जीवन कहानी
क्यों हमारी ज़िंदगी में एक मकसद है
सन् 1958 में जब मेरे बेटे गैरी का जन्म हुआ, मैं समझ गयी कि कुछ गड़बड़ है। गैरी की बीमारी का पता लगाने के लिए डॉक्टरों को दस महीने लग गए। और लंदन के विशेषज्ञों को यह पक्का करने के लिए पाँच साल और लगे कि उसे वही बीमारी है। गैरी के पैदा होने के नौ साल बाद मेरी बेटी लवीज़ का जन्म हुआ। जब मैंने देखा कि उसकी हालात गैरी से कई गुना बदतर है, तो मैं टूट गयी।
डॉक्टरों ने मुझे समझाया कि “आपके दोनों बच्चों को एल.एम.बी.बी. सिंड्रोम है। * और फिलहाल इसका कोई इलाज नहीं।” जीन में होनेवाली यह बीमारी बहुत-ही कम लोगों में पायी जाती है, और उस वक्त लोगों को इसके बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी। हाल ही में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक ब्रिटेन में औसतन 1,25,000 लोगों में से एक को यह बीमारी है, और कई ऐसे भी हैं जिन्हें यह बीमारी तो है, मगर इतनी गंभीर नहीं है। मगर उस वक्त डॉक्टरों को इसके बारे में बहुत कम जानकारी थी। इस बीमारी के लक्षण हैं, नज़रें कमज़ोर होना और आगे चलकर आँखों की रोशनी पूरी तरह चली जाना, मोटापा, हाथों और/या पैरों में ज़्यादा उँगलियाँ होना, शरीर का विकास समय पर न होना, अंगों के बीच ताल-मेल न होना, मधुमेह, ऑस्टियो-आर्थराइटिस (जोड़ों के आस-पास सूजन होना) और गुर्दों का ठीक से काम न करना। वाकई, मैं जानती थी कि बच्चों की देखभाल करना आसान नहीं होगा।
यहोवा हमारे लिए “ऊंचा गढ़” ठहरा
शादी होने के कुछ ही समय बाद मेरी मुलाकात यहोवा के साक्षियों से हुई और मैंने तुरंत पहचान लिया कि उनके पास सच्चाई है। मगर मेरे पति को सच्चाई में कोई दिलचस्पी नहीं थी। उनकी नौकरी की वजह से हमें हमेशा एक जगह से दूसरी जगह जाना पड़ता था इसलिए मैं किसी मंडली के साथ संगति नहीं कर पायी। फिर भी, मैंने बाइबल पढ़ना और यहोवा से प्रार्थना करना जारी रखा। यह पढ़कर मुझे कितना दिलासा मिला कि “यहोवा पिसे हुओं के लिये ऊंचा गढ़ ठहरेगा, वह संकट के समय के लिये भी ऊंचा गढ़ ठहरेगा” और वह ‘अपने खोजियों को त्याग नहीं देगा’!—भज. 9:9, 10.
गैरी की नज़र कमज़ोर थी, इसलिए जब वह छ: साल का था, तब उसे पढ़ाई के लिए इंग्लैंड के दक्षिणी तट पर एक खास तरह के स्कूल में भेज दिया गया। वह समय-समय पर मुझे फोन करता और बताता कि उसे क्या बात परेशान कर रही है। और मैं फोन पर ही उसे बाइबल के कुछ बुनियादी सिद्धांत समझने में मदद देती। लवीज़ के पैदा होने के कुछ साल बाद, मैं भी बीमार पड़ गयी। मुझे मल्टीपल स्क्लेरोसिस (जिसमें मस्तिष्क और तंत्रिकाओं के ऊतक कठोर हो जाते हैं) और फाइब्रोमायेल्जिया (पुट्ठों, स्नायू और मास-पेशियों में दर्द) हो गया। जब गैरी 16 साल का था, तब वह बोर्डिंग स्कूल से वापस घर आ गया। लेकिन धीरे-धीरे उसकी आँखों की रौशनी जाती रही, और 1975 में उसे नेत्रहीन घोषित कर दिया गया। सन् 1977 में मेरे पति मुझे छोड़कर चले गए।
गैरी के घर लौटने पर हम एक मंडली के साथ संगति करने लगे, जहाँ हमें भाई-बहनों से बहुत प्यार मिला। और सन् 1974 में मैंने बपतिस्मा ले लिया। मंडली के एक प्राचीन ने गैरी की बहुत मदद की, ताकि वह किशोर उम्र में होनेवाले शारीरिक बदलावों से जूझ सके। इस मदद के लिए मैं उनकी बहुत शुक्रगुज़ार थी। दूसरे भाई-बहनों ने घर के कामों में मेरी मदद की और आगे चलकर इलाके के अधिकारियों ने उनमें से पाँच को घर पर मेरी मदद करने के लिए नियुक्त किया। सच, यह मेरे लिए क्या ही बड़ी आशीष की बात रही है!
गैरी ने सच्चाई में अच्छी तरक्की की और 1982 में उसने बपतिस्मा लिया। उसकी बड़ी तमन्ना थी कि वह सहयोगी पायनियर सेवा करे, इसलिए मैंने इस काम में उसका साथ देने का फैसला किया और कई सालों तक सहयोगी पायनियर सेवा की। कुछ वक्त
बाद उसकी खुशी का ठिकाना न रहा जब हमारे सर्किट निगरान ने उससे पूछा, “तुम पायनियर क्यों नहीं बन जाते गैरी?” बस उससे यह पूछने की देरी थी और 1990 में उसे पायनियर नियुक्त किया गया।गैरी के दो हिप-रीप्लेसमेंट ऑपरेशन हो चुके हैं, पहला 1999 में और दूसरा 2008 में। मगर लवीज़ की हालत उससे कई ज़्यादा गंभीर थी। जन्म से ही वह देख नहीं सकती थी और जब मैंने देखा कि उसके एक पाँव में एक उँगली ज़्यादा है, तो मैं समझ गयी कि उसे भी एल.एम.बी.बी. सिंड्रोम है। जाँच करने पर पता लगा कि उसके शरीर के अंदर कई अंगों में भी खराबी है। सालों के दौरान उसके कई बड़े-बड़े ऑपरेशन हुए हैं, जिनमें से पाँच गुर्दे के ऑपरेशन थे। गैरी की तरह उसे भी मधुमेह है।
लवीज़ जानती है कि ऑपरेशन के दौरान मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं इसलिए वह पहले से ही सर्जन, बिहोशी के डॉक्टर और अस्पताल के डायरेक्टर, प्रबंधकों वगैरह से मिलती है और उन्हें बताती है कि क्यों उसने बिना खून इलाज करवाने का फैसला किया है। इस तरह उसका उन सभी के साथ एक अच्छा रिश्ता है, जो उसकी बढ़िया तरीके से देखभाल करते हैं।
एक मकसद-भरी ज़िंदगी
हमारे घर में सभी यहोवा की सेवा में व्यस्त रहते हैं। पहले इलेक्ट्रॉनिक साधन उपलब्ध नहीं थे, इसलिए उन दिनों मैं घंटों गैरी और लवीज़ के लिए पढ़ा करती थी। अब सीडी, डीवीडी और www.isa4310.com पर दी रिकॉर्डिंग की मदद से हम सब अलग-अलग समय पर हफ्ते के शेड्यूल के हिसाब से बाइबल का अध्ययन कर पाते हैं और मसीही सभाओं में बढ़िया जवाब दे पाते हैं।
कभी-कभार गैरी अपने जवाब मुँह-ज़बानी याद कर लेता है। और अगर परमेश्वर की सेवा स्कूल में उसका भाषण है, तो वह उसे अपने शब्दों में दे पाता है। सन् 1995 में उसे सहायक सेवक नियुक्त किया गया। अब वह हमेशा राज-घर में व्यस्त रहता है। वह मंडली के सदस्यों का स्वागत करता है और साउंड सिस्टम में भी मदद देता है।
मंडली के भाई-बहन गैरी के साथ प्रचार में जाते हैं। आर्थराइटिस की वजह से गैरी खुद नहीं चल पाता इसलिए अकसर वे उसे व्हील-चेयर पर ले जाते हैं। एक भाई ने उसे दिलचस्पी दिखानेवाले एक व्यक्ति के साथ बाइबल अध्ययन चलाने में मदद दी है। गैरी ने एक बहन की भी हिम्मत बढ़ायी जो 25 सालों से सच्चाई में ठंडी पड़ गयी थी। मगर अब यह दोनों व्यक्ति सभाओं में हाज़िर होते हैं।
जब लवीज़ नौ साल की थी, तब उसने अपनी नानी से बुनाई करना सीखा। और मैंने और जो हमारी मदद करने आती हैं, उसने लवीज़ को कढ़ाई करना सिखाया। उसे अब भी बुनाई का काम बहुत पसंद है, इसलिए वह मंडली के नन्हे-मुन्नों और बुज़ुर्ग सदस्यों के लिए रंग-बिरंगे कम्बल बनाती है। वह छोटी-छोटी तसवीरें चिपकाकर कार्ड भी बनाती है। जिन लोगों को वह ये कार्ड देती है, वे उन्हें सँजोकर रखते हैं। जब लवीज़ 13-14 साल की थी, तभी उसने कंप्यूटर पर टाइप करना सीख लिया था। अब एक खास कंप्यूटर की मदद से, जो उसकी आवाज़ सुनकर उसके मुताबिक काम करता है, वह अपने दोस्तों के साथ ई-मेल के ज़रिए संपर्क में रहती है। जब लवीज़ 17 साल की थी, तब उसका बपतिस्मा हुआ। जब प्रचार काम में खास अभियान चलाए जाते हैं, तब हम साथ मिलकर सहयोगी पायनियर सेवा करते हैं। गैरी की तरह, लवीज़ आयतें याद कर लेती है, ताकि वह परमेश्वर की वादा की हुई दुनिया के बारे में अपना विश्वास ज़ाहिर कर सके, जिसमें “अन्धों की आंखें खोली जाएंगी” और “कोई निवासी न कहेगा कि मैं रोगी हूं।”—यशा. 33:24; 35:5.
हम कितने शुक्रगुज़ार हैं कि यहोवा ने अपने प्रेरित वचन में अनमोल सच्चाइयाँ दर्ज़ करवायी हैं! हमारी मंडली के भाई-बहनों के प्यार और सहारे के लिए हम उनका जितना शुक्रिया अदा करें, उतना कम है। वाकई, उनकी मदद के बगैर हम उतना नहीं कर पाते, जितना हम आज कर पा रहे हैं। और सबसे बढ़कर, यहोवा की मदद की बदौलत आज हमारी ज़िंदगी में एक मकसद है।
^ ‘लॉरेन्स-मून-बारडे-बीडल सिंड्रोम’ बीमारी का नाम उन चार डॉक्टरों के नाम पर रखा गया है जिन्होंने जीन में होनेवाली इस बीमारी का पता लगाया था। यह बीमारी तब होती है जब बच्चे को माता-पिता दोनों से ही यह जीन मिलता है जिसमें यह बीमारी होती है। यह लाइलाज है। आज इसे आम तौर पर बारडे-बीडल सिंड्रोम कहा जाता है।