सुखी परिवार का राज़
नन्हा मेहमान आया कई बदलाव लाया
चेतन: * “जब हमारे घर फूल-सी कोमल बच्ची आयी, तो मनीषा और मेरी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। लेकिन उसके होने के बाद, कुछ महीने तक मैं ठीक से सो नहीं पाया। हम दोनों ने पहले से बहुत सोचकर रखा था कि हम उसकी परवरिश कैसे करेंगे, मगर बच्ची के आने के बाद सबकुछ बदल गया।”
मनीषा: “हमारी बच्ची के पैदा होने के बाद, मेरी ज़िंदगी मेरी नहीं रही। पूरा दिन उसी के पीछे गुज़र जाता, कभी उसे दूध पिलाना है, कभी उसके डायपर बदलना है, तो कभी उसे चुप कराना है। बहुत-से फेरबदल करने पड़े। चेतन और मेरे रिश्ते को दोबारा सामान्य होने में कई महीने लगे।”
बहुत-से लोग इस बात से सहमत होंगे कि औलाद का सुख ज़िंदगी का सबसे बड़ा सुख है। बाइबल बच्चों को परमेश्वर की ओर से मिला “प्रतिफल” कहती है। (भजन 127:3) चेतन और मनीषा की तरह जो पहली बार माँ-बाप बनते हैं, वे जानते हैं कि बच्चे के आने से पति-पत्नी का रिश्ता बहुत बदल जाता है, जिसके बारे में उन्होंने सोचा भी नहीं होता। उदाहरण के लिए, जब एक स्त्री पहली बार बच्चे को जन्म देती है तो शायद उसका पूरा ध्यान बच्चे पर रहे और उसे यह देखकर ताज्जुब हो कि कैसे बच्चे की हर हरकत पर वह उसकी ओर खिंची चली आती है। जहाँ तक एक पिता की बात है, शायद वह अपनी पत्नी और बच्चे के बीच के बंधन को देखकर खुश हो, पर साथ ही उसे यह चिंता सताए कि अचानक वह अकेला पड़ गया है।
दरअसल पहले बच्चे के जन्म पर शादीशुदा ज़िंदगी में परेशानियाँ बढ़ सकती हैं। पति-पत्नी में से अगर कोई एक अपने शादी के रिश्ते को मज़बूत नहीं समझता या फिर उन्होंने अपने बीच कोई मतभेद नहीं सुलझाया, तो बच्चे की ज़िम्मेदारी आने पर हो सकता है कि यह परेशानी और भी बड़े रूप में दोबारा उनके सामने आ जाए।
शुरू के महीनों में नवजात शिशु को माता-पिता का पूरा ध्यान चाहिए होता है। इसलिए जो पहली बार माता-पिता बनते हैं, वे अपनी ज़िम्मेदारियाँ अच्छी तरह कैसे निभा सकते हैं? वे अपने शादी के रिश्ते को मज़बूत बनाए रखने के लिए क्या कदम उठा सकते हैं? बच्चे की परवरिश के मामले में अगर वे किसी बात पर सहमत नहीं होते, तो वे क्या कर सकते हैं? आइए इन सभी चुनौतियों पर गौर करें और देखें कि बाइबल के सिद्धांत कैसे इनसे निपटने में पति-पत्नी की मदद कर सकते हैं।
पहली चुनौती: ज़िंदगी अचानक ही बच्चे तक सीमित हो जाती है।
जब एक बच्चा पैदा होता है तो माँ का सारा ध्यान और समय उसी की देखभाल में लग जाता है। शायद उसे इसमें बड़ा सुकून मिले। मगर हो सकता है कि इस दौरान पति को लगे कि उस पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। ब्राज़ील में रहनेवाला मानवेल कहता है: “मुझे यह कबूल करने में सबसे ज़्यादा मुश्किल हुई कि मेरी पत्नी अब मुझसे ज़्यादा हमारे बच्चे का ध्यान रखने लगी है। पहले हमारे पास एक-दूसरे के लिए वक्त-ही-वक्त था, लेकिन फिर अचानक ऐसा लगने लगा जैसे मेरी पत्नी के पास मेरे लिए फुरसत ही नहीं। उसका सारा समय बच्चे के साथ ही निकल जाता था।” आप ज़िंदगी में आए इस बड़े बदलाव का सामना कैसे कर सकते हैं?
कामयाब होने का राज़: सब्र रखिए।
बाइबल कहती है, “प्यार सहनशील और कृपा करनेवाला होता है।” और प्यार “सिर्फ अपने फायदे की नहीं सोचता, भड़क नहीं उठता।” (1 कुरिंथियों 13:4, 5) परिवार में एक नन्हे मेहमान के शामिल होने पर पति-पत्नी दोनों इस सलाह को कैसे लागू कर सकते हैं?
एक बुद्धिमान पति अपनी पत्नी के लिए प्यार कैसे दिखा सकता है? वह जानने की कोशिश करेगा कि बच्चे को जन्म देने के बाद एक स्त्री में किस तरह के शारीरिक और मानसिक बदलाव होते हैं। अगर पति ऐसा करता है, तो वह समझ पाएगा कि उसकी पत्नी के व्यवहार में अचानक बदलाव क्यों होते हैं। * एडम जो फ्रांस में रहता है, 11 महीने की बच्ची का पिता है। वह मानता है: “कभी-कभी मेरी पत्नी बहुत अजीब-सा व्यवहार करती है, ऐसे में उसे बरदाश्त करना बड़ा मुश्किल हो जाता है। पर मैं यह याद रखने की कोशिश करता हूँ कि उसे मेरी वजह से गुस्सा नहीं आ रहा बल्कि हमारे नए हालात की वजह से उठनेवाले तनाव से वह परेशान है, जिन्हें वह खुद भी नहीं समझ पा रही।”
क्या कभी-कभी ऐसा होता है कि आप पत्नी की मदद करने की कोशिश करते हैं लेकिन वह आपको गलत समझ बैठती है? अगर हाँ, तो तुरंत बुरा मत मानिए। (सभोपदेशक 7:9) सब्र से काम लीजिए और अपनी ज़रूरतों के बजाय उसकी ज़रूरतों को पहले रखिए, तब आप नाराज़ नहीं होंगे।—नीतिवचन 14:29.
वहीं दूसरी तरफ, एक समझदार पत्नी अपने पति की मदद करने की कोशिश करेगी ताकि वह पिता होने की अपनी ज़िम्मेदारी अच्छी तरह निभा सके। बच्चे की देखभाल करने में वह पति को भी शामिल करेगी, उसे सिखाएगी कि डायपर कैसे बदला जाता है और दूध की बोतल कैसे तैयार की जाती है। शायद शुरू-शुरू में पति ये सब ठीक से ना कर पाए, लेकिन पत्नी उसके साथ सब्र से पेश आएगी।
छब्बीस साल की अनीता ने यह माना कि वह जिस तरह अपने पति से पेश आती थी, उसमें उसे कुछ बदलाव करने की ज़रूरत थी। वह कहती है, “मुझे लगता था कि बच्चे की देखभाल सिर्फ मैं ही ठीक से कर सकती हूँ। मुझे खुद को याद दिलाना पड़ता था कि जब मेरे पति बच्चे की देखभाल करने के मामले में मेरे सुझाव लागू करने की कोशिश करते हैं, तो मैं बात-बात में उन्हें ना टोकूँ।”
इसे आज़माइए: पत्नियो, अगर आपके पति आपके तरीके से बच्चे की देखभाल नहीं करते, तो उन पर गुस्सा मत होइए न ही उन्हें उसी वक्त वह काम दोबारा करने के लिए कहिए। अगर वे कोई काम थोड़ा-बहुत भी ठीक से करते हैं, तो उनकी तारीफ कीजिए। इस तरह आप उनका आत्म-विश्वास बढ़ा पाएँगी और उन्हें हौसला मिलेगा कि वे आपको ज़रूरी मदद दें। पतियो, गैर-ज़रूरी कामों में कम वक्त बिताइए ताकि आपको अपनी पत्नी की मदद करने के लिए ज़्यादा-से-ज़्यादा वक्त मिले, खासकर बच्चे के जन्म के पहले कुछ महीनों में।
दूसरी चुनौती: पति-पत्नी के रिश्ते में दरार आने लगती है।
जब बच्चा छोटा होता है तो अकसर माँ-बाप की नींद पूरी नहीं हो पाती और उन्हें ऐसी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है जिनके बारे में उन्होंने पहले कभी सोचा ही नहीं था। इसलिए जो पहली बार माँ-बाप बनते हैं, शायद उनके बीच दूरियाँ बढ़ती जाएँ। फ्रांस की रहनेवाली विवियान, जो दो छोटे बच्चों की माँ है कहती है, “शुरू-शुरू में मैं माँ होने की ज़िम्मेदारी पर इतना ज़्यादा ध्यान देती थी कि मैं यह भूल गयी कि मैं एक पत्नी भी हूँ।”
दूसरी ओर, पति शायद यह न समझ पाए कि गर्भधारण की
वजह से पत्नी में शारीरिक और मानसिक बदलाव हुए हैं। हो सकता है, बच्चे की देखभाल में पति-पत्नी का काफी समय चला जाए और वे इतने थक जाएँ कि वे पहले की तरह एक-दूसरे के जज़बातों को समझ न पाएँ और लैंगिक इच्छाओं को पूरा न कर पाएँ। ऐसे में पति-पत्नी क्या कर सकते हैं जिससे उनका मासूम बच्चा उनके बीच दीवार न बने?कामयाब होने का राज़: एक-दूसरे को अपने प्यार का यकीन दिलाइए।
बाइबल में यहोवा परमेश्वर ने शादी के बारे में कहा है: “पुरुष अपने माता पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा और वे एक ही तन बने रहेंगे।” * (उत्पत्ति 2:24) परमेश्वर के कहने का क्या मतलब था? यही कि एक-न-एक दिन बच्चे माता-पिता से अलग हो जाएँगे, लेकिन पति-पत्नी को सारी उम्र एक तन बनकर साथ रहना है। (मत्ती 19:3-9) इस सच्चाई को मानने से माता-पिता तय कर पाएँगे कि उन्हें अपनी ज़िंदगी में किन बातों को ज़्यादा अहमियत देनी है?
विवियान कहती है: “मैंने उत्पत्ति 2:24 में दिए शब्दों पर गौर किया और इससे मुझे यह एहसास हुआ कि मैं अपने पति के साथ ‘एक तन’ हूँ न कि अपने बच्चे के साथ। इसलिए मुझे अपने शादी के बंधन को मज़बूत करने की ज़रूरत है।” तनुश्री जो दो साल की बच्ची की माँ है, कहती है: “जैसे ही मुझे लगता है कि मेरे और मेरे पति के बीच फासले बढ़ रहे हैं, वैसे ही मैं कोशिश करती हूँ कि जब हम साथ हों तो मैं उन्हें अपना पूरा ध्यान दूँ फिर चाहे मैं हर दिन उनके साथ थोड़ा ही वक्त बिता पाऊँ।”
पतियो, अपने शादी के बंधन को मज़बूत करने के लिए आप क्या कर सकते हैं? अपनी पत्नी को बताइए कि आप उससे प्यार करते हैं और उसके साथ कोमलता से पेश आकर इस बात का सबूत दीजिए। अगर पत्नी को लगता है कि आप पहले की तरह उससे प्यार नहीं करते तो इस गलतफहमी को दूर कीजिए। तीस साल की सुलभा जो एक माँ है, कहती है: “हर पत्नी चाहती है कि उसका पति उसे यकीन दिलाए कि वह अब भी उससे प्यार करता है और गर्भधारण की वजह से उसके शरीर में आए बदलावों के बावजूद उसकी कदर करता है।” जर्मनी में रहनेवाला ऐलन दो लड़कों का पिता है। वह जानता है कि अपनी पत्नी के जज़्बातों को समझना कितना ज़रूरी है। वह कहता है: “मेरी पत्नी जब भी उदास या दुखी होती है, तो मैं उसे सहारा देने की कोशिश करता हूँ।”
बच्चे के आने से पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंध पहले जैसे नहीं रहते। इसलिए पति-पत्नी को एक-दूसरे की ज़रूरतों के बारे में आपस में बात करनी चाहिए। बाइबल कहती है कि पति-पत्नी को शारीरिक संबंधों में कोई भी बदलाव “आपसी रज़ामंदी” से करने चाहिए। (1 कुरिंथियों 7:1-5) इसके लिए आपस में बातचीत करना ज़रूरी है। हो सकता है कि आपकी परवरिश जिस माहौल में हुई है या आप जिस संस्कृति से हैं, उस वजह से आप शारीरिक संबंधों के बारे में अपने साथी से बात करने में हिचकिचाएँ। मगर ज़रूरी है कि आप इस बारे में बात करें, ताकि आप माता-पिता होने की ज़िम्मेदारी भी उठा सकें। अपने दिल की बात खुलकर कहिए। बात करते वक्त हमदर्दी जताइए और सब्र से पेश आइए। (1 कुरिंथियों 10:24) इस तरह आप दोनों गलतफहमियों में पड़ने से दूर रह पाएँगे और एक-दूसरे के लिए आपका प्यार और गहरा होता जाएगा।—1 पतरस 3:7, 8.
पति-पत्नी एक और तरीके से अपना प्यार बढ़ा सकते हैं। वे अपनी बातों और कामों से दिखा सकते हैं कि वे एक-दूसरे की मेहनत की कदर करते हैं। एक बुद्धिमान पति इस बात को समझता है कि उसकी पत्नी बच्चे की देखभाल के लिए जो मेहनत करती है, वह अकसर नज़र नहीं आती। विवियान कहती है: “हालाँकि बच्चे की देखभाल में मेरा पूरा दिन निकल जाता है, फिर भी मुझे ऐसा लगता है मानो मैंने कुछ किया ही नहीं!” दिन-भर व्यस्त रहने के बावजूद, एक समझदार पत्नी यह कभी नहीं भूलती कि उसका पति भी परिवार के लिए बहुत मेहनत करता है।—नीतिवचन 17:17.
इसे आज़माइए: माँओ, हो सके तो बच्चे के सोने पर आप भी एक झपकी ले लें। इस तरह आप तरो-ताज़ा महसूस करेंगी और अपने पति का ज़्यादा अच्छी तरह
खयाल रख पाएँगी। पिताओ, जब भी मुमकिन हो रात में उठकर बच्चे का डायपर बदलिए या उसे दूध पिला दीजिए ताकि आपकी पत्नी को थोड़ा आराम मिले। छोटे-छोटे खत लिखकर, मोबाइल पर मेसेज भेजकर या फोन करके अपनी पत्नी को अपने प्यार का यकीन दिलाइए। आमने-सामने बात करने के लिए समय निकालिए। सिर्फ बच्चे के बारे में नहीं बल्कि एक-दूसरे के बारे में भी बात कीजिए। अपने जीवन-साथी के साथ अपनी दोस्ती मज़बूत बनाए रखिए, तब आप बच्चे की परवरिश में उठनेवाली परेशानियों का ज़्यादा अच्छे तरीके से सामना कर पाएँगे।तीसरी चुनौती: बच्चे की परवरिश को लेकर मतभेद।
कभी-कभी पति-पत्नी के बीच में तकरार इसलिए होती है, क्योंकि वे अलग-अलग माहौल में पले-बढ़े होते हैं। एक जापानी माँ ऑसॉमी और उसके पति कॉतसूरो के सामने भी यही समस्या आयी। ऑसॉमी कहती है: “मुझे लगता था कि कॉतसूरो हमारी बच्ची को बहुत ढील दे रहे हैं, जबकि उनके हिसाब से मैं उसके साथ ज़रूरत से ज़्यादा ही सख्ती बरत रही थी।” आप इस परेशानी से कैसे निपट सकते हैं?
कामयाब होने का राज़: अपने साथी से बात कीजिए और एक-दूसरे का साथ दीजिए।
बुद्धिमान राजा सुलैमान ने लिखा: “झगड़े रगड़े केवल अहंकार ही से होते हैं, परन्तु जो लोग सम्मति मानते हैं, उनके पास बुद्धि रहती है।” (नीतिवचन 13:10) बच्चे की परवरिश कैसे करनी है, इस बारे में क्या आप अपने साथी के नज़रिए को अच्छी तरह जानते हैं? बच्चे की परवरिश से जुड़े कुछ मामलों पर आपको उसके पैदा होने से पहले ही बात कर लेनी चाहिए, नहीं तो आप चुनौतियों से लड़ने के बजाय शायद एक-दूसरे से लड़ बैठें।
मिसाल के लिए, इन मामलों पर आप दोनों ने क्या फैसला किया है: “हम अपने बच्चे को खाने-पीने और सोने की अच्छी आदतें कैसे सिखाएँगे? अगर सोते वक्त बच्चा रोए तो क्या हम हर बार उसे गोदी लेंगे? बच्चे को टॉयलेट इस्तेमाल करना कैसे सिखाएँगे?” ज़रूरी नहीं कि आप जो फैसले लें, दूसरे माँ-बाप भी वैसा ही करते हों। अभिषेक जो दो बच्चों का पिता है, कहता है: “एक बात पर राज़ी होने के लिए ज़रूरी है कि आप एक-दूसरे से बातचीत करें। तब आप साथ मिलकर अपने बच्चे की ज़रूरतों का अच्छी तरह ख्याल रख पाएँगे।”
इसे आज़माइए: सोचिए कि आपके माँ-बाप ने आपकी परवरिश में कौन-से तरीके अपनाए थे। फिर तय कीजिए कि अपने बच्चे की परवरिश में आप उनके कौन-से तरीके अपनाना चाहेंगे और कौन-से नहीं। आपने जो तय किया है, उसके बारे में अपने साथी से बात कीजिए।
बच्चे के आने से शादी का रिश्ता हमेशा के लिए बदल जाता है
जिस तरह एक नए कलाबाज़ को अपना संतुलन बनाने में समय लगता है और उसे सब्र से काम लेना पड़ता है, उसी तरह आपको भी माता-पिता बनने की अपनी नयी ज़िम्मेदारी अच्छी तरह निभाने में वक्त लगेगा। लेकिन आप ज़रूर सफल होंगे।
बच्चों की परवरिश जीवन-भर एक-दूसरे का साथ निभाने के आपके वादे का इम्तहान ले सकती है। साथ ही यह आपके रिश्ते को हमेशा के लिए बदल देगी। लेकिन इससे आपको कई अनमोल गुण पैदा करने के मौके भी मिलेंगे। अगर आप बाइबल में दी बुद्धिमानी-भरी सलाह को लागू करेंगे, तो आप भी कुणाल की तरह कह पाएँगे: “बच्चों को पाल-पोसकर बड़ा करने से मुझ पर और मेरी पत्नी पर बहुत अच्छा असर हुआ। अब हम खुद से ज़्यादा एक-दूसरे के बारे में सोचते हैं, हमारा प्यार बढ़ गया है और हम पहले से ज़्यादा एक-दूसरे को समझने लगे हैं।” अगर बदलाव ऐसे हों, तो ये वाकई शादी के बंधन को मज़बूत करते हैं। (w11-E 05/01)
^ इस लेख में नाम बदल दिए गए हैं।
^ बहुत-सी माएँ प्रसव के बाद के हफ्तों में, कुछ समय के लिए डिप्रेशन का शिकार हो जाती हैं। कुछ लोगों का डिप्रेशन बहुत ज़्यादा बढ़ जाता है जिसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन कहते हैं। इस तरह के डिप्रेशन को कैसे पहचाना जा सकता है और इसका इलाज किस तरह किया जा सकता है, इस बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए 22 जुलाई, 2002 की सजग होइए! (अँग्रेज़ी) का लेख “मैंने पोस्टपार्टम डिप्रेशन के खिलाफ जंग जीती” और 8 जून, 2003 की सजग होइए! (अँग्रेज़ी) का लेख “पोस्टपार्टम डिप्रेशन को समझना” देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है। ये लेख आप इंटरनेट पर वेबसाइट www.watchtower.org पर पढ़ सकते हैं।
^ एक किताब के मुताबिक, उत्पत्ति 2:24 में जिस इब्रानी क्रिया के लिए “मिला रहेगा” शब्द इस्तेमाल किए गए हैं, उसका मतलब हो सकता है ‘किसी के साथ प्यार और वफादारी से जुड़े रहना।’
खुद से पूछिए . . .
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पिछले हफ्ते क्या मैंने किसी तरह यह दिखाया कि मेरा साथी परिवार के लिए जो मेहनत कर रहा है, मैं उसकी कदर करता हूँ?
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मैंने पिछली बार कब अपने साथी से, बच्चों के अलावा किसी और विषय पर बात करने के लिए समय निकाला?