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कौन असल में इस दुनिया पर शासन कर रहा है?

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संगठित अपराध के किसी सरगना से शायद ही आपका कभी आमना-सामना हुआ हो। लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि वे हैं ही नहीं? अपराध जगत के सरगना अपनी पहचान छिपाने, यहाँ तक कि जेल की चारदीवारी के अंदर से काम करने में बहुत माहिर होते हैं। अखबारों में जब हम चरस-गाँजे की तस्करी, देह व्यापार और इंसानों की खरीद-फरोख्त की खबरें पढ़ते हैं, तो हमें पता चलता है कि जुर्म की दरें दिनों-दिन कितनी तेज़ी से बढ़ रही हैं। भले ही ये बुरे-बुरे काम हमारी आँखों के सामने नहीं हो रहे लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि लोग ऐसे काम नहीं करते। इनका बुरा असर समाज पर देखा जा सकता है और इनके अंजाम भी साफ दिखायी देते हैं। अपराध की दुनिया के सरगना समाज पर जो छाप छोड़ जाते हैं, उससे पता चलता है कि वे वाकई में हैं।

परमेश्‍वर का वचन, बाइबल यह खुलासा करता है कि शैतान एक असल शख्स है, जो अपराध की दुनिया के एक सरगना की तरह काम करता है और “झूठे चमत्कारों” और “बुराई और छल” से अपनी मरज़ी पूरी करने की कोशिश करता है। दरअसल बाइबल बताती है कि वह “रौशनी देनेवाले स्वर्गदूत का रूप धारण करता है।” (2 थिस्सलुनीकियों 2:9, 10; 2 कुरिंथियों 11:14) शैतान ने अपने कामों से जो निशान छोड़े हैं, उनसे हमें पता चलता है कि वह वाकई वजूद में है। फिर भी ज़्यादातर लोगों को यह मानना मुश्‍किल लगता है कि एक अदृश्‍य, दुष्ट आत्मिक प्राणी दुनिया में हो रही बुराई के लिए ज़िम्मेदार है। इससे पहले कि हम यह करीबी से जाँचें कि बाइबल शैतान के बारे में क्या बताती है, आइए देखें कि कौन-से गलत विश्‍वासों और बातों की वजह से कई लोगों को लगता है कि शैतान एक असल शख्स नहीं है।

“प्यार करनेवाला परमेश्‍वर, शैतान को कैसे बना सकता है?” बाइबल कहती है कि परमेश्‍वर भला और सिद्ध है, ऐसे में यह मानना सही नहीं लगता कि उसने एक बुरे, जलन रखनेवाले दुष्ट शख्स को बनाया होगा। सच्चाई तो यह है, बाइबल बताती है कि परमेश्‍वर ने ऐसे शख्स को बनाया ही नहीं था। इसके उलट वह परमेश्‍वर के बारे में कहती है: “वह चट्टान है, उसका काम खरा है; और उसकी सारी गति न्याय की है। वह सच्चा ईश्‍वर है, उस में कुटिलता नहीं, वह धर्मी और सीधा है।”—व्यवस्थाविवरण 32:4; भजन 5:4.

सबसे पहले हमें जानने की ज़रूरत है कि परमेश्‍वर का बनाया एक सिद्ध व्यक्‍ति जिसमें कोई कमी नहीं, क्या वह गलत काम कर सकता है। परमेश्‍वर के बनाए प्राणी रोबोट की तरह नहीं हैं। परमेश्‍वर ने उन्हें आज़ाद मरज़ी के साथ बनाया है, यानी उन्हें अपने लिए खुद चुनाव करने की आज़ादी दी है। इसलिए एक सिद्ध और बुद्धिमान प्राणी या तो सही करने का चुनाव कर सकता है या गलत करने का। असलियत में एक बुद्धिमान प्राणी को, फिर चाहे वह इंसान हो या स्वर्गदूत, तभी नैतिक तौर पर सही या गलत ठहराया जा सकता है, अगर उसे अपनी मरज़ी से काम करने की आज़ादी दी जाए।

इसलिए यह कहना गलत होगा कि एक तरफ तो परमेश्‍वर अपनी सृष्टि को नैतिक आज़ादी दे, मगर साथ-ही-साथ अगर वे गलत काम करने का चुनाव करते हैं तो उन्हें उस काम से रोके। एक व्यक्‍ति किस तरह अपनी आज़ाद मरज़ी का गलत इस्तेमाल कर सकता है, इस विषय पर यीशु ने शैतान के बारे में बताया कि वह “सच्चाई में टिका न रहा।” (यूहन्‍ना 8:44) यीशु की इस बात से साफ-साफ पता चलता है कि शैतान शुरू से बुरा नहीं था। शुरूआत में वह एक सिद्ध आत्मिक प्राणी यानी सिद्ध स्वर्गदूत था, जो एक समय पर “सच्चाई में टिका” था। * यहोवा परमेश्‍वर ने अपने बनाए प्राणियों को आज़ाद मरज़ी दी है, क्योंकि वह उनसे प्यार करता है और उन पर भरोसा करता है।—पेज 26 पर दिया बक्स “क्या एक सिद्ध व्यक्‍ति अपनी सिद्धता खो सकता है?” देखिए।

“शैतान, परमेश्‍वर का एक सेवक है” कुछ लोगों को लगता है कि यह विचार बाइबल की अय्यूब नाम किताब में  दिया गया है। बाइबल पर टिप्पणी देनेवाली एक किताब के मुताबिक, बाइबल का यह वाक्य कि शैतान ‘पृथ्वी पर इधर-उधर घूम-फिर’ रहा था, प्राचीन समय के उन फारसी जासूसों की याद दिलाता है जो यहाँ-वहाँ घूमकर अपने राजा के लिए खबरें इकट्ठी किया करते थे। (अय्यूब 1:7) लेकिन सोचिए, अगर शैतान वाकई में परमेश्‍वर का जासूस होता, तो उसे परमेश्‍वर को यह क्यों बताने की ज़रूरत पड़ती कि वह “पृथ्वी पर इधर-उधर घूमते-फिरते” आ रहा है? अय्यूब की किताब में शैतान को परमेश्‍वर का दोस्त नहीं कहा गया है, इसके बजाय उसे शैतान नाम से ही बुलाया गया है जिसका मतलब है “विरोधी” और इससे पता चलता है कि असल में वही परमेश्‍वर का सबसे बड़ा दुश्‍मन है। (अय्यूब 1:6) तो फिर यह विचार कि शैतान, परमेश्‍वर की सेवा करता है, कहाँ से आया?

पहली सदी के दौरान कुछ झूठी और मनगढ़ंत किताबें लिखी गयीं, जैसे कि कुमरान पंथ की “बुक ऑफ जुब्लीस” और “कॉमन रूल।” इन किताबों में बताया गया है कि शैतान परमेश्‍वर से झगड़ा भी करता है और उसकी मरज़ी के अधीन भी रहता है। इतिहासकार जे. बी. रसल ने अपनी किताब मेफिस्टोफिलीस में बताया कि प्रोटेस्टेंट धर्म-सुधारक मार्टिन लूथर मानता था कि परमेश्‍वर एक तरह से शैतान को “अपने बगीचे में खेती करने के लिए एक फावड़े या लग्गे के रूप में” इस्तेमाल कर रहा है। रसल ने आगे कहा कि इसका मतलब है कि हालाँकि “फावड़े को जंगली पौधे निकालने में मज़ा आता है” लेकिन वह काम तो परमेश्‍वर के शक्‍तिशाली हाथों में रहकर करता है और इस तरह परमेश्‍वर की मरज़ी ही पूरी कर रहा है। लूथर ने जो शिक्षा दी, उसे बाद में फ्रांस के धर्मविज्ञानी जॉन कैल्विन ने भी माना। लेकिन कई विश्‍वासी जन लूथर और कैल्विन के विचार से नाराज़ हो गए क्योंकि उनके मुताबिक यह न्याय के खिलाफ है। यह सच है कि परमेश्‍वर बुरी घटनाएँ होने की इजाज़त देता है, लेकिन यह समझना मुश्‍किल है कि प्यार करनेवाला परमेश्‍वर कैसे दूसरों से बुरे काम करवा सकता है? (याकूब 1:13) लूथर के विचार और 20वीं सदी में हुए भयानक कामों को देखकर कई लोगों को लगता है कि परमेश्‍वर और शैतान दोनों ही नहीं हैं।

“शैतान बस हमारे अंदर की बुराई है” अगर हम यह मानते हैं कि हमारे अंदर की बुराई ही शैतान है, तो हम बाइबल के कुछ वाकयों को कभी नहीं समझ पाएँगे। मिसाल के लिए, अय्यूब 2:3-6 में परमेश्‍वर किससे बात कर रहा था? क्या वह अय्यूब के अंदर मौजूद बुराई के गुण से बात कर रहा था, या क्या वह खुद से बात कर रहा था? इसके अलावा, क्या ऐसा हो सकता है कि परमेश्‍वर एक पल तो अय्यूब के अच्छे गुणों की तारीफ करे और फिर अगले ही पल उसके अंदर की बुराई को उसकी परीक्षा लेने दे? परमेश्‍वर के इरादों पर इस तरह इलज़ाम लगाकर हम यह कह रहे होंगे कि परमेश्‍वर दुष्ट है, जबकि बाइबल सिखाती है कि परमेश्‍वर में “कुटिलता कुछ भी नहीं।” (भजन 92:15) सच्चाई तो यह कि परमेश्‍वर ने अय्यूब को नुकसान पहुँचाने के लिए ‘अपना हाथ बढ़ाने’ से इनकार कर दिया था। इससे साफ हो जाता है कि शैतान न तो हमारे अंदर की बुराई है न ही परमेश्‍वर के अंदर की बुराई, बल्कि वह एक आत्मिक प्राणी है जिसने खुद को परमेश्‍वर का विरोधी बना लिया है।

कौन असल में दुनिया पर शासन कर रहा है?

आज कई लोगों को शैतान में विश्‍वास करना दकियानूसी लगता है। लेकिन यह भी गौर कीजिए कि दुनिया-भर में हो रही बुराई की वजह क्या है? शैतान के अलावा, क्या कोई और वजह हो सकती है? असल में शैतान को मानने से इनकार करने की वजह से कई लोगों ने परमेश्‍वर पर भी विश्‍वास करना छोड़ दिया है और वे किसी भी नैतिक स्तर को नहीं मानते।

उन्‍नीसवीं सदी के एक कवि चार्ल्स-पियर शार्लप्येर ने लिखा, “शैतान की सबसे बड़ी चालाकी यह है कि वह हमें यकीन दिलाना चाहता है कि वह अस्तित्व में है  ही नहीं।” अपनी पहचान छिपाने की वजह से शैतान ने परमेश्‍वर के अस्तित्व पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। अगर शैतान अस्तित्व में नहीं है, तो क्या इसका मतलब यह नहीं कि सारी बुराई के लिए परमेश्‍वर ही ज़िम्मेदार है? क्या शैतान का मकसद लोगों को यही यकीन दिलाना नहीं है?

अपराध की दुनिया के एक सरगना की तरह शैतान अपनी पहचान छिपाकर अपना मकसद पूरा करना चाहता है। उसका मकसद क्या है? बाइबल बताती है: ‘इस दुनिया की व्यवस्था के ईश्‍वर ने अविश्‍वासियों के मन अंधे कर दिए हैं, ताकि मसीह जो परमेश्‍वर की छवि है, उसके बारे में शानदार खुशखबरी की रौशनी उन पर न चमके।’—2 कुरिंथियों 4:4.

लेकिन एक अहम सवाल का जवाब रह जाता है। सारी बुराई और दुख-तकलीफ के लिए ज़िम्मेदार इस शख्स का परमेश्‍वर क्या हश्र करेगा? इस पर हम अगले लेख में गौर करेंगे। (w11-E 09/01)

[फुटनोट]

^ परमेश्‍वर ने शैतान की बगावत को तुरंत क्यों खत्म नहीं किया, इसे समझने के लिए बाइबल असल में क्या सिखाती है? किताब का अध्याय 11 देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

[पेज 25 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

शैतान, परमेश्‍वर का सेवक है या उसका विरोधी?

[पेज 26 पर बक्स/तसवीर]

क्या एक सिद्ध व्यक्‍ति अपनी सिद्धता खो सकता है?

परमेश्‍वर ने अपने बनाए बुद्धिमान प्राणियों को जो सिद्धता दी है, वह पूर्ण नहीं है। परमेश्‍वर ने आदम को सिद्ध बनाया था, लेकिन उसे उन सीमाओं के अंदर रहना था जो सृष्टिकर्ता ने उसके लिए तय किए थे। उदाहरण के लिए वह मिट्टी, कंकड़ या लकड़ी नहीं खा सकता था। अगर वह ऐसा करता तो उसे इसके बुरे अंजाम भुगतने पड़ते। अगर वह गुरुत्वाकर्षण के नियम को नज़रअंदाज़ करके ऊँचे पहाड़ से छलाँग मारता, तो वह मर सकता था या गंभीर रूप से घायल हो सकता था।

उसी तरह कोई भी सिद्ध प्राणी, चाहे वह इंसान हो या स्वर्गदूत, परमेश्‍वर के बनाए नैतिक सीमाओं के बाहर नहीं जा सकता। परमेश्‍वर के नियम तोड़ने से उसे बुरे अंजाम भुगतने पड़ते। इसलिए जब एक बुद्धिमान प्राणी अपनी आज़ाद मरज़ी का गलत इस्तेमाल करता है, तो वह आसानी से गलती कर बैठता है और पाप में फँस जाता है।—उत्पत्ति 1:29; मत्ती 4:4.