परमेश्वर के राज के 100 साल!
“शांति का परमेश्वर . . . तुम्हें उसकी मरज़ी पूरी करने के लिए हर अच्छी चीज़ देकर तैयार करे।”—इब्रा. 13:20, 21.
गीत: 136, 14
1. यीशु के लिए प्रचार काम कितनी अहमियत रखता था? समझाइए।
यीशु को परमेश्वर के राज के बारे में बात करना बहुत पसंद था। जब यीशु धरती पर था, तब उसने सबसे ज़्यादा जिस विषय पर बात की वह था, परमेश्वर का राज। उसने अपनी सेवा के दौरान 100 से भी ज़्यादा बार परमेश्वर के राज का ज़िक्र किया। यीशु के लिए परमेश्वर का राज बहुत अहमियत रखता था।—मत्ती 12:34 पढ़िए।
2. (क) मत्ती 28:19, 20 में दी आज्ञा को कितने लोगों ने सुना होगा? (ख) हम ऐसा क्यों कह सकते हैं?
2 अपने पुनरुत्थान के बाद जल्द ही, यीशु 500 लोगों के एक समूह से मिला जो शायद आगे चलकर उसके चेले बनते। (1 कुरिं. 15:6) शायद इसी मौके पर यीशु ने “सब राष्ट्रों के लोगों” को प्रचार करने की आज्ञा दी। * उसने उनसे कहा कि प्रचार काम लंबे समय तक चलेगा यानी इस “दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्त” तक। आज जब आप प्रचार करते हैं, तब आप असल में इस भविष्यवाणी को पूरा करने में मदद कर रहे होते हैं।—मत्ती 28:19, 20.
3. खुशखबरी का प्रचार करने में कौन-सी तीन अच्छी चीज़ों से मदद मिली है?
मत्ती 28:20) इस तरह यीशु ने अपने चेलों से वादा किया कि प्रचार काम में वह उनकी अगुवाई करेगा और यह भी कि पूरी दुनिया में प्रचार करने के लिए उनकी मदद करेगा। इस काम में परमेश्वर यहोवा भी हमारा साथ दे रहा है। उसने इसे पूरा करने के लिए हमें “हर अच्छी चीज़” दी है। (इब्रा. 13:20, 21) इस लेख में हम कुछ तीन अच्छी चीज़ों पर गौर करेंगे, जिनसे हमें प्रचार करने में मदद मिली है: (1) हमें जो औज़ार दिए गए हैं, (2) हमने जो तरीके अपनाए हैं, और (3) हमें जो तालीम मिली है। सबसे पहले आइए हम कुछ औज़ारों पर गौर करें, जिनका हमने पिछले 100 सालों में इस्तेमाल किया है।
3 प्रचार करने की आज्ञा देने के बाद, यीशु ने उन्हें यकीन दिलाया, “मैं . . . तुम्हारे साथ हूँ।” (औज़ार जिनसे प्रचार करने में मदद मिली
4. किस तरह औज़ारों की मदद से हम प्रचार काम में निखार ला पाए हैं?
4 यीशु ने राज के संदेश की तुलना ऐसे बीज से की जो अलग-अलग तरह की मिट्टी में बोया जाता है। (मत्ती 13:18, 19) मिट्टी को तैयार करने के लिए, एक माली अलग-अलग औज़ार इस्तेमाल करता है। उसी तरह, हमारे राजा ने हमें ऐसे औज़ार दिए हैं जिनका इस्तेमाल करके हम लोगों को खुशखबरी सुनाते हैं। कुछ औज़ार थोड़े समय के लिए काफी काम आए, तो कुछ आज भी इस्तेमाल हो रहे हैं। लेकिन इन सभी औज़ारों से हम अपने प्रचार काम में निखार ला पाए हैं।
5. गवाही पत्र क्या था और इसे किस तरह इस्तेमाल किया जाता था?
5 सन् 1933 में, प्रचारक गवाही पत्र (टेस्टमनी कार्ड) इस्तेमाल करने लगे। यह एक ऐसा औज़ार था, जिसकी मदद से बहुत-से लोग प्रचार में हिस्सा लेने लगे। यह एक छोटा-सा कार्ड होता था, जिस पर कम और आसान शब्दों में बाइबल का संदेश लिखा होता था। समय-समय पर नए संदेश के साथ कार्ड छापे जाते थे। भाई एर्लनमाइअर ने जब पहली बार गवाही पत्र इस्तेमाल किया, तब वे 10 साल के थे। वे बताते हैं, “हम यह कहकर अपनी बातचीत शुरू करते थे, ‘क्या आप यह कार्ड पढ़ेंगे?’ उसके बाद घर-मालिक वह कार्ड पढ़ता था, हम उसे किताबें-पत्रिकाएँ देते थे और आगे बढ़ जाते थे।”
6. गवाही पत्र किस तरह फायदेमंद साबित हुआ?
6 गवाही पत्र से प्रचारकों को कई तरीकों से फायदा हुआ। उदाहरण के लिए, कुछ प्रचारक गवाही तो देना चाहते थे लेकिन वे शर्मीले थे और नहीं जानते थे कि उन्हें कहना क्या है। और दूसरे प्रचारक ऐसे थे जो कुछ ही मिनटों में घर-मालिक को वह सब बता देते थे जो वे जानते थे। पर कई बार वे अपना संदेश अच्छी तरह पेश नहीं कर पाते थे। गवाही पत्र, यानी टेस्टमनी कार्ड की मदद से सभी प्रचारक, साफ और आसान शब्दों में संदेश सुना पाए।
7. गवाही पत्र इस्तेमाल करने में कौन-सी मुश्किलें आयीं?
7 गवाही पत्र का इस्तेमाल करने में कुछ मुश्किलें भी आयीं। बहन ग्रेस ईस्टेप कहती हैं, “कभी-कभी तो हमसे पूछा जाता था, ‘इसमें क्या लिखा है? आप ही बता दो न।’” कुछ घर-मालिक ऐसे थे जो गवाही पत्र में लिखी बात पढ़ ही नहीं पाते थे। तो कुछ लोग यह कार्ड लेकर दरवाज़ा बंद कर देते थे। कुछ लोगों को हमारा संदेश पसंद नहीं आता था, तो वे कार्ड ही फाड़ देते थे। इन सभी मुश्किलों के बावजूद, गवाही पत्र यानी टेस्टमनी कार्ड से प्रचारक अपने पड़ोसियों को प्रचार कर पाए। और इससे वे राज के प्रचारकों के तौर पर पहचाने गए।
8. समझाइए कि ग्रामोफोन का किस तरह इस्तेमाल किया गया? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
8 सन् 1930 के बाद हमने जिस औज़ार का इस्तेमाल किया, वह था ग्रामोफोन। कुछ साक्षी उसे हारून कहते थे, क्योंकि यह उनकी तरफ से बोलता था। (निर्गमन 4:14-16 पढ़िए।) अगर घर-मालिक सुनने के लिए राज़ी हो जाता, तो प्रचारक ग्रामोफोन चलाकर उन्हें बाइबल पर आधारित भाषण सुनाते थे। फिर वे उन्हें कुछ किताबें-पत्रिकाएँ देते थे। कभी-कभार तो पूरा परिवार भाषण सुनने के लिए इकट्ठा होता था! सन् 1934 में, वॉच टावर सोसाइटी ने ऐसे ग्रामोफोन बनाने शुरू किए जो खास तौर से प्रचार में इस्तेमाल करने के लिए बनाए गए थे। भाइयों ने कुल मिलाकर 92 भाषण ग्रामोफोन में रिकॉर्ड किए थे।
9. ग्रामोफोन कितना असरदार रहा?
9 जब हिलेरी गॉस्लन नाम के घर-मालिक ने उनमें से एक भाषण सुना, तो उसने एक हफ्ते के लिए ग्रामोफोन उधार लिया, ताकि वह अपने पड़ोसियों को बाइबल का संदेश सुना सके। इससे कई लोगों ने सच्चाई में दिलचस्पी ली और बपतिस्मा लिया। आगे चलकर भाई हिलेरी की दो बेटियाँ गिलियड स्कूल में हाज़िर हुईं और मिशनरी बन गयीं। गवाही पत्र की तरह, ग्रामोफोन से भी कई प्रचारकों को प्रचार काम शुरू करने में मदद मिली। बहुत जल्द यहोवा, परमेश्वर की सेवा स्कूल के ज़रिए उन्हें बातचीत करना सिखानेवाला था।
हर मुमकिन तरीके से लोगों को संदेश सुनाना
10, 11. (क) खुशखबरी का प्रचार करने के लिए अखबार और रेडियो का किस तरह इस्तेमाल किया गया? (ख) ये तरीके क्यों असरदार रहे?
10 हमारे राजा की दी हिदायतों को मानकर, परमेश्वर के लोगों ने राज का संदेश सुनाने के लिए अलग-अलग तरीकों का इस्तेमाल किया ताकि वे ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को खुशखबरी सुना सकें। ये तरीके उस वक्त बहुत ज़रूरी साबित हुए क्योंकि “मज़दूर थोड़े” थे। (मत्ती 9:37 पढ़िए।) एक तरीका था, अखबार का इस्तेमाल करके राज का संदेश सुनाना। हर हफ्ते भाई चार्ल्स टेज़ रसल एक समाचार एजेंसी को बाइबल पर आधारित एक भाषण भेजते थे। फिर वह एजेंसी उस भाषण को कनाडा, यूरोप और अमरीका के अखबारों में छापने के लिए भेजती थी। सन् 1913 तक, भाई रसल के भाषण 2,000 अखबारों में छापे गए थे। और करीब 1 करोड़ 50 लाख लोगों ने उन्हें पढ़ा।
11 खुशखबरी का प्रचार करने के लिए रेडियो भी काफी असरदार रहा। भाई रदरफर्ड ने 16 अप्रैल, 1922 को रेडियो पर अपना पहला भाषण दिया और उसे करीब 50 हज़ार लोगों ने सुना। जल्द ही, हमने अपना रेडियो स्टेशन शुरू किया, जिसका नाम था डब्ल्यू.बी.बी.आर। उसका पहला कार्यक्रम 24 फरवरी, 1924 को प्रसारित किया गया। एक दिसंबर, 1924 की प्रहरीदुर्ग में लिखा है, “हमें पूरा यकीन है कि सच्चाई का संदेश फैलाने में रेडियो का इस्तेमाल करना सबसे किफायती और असरदार तरीका रहा है।” जिन इलाकों में राज के प्रचारक थोड़े थे, वहाँ अखबार की तरह रेडियो की मदद से हम ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को राज का संदेश सुना पाए।
12. (क) सरेआम गवाही देने का कौन-सा तरीका आपको सबसे ज़्यादा पसंद है? (ख) अगर सरेआम गवाही देने में आपको घबराहट होती है, तो उस पर आप कैसे काबू पा सकते हैं?
12 राज का संदेश देने का एक और असरदार तरीका है, सरेआम गवाही देना। अब इस तरीके से गवाही देने पर ज़्यादा ज़ोर दिया जाता है। इसमें बस स्टैंड पर, रेलवे स्टेशन पर, गाड़ी पार्किंग की जगह पर, चौक पर और बाज़ारों में लोगों को गवाही देना शामिल है। क्या आपको सरेआम गवाही देने में घबराहट होती है? अगर ऐसा है, तो मदद के लिए प्रार्थना कीजिए। भाई मनेरा नाम के एक सफरी निगरान की बात पर गौर कीजिए, “हमने प्रचार के हर पहलू को यहोवा की सेवा करने का एक नया तरीका माना। यह यहोवा के लिए अपनी वफादारी साबित करने का एक तरीका था। साथ ही, यह ऐसी परीक्षा थी जिसमें हमें खरा उतरना था। और हम यह साबित करना चाहते थे कि हम उसके बताए हर तरीके से काम करने के लिए तैयार हैं।” जब हम अपने डर पर काबू पाते हैं और नए तरीकों से प्रचार करते हैं, 2 कुरिंथियों 12:9, 10 पढ़िए।
तो हम यहोवा पर अपना भरोसा मज़बूत करते हैं और अच्छे प्रचारक बन पाते हैं।—13. (क) प्रचार सेवा में हमारी वेबसाइट का इस्तेमाल करना क्यों एक असरदार तरीका है? (ख) प्रचार में इसका इस्तेमाल करने के अपने अनुभव बताइए।
13 बहुत-से प्रचारक लोगों को हमारी वेबसाइट jw.org के बारे में बताना पसंद करते हैं। इस वेबसाइट से लोग 700 से ज़्यादा भाषाओं में बाइबल पर आधारित किताबें-पत्रिकाएँ पढ़ सकते हैं और डाउनलोड कर सकते हैं। हर दिन 16,00,000 (सोलह लाख) से भी ज़्यादा लोग हमारी वेबसाइट देखते हैं। बीते समय में, रेडियो के ज़रिए दूर-दराज़ इलाकों में राज का संदेश लोगों को सुनाया गया। आज हमारी वेबसाइट यह काम कर रही है।
खुशखबरी के प्रचारकों को तालीम देना
14. (क) प्रचारकों को कैसी तालीम की ज़रूरत थी? (ख) उन्हें किस स्कूल से अच्छे शिक्षक बनने में मदद मिली?
14 अब तक हमने जिन औज़ारों और तरीकों की चर्चा की, वे बहुत ही असरदार रहे। लेकिन अब भी प्रचारकों को और भी सिखाने की ज़रूरत थी। वह क्यों? यह समझने के लिए कुछ हालात पर गौर कीजिए। कभी-कभी, घर-मालिक ग्रामोफोन पर जो सुनता था, वह उससे सहमत नहीं होता था। और कभी-कभी घर-मालिक दिलचस्पी लेता था और ज़्यादा सीखना चाहता था। ऐसे में, प्रचारक यह समझ नहीं पाते थे कि उन्हें कैसे सूझ-बूझ से काम लेना है और कैसे वे अच्छी तरह सिखा सकते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि उस वक्त परमेश्वर की पवित्र शक्ति की मदद से ही भाई नॉर यह समझ गए कि प्रचारकों को और तालीम देने की ज़रूरत है। इसी से वे सीख पाएँगे कि उन्हें प्रचार में कैसे बात करनी है। इसलिए 1943 में, मंडलियों में परमेश्वर की सेवा स्कूल का इंतज़ाम किया गया। इस स्कूल से सभी प्रचारकों को अच्छे शिक्षक बनने में मदद मिली।
15. (क) शुरू-शुरू में, जब कुछ लोगों ने परमेश्वर की सेवा स्कूल में भाषण दिया, तो उनका क्या अनुभव रहा? (ख) भजन 32:8 में दिया यहोवा का वादा आपके मामले में कैसे सच साबित हुआ है?
15 बहुत-से भाइयों को लोगों के समूह के सामने बोलने की आदत नहीं थी। ज़रा भाई रामू पर गौर कीजिए। उन्हें अपना पहला भाषण आज भी याद है, जो उन्होंने 1944 में दिया था। वह भाषण बाइबल के एक किरदार दोएग के बारे में था, जिसके बारे में बाइबल की सिर्फ चार आयतों में जानकारी दी गयी है। वे कहते हैं, ‘मेरे हाथ-पैर काँप रहे थे, वह भी इतनी ज़ोर से कि मेरे दोनों घुटने आपस में टकरा रहे थे। मेरे दाँत किटकिटा रहे थे। यह था मंच पर बोलने का मेरा पहला अनुभव। लेकिन मैंने हार नहीं मानी।’ हालाँकि कुछ लोगों के लिए मंडली में भजन 32:8 पढ़िए।
भाषण देना आसान नहीं था, फिर भी मंडली के इस स्कूल में बच्चों ने भी भाग लेना शुरू कर दिया। भाई मनेरा को याद है कि जब एक छोटे लड़के ने अपना पहला भाषण दिया, तब क्या हुआ। वे कहते हैं, “वह इतना घबराया हुआ था कि जब उसने भाषण देना शुरू किया तो वह सिसक-सिसककर रोने लगा। लेकिन उसने ठान लिया था कि वह भाषण पूरा करके ही रहेगा। वह पूरे भाषण के दौरान सिसकियाँ भरता रहा।” शायद आप भी शर्मीले होने की वजह से सभाओं में जवाब न दे पाते हों या उनमें हिस्सा न ले पाते हों, या हो सकता है आपको लगता हो कि आप ऐसा नहीं कर पाएँगे। अगर ऐसा है, तो यह डर दूर करने के लिए यहोवा से प्रार्थना कीजिए। वह आपकी उसी तरह मदद करेगा, जिस तरह उसने परमेश्वर की सेवा स्कूल के शुरूआती विद्यार्थियों की मदद की थी।—16. (क) गिलियड स्कूल में पहले किन्हें तालीम दी जाती थी? (ख) सन् 2011 से इसमें किन्हें तालीम दी जा रही है?
16 परमेश्वर का संगठन गिलियड स्कूल के ज़रिए भी तालीम देता है। इस स्कूल से मिशनरियों और दूसरों को काफी फायदा हुआ। गिलियड स्कूल के एक शिक्षक का कहना है कि इसका एक मकसद है, ‘विद्यार्थियों के दिलों में राज की खुशखबरी सुनाने की ज़बरदस्त इच्छा पैदा करना।’ गिलियड स्कूल की शुरूआत 1943 में हुई थी। तब से 8,500 विद्यार्थियों को इससे तालीम दी जा चुकी है और उन्हें 170 देशों में भेजा गया है। सन् 2011 से इसमें सिर्फ उन्हें बुलाया जा रहा है जो पहले से खास पूरे समय की सेवा कर रहे हैं जैसे, खास पायनियर, सफरी निगरान और बेथेल सेवक। साथ ही, उन मिशनरियों को भी न्यौता दिया जा रहा है, जिन्हें अब तक इसमें हाज़िर होने का मौका नहीं मिला है।
17. गिलियड स्कूल में दी जानेवाली तालीम कितनी असरदार रही है?
17 गिलियड स्कूल में दी जानेवाली तालीम कितनी असरदार रही है? इसे समझने के लिए एक उदाहरण पर गौर कीजिए। अगस्त 1949 में, पूरे जापान में 10 से भी कम प्रचारक थे। उसी साल वहाँ गिलियड स्कूल से तालीम पाए 13 मिशनरी आए। वे वहाँ प्रचारकों के साथ मिलकर ज़ोर-शोर से राज की खुशखबरी सुनाने में जुट गए। आज जापान में करीब 2,16,000 प्रचारक हैं और उनमें से लगभग आधे पायनियर हैं!
18. ऐसे और कौन-से स्कूल हैं जिनके ज़रिए यहोवा अपने लोगों को तालीम दे रहा है?
18 ऐसे और भी कई स्कूल हैं जिनके ज़रिए यहोवा अपने लोगों को तालीम दे रहा है। जैसे, राज-सेवा स्कूल, पायनियर सेवा स्कूल, राज प्रचारकों के लिए स्कूल, सफरी निगरानों और उनकी पत्नियों के लिए स्कूल और शाखा-समिति के सदस्यों और उनकी पत्नियों के लिए स्कूल। इन स्कूलों से तालीम पाकर भाई-बहन राज के अच्छे प्रचारक बने हैं और उनका विश्वास बढ़ा है। इससे साफ पता चलता है कि यीशु अपने लोगों को लगातार सिखा रहा है।
19. (क) भाई रसल प्रचार काम के बारे में कैसा महसूस करते थे? (ख) उन्होंने जो कहा वह आज कैसे सच साबित हो रहा है?
19 परमेश्वर के राज को शासन करते हुए आज 100 साल से भी ऊपर हो गए हैं। हमारा राजा यीशु मसीह हमें लगातार प्रचार काम की तालीम देता आ रहा है। भाई चार्ल्स टेज़ रसल ने अपनी मौत से कुछ ही समय पहले, यानी 1916 में भाँप लिया था कि आगे चलकर खुशखबरी का प्रचार पूरी दुनिया में किया जाएगा। उन्होंने कहा, “यह काम बहुत तेज़ी से बढ़ता जा रहा है और बढ़ता ही जाएगा, क्योंकि ‘राज की खुशखबरी’ का प्रचार पूरी दुनिया में होना है।” (ए. एच. मैकमिलन की अँग्रेज़ी में लिखी किताब, आगे बढ़ता विश्वास का पेज 69) कितना सच कहा था उन्होंने! आज यह काम पूरी दुनिया में किया जा रहा है। हम कितने शुक्रगुज़ार हैं कि शांति का परमेश्वर यहोवा हमें वह हर चीज़ देता है, जो उसकी मरज़ी पूरी करने के लिए ज़रूरी है!
^ पैरा. 2 यह कहना सही होगा कि उस मौके पर मौजूद ज़्यादातर लोग मसीही बन गए थे। क्योंकि प्रेषित पौलुस उन “पाँच सौ” लोगों को ‘भाई’ कहता है। उसने यह भी कहा, ‘उनमें से ज़्यादातर आज भी मौजूद हैं, मगर कुछ मौत की नींद सो गए हैं।’ इसलिए ऐसा लगता है कि जब यीशु ने प्रचार करने की आज्ञा दी, तो जिन्होंने इस आज्ञा को सुना, उन्हें पौलुस और दूसरे मसीही जानते थे।