उसने अपनी गलतियों से सबक सीखा
उनके विश्वास की मिसाल पर चलिए
उसने अपनी गलतियों से सबक सीखा
चारों-तरफ भयानक आवाज़ें, इतना शोर-गुल कि योना को लगा कि उसके कान के पर्दे फट जाएँगे। एक तो भंयकर तूफान से जहाज़ के पाल की मोटी-मोटी रस्सियाँ चरमरा रही थीं और आसमान-सी ऊँची, गरजती लहरें जहाज़ से बुरी तरह टकरा रही थीं, जिससे लग रहा था कि लकड़ी का यह जहाज़ टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा। इस पर जहाज़ के कप्तान से लेकर सभी नाविकों का चीखना-चिल्लाना, जो किसी तरह जहाज़ को बचाने की जद्दोजेहद में लगे हुए थे। योना को यकीन हो चला कि अब ये सब-के-सब आँधी की भेंट चढ़ जाएँगे। और इस पूरी तबाही का कसूरवार कौन? वह खुद!
आखिर योना इतनी बड़ी मुसीबत में कैसे फँस गया? दरअसल, उसने अपने परमेश्वर यहोवा की नज़र में बहुत बड़ी गलती की थी, जिस वजह से परमेश्वर के साथ उसका रिश्ता बिगड़ गया था। योना ने ऐसा क्या किया था? क्या यहोवा के साथ उसका रिश्ता हमेशा के लिए टूट गया था? इन सवालों के जवाब जानने से हम काफी कुछ सीख सकते हैं। मिसाल के लिए, योना की कहानी से हम सीखते हैं कि ऐसा इंसान भी गलती कर सकता है, जो पूरे दिल से परमेश्वर पर विश्वास करता है। और यह भी कि वह कैसे अपनी गलती सुधार सकता है।
गलील का एक नबी
योना—यह नाम सुनते ही अकसर लोगों का ध्यान सिर्फ उसकी खामियों पर जाता है कि उसने बार-बार परमेश्वर की आज्ञा तोड़ी और वह बड़ा ही ज़िद्दी आदमी था। लेकिन तसवीर का दूसरा रुख भी है, योना में ऐसी कई अच्छी बातें थीं जो जानने लायक हैं। याद कीजिए कि यहोवा परमेश्वर ने योना को अपना नबी चुना था। अगर वह भरोसे के लायक न होता या बुरा इंसान होता, तो यहोवा उसे इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी कभी नहीं सौंपता।
बाइबल की किताब 2 राजा 14:25 से हमें पता चलता है कि योना कहाँ का रहनेवाला था और किस दौर का नबी था। वह गथेपेर नाम के कसबे का रहनेवाला था, जो दस गोत्रवाले इसराएल राज्य में था। गथेपेर, नासरत नगर से बस चार किलोमीटर की दूरी पर था, जहाँ करीब आठ सौ साल बाद यीशु मसीह की परवरिश हुई थी। * योना के दिनों में इसराएल राज्य पर राजा यारोबाम द्वितीय का शासन था। एलिय्याह नबी को गुज़रे एक ज़माना हो गया था। एलिय्याह के बाद एलीशा नबी आया, जिसकी मौत यारोबाम के पिता के समय में हो गयी थी। हालाँकि यहोवा ने एलिय्याह और एलीशा के ज़रिए इसराएल देश से झूठे देवता बाल की उपासना मिटा दी थी, मगर अब योना के समय में इसराएली फिर से जानबूझकर यहोवा से दूर जाने लगे थे। और उनका राजा, यारोबाम द्वितीय भी ‘वही कर रहा था, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था।’ (2 राजा 14:24) ऐसे खराब माहौल में रहते हुए परमेश्वर की सेवा करना, योना के लिए आसान नहीं रहा होगा, उसके सामने कई मुश्किलें आयी होंगी। फिर भी वह वफादारी से परमेश्वर की सेवा करता रहा।
फिर एक दिन योना की ज़िंदगी में एक अलग मोड़ आया। यहोवा ने उसे एक ऐसा काम सौंपा, जो योना के हिसाब से लोहे के चने चबाने जैसा था। आखिर वह क्या काम था?
‘उठकर नीनवे जा’
यहोवा ने योना से कहा: “उठकर उस बड़े नगर नीनवे को जा, और उसके विरुद्ध प्रचार कर; क्योंकि उसकी बुराई मेरी दृष्टि में बढ़ गई है।” (योना 1:2) योना इस काम से बहुत डर गया और यह वाजिब भी था। नीनवे उसके नगर से पूरब की तरफ 800 किलोमीटर दूर था और वहाँ तक पैदल चलकर जाने में उसे लगभग एक महीना लग जाता। मगर इतनी दूर पैदल चलने में जो कठिनाइयाँ आतीं, उनके बारे में उसे इतनी चिंता नहीं थी। शायद उसे सबसे ज़्यादा इस बात का डर था कि वह वहाँ के लोगों को यहोवा का संदेश कैसे सुनाएगा। वहाँ अश्शूरी लोग रहते थे, जो बेरहम और वहशी होने के लिए जाने जाते थे। और योना को उन्हें यह संदेश देना था कि यहोवा उन्हें नाश करने जा रहा है। योना ने यह भी सोचा होगा कि आज तक जब परमेश्वर के अपने लोगों ने मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया तो नीनवे के लोग, जो यहोवा को मानते तक नहीं, वे कहाँ मेरी बात सुनेंगे। वे लोग इतने खूँखार थे कि आगे चलकर उनका पूरा शहर ही “हत्यारी नगरी” कहलाया। तो क्या नीनवे जैसे बड़े शहर में यहोवा का एक अकेला सेवक, योना कामयाब हो पाता?—नहूम 3:1, 7.
ऐसे खयाल योना के मन में आए थे या नहीं, यह हम पक्का नहीं कह सकते। लेकिन हम इतना ज़रूर जानते हैं कि वह इस काम से पीछा छुड़ाकर भाग गया। यहोवा ने उसे जहाँ जाने के लिए कहा था, वह पूरब में था, मगर वह पश्चिम की तरफ भागा। और वह भी इतनी दूर जितना उसके लिए मुमकिन था। पहले तो वह दक्षिण में यापा नाम के
एक बंदरगाह शहर में गया, जहाँ वह तर्शीश जानेवाले एक जहाज़ पर चढ़ गया। कुछ विद्वानों का मानना है कि तर्शीश, स्पेन में था। अगर यह सच है, तो योना नीनवे से करीब 3,500 किलोमीटर दूर जा रहा था। दूसरे शब्दों में, योना विशाल भूमध्य सागर (जो उसके ज़माने में महासागर कहलाता था) के एक छोर से दूसरे छोर जा रहा था। इस सफर में साल-भर का समय लग सकता था! मतलब, योना ने ठान लिया था कि वह किसी भी सूरत में यहोवा का दिया काम नहीं करेगा।क्या इसका यह मतलब है कि योना बुज़दिल था? इतनी जल्दी इस नतीजे पर पहुँचना सही नहीं होगा। क्योंकि जैसा कि हम आगे देखेंगे, ज़रूरत पड़ने पर योना ने भी कमाल की बहादुरी दिखायी। हालाँकि वह एकाध बार डर गया था, मगर हम यह न भूलें कि वह भी हमारी तरह असिद्ध इंसान था, जिसके लिए अपनी कमज़ोरियों पर काबू पाना एक संघर्ष रहा होगा। (भजन 51:5) क्या यह सच नहीं कि हममें से हर कोई कभी-न-कभी डर के आगे बेबस हो जाता है?
कभी-कभी हमें लग सकता है कि परमेश्वर हमसे जो करने के लिए कह रहा है, वह बहुत मुश्किल है या हमारे बस की बात नहीं है। यहाँ तक कि परमेश्वर के राज का सुसमाचार सुनाने में भी हमें डर लग सकता है, जो कि हर मसीही की ज़िम्मेदारी है। (मत्ती 24:14) ऐसे में हम शायद यीशु की बतायी इस अहम सच्चाई को भूल जाएँ कि “परमेश्वर के लिए सब कुछ सम्भव है” यानी परमेश्वर की मदद से हम उसकी सभी आज्ञाएँ मान सकते हैं। (मरकुस 10:27) अगर कभी-कभी इस बात को नज़रअंदाज़ करने की वजह से डर हम पर हावी हो जाता है, तो हम योना की उलझन और डर को समझ सकते हैं। फिलहाल आइए देखें कि भागने के बाद योना के साथ क्या हुआ।
यहोवा अपने भटके नबी को सही रास्ते पर लाता है
योना जिस जहाज़ पर चढ़ा, वह शायद फीनीके देश का एक मालवाहक जहाज़ था। कल्पना कीजिए कि योना जहाज़ पर चढ़ चुका है। वह देख रहा है कि जहाज़ का कप्तान और सारे नाविक जहाज़ को बंदरगाह से निकालने के लिए जल्दी-जल्दी काम निपटा रहे हैं। फिर जहाज़ रवाना होता है और धीरे-धीरे समुद्र-तट पीछे छूटता जाता है और थोड़ी देर बाद तो किनारा नज़र ही नहीं आता। अब योना मन-ही-मन सोचता है, चलो मुसीबत टल गयी। मगर यह क्या, अचानक मौसम का मिज़ाज कैसे बदल गया?
तेज़ हवाएँ समुंदर में ऐसी उथल-पुथल मचा देती हैं कि दिल दहल जाए। लहरें इतनी ऊँची-ऊँची कि हमारे ज़माने के जहाज़ भी उनके आगे बौने लगते। और फिर यह तो लकड़ी का जहाज़ है जो सूखे पत्ते की तरह इधर-उधर डोल रहा है। तूफान थमने का नाम नहीं ले रहा और जहाज़ बीच समुंदर में हिचकोले खा रहा है। क्या योना जानता था कि ‘यह प्रचण्ड आंधी यहोवा ने चलाई’ है? हालाँकि बाद में उसने यह बात लिखी, लेकिन तूफान के समय उसे पता था या नहीं, यह हम नहीं जानते। जब उसने देखा कि नाविक अपने-अपने देवताओं को पुकार रहे हैं, तो वह जानता था कि उनके देवता कोई मदद नहीं कर सकते। जैसे उसने बाद में लिखा, उनका “जहाज़ टूटने पर था।” (योना 1:4; लैव्यव्यवस्था 19:4) योना को मालूम था कि सिर्फ यहोवा ही उन्हें बचा सकता है, मगर वह मदद के लिए उसे पुकारे भी तो कैसे पुकारे, क्योंकि वह तो उससे दूर भाग रहा था?
जब योना देखता है कि वह नाविकों की कुछ मदद नहीं कर सकता, तो वह जहाज़ के निचले हिस्से में जाकर लेट जाता है। वहाँ वह गहरी नींद सो जाता है। * जब कप्तान उसे वहाँ सोते हुए देखता है, तो उसे जगाता है और उससे गुज़ारिश करता है कि वह भी सबकी तरह अपने ईश्वर से दुआ करे। नाविकों को यकीन हो जाता है कि हो-न-हो यह ईश्वर का प्रकोप है, इसलिए वे सबके नाम से चिट्ठियाँ डालते हैं ताकि पता लगा सकें कि जहाज़ पर मौजूद किस इंसान की वजह से यह आफत आयी है। योना देखता है कि एक-एक कर सबके नाम से चिट्ठी डाली जा रही है, मगर उनका नाम नहीं निकल रहा। जैसे-जैसे उसकी बारी नज़दीक आती है, उसकी धड़कन तेज़ होने लगती है। फिर जल्द ही सच्चाई सबके सामने आ जाती है। चिट्ठी योना के नाम पर पड़ती है। इस तरह यहोवा खुलासा कर देता है कि योना ही कसूरवार है और उसी की वजह से यहोवा यह तूफान लाया है।—योना 1:5-7.
अब योना उन नाविकों को सब कुछ सच-सच बता देता है। वह बताता है कि वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर, यहोवा का सेवक है। परमेश्वर ने उसे एक काम दिया था मगर वह उससे भाग रहा है, इसलिए परमेश्वर उससे नाराज़ है। और इसी वजह से उन सब पर यह संकट टूट पड़ा है। यह सुनकर सबके होश फाख्ता हो जाते हैं, वे डर के मारे काँपने लगते हैं। वे योना से पूछते हैं कि अब इस संकट से निकलने के लिए उन्हें क्या करना होगा। योना क्या कहता है? वह जानता है कि उनके बचने का एक ही उपाय है, उसे समुंदर में फेंक देना। उस तूफानी समुंदर के ठंडे पानी में डूबने के खयाल से ही योना के रोंगटे खड़े हो गए होंगे। लेकिन यह जानते हुए कि वह उनकी जान बचा सकता है, वह कैसे उन्हें मौत के मुँह में जाने दे सकता है? इसलिए वह उनसे कहता है: “मुझे उठाकर समुद्र में फेंक दो; तब समुद्र शान्त पड़ जाएगा; क्योंकि मैं जानता हूं, कि यह भारी आंधी तुम्हारे ऊपर मेरे ही कारण आई है।”—योना 1:12.
आपको क्या लगता है, क्या कोई बुज़दिल ऐसा कहेगा? इस खतरे की घड़ी में योना ने जिस तरह हिम्मत से काम लिया और दूसरों की खातिर अपनी जान न्यौछावर करने के लिए तैयार हो गया, यह देखकर यहोवा का दिल कितना खुश हुआ होगा! इसमें कोई शक नहीं कि योना का विश्वास बहुत मज़बूत था! आज हमें भी उसकी मिसाल पर चलते हुए, अपने से ज़्यादा दूसरों की भलाई का ध्यान रखना चाहिए। (यूहन्ना 13:34, 35) जब हम देखते हैं कि किसी को शारीरिक मदद की ज़रूरत है, या कोई मायूस है या यहोवा की उपासना से जुड़ी किसी बात में उसे मदद की ज़रूरत है, तो क्या हम उसकी मदद करने के लिए अपनी तरफ से हर मुमकिन कोशिश करते हैं? हमें ऐसा करते देखकर यहोवा कितना खुश होगा!
जब योना ने नाविकों से कहा कि वे उसे समुंदर में फेंक दें, तो उन्हें शायद उस पर तरस आया होगा। इसलिए पहले तो उन्होंने इनकार कर दिया। और वे जहाज़ को तूफान से बाहर निकालने की पुरज़ोर कोशिश करने लगे। मगर उनकी सारी कोशिशें बेकार जा रही थीं। तूफान बढ़ता ही जा रहा था। अब उनके पास कोई चारा नहीं था। इसलिए उन्होंने योना के परमेश्वर, यहोवा को पुकारा और कहा कि वह उन पर रहम करे। फिर उन्होंने योना को उठाया और समुंदर में फेंक दिया।—योना पर दया दिखायी गयी और उसे छुड़ाया गया
योना उफनती लहरों में जा गिरा। उसने डूबने से बचने के लिए शायद कुछ देर अपने हाथ-पैर मारे होंगे। समुंदर के हिलोरे लेते पानी और लहरों के बीच से उसने देखा होगा कि जहाज़ तेज़ी से चला जा रहा है। मगर योना को बड़ी-बड़ी लहरों ने अपनी गिरफ्त में ले लिया और समुंदर में नीचे धकेल दिया। बेबस होकर वह डूबता गया और उसे लगा कि अब उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं।
योना ने बाद में बताया कि इस वक्त उसके दिल पर क्या बीत रही थी। उसके मन में एक-के-बाद-एक कई तसवीरें उभरने लगीं। यह सोचकर उसे बहुत दुख हुआ कि अब वह फिर कभी यरूशलेम में यहोवा का भव्य मंदिर नहीं देख पाएगा। वह महसूस कर पा रहा था कि वह डूबते-डूबते सागर की गहराइयों तक पहुँच गया है, जहाँ पहाड़ों की जड़ें होती हैं। फिर वह समुद्री शैवाल में फँस गया। उसे लगा कि यही उसकी कब्र बन जाएगी।—योना 2:2-6.
लेकिन यह क्या? उसे पास में एक काली-सी बड़ी चीज़ दिखायी दे रही थी जो हिल रही थी। यह तो कोई जानदार चीज़ थी! वह धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ रही थी। और जैसे ही वह योना के पास आयी, उसने अपना बड़ा-सा मुँह खोला और योना को निगल लिया!
योना ने सोचा कि अब यही मेरा अंत है। मगर यह क्या, वह तो अभी-भी ज़िंदा था। उसे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था। वह न तो चबाया गया, न हज़म किया गया और न ही उसे घुटन महूसस हुई। उसकी साँस अब भी चल रही थी, जबकि यह जगह ऐसी थी जहाँ से कोई ज़िंदा नहीं बच सकता। धीरे-धीरे योना का दिल यहोवा के लिए विस्मय से भर गया। इसमें कोई शक नहीं कि योना के परमेश्वर यहोवा ने ही उसे “निगल जाने के लिए एक बहुत बड़ी मछली भेजी” थी। *—योना 1:17, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।
एक-एक पल गुज़रने लगा, एक घंटा बीता, फिर दूसरा घंटा और इसी तरह समय बीतता गया। वहाँ उस गहरे अंधकार में योना के पास सोचने के लिए बहुत समय था। उसने यहोवा परमेश्वर से प्रार्थना की। उसकी यह पूरी प्रार्थना बाइबल की योना किताब के दूसरे अध्याय में दर्ज़ है और इससे हमें योना के बारे में काफी कुछ पता चलता है। इस प्रार्थना में उसने भजनों की किताब से कई हवाले दिए, जो दिखाता है कि योना को शास्त्र का अच्छा ज्ञान था। और उसके एक अच्छे गुण के बारे में भी पता चलता है, वह है एहसानमंदी। योना ने अपनी प्रार्थना के आखिर में कहा: “मैं ऊंचे शब्द से धन्यवाद करके तुझे बलिदान चढ़ाऊंगा; जो मन्नत मैं ने मानी, उसको पूरी करूंगा। उद्धार यहोवा ही से होता है!”—योना 2:9.
योना ने एक अहम बात सीखी कि सिर्फ यहोवा ही अपने सेवकों का उद्धार कर सकता है। वह कहीं पर भी और किसी भी वक्त उनका उद्धार कर सकता है। यहाँ तक कि “मछली के पेट में,” जहाँ से बचने की कोई उम्मीद नहीं थी, वहाँ भी यहोवा ने अपने सेवक योना को ढूँढ़ निकाला और उसकी जान बचायी। (योना 1:17) केवल यहोवा ही किसी इंसान को तीन दिन और तीन रात एक बड़ी मछली के पेट में ज़िंदा और सही-सलामत रख सकता है। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि यहोवा ही वह ‘परमेश्वर है, जिसके हाथ में हमारा प्राण है।’ (दानिय्येल 5:23) हम अपनी हर साँस के लिए, अपने पूरे वजूद के लिए यहोवा के कर्ज़दार हैं। तो क्या हमें इसके लिए एहसानमंद नहीं होना चाहिए? जब यहोवा ने हमें ज़िंदगी दी है तो क्या हमारा फर्ज़ नहीं बनता कि हम उसकी आज्ञाएँ मानें?
योना के बारे में क्या कहा जा सकता है? क्या उसने सबक सीखा और यहोवा की आज्ञा मानकर अपनी एहसानमंदी दिखायी? जी हाँ। तीन दिन और तीन रात के बाद, वह मछली योना को सीधे समुंदर के किनारे ले गयी और उसे “स्थल पर उगल दिया।” (योना 2:10) सोचिए, योना को किनारे तक तैरने की ज़रूरत भी नहीं पड़ी! हाँ, उसे किनारे से आगे का रास्ता ज़रूर ढूँढ़ना पड़ा। लेकिन जल्द ही उसे यह दिखाने का मौका मिला कि वह यहोवा का एहसानमंद है या नहीं। योना 3:1, 2 में लिखा है: “तब यहोवा का यह वचन दूसरी बार योना के पास पहुंचा, उठकर उस बड़े नगर नीनवे को जा, और जो बात मैं तुझ से कहूंगा, उसका उस में प्रचार कर।” इस बार योना ने क्या किया?
इस बार योना बिलकुल नहीं हिचकिचाया। बाइबल बताती है: “तब योना यहोवा के वचन के अनुसार नीनवे को गया।” (योना 3:3) जी हाँ, उसने परमेश्वर की आज्ञा मानी। उसने अपनी गलतियों से सबक सीख लिया था। इस मामले में भी हमें योना के विश्वास की मिसाल पर चलना चाहिए। हम सब पाप करते हैं, गलतियाँ करते हैं। (रोमियों 3:23) लेकिन क्या हम इस वजह से निराश होकर हार मान लेते हैं? या हम अपनी गलतियों से सबक सीखकर यहोवा के पास लौट आते हैं और उसकी आज्ञा मानते हुए उसकी सेवा करते हैं?
जब योना ने यहोवा की आज्ञा मानी, तो क्या यहोवा ने उसे आशीष दी? हाँ ज़रूर। एक तो यह कि बाद में योना को शायद पता चला कि उस जहाज़ के नाविक ज़िंदा बच गए। इतना ही नहीं, जब नाविकों ने देखा कि योना को समुंदर में फेंकने के फौरन बाद तूफान शांत हो गया, योना 1:15, 16.
तो उन्होंने ‘यहोवा का बहुत भय माना’ और अपने झूठे देवताओं के बजाय यहोवा को बलिदान चढ़ाया।—और-तो-और, सदियों बाद यीशु ने भी अपनी एक भविष्यवाणी में योना का ज़िक्र किया। उसने कहा कि जिस तरह योना बड़ी मछली के पेट में तीन दिन और तीन रात रहा, उसी तरह वह खुद भी मौत के बाद तीन दिन और तीन रात कब्र में रहेगा। (मत्ती 12:38-40) जब भविष्य में योना को धरती पर ज़िंदा किया जाएगा, तो वह यह जानकर कितना रोमांचित होगा कि यीशु ने अपनी एक भविष्यवाणी में उसके बारे में बताया था। (यूहन्ना 5:28, 29) यहोवा आपको भी आशीष देना चाहता है। मगर क्या आप योना की तरह अपनी गलतियों से सबक सीखने, परमेश्वर की आज्ञा मानने और त्याग की भावना दिखाने के लिए तैयार हैं? (w09 1/1)
[फुटनोट]
^ यह बात गौर करने लायक है कि योना, गलील प्रदेश के गथेपेर नगर का रहनेवाला था। यीशु का नगर नासरत भी गलील में था। लेकिन यीशु का इनकार करते हुए उसके दिनों के घमंडी फरीसियों यानी यहूदी धर्म-गुरुओं ने कहा: “देख, कि गलील से कोई भविष्यद्वक्ता प्रगट नहीं होने का।” (यूहन्ना 7:52) बाइबल के कई अनुवादकों और खोजकर्ताओं का कहना है कि फरीसी, सबूतों को नज़रअंदाज़ करके कह रह थे कि गलील जैसे गुमनाम इलाके से न तो अब तक कोई नबी आया है और न कभी आएगा। फरीसियों का ऐसा मानना दिखाता है कि वे इतिहास और भविष्यवाणी, दोनों को अनदेखा कर रहे थे।—यशायाह 9:1, 2.
^ सेप्टुआजेंट बाइबल में बताया गया है कि योना इतनी गहरी नींद सो रहा था कि वह खर्राटे ले रहा था। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि योना बिलकुल बेफिक्र था। जब एक इंसान बहुत ही मायूस हो जाता है, तो उसका दिमाग सुस्त हो जाता है और नींद उस पर हावी होने लगती है। यीशु के कुछ चेलों के साथ भी ऐसा ही हुआ था। गतसमनी के बाग में जब यीशु गहरी मानसिक वेदना में था, तो उसके चेले पतरस, याकूब और यूहन्ना ‘उदासी के मारे सो’ गए।—लूका 22:45.
^ जब बाइबल का अनुवाद इब्रानी भाषा से यूनानी में किया गया, तो “मछली” के लिए जो इब्रानी शब्द था, उसका अनुवाद “डरावना समुद्री जीव” या “बहुत बड़ी मछली” किया गया। हालाँकि यह ठीक-ठीक पता नहीं लगाया जा सकता कि वह किस तरह का समुद्री जीव था, मगर भूमध्य सागर में इतनी बड़ी-बड़ी शार्क मछलियाँ पायी गयी हैं जो एक पूरे इंसान को निगल सकती हैं। दूसरे महासागरों में तो इससे भी बड़ी-बड़ी शार्क मछलियाँ हैं, जैसे व्हेल शार्क। उसकी लंबाई करीब 15 मीटर या उससे भी ज़्यादा हो सकती है!
[पेज 31 पर बक्स/तसवीर]
योना पर आलोचकों का हमला
▪ बाइबल की किताब, योना में जो घटनाएँ दर्ज़ हैं, क्या वे सच्ची हैं? पुराने ज़माने से ही इस किताब की नुक्ताचीनी की गयी है। आज भी कई विद्वान बाइबल में नुक्स निकालने के इरादे से, उसमें दर्ज़ इतिहास का बारीकी से अध्ययन करते हैं। ऐसे लोग अकसर योना की किताब को एक नीति-कथा या पौराणिक या काल्पनिक कहानी कहकर नज़रअंदाज़ कर देते हैं। उन्नीसवी सदी के एक लेखक ने बताया कि एक पादरी योना की कहानी कैसे समझाता था। वह कहता था कि योना और बड़ी मछली की कहानी एक अजीबो-गरीब रूपक-कथा है। योना को जिस मछली ने निगल लिया था, वह दरअसल कोई मछली नहीं बल्कि यापा शहर का एक होटल था, जिसका नाम ‘व्हेल’ था। योना इस होटल में ठहरा था, मगर जब वह किराया नहीं दे पाया, तो मालिक ने उसे बाहर फेंक दिया। उस पादरी के मुताबिक, मछली के पेट में चले जाने और उगल दिए जाने का यही मतलब है! योना की किताब की नुक्ताचीनी दिखाती है कि उस बड़ी मछली ने तो योना को उगल दिया मगर आलोचक हैं कि उसका वजूद ही मिटा देना चाहते हैं।
आखिर क्यों बहुत-से लोग योना की किताब की सच्चाई पर सवाल उठाते हैं? क्योंकि इसमें कई चमत्कार दर्ज़ हैं। और चमत्कारों के बारे में कई आलोचक इस धारणा पर अड़े रहते हैं कि चमत्कार हो ही नहीं सकते। लेकिन क्या ऐसा मानना सही है? खुद से पूछिए: क्या मैं बाइबल की पहली आयत पर यकीन करता हूँ, जहाँ लिखा है: “आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की”? (उत्पत्ति 1:1) दुनिया-भर में ऐसे लाखों लोग हैं, जिन्होंने इस बारे में सबूतों की जाँच की है और वे इस सरल सच्चाई पर विश्वास करते हैं। एक तरह से देखा जाए तो इस एक वाक्य में अनगिनत चमत्कारों का ज़िक्र है। बाइबल में आगे चलकर जितने चमत्कारों के बारे में बताया गया है, उनसे कई गुना ज़्यादा चमत्कार यहोवा ने आकाश और पृथ्वी को बनाते वक्त किए थे।
गौर कीजिए: जिसने तारों से भरा यह विशाल आकाशमंडल बनाया है और धरती पर इतने सारे जीवों की सृष्टि की, जिनकी बनावट बेहद जटिल और अनोखी है, वह योना की किताब में बताए कौन-से चमत्कार नहीं कर सकता? क्या वह एक तूफान नहीं ला सकता? क्या वह ऐसा नहीं कर सकता कि एक बड़ी मछली एक आदमी को निगल जाए? या उसी मछली से उस आदमी को उगलवा नहीं सकता? जिसके पास असीम शक्ति है, उसके लिए इनमें से एक भी काम नामुमकिन नहीं।—यशायाह 40:26.
कभी-कभी ऐसी अनोखी घटनाएँ घटती हैं जिनमें परमेश्वर का कोई हाथ नहीं होता। जैसे, कहा जाता है कि सन् 1758 में भूमध्य सागर में एक नाविक अपने जहाज़ से गिर गया और उसे एक शार्क ने निगल लिया। लेकिन जब शार्क पर गोला दागा गया, तो उसने नाविक को उगल दिया। इस तरह वह नाविक ज़िंदा बच गया और उसे ज़्यादा चोट भी नहीं आयी। अगर यह कहानी सच है तो हम इसे ज़रूर एक अजूबा या हैरतअँगेज़ कहानी कहेंगे। लेकिन हम इसे परमेश्वर का चमत्कार नहीं कहेंगे। सोचिए कि अगर इत्तफाक से ऐसी घटनाएँ हो सकती हैं, तो क्या परमेश्वर अपनी शक्ति का इस्तेमाल करके इससे भी बड़े-बड़े हैरतअँगेज़ काम नहीं कर सकता?
योना की किताब की सच्चाई पर शक करनेवाले यह आरोप भी लगाते हैं कि कोई भी इंसान मछली के पेट में तीन दिन तक ज़िंदा नहीं रह सकता। वह तो दम घुटने से मर जाएगा। पर क्या यह आरोप सही है? आज इंसानों ने ऐसे ऑक्सीजन टैंक बनाए हैं जिनकी मदद से वे गहरे सागर में भी साँस ले सकते हैं और कई दिनों तक ज़िंदा रह सकते हैं। जब इंसान ऐसे करामात कर सकता है तो क्या परमेश्वर, जिसके पास असीम शक्ति और बुद्धि है, वह योना को तीन दिन गहरे सागर में ज़िंदा नहीं रख सकता? सच तो यह है कि यहोवा कुछ भी कर सकता है, जैसा कि उसके एक स्वर्गदूत ने यीशु की माँ मरियम से कहा था: “परमेश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं।”—लूका 1:37, NHT.
क्या योना की किताब की पैरवी करने के लिए और भी कुछ सबूत हैं? एक सबूत यह है कि योना ने जहाज़ और नाविकों के बारे में जो ब्यौरा दिया, वह एकदम सही है। योना 1:5 में लिखा है कि जहाज़ को हल्का करने के लिए नाविक उसमें से सामान उठाकर समुंदर में फेंकने लगे। प्राचीन इतिहासकारों की किताबों और यहाँ तक कि यहूदी धर्म-गुरुओं की कानून की किताबों में लिखा है कि पुराने ज़माने में खराब मौसम के वक्त नाविक ऐसा ही करते थे। और योना ने नीनवे शहर का जो वर्णन दिया, वह भी इतिहास और पुरातत्व-खोज से मिले सबूतों के हिसाब से बिलकुल सही है। सबसे बड़ा सबूत तो यह है कि यीशु मसीह ने योना का हवाला दिया। उसने एक भविष्यवाणी में कहा कि जिस तरह योना तीन दिन मछली के पेट में रहा, उस तरह वह भी तीन दिन कब्र में मौत की नींद सोएगा। (मत्ती 12:38-40) यीशु की गवाही पुख्ता करती है कि योना की कहानी सौ-फीसदी सच है। (w09 1/1)
“परमेश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं।”—लूका 1:37, NHT.