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बारिश—इस वरदान के लिए एहसानमंद होइए

बारिश—इस वरदान के लिए एहसानमंद होइए

बारिश—इस वरदान के लिए एहसानमंद होइए

रिमझिम बरसती बारिश की बूँदें! कितना सुकून देती हैं मन को। सोचिए, बारिश के बिना हमारी ज़िंदगी कैसी होगी! माना कि बहुत ज़्यादा बारिश भी ठीक नहीं है, इससे बाढ़ का खतरा हो सकता है। और फिर, जो लोग ठंडे इलाकों में रहते हैं, जहाँ जब-तब पानी बरसने लगता है, वे तो शायद बरसात के नाम से ही चिढ़ने लगें। (एज्रा 10:9) मगर दूसरी तरफ, लाखों लोग ऐसे इलाकों में रहते हैं जहाँ साल के ज़्यादातर महीने मौसम सूखा रहता है और सड़ी गरमी से उनका हाल बेहाल हो जाता है। बरसात की राह देखते-देखते आँखें तरस जाती हैं। लेकिन जब आखिरकार, लंबे इंतज़ार के बाद अचानक झड़ी लगती है, तो टपटप करती बूँदें मन को कितना तरो-ताज़ा करती हैं!

बाइबल में जिन इलाकों का ज़िक्र है, वहाँ की ज़मीन भी तपती गरमी से राहत पाने का बेचैनी से इंतज़ार करती थी। मसलन, एशिया माइनर का अंदरूनी इलाका, जहाँ आज तुर्की देश है। प्राचीन समय में प्रेरित पौलुस ने इस इलाके में प्रचार किया था। वहाँ लुकाउनिया नाम के एक प्रांत में उसने लोगों से कहा: “[परमेश्‍वर] ने अपने आप को बे-गवाह न छोड़ा; किन्तु वह भलाई करता रहा, और आकाश से वर्षा और फलवन्त ऋतु देकर, तुम्हारे मन को भोजन और आनन्द से भरता रहा।” (प्रेरितों 14:17) गौर कीजिए कि पौलुस ने सबसे पहले वर्षा का ज़िक्र किया, क्योंकि इसके बिना न ज़मीन पर कुछ उग सकता है, न ही “फलवन्त ऋतु” आ सकते हैं।

बारिश एक ऐसा विषय है, जिसका बाइबल में कई बार ज़िक्र आता है। बाइबल की किताबें इब्रानी और यूनानी भाषा में लिखी गयी थीं और उनमें शब्द “बारिश” सौ से भी ज़्यादा बार आया है। क्या आप परमेश्‍वर के इस अनोखे वरदान के बारे में ज़्यादा जानना चाहेंगे? और यह भी कि बाइबल जो कहती है वह कैसे विज्ञान के अनुसार बिलकुल सही है? इस जानकारी से बाइबल पर आपका भरोसा मज़बूत होगा।

बारिश के बारे में बाइबल क्या कहती है?

यीशु मसीह ने अपने एक उपदेश में एक ऐसे इंतज़ाम की तरफ हमारा ध्यान खींचा जिसके बिना बारिश नहीं हो सकती। उसने कहा: ‘तुम्हारा पिता भलों और बुरों दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मियों और अधर्मियों दोनों पर मेंह बरसाता है।’ (मत्ती 5:45) क्या आपने गौर किया कि यीशु ने बरसात से पहले सूर्य का ज़िक्र किया? यह सही है क्योंकि सूरज की गरमी न सिर्फ पौधों को बढ़ने के लिए ऊर्जा देती है, बल्कि इसी से पृथ्वी का जल-चक्र भी बराबर चलता रहता है। सूरज की गरमी से हर साल सागरों से चार लाख क्यूबिक किलोमीटर से ज़्यादा पानी भाप बनकर ऊपर उठ जाता है। सूरज को यहोवा ने बनाया है, इसलिए बाइबल बिलकुल सही कहती है कि परमेश्‍वर जल को ऊपर खींच लेता है ताकि बरसात हो।

बाइबल यह भी बताती है कि जल-चक्र कैसे काम करता है। और इसका वर्णन विज्ञान के हिसाब से बिलुकल सही है: “ईश्‍वर . . . जल की बूंदें ऊपर को खींच लेता है वे कुहरे से मेंह होकर टपकती हैं, वे ऊंचे ऊंचे बादल उंडेलते हैं और मनुष्यों के ऊपर बहुतायत से बरसाते हैं।” (अय्यूब 36:26-28) इन शब्दों को लिखे हज़ारों साल बीत चुके हैं और इस दौरान इंसान ने काफी खोजबीन की है कि जल-चक्र कैसे काम करता है। मगर नतीजा? “आज तक कोई भी यह ठीक-ठीक नहीं पता लगा पाया कि बारिश की बूँदें कैसे बनती हैं,” जैसा कि जल-विज्ञान पर सन्‌ 2003 की एक किताब, वॉटर साइंस एंड इंजीनियरिंग कहती है।

बारिश की बूँदें कैसे बनती हैं, इस बारे में वैज्ञानिकों को बस मोटे तौर पर जानकारी है। वे बताते हैं कि जब सागर का पानी भाप बनकर ऊपर उठता है, तो वह पानी के सूक्ष्म कणों में बदल जाता है। और इन्हीं कणों से बादल बनते हैं। फिर बादल में मौजूद पानी के हर कण का आकार करीब दस लाख गुना बढ़ जाता है, और यही बारिश की एक बूँद होती है। यह एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें घंटों लगते हैं। विज्ञान की एक किताब, हाइड्रोलॉजी इन प्रैक्टिस कहती है: “बादल में मौजूद पानी के कण किस तरह बारिश की बूँदों में बदल जाते हैं, इसे वैज्ञानिक कई तरीकों से समझाते हैं। इस प्रक्रिया की हरेक बारीकी पर वैज्ञानिक खोज कर रहे हैं, ताकि वे इसे सही-सही जान सकें।”

परमेश्‍वर ने ही वह प्रक्रिया बनायी है जिससे बारिश होती है, इसलिए वह अय्यूब नाम के अपने एक सेवक से यह सवाल कर सका: “क्या मेंह का कोई पिता है, और ओस की बूंदें किस ने उत्पन्‍न की? किस ने अन्तःकरण [“बादलों”, नयी हिन्दी बाइबिल] में बुद्धि उपजाई . . . कौन बुद्धि से बादलों को गिन सकता है? और कौन आकाश के कुप्पों को उण्डेल सकता है।” (अय्यूब 38:28, 36, 37) अय्यूब इन सवालों के जवाब न दे सका और आज करीब 3,500 साल बाद भी वैज्ञानिक इन सवालों की गुत्थी नहीं सुलझा पाए हैं।

जल-चक्र किस ओर चलता है?

पुराने ज़माने के यूनानी तत्वज्ञानी सिखाते थे कि नदियाँ बारिश के पानी से नहीं, बल्कि समुंदर के पानी से बनती हैं। उनके मुताबिक समुंदर का पानी ज़मीन के नीचे से बहता हुआ किसी तरह पहाड़ों की चोटियों तक पहुँच जाता है और रास्ते में खारा पानी मीठे पानी में बदल जाता है, उसी से फिर नदियाँ बनती हैं। बाइबल पर टिप्पणी देनेवाली एक किताब कहती है कि सुलैमान भी जल-चक्र के बारे में वही धारणा रखता था जो यूनानी तत्वज्ञानी सिखाते थे। सुलैमान ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखा था: “सब नदियां समुद्र में जा मिलती हैं, तौभी समुद्र भर नहीं जाता; जिस स्थान से नदियां निकलती हैं, उधर ही को वे फिर जाती हैं।” (सभोपदेशक 1:7) मगर क्या सुलैमान के कहने का यही मतलब था कि सागर का पानी किसी तरह पहाड़ों के अंदर पहुँच जाता है और फिर वही पानी बहकर नदियों का रूप ले लेता है? जवाब के लिए आइए देखें कि सुलैमान के देश के लोग जल-चक्र के बारे में क्या मानते थे। क्या वे भी झूठी धारणाओं पर यकीन करते थे?

मिसाल के लिए, परमेश्‍वर का नबी एलिय्याह भी जानता था कि बारिश का पानी कहाँ से आता है। वह सुलैमान के ज़माने से करीब 70 साल बाद का नबी था। उसके दिनों में इसराएल देश में तीन साल से भंयकर सूखा पड़ा था। (याकूब 5:17) यह विपत्ति यहोवा परमेश्‍वर लाया था क्योंकि इसराएली उसे छोड़ कनान देश के बाल नाम के वर्षा देवता को पूजने लगे थे। इसलिए एलिय्याह ने इसराएलियों को समझाया और उन्हें पश्‍चाताप करने का बढ़ावा दिया। फिर उसने बारिश के लिए प्रार्थना की और अपने सेवक से कहा कि वह “सुमद्र की ओर” देखे। जब सेवक ने एलिय्याह से कहा कि “समुद्र में से मनुष्य का हाथ सा एक छोटा बादल उठ रहा है,” तो वह जान गया कि उसकी प्रार्थना सुन ली गयी है। फिर कुछ ही समय के अंदर “आकाश वायु से उड़ाई हुई घटाओं, और आन्धी से काला हो गया और भारी वर्षा होने लगी।” (1 राजा 18:43-45) यह वाकया दिखाता है कि एलिय्याह को जल-चक्र के बारे में मालूम था। वह जानता था कि बादल समुंदर के ऊपर बनते हैं और पूरब की तरफ बहती हवा उन काली घटाओं को उसके देश की तरफ ले आती है और तब ये बादल बरसने लगते हैं। आज भी उस देश में बारिश इसी तरीके से होती है।

अब एलिय्याह से सौ साल बाद के एक नबी आमोस पर गौर कीजिए। हालाँकि वह एक मामूली किसान था, मगर उसने कुछ ऐसी बात कही जिससे जल-चक्र के बारे में एक अहम जानकारी मिलती है। आमोस के दिनों में इसराएली, गरीबों पर अत्याचार करते थे और झूठे धर्म के देवी-देवताओं को पूजते थे। इसलिए परमेश्‍वर ने उससे यह भविष्यवाणी करने को कहा कि वह उन्हें नाश करने जा रहा है। आमोस ने इसराएलियों से आग्रह किया कि वे ‘यहोवा की खोज करें,’ तभी वे परमेश्‍वर के हाथों नाश होने से बचेंगे और “जीवित” रह पाएँगे। उसने यह भी समझाया कि उपासना सिर्फ यहोवा की करनी चाहिए क्योंकि वही सिरजनहार है, जो “समुद्र का जल स्थल के ऊपर बहा देता है।” (आमोस 5:6, 8) बाद में एक बार फिर, आमोस ने यह बढ़िया जानकारी दोहराते हुए बताया कि जलचक्र में पानी कहाँ से कहाँ जाता है। (आमोस 9:6) उसने बताया कि ज़मीन पर बरसनेवाला ज़्यादातर पानी महासागर से आता है।

इस बात को एडमंड हैली नाम के वैज्ञानिक ने सन्‌ 1687 में सही साबित किया। मगर हैली के दिए सबूतों पर लोगों ने लंबे अरसे तक यकीन नहीं किया। इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका ऑनलाइन कहती है: “अठारहवीं सदी के शुरू के सालों तक भी लोग इसी धारणा को पकड़े हुए थे कि पृथ्वी के अंदर कोई प्रणाली है, जिससे सागर का पानी सीधे पर्वत की चोटियों तक पहुँच जाता है और फिर वहाँ से बहता है।” मगर आज तो बच्चा-बच्चा भी जानता है कि जल-चक्र में पानी कहाँ से कहाँ जाता है। वही इनसाइक्लोपीडिया जल-चक्र के बारे में कहती है: “सागर का पानी भाप बनकर ऊपर उठता है और वायुमंडल में संघनित होता है, फिर यह बारिश की बूँदें बनकर ज़मीन पर गिरता है, और फिर नदियों के रूप में दोबारा सागर में जा मिलता है।” सभोपदेशक 1:7 में सुलैमान ने भी यही बताया कि बारिश इसी प्रक्रिया से होती है।

इस जानकारी का आप पर कैसा असर होना चाहिए?

वाकई, बाइबल के लेखकों ने जल-चक्र के बारे में कैसी सटीक जानकारी दी है! यह उन ढेरों सबूतों में से महज़ एक सबूत है जो लाजवाब तरीके से दिखाते हैं कि बाइबल को इंसान के रचनाकार, यहोवा परमेश्‍वर ने लिखवाया था। (2 तीमुथियुस 3:16) आज इंसान ने पृथ्वी की देखभाल करने में इस कदर लापरवाही बरती है और पर्यावरण के साथ ऐसा खिलवाड़ किया है कि मौसम का पूरा संतुलन ही बिगड़ गया है। नतीजा, दुनिया के कुछ इलाकों में बाढ़ का प्रकोप है तो कहीं सूखे की ज़बरदस्त मार। मगर जल-चक्र के बनानेवाले, परमेश्‍वर यहोवा ने बहुत पहले ही यह वादा किया था कि एक दिन वह ज़रूर पृथ्वी की रक्षा करने के लिए कदम उठाएगा और ‘पृथ्वी के बिगाड़नेवालों का नाश कर देगा।’—प्रकाशितवाक्य 11:18.

उस समय की राह देखने के साथ-साथ, आप परमेश्‍वर के लिए अपनी कदरदानी कैसे दिखा सकते हैं, जिसने हमें बारिश जैसे कई तोहफे दिए हैं? उसके वचन, बाइबल का अध्ययन कीजिए और आप जो सीखते हैं उस पर अमल कीजिए। तब आपको उस नयी दुनिया में जीने का मौका मिलेगा जो परमेश्‍वर लानेवाला है। वहाँ आप परमेश्‍वर के सभी तोहफों का हमेशा-हमेशा तक आनंद ले पाएँगे। वाकई, “हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान” यहोवा की तरफ से ही मिलता है, जिसने बारिश को भी बनाया है।—याकूब 1:17. (w09 1/1)

[पेज 26, 27 पर रेखाचित्र/तसवीर]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

संघनन

वर्षण

पेड़-पौधों से वाष्पीकरण

भाप बनना

नदी-नाले

ज़मीन के नीचे का पानी

[पेज 26 पर तसवीर]

जब एलिय्याह प्रार्थना कर रहा था, तब उसके सेवक ने “सुमद्र की ओर” देखा