मसीही प्राचीन—‘हमारी खुशी के लिए हमारे सहकर्मी’
“हम तुम्हारी खुशी के लिए तुम्हारे सहकर्मी हैं।”—2 कुरिं. 1:24.
1. कुरिंथ के मसीहियों के बारे में क्या खबर सुनकर पौलुस को बड़ी खुशी हुई?
ईसवी सन् 55 की बात है। प्रेषित पौलुस त्रोआस नाम के बंदरगाहवाले शहर में है मगर उसे कुरिंथ के भाइयों की चिंता खाए जा रही है, क्योंकि हाल ही में उसे खबर मिली थी कि वे भाई आपस में झगड़ रहे हैं। वह एक पिता की तरह उनकी फिक्र करता है, इसलिए उसने उनकी सोच सुधारने के लिए उन्हें एक चिट्ठी लिखी थी। (1 कुरिं. 1:11; 4:15) पौलुस ने उनकी खैरियत जानने के लिए अपने एक साथी प्रचारक तीतुस को भी वहाँ भेजा था और उससे कहा था कि वह वापस त्रोआस आकर उसे बताए कि अब मंडली के हालात कैसे हैं। अब त्रोआस में पौलुस तीतुस का इंतज़ार कर रहा है। वह कुरिंथ के भाइयों का हाल-चाल जानने के लिए तरस रहा है। मगर जब काफी इंतज़ार के बाद भी तीतुस नहीं आता तो पौलुस बहुत निराश हो जाता है। अब पौलुस क्या करता है? वह तीतुस से मिलने जहाज़ से मकिदुनिया जाता है और जब वहाँ तीतुस से मिलता है तो उसे बहुत खुशी होती है। तीतुस उसे बताता है कि कुरिंथ के भाइयों ने पौलुस का खत पढ़कर उसकी सलाह पर अमल किया है और वे पौलुस से मिलने के लिए बेताब हैं। जब पौलुस यह अच्छी खबर सुनता है तो वह ‘और भी खुश होता है।’—2 कुरिं. 2:12, 13; 7:5-9.
2. (क) पौलुस ने विश्वास और खुशी के बारे में कुरिंथियों को क्या लिखा? (ख) हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?
2 इसके कुछ ही समय बाद पौलुस कुरिंथियों को एक और खत लिखता है। खत में पौलुस उनसे कहता है: “यह बात नहीं कि हम तुम्हारे विश्वास के मालिक हैं, बल्कि हम तुम्हारी खुशी के लिए तुम्हारे सहकर्मी हैं, क्योंकि तुम अपने ही विश्वास की वजह से खड़े हो।” (2 कुरिं. 1:24) पौलुस के कहने का क्या मतलब था? आज मसीही प्राचीन पौलुस की इस बात से क्या सीख सकते हैं?
हमारा विश्वास और हमारी खुशी
3. (क) पौलुस ने ऐसा क्यों कहा कि “तुम अपने ही विश्वास की वजह से खड़े हो”? (ख) आज प्राचीन कैसे पौलुस की मिसाल पर चलते हैं?
3 पौलुस ने उपासना से जुड़ी दो खास बातों का ज़िक्र किया—विश्वास और खुशी। याद कीजिए कि विश्वास के बारे में उसने यह लिखा: “यह बात नहीं कि हम तुम्हारे विश्वास के मालिक हैं, . . . क्योंकि तुम अपने ही विश्वास की वजह से खड़े हो।” ऐसा कहकर पौलुस ने माना कि कुरिंथ के भाई खुद अपने विश्वास की वजह से सच्चाई में मज़बूत खड़े थे, न कि पौलुस या किसी और इंसान की बदौलत। पौलुस को एहसास था कि उसे अपने भाइयों के विश्वास का मालिक बनने का अधिकार नहीं है और ऐसा करने का उसका कोई इरादा भी नहीं था। उसे पूरा भरोसा था कि कुरिंथ के ये भाई वफादार मसीही हैं और वे वही करना चाहते हैं जो सही है। (2 कुरिं. 2:3) आज के प्राचीनों को भी पूरा यकीन है कि उनके भाई मज़बूत विश्वास रखते हैं और सच्चे दिल से यहोवा की सेवा करना चाहते हैं। (2 थिस्स. 3:4) मंडली के लिए सख्त नियम बनाने के बजाय, वे बाइबल के सिद्धांतों के आधार पर और यहोवा के संगठन से मिलनेवाली हिदायतों के मुताबिक मंडली की अगुवाई करते हैं। जी हाँ, आज के प्राचीन भी अपने भाइयों के विश्वास के मालिक नहीं हैं।—1 पत. 5:2, 3.
4. (क) पौलुस के इन शब्दों का क्या मतलब था, “हम तुम्हारी खुशी के लिए तुम्हारे सहकर्मी हैं?” (ख) आज प्राचीन किस तरह पौलुस के जैसा नज़रिया रखते हैं?
4 पौलुस ने यह भी कहा कि “हम तुम्हारी खुशी के लिए तुम्हारे सहकर्मी हैं।” पौलुस यहाँ खुद की और अपने करीबी साथियों की बात कर रहा था। हम यह कैसे कह सकते हैं? कुरिंथियों के नाम अपनी उसी चिट्ठी में पौलुस ने इनमें से दो साथियों का ज़िक्र किया। उसने लिखा, ‘तुम्हारे बीच हमने यानी मैंने, सिलवानुस और तीमुथियुस ने यीशु का प्रचार किया था।’ (2 कुरिं. 1:19) इसके अलावा, पौलुस ने अपनी चिट्ठियों में जब भी अपने ‘सहकर्मियों’ का ज़िक्र किया, तो उसने हमेशा अपुल्लोस, अक्विला, प्रिसका, तीमुथियुस और तीतुस जैसे मसीहियों की तरफ इशारा किया। (रोमि. 16:3, 21; 1 कुरिं. 3:6-9; 2 कुरिं. 8:23) तो जब पौलुस ने कुरिंथियों से कहा कि “हम तुम्हारी खुशी के लिए तुम्हारे सहकर्मी हैं,” तो वह उन्हें यकीन दिला रहा था कि वह और उसके साथी मंडली के सभी लोगों की खुशहाली के लिए अपनी तरफ से हर मुमकिन कोशिश करना चाहते हैं। आज के मसीही प्राचीन भी यही चाहते हैं। भाई-बहनों की मदद करने के लिए उनसे जो कुछ हो सकता है वे करना चाहते हैं ताकि उनके भाई “आनन्द से यहोवा की आराधना” कर सकें।—भज. 100:2; फिलि. 1:25.
5. कुछ भाई-बहनों से क्या सवाल किया गया? जब हम उनके जवाबों पर चर्चा करेंगे, तब हम किस बारे में सोच सकते हैं?
5 हाल ही में दुनिया के अलग-अलग देशों में रहनेवाले कुछ जोशीले भाई-बहनों से पूछा गया कि “किसी प्राचीन के बारे में बताइए कि उसकी कही कौन-सी बात या उसका कौन-सा काम आपके दिल को भा गया?” उन सबने जवाब में जिन बातों का ज़िक्र किया, उन पर अब हम इस लेख में चर्चा करेंगे। चर्चा के दौरान सोचिए कि अगर यही सवाल आपसे किया जाता तो आप क्या जवाब देते। और आइए हम सब इस बात पर भी गौर करें कि कैसे हम अपनी मंडली में खुशी का माहौल बनाए रखने के लिए योगदान दे सकते हैं? *
“हमारी प्यारी पिरसिस को नमस्कार”
6, 7. (क) मंडली के प्राचीन यीशु, पौलुस और दूसरे सेवकों की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं? (ख) अपने भाई-बहनों का नाम याद रखने से हम कैसे उन्हें खुशी देते हैं?
6 हमारे बहुत-से भाई-बहनों का कहना है कि उन्हें तब बहुत खुशी महसूस होती है जब प्राचीन उनमें दिलचस्पी लेते हैं। किसी व्यक्ति में दिलचस्पी दिखाने का एक तरीका है, उससे बात करते वक्त उसका नाम लेना। दाविद, एलीहू और यीशु ने दूसरों को उनके नाम से पुकारकर उनमें सच्ची दिलचस्पी दिखायी और आज प्राचीन भी उनकी अच्छी मिसाल पर चलते हैं। (2 शमूएल 9:6; अय्यूब 33:1; लूका 19:5 पढ़िए।) पौलुस भी जानता था कि भाई-बहनों का नाम याद रखना और हर किसी को उसके नाम से बुलाना कितनी अहमियत रखता है। एक चिट्ठी के आखिर में उसने 25 से भी ज़्यादा भाई-बहनों का नाम लेकर उन्हें नमस्कार कहा। इस सूची में पौलुस ने पिरसिस नाम की एक बहन का भी ज़िक्र किया, जिसके बारे में उसने कहा, “हमारी प्यारी पिरसिस को नमस्कार।”—रोमि. 16:3-15.
7 कुछ प्राचीनों को दूसरों के नाम याद रखना बहुत मुश्किल लगता है। फिर भी जब वे किसी भाई या बहन का नाम याद रखने की पूरी कोशिश करते हैं, तो मानो वे उससे कह रहे होते हैं ‘मेरे लिए आप बहुत अनमोल हैं।’ (निर्ग. 33:17) खासकर जब प्राचीन प्रहरीदुर्ग अध्ययन में या किसी और सभा में भाई-बहनों से जवाब पूछते वक्त उनके नाम से उन्हें पुकारते हैं, तो भाई-बहनों को बहुत खुशी होती है।—यूहन्ना 10:3 से तुलना कीजिए।
उसने “प्रभु में कड़ी मेहनत की है”
8. पौलुस किस तरह यहोवा और यीशु की मिसाल पर चला?
8 पौलुस ने एक और तरीके से अपने भाई-बहनों में दिलचस्पी दिखायी, उसने सच्चे दिल से उनकी तारीफ की। प्राचीन भी ऐसा करके भाई-बहनों को खुशी दे सकते हैं। पौलुस ने जिस खत में कहा कि वह भाइयों की खुशी के लिए काम करना चाहता है, उसी खत में उसने कहा, “मैं तुम्हारे बारे में बहुत शेखी मारता हूँ।” (2 कुरिं. 7:4) पौलुस के मुँह से तारीफ के ये शब्द सुनकर कुरिंथ के भाइयों का दिल कैसे खुशी से भर गया होगा! पौलुस ने दूसरी मंडलियों की भी इसी तरह तारीफ की। (रोमि. 1:8; फिलि. 1:3-5; 1 थिस्स. 1:8) गौरतलब है कि पौलुस ने रोम की मंडली के नाम अपने खत में जब पिरसिस का ज़िक्र किया तो उसने पिरसिस की तारीफ में कहा कि उसने “प्रभु में कड़ी मेहनत की है।” (रोमि. 16:12) उस वफादार बहन को यह बात जानकर कितनी खुशी हुई होगी! दूसरों की तारीफ करके पौलुस यहोवा और यीशु, दोनों की मिसाल पर चला।—मरकुस 1:9-11; यूहन्ना 1:47 पढ़िए; प्रका. 2:2, 13, 19.
9. तारीफ करने और तारीफ पाने से कैसे मंडली में खुशनुमा माहौल को बढ़ावा मिलता है?
9 आज प्राचीन भी समझते हैं कि भाइयों के लिए अपनी कदरदानी शब्दों में बयान करना कितना ज़रूरी है। (नीति. 3:27; 15:23) जब एक प्राचीन किसी भाई के अच्छे काम की तारीफ करता है, तो वह दिखाता है कि वह उस भाई की सचमुच परवाह करता है और उसने भाई के काम को अनदेखा नहीं किया है। दरअसल यह भाई-बहनों की एक ज़रूरत है कि प्राचीन उनके अच्छे कामों पर गौर करें और उनसे कदरदानी के दो शब्द कहें। एक बहन जो करीब 55 साल की है, उसने कहा, “मैं जहाँ काम करती हूँ वहाँ कोई मेरी मेहनत की कदर नहीं करता, कभी किसी के मुँह से तारीफ के दो बोल सुनने को नहीं मिलते। लोग बिलकुल बेरुखे हैं और बस एक-दूसरे से आगे बढ़ने की कोशिश में लगे रहते हैं। लेकिन जब मैं मंडली की खातिर कोई काम करती हूँ और कोई प्राचीन मेरी तारीफ करता है, तो मैं बहुत तरो-ताज़ा महसूस करती हूँ, मेरे अंदर जोश भर आता है! मुझे एहसास होता है कि स्वर्ग में रहनेवाला मेरा पिता यहोवा मुझसे कितना प्यार करता है।” हमारे बहुत-से भाई-बहन ऐसा ही महसूस करते हैं। एक भाई जो अकेले अपने दो बच्चों की परवरिश कर रहा है, उसने भी बताया कि हाल ही में जब एक प्राचीन ने दिल से उसकी तारीफ की तो उसे कैसा लगा। वह कहता है, “उस प्राचीन ने जो कहा, उससे वाकई मेरा हौसला बुलंद हुआ!” इसमें कोई दो राय नहीं कि जब एक प्राचीन भाई-बहनों की सच्ची तारीफ करता है, तो उनकी हौसला-अफज़ाई होती है और उन्हें बहुत खुशी मिलती है। इससे उन्हें जीवन की राह पर चलते रहने की और भी हिम्मत मिलती है ताकि वे कभी ‘थककर’ हार न मानें।—यशा. 40:31.
‘परमेश्वर की मंडली की चरवाहों की तरह देखभाल करो’
10, 11. (क) प्राचीन कैसे नहेमायाह की मिसाल पर चल सकते हैं? (ख) रखवाली भेंट करते वक्त भाई-बहनों को आध्यात्मिक तोहफा देने में क्या बात एक प्राचीन की मदद कर सकती है?
10 भाई-बहनों में दिलचस्पी दिखाने और मंडली की खुशी बढ़ाने के लिए प्राचीन एक और खास तरीके से मदद करते हैं। वे खुद आगे बढ़कर ऐसे भाई-बहनों की मदद करते हैं जिन्हें हौसला-अफज़ाई की ज़रूरत है। (प्रेषितों 20:28 पढ़िए।) जब प्राचीन ऐसा करते हैं तो वे पुराने ज़माने के उन वफादार आदमियों की मिसाल पर चलते हैं जिन पर यहोवा के लोगों की देखरेख करने की ज़िम्मेदारी थी। नहेमायाह ऐसा ही एक विश्वासयोग्य निगरान था। ध्यान दीजिए कि जब परमेश्वर के काम में उसके कुछ यहूदी भाइयों का जोश ठंडा पड़ गया तो उसने क्या किया। वाकया बताता है कि नहेमायाह तुरंत उठा और जाकर उनकी हिम्मत बंधायी। (नहे. 4:14) आज प्राचीन भी ऐसा ही करना चाहते हैं। अपने भाई-बहनों की खातिर वे भी ज़रूरी कदम ‘उठाते हैं’ यानी खुद आगे आकर उनकी मदद करते हैं, ताकि वे विश्वास में मज़बूत बने रहें। अगर प्राचीनों के लिए मुमकिन हो तो वे भाई-बहनों के घरों पर भी जाते हैं ताकि उनसे मिलकर उनकी हिम्मत बंधा सकें। इस तरह जब प्राचीन रखवाली भेंट करते हैं तो उनकी यही कोशिश रहती है कि वे भाई-बहनों को “परमेश्वर की तरफ से कोई आशीष [या तोहफा]” दें। (रोमि. 1:11) प्राचीनों को क्या बात ऐसा करने में मदद दे सकती है?
11 किसी भाई या बहन के पास रखवाली भेंट के लिए जाने से पहले एक प्राचीन को थोड़ा समय निकालकर उसके बारे में सोचना चाहिए। वह भाई या बहन किन चुनौतियों का सामना कर रहा है? मैं उसकी हौसला-अफज़ाई करने के लिए उसे क्या बता सकता हूँ? वह जिन हालात से गुज़र रहा है, उसके हिसाब से बाइबल की किस आयत या किस किरदार के बारे में बताने से उसे फायदा होगा? इस तरह के मुद्दों पर पहले से विचार करने से एक प्राचीन रखवाली भेंट के वक्त रोज़मर्रा की आम बातें करने के बजाय, भाई-बहनों को कुछ ऐसी बात बता पाएगा जिससे उनकी हिम्मत बढ़े। रखवाली भेंट में प्राचीन भाई-बहनों को खुलकर बात करने का मौका देते हैं और ध्यान से उनकी सुनते हैं। (याकू. 1:19) एक बहन कहती है, “जब एक प्राचीन मन लगाकर मेरी बात सुनता है तो मुझे बहुत तसल्ली मिलती है।”—लूका 8:18.
12. मंडली में किन लोगों को हिम्मत-अफज़ाई की ज़रूरत है? और क्यों?
12 रखवाली भेंट से किन लोगों को फायदा हो सकता है? पौलुस ने अपने साथी प्राचीनों को सलाह दी कि वे “पूरे झुंड की चौकसी” करें। जी हाँ, पूरी मंडली को हौसला-अफज़ाई की ज़रूरत है, यहाँ तक कि उन प्रचारकों और पायनियरों को भी जो बरसों से परमेश्वर की सेवा कर रहे हैं। लेकिन जो भाई-बहन आध्यात्मिक तौर पर मज़बूत हैं, उन्हें प्राचीनों की मदद की ज़रूरत क्यों है? क्योंकि वे भी कई बार इस दुष्ट दुनिया से आनेवाले दवाब झेलत-झलते पस्त हो जाते हैं। परमेश्वर के एक वफादार सेवक को भी कभी-कभी अपने साथियों से कितनी मदद की ज़रूरत होती है, यह समझने के लिए आइए देखें कि एक बार राजा दाविद के साथ क्या हुआ था।
‘अबीशै ने दाऊद की सहायता की’
13. (क) यिशबोबनोब ने किस घड़ी दाविद पर वार करने की सोची? (ख) अबीशै किस तरह दाविद की जान बचा पाया?
13 दाविद लड़का ही था जब उसे इसराएल का राजा होने के लिए अभिषिक्त किया गया। उसके कुछ ही समय बाद, दाविद का मुकाबला गोलियत से हुआ जो रपाई के वंश से था। इस वंश के सभी लोग बहुत लंबे-चौड़े हुआ करते थे। लेकिन दाविद बहुत साहसी था, उसने विशालकाय गोलियत को मौत के घाट उतार दिया। (1 शमू. 17:4, 48-51; 1 इति. 20:5, 8) सालों बाद, पलिश्तियों से युद्ध लड़ते वक्त एक बार फिर दाविद का आमना-सामना एक विशालकाय आदमी से हुआ। उसका नाम था यिशबोबनोब और वह भी रपाई के वंश का था। (2 शमू. 21:16) लेकिन इस बार दाविद की जान पर बन आयी थी। क्यों? इसलिए नहीं कि दाविद हिम्मत हार गया था मगर इसलिए कि वह पूरी तरह पस्त हो चुका था। वाकया बताता है कि “दाऊद थक गया” था। जैसे ही यिशबोबनोब ने देखा कि दाविद थक गया है, ‘उस ने दाऊद को मारने की ठान ली।’ वह दाविद पर अपने हथियार से वार करने ही वाला था कि तभी “सरूयाह के पुत्र अबीशै ने दाऊद की सहायता करके उस पलिश्ती को ऐसा मारा कि वह मर गया।” (2 शमू. 21:15-17) दाविद मौत के मुँह में जाने से बाल-बाल बचा। दाविद अबीशै का कितना शुक्रगुज़ार होगा कि उसने उस पर नज़र रखी और जब उसकी जान को खतरा था तब अबीशै तुरंत मदद के लिए आगे आया। इस वाकए से हम क्या सीख सकते हैं?
14. (क) हम गोलियत जैसी बड़ी चुनौतियों का सामना कैसे कर सकते हैं? (ख) प्राचीन दूसरों की मदद कैसे कर सकते हैं ताकि वे एक बार फिर खुशी से यहोवा की सेवा में लग जाएँ? एक मिसाल दीजिए।
14 शैतान और उसके हिमायतियों के विरोध के बावजूद आज दुनिया-भर में यहोवा के लोग उसकी सेवा में लगे हुए हैं। हममें से कुछ लोगों की ज़िंदगी में भी बड़ी-बड़ी चुनौतियाँ आयी थीं। लेकिन दाविद की तरह यहोवा पर भरोसा रखकर हमने उन “गोलियत” जैसी बड़ी मुश्किलों का सामना किया और उन पर जीत हासिल की। फिर भी कई बार इस दुनिया से आनेवाले दबाव झेलते-झेलते हम थक जाते हैं और निराश हो जाते हैं। ऐसी कमज़ोर हालत में हम उन्हीं मुश्किलों का सामना करने में नाकाम हो सकते हैं जिनका सामना करने में हम पहले कई बार कामयाब हुए थे। ऐसी ज़रूरत की घड़ी में जब प्राचीन हमें सहारा देते हैं, तो हमें एक बार फिर खुशी से यहोवा की सेवा करने की हिम्मत मिलती है। बहुत से लोगों का ऐसा अनुभव रहा है। एक पायनियर बहन जो करीब 65 साल की है, बताती है, “कुछ समय पहले, मेरी तबियत ठीक नहीं थी और मैं प्रचार में जाकर बहुत थक गयी थी। जब एक प्राचीन ने मेरी हालत पर गौर किया तो वे मुझसे मिलने आए और उन्होंने मेरे साथ बाइबल की कुछ आयतों पर चर्चा की जिससे मेरा काफी हौसला बढ़ा। मैंने उनके बताए सुझाव लागू किए और मुझे बहुत फायदा हुआ।” बहन आगे कहती है, “वाकई उस भाई ने मेरे लिए कितनी परवाह दिखायी! उन्होंने मेरी हालत पर ध्यान दिया और मेरी मदद की!” हमें यह जानकर कितना अच्छा लगता है कि हमारे बीच ऐसे प्राचीन हैं जो हम पर गौर करते हैं और हमारी “सहायता” करने के लिए अबीशै की तरह हर वक्त तैयार रहते हैं।
‘उस प्यार को जानो जो मुझे तुमसे है’
15, 16. (क) भाई-बहन पौलुस से इतना प्यार क्यों करते थे? (ख) हम अपने प्राचीनों से प्यार क्यों करते हैं?
15 झुंड की रखवाली करने में प्राचीनों को बहुत मेहनत करनी होती है। कई बार उनकी रात आँखों में कटती है क्योंकि वे परमेश्वर की भेड़ों की फिक्र करते हैं और देर रात तक जागकर उनके लिए प्रार्थना करते हैं या फिर आध्यात्मिक तौर पर उनकी मदद करते हैं। (2 कुरिं. 11:27, 28) इसके बावजूद, वे खुशी-खुशी अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हैं, ठीक जैसे पौलुस ने निभायी। उसने कुरिंथियों को लिखा, “मैं तुम्हारी खातिर हँसते-हँसते खर्च करूँगा, यहाँ तक कि खुद भी पूरी तरह खर्च हो जाऊँगा।” (2 कुरिं. 12:15) जी हाँ, पौलुस अपने भाइयों से प्यार करता था इसलिए उसने उनकी हिम्मत बढ़ाने के लिए खुद को पूरी तरह खर्च कर दिया। (2 कुरिंथियों 2:4 पढ़िए; फिलि. 2:17; 1 थिस्स. 2:8) यही वजह है कि भाई-बहन पौलुस से इतना प्यार करते थे!—प्रेषि. 20:31-38.
16 आज हम परमेश्वर के सेवक भी अपने प्राचीनों से प्यार करते हैं और अपनी प्रार्थनाओं में यहोवा को धन्यवाद देते हैं कि उनके ज़रिए वह हमारी देखभाल करता है। वे हममें से हरेक में दिलचस्पी लेते हैं जिससे हमें दिली खुशी मिलती है। जब वे रखवाली भेंट करते हैं, तो हमारा हौसला बढ़ता है। और जब हम इस दुनिया से आनेवाले दबावों की वजह से दबा हुआ महसूस करते हैं, तो वे हमारी मदद के लिए तैयार रहते हैं और इसके लिए हम उनके कितने शुक्रगुज़ार हैं! हम पर ध्यान देनेवाले मसीही प्राचीन वाकई ‘हमारी खुशी के लिए हमारे सहकर्मी हैं।’
^ उन भाई-बहनों से यह भी पूछा गया कि “आपको एक प्राचीन में कौन-सा गुण सबसे अच्छा लगता है?” ज़्यादातर ने कहा, “एक प्राचीन इतना मिलनसार हो कि कोई भी उसके पास जाकर बेझिझक बात कर सके।” इस खास गुण पर कुछ समय बाद प्रहरीदुर्ग पत्रिका में चर्चा की जाएगी।