कि दुख के काले बादल उस पर छा गए। हाबिल के माँ-बाप, आदम और हव्वा दिखने में ज़रूर खूबसूरत और चुस्त-दुरुस्त रहे होंगे। आखिर वे सिद्ध जो थे और उनके पास हमेशा की ज़िंदगी की आशा थी। उनका घर, अदन का खूबसूरत बाग था। मगर फिर उन्होंने अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल कर दी। उन्होंने जानबूझकर परमेश्वर यहोवा के खिलाफ बगावत की, इसलिए परमेश्वर ने उन्हें अदन के बाग से बाहर निकाल दिया। उन्होंने अपनी इच्छाओं को सबसे ज़्यादा अहमियत दी, अपने आनेवाले बच्चों तक के बारे में नहीं सोचा। इस तरह उन्होंने सिद्धता और हमेशा की ज़िंदगी खो दी।—उत्पत्ति 2:15–3:24.
अदन के बाग से निकाले जाने के बाद, आदम और हव्वा के लिए अपनी ज़िंदगी चलाना मुश्किल हो गया। फिर भी, जब उनका पहला बच्चा पैदा हुआ तो उन्होंने उसका नाम कैन रखा, जिसका मतलब है “कुछ पाया।” हव्वा ने कहा: “मैं ने यहोवा की सहायता से एक पुरुष पाया है।” उसके शब्दों से लगता है कि यहोवा ने बाग में जो भविष्यवाणी उत्पत्ति 3:15; 4:1) क्या हव्वा यह मान बैठी कि उस भविष्यवाणी में बतायी स्त्री वह खुद है और उसका बेटा कैन वादा किया गया “वंश” है?
की, वह उसके मन में थी। भविष्यवाणी में बताया गया था कि एक स्त्री एक “वंश” पैदा करेगी, जो एक दिन उस दुष्ट को खत्म कर देगा जिसने आदम और हव्वा को बहकाया था। (अगर हाँ, तो वह बड़ी गलतफहमी में थी। यही नहीं, अगर उसने और आदम ने कैन के छुटपन से ही उसके दिमाग में ये सारी बातें भरी होंगी, तो असिद्धता की वजह से कैन घमंड से फूल गया होगा। कुछ समय बाद, हव्वा ने दूसरे बेटे को जन्म दिया लेकिन उसके बारे में कुछ भी बढ़-चढ़कर नहीं कहा गया। उन्होंने उसका नाम हाबिल रखा जिसका शायद मतलब है, “श्वास” या “व्यर्थ।” (उत्पत्ति 4:2) क्या यह नाम रखना दिखाता है कि आदम और हव्वा को हाबिल से उतनी उम्मीदें नहीं थीं जितनी उन्हें कैन से थीं? शायद, लेकिन हम पक्के तौर पर नहीं कह सकते।
आज सभी माँ-बाप आदम और हव्वा से काफी कुछ सीख सकते हैं। क्या आप अपनी बातों और कामों से अपने बच्चों में घमंड, बड़ा बनने का जुनून और मतलबी बनने जैसे रवैए को हवा देंगे? या क्या आप उन्हें यहोवा परमेश्वर से प्यार करना और उससे दोस्ती करना सिखाएँगे? अफसोस की बात है कि पहले माँ-बाप अपनी यह ज़िम्मेदारी निभाने में नाकाम हो गए। फिर भी, उनके बच्चों के लिए एक आशा थी।
हाबिल ने कैसे परमेश्वर पर अपना विश्वास बढ़ाया?
जैसे-जैसे कैन और हाबिल बड़े होते गए, आदम ने ज़रूर उन दोनों को ऐसे कामों की तालीम दी होगी जिससे वे परिवार का गुज़ारा चलाने में हाथ बँटा सकें। कैन बड़ा होकर किसान बन गया और हाबिल एक चरवाहा।
लेकिन हाबिल ने काम सीखने के साथ-साथ एक और ज़रूरी कदम उठाया। सालों के गुज़रते उसने यहोवा परमेश्वर पर अपना विश्वास बढ़ाया। यह वही लाजवाब गुण है, जिसके बारे में पौलुस ने सदियों बाद लिखा था। मगर ज़रा सोचिए, इंसानों में ऐसी कोई भी अच्छी मिसाल नहीं थी जिस पर हाबिल चल सके। तो फिर, उसने कैसे परमेश्वर पर अपना विश्वास बढ़ाया? आइए ऐसी तीन बातों पर गौर करें जिनकी मदद से हाबिल मज़बूत विश्वास बढ़ा पाया।
यहोवा की सृष्टि।
यहोवा ने धरती को शाप दिया था कि इस पर सिर्फ काँटेदार झाड़ियाँ उगेंगी जिससे खेती-बाड़ी करना आसान नहीं होगा। इसके बावजूद, धरती पर इतने फल और सब्ज़ी उगे कि हाबिल के परिवार का गुज़ारा हो सका। लेकिन परमेश्वर ने जानवरों को कोई शाप नहीं दिया, जिनमें पक्षी और मछलियाँ शामिल थे। और न ही उसने पहाड़ों, झीलों, नदियों, समुद्र, आकाश, बादलों, सूरज और चाँद-सितारों को कोई शाप दिया था। जहाँ कहीं भी हाबिल की नज़र जाती, वहाँ उसे सृष्टिकर्ता यहोवा के बेमिसाल प्यार, बुद्धि और भलाई के सबूत दिखायी देते। (रोमियों 1:20) जब उसने सृष्टि और परमेश्वर के गुणों पर मनन किया, तो उसका विश्वास मज़बूत होता गया।
हाबिल ने ज़रूर समय निकालकर यहोवा के बारे में गहराई से सोचा होगा। कल्पना कीजिए: हाबिल अपनी भेड़ों के झुंड की रखवाली कर रहा है। झुंड की रखवाली करने में एक चरवाहे को बहुत चलना पड़ता है। उसे उनके लिए ऐसी जगह ढूँढ़नी पड़ती है जहाँ हरी-हरी चराइयाँ और भरपूर पानी हो, साथ ही छाँव हो ताकि वे आराम कर सकें। इसलिए हाबिल उन्हें कभी पहाड़ों पर ले जाता, तो कभी घाटियों से ले जाता और कभी-कभी नदियाँ पार ले जाता। परमेश्वर
की सभी सृष्टि में से भेड़ें सबसे लाचार होती हैं, मानो उन्हें इस ज़रूरत के साथ बनाया गया हो कि इंसान उन्हें रास्ता दिखाए और उनकी हिफाज़त करे। क्या इन भेड़ों को देखकर हाबिल ने महसूस किया कि उसे परमेश्वर के मार्गदर्शन, हिफाज़त और देखभाल की ज़रूरत है, जो इंसानों से कहीं ज़्यादा बुद्धिमान और ताकतवर है? इसमें कोई शक नहीं कि उसने इस बारे में ज़रूर परमेश्वर से प्रार्थना की होगी। नतीजा, उसका विश्वास और मज़बूत होता गया।सृष्टि को देखकर हाबिल को प्यार करनेवाले सृष्टिकर्ता पर विश्वास करने की ठोस वजह मिली
यहोवा के वादे।
आदम और हव्वा ने ज़रूर अपने बेटों को बताया होगा कि अदन के बाग में क्या-क्या हुआ था जिसकी वजह से उन्हें बाहर निकाल दिया गया। इसलिए हाबिल के पास मनन करने के लिए कई सारी बातें थीं।
यहोवा ने कहा था कि धरती शापित होगी। अपने चारों तरफ उगे काँटेदार झाड़ियों को देख हाबिल जान गया होगा कि यहोवा की बात सच निकली। यहोवा ने यह भी बताया था कि हव्वा को गर्भावस्था के दौरान और बच्चे को जन्म देते वक्त बहुत दर्द होगा। इसलिए जब हाबिल के दूसरे भाई-बहन पैदा हुए, तो उसने इन शब्दों को भी सच होते देखा। यहोवा पहले से जानता था कि हव्वा अपने पति आदम के प्यार के लिए तरसेगी, मगर आदम उस पर ध्यान देने के बजाय उस पर अपनी धौंस जमाएगा। और परमेश्वर ने इस बारे में पहले से बता दिया था। हाबिल ने अपनी आँखों से यह सब होते देखा। इस तरह, हाबिल जान पाया कि यहोवा का कहा हर वचन पत्थर की लकीर है। इसलिए हाबिल के पास परमेश्वर के इस वादे पर भरोसा करने की ठोस वजह थीं कि एक “वंश” आएगा जो एक दिन अदन के बाग में शुरू हुई सारी गड़बड़ी को ठीक कर देगा।—उत्पत्ति 3:15-19.
यहोवा के सेवक।
इंसानी परिवार में ऐसा कोई भी नहीं था जो हाबिल के लिए अच्छी मिसाल हो। लेकिन उस समय धरती पर सिर्फ इंसान ही नहीं थे, स्वर्गदूत भी मौजूद थे। जब आदम और हव्वा को अदन के बाग से खदेड़ दिया गया, तो यहोवा ने इस बात का ध्यान रखा कि न तो वे दोनों और न ही उनके बच्चे धरती पर बने उस बाग में कदम रख सकें। यहोवा ने बाग में जाने के रास्ते पर करूबों (यानी ऊँचा ओहदा रखनेवाले स्वर्गदूतों) को तैनात किया, साथ ही चारों तरफ घूमनेवाली जलती हुई तलवार भी ठहरायी।—उत्पत्ति 3:24.
हाबिल ने बचपन से ही इन करूबों को दूर से देखा होगा। वह देख सकता था कि इंसान का शरीर धारण करनेवाले ये स्वर्गदूत कितने शक्तिशाली हैं। उसने कई बार जलती हुई तलवार को गोल-गोल घूमते हुए भी देखा होगा और इससे उसके दिल में विस्मय और श्रद्धा पैदा हुई होगी। जैसे-जैसे हाबिल बड़ा होता गया, क्या उसने कभी पाया कि करूब अपने इस काम से ऊब गए हैं और अपनी ज़िम्मेदारी छोड़कर भाग गए हैं? बिलकुल नहीं। दिन और रात, साल-दर-साल ये बुद्धिमान और शक्तिशाली प्राणी अपनी जगह पर डटे रहे। इससे हाबिल ने सीखा कि यहोवा परमेश्वर के ऐसे सेवक भी हैं जो उसके स्तरों पर चलते हैं और जो भी काम उन्हें दिया जाता है उसे पूरा करते हैं। हाबिल ने इन करूबों में ऐसे गुण देखे जो उसके परिवार में किसी ने भी नहीं दिखाए थे, वे हैं यहोवा के लिए वफादारी और उसकी आज्ञा मानना। बेशक स्वर्गदूतों की रखी अच्छी मिसाल से हाबिल का विश्वास और भी बढ़ा होगा।
परमेश्वर ने अपनी सृष्टि और अपने वादों के ज़रिए खुद के बारे में जो ज़ाहिर किया उस पर, साथ ही परमेश्वर के सेवकों की रखी मिसाल पर मनन करने से हाबिल का विश्वास और भी बढ़ता गया। वाकई हाबिल की मिसाल से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। खास तौर से जवान इस बात का भरोसा रख सकते हैं कि वे यहोवा परमेश्वर पर सच्चा विश्वास बढ़ा सकते हैं, तब भी जब उनके परिवार के बाकी सदस्य अच्छी मिसाल न रखें। आज हमारे पास अपना विश्वास बढ़ाने की ढेरों वजह मौजूद हैं, जैसे सृष्टि के अजूबे, पूरी बाइबल और विश्वास दिखानेवालों की कई अच्छी मिसालें।
हाबिल का चढ़ाया बलिदान सबसे बढ़िया क्यों था?
जैसे-जैसे हाबिल का विश्वास यहोवा पर बढ़ता गया, वह चाहता था कि अपना यह विश्वास कामों से ज़ाहिर करे। लेकिन भला एक अदना इंसान इस पूरे जहान के बनानेवाले को क्या दे सकता है? बेशक परमेश्वर को इंसानों से न तो किसी तोहफे, न ही उनकी मदद की ज़रूरत है। लेकिन ऐसा नहीं कि उसे खुश करना मुश्किल है। स्वर्ग में रहनेवाला हमारा पिता खुश होता है जब उसके सेवक सही इरादे से उसकी सेवा करते हैं और उसे अपना सर्वोत्तम देते हैं। और हाबिल कुछ समय बाद यह सच्चाई अच्छी तरह समझ गया।
इसलिए हाबिल, यहोवा के लिए बलिदान चढ़ाने की तैयारी करने लगा। उसने अपनी भेड़ों में से सबसे अच्छी भेड़ें चुनीं, यानी पहलौठे मेम्ने। इन्हें चढ़ाते वक्त उसने उनकी चर्बी भी चढ़ायी क्योंकि उसे लगा कि यह, जानवर का सबसे बढ़िया हिस्सा है। उस दौरान कैन भी यहोवा की आशीष और मंज़ूरी पाना चाहता था, इसलिए उसने अपनी उपज में से कुछ भेंट चढ़ायी। लेकिन उसका इरादा हाबिल की तरह नेक नहीं था। दोनों भाइयों के इरादे उस वक्त ज़ाहिर हुए जब उन्होंने यहोवा को अपने-अपने बलिदान चढ़ाए।
हो सकता है आदम के इन दोनों बेटों ने बलिदान चढ़ाने के लिए वेदी बनायी हो और आग का इस्तेमाल किया हो। यही नहीं, उन्होंने शायद ये बलिदान करूबों के सामने चढ़ाए हों, जो उस समय धरती पर उत्पत्ति 4:4) परमेश्वर ने यह कैसे किया, इस बारे में ब्यौरा कुछ नहीं बताता। लेकिन यहोवा ने अपनी मंज़ूरी सिर्फ हाबिल को क्यों दी?
मौजूद यहोवा के अकेले नुमाइंदे थे। बाइबल में हम पढ़ते हैं: ‘यहोवा ने हाबिल और उसकी भेंट को ग्रहण किया।’ (क्या इसकी वजह उसका बलिदान था? हो सकता है। हाबिल ने जानवर का बलिदान चढ़ाने का चुनाव किया, क्योंकि वे जीवित प्राणी होते हैं और उनकी बलि चढ़ाने में उनका लहू भी शामिल होता है जो जीवन की निशानी है। उसे शायद एहसास हुआ होगा कि इस तरह की बलि परमेश्वर की नज़रों में अनमोल साबित होगी। हाबिल के समय के कई सदियों बाद, परमेश्वर ने अपने लोगों को आज्ञा दी कि वे एक निर्दोष मेम्ने की बलि चढ़ाया करें। यहोवा ने यह आज्ञा इसलिए दी क्योंकि यह मेम्ना उसके सिद्ध बेटे को दर्शाता था, जिसे “परमेश्वर का मेम्ना” कहा गया और जिसका लहू बहाया जाता। (यूहन्ना 1:29; निर्गमन 12:5-7) लेकिन हाबिल ये सारी बातें नहीं जानता था।
एक बात तय है कि हाबिल ने यहोवा को अपना सर्वोत्तम दिया। इसलिए यहोवा ने न सिर्फ उसके चढ़ाए बलिदान को मंज़ूर किया बल्कि हाबिल को भी अपनी मंज़ूरी दी। यहोवा, हाबिल से खुश था क्योंकि उसका चढ़ाया बलिदान उसके प्यार और सच्चे विश्वास का सबूत था।
लेकिन जहाँ तक कैन की बात है, यहोवा ने न तो ‘उसे और न ही उसकी भेंट को ग्रहण किया।’ (उत्पत्ति 4:5) ऐसा नहीं था कि कैन के बलिदान में कोई खोट था क्योंकि आगे चलकर परमेश्वर के कानून में धरती की उपज को भी भेंट के तौर पर चढ़ाने की इजाज़त थी। (लैव्यव्यवस्था 6:14, 15) इसके बजाय, बाइबल कैन के बारे में कहती है कि “उसके खुद के काम दुष्ट थे।” (1 यूह. 3:12) आज के बहुत-से लोगों की तरह, कैन ने सोचा होगा कि परमेश्वर की भक्ति का दिखावा करना ही काफी है। उसके कामों से यह साफ हो गया कि उसे यहोवा से प्यार नहीं था और उसमें सच्चे विश्वास की कमी थी।
जब कैन ने देखा कि यहोवा ने उसकी भेंट मंज़ूर नहीं की, तो क्या उसने अपने भाई हाबिल से कुछ सीखने की कोशिश की? नहीं। इसके बजाय वह अपने भाई से नफरत करने लगा। यहोवा ने कैन का दिल पढ़ लिया था, इसलिए उसने उसे प्यार से समझाया। उसने कैन को खबरदार किया कि वह जिस राह पर चल रहा है, वह उसे गंभीर पाप की तरफ ले जाएगी। उसने यह भी बताया कि अगर वह खुद को बदल ले, तो परमेश्वर ज़रूर ‘उसे ग्रहण करेगा।’—उत्पत्ति 4:6, 7, हिंदी—कॉमन लैंग्वेज।
मगर कैन ने परमेश्वर की चेतावनी अनसुनी कर दी। उसने अपने छोटे भाई को, जो उस पर बहुत भरोसा करता था, खेत में अपने साथ चलने को कहा। वहाँ कैन ने हाबिल को पकड़कर मार डाला। (उत्पत्ति 4:8) इस तरह हाबिल वह पहला शख्स था, जो अपने विश्वास की वजह से शहीद हो गया। लेकिन उसकी कहानी उसके मरने पर खत्म नहीं हुई।
बाइबल कहती है कि हाबिल का लहू चीख-चीखकर यहोवा से न्याय की दोहाई देने लगा। और यहोवा ने यह दोहाई सुन ली। उसने दुष्ट कैन को उसके जुर्म की सज़ा देकर न्याय किया। (उत्पत्ति 4:9-12) सबसे ज़रूरी बात है कि हाबिल की मिसाल से हम आज भी बहुत कुछ सीख सकते हैं। हालाँकि हाबिल उस समय जीनेवाले इंसानों के मुकाबले कम जीया था, शायद सौ साल, फिर भी उसने अपनी पूरी ज़िंदगी यहोवा को खुश करने में बीता दी। हाबिल जानता था कि स्वर्ग में रहनेवाला उसका पिता, यहोवा उससे प्यार करता है और उसकी मंज़ूरी उस पर है। (इब्रानियों 11:4) तो फिर हम भरोसा रख सकते हैं कि हाबिल, यहोवा की याद में महफूज़ है और परमेश्वर उसे उस वक्त दोबारा ज़िंदा करेगा जब यह धरती फिरदौस बन जाएगी। (यूहन्ना 5:28, 29) क्या आप हाबिल से फिरदौस में मिलना चाहेंगे? अगर हाँ, तो ठान लीजिए कि आप हाबिल के बढ़िया विश्वास की मिसाल पर चलते रहेंगे और इस तरह उसकी सुनेंगे। ▪ (w13-E 01/01)
^ मूल भाषा में शब्द “दुनिया की शुरूआत” का एक मतलब है, इंसान के बच्चे पैदा होना। इससे ज़ाहिर होता है कि यीशु ने जब “दुनिया की शुरूआत” का ज़िक्र किया तो वह पहली इंसानी संतानों के बारे में बात कर रहा था। तो फिर, उसने सिर्फ हाबिल का ज़िक्र क्यों किया, उसके बड़े भाई कैन का ज़िक्र क्यों नहीं किया, जो धरती पर पैदा होनेवाली सबसे पहली संतान था? क्योंकि कैन ने अपने फैसले और कामों से ज़ाहिर किया कि उसने जानबूझकर परमेश्वर यहोवा के खिलाफ बगावत की थी। इसलिए अपने माँ-बाप की तरह, उसे भी न तो दोबारा ज़िंदा किया जाएगा, न ही पाप से छुटकारा मिलेगा।