परमेश्वर की आज्ञा मानिए और उसकी शपथ से फायदा पाइए
“[परमेश्वर] ने खुद अपनी शपथ खायी, क्योंकि परमेश्वर से बड़ा कोई और नहीं जिसकी वह शपथ खाता।”—इब्रा. 6:13.
1. यहोवा के वादों और इंसानों के वादों में क्या फर्क है?
यहोवा “सत्यवादी ईश्वर” है। (भज. 31:5) उसका “झूठ बोलना नामुमकिन है।” मगर इंसानों की बात करें तो उन पर हमेशा भरोसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे असिद्ध हैं। (इब्रा. 6:18; गिनती 23:19 पढ़िए।) परमेश्वर इंसानों की भलाई के लिए जो भी वादे करता है, वे हमेशा पूरे होते हैं। मिसाल के लिए, सृष्टि के हर दिन की शुरूआत में उसने जो कुछ करने की बात कही, “वैसा ही हो गया।” इसलिए सृष्टि के छठवें दिन के आखिर में “परमेश्वर ने जो कुछ बनाया था, सब को देखा, तो क्या देखा, कि वह बहुत ही अच्छा है।”—उत्प. 1:6, 7, 30, 31.
2. परमेश्वर का विश्राम दिन क्या है? और उसने इसे क्यों “पवित्र ठहराया”?
2 अपनी सृष्टि को देखने के बाद, यहोवा परमेश्वर ने यह ज़ाहिर किया कि अब सातवाँ दिन शुरू हो गया है। यह 24 घंटे का दिन नहीं, बल्कि एक लंबा अरसा है। इस दौरान उसने धरती पर सृष्टि का काम करना बंद कर दिया। (उत्प. 2:2) इसे परमेश्वर का विश्राम दिन कहा गया है और यह विश्राम दिन आज भी चल रहा है। (इब्रा. 4:9, 10) बाइबल यह ठीक-ठीक नहीं बताती कि यह दिन कब शुरू हुआ। मगर हम इतना जानते हैं कि यह करीब 6,000 साल पहले शुरू हुआ, यानी आदम की पत्नी हव्वा को बनाने के कुछ समय बाद। अब बहुत जल्द यीशु मसीह का हज़ार साल का राज शुरू होनेवाला है, जब धरती के बारे में परमेश्वर का मकसद पूरा होगा। वह चाहता है कि यह धरती एक फिरदौस बन जाए और इस पर सिद्ध इंसान हमेशा-हमेशा जीएँ। (उत्प. 1:27, 28; प्रका. 20:6) आप यकीन रख सकते हैं कि आप खुशियों से भरे ऐसे शानदार भविष्य का लुत्फ उठाँएगे! वह इसलिए कि “परमेश्वर ने सातवें दिन को आशीष दी और पवित्र ठहराया।” यह एक गारंटी है कि परमेश्वर के विश्राम दिन के आखिर में उसका मकसद ज़रूर पूरा होगा, फिर चाहे कोई भी मुश्किल क्यों न खड़ी हो जाए।—उत्प. 2:3.
3. (क) परमेश्वर के विश्राम दिन के शुरू होने के बाद, क्या समस्या खड़ी हो गयी? (ख) इस समस्या को हल करने के बारे में यहोवा ने क्या कहा?
3 परमेश्वर का विश्राम दिन शुरू हुए कुछ ही समय हुआ था कि एक बड़ी समस्या खड़ी हो गयी। शैतान, यानी परमेश्वर के एक स्वर्गदूत ने खुद को ईश्वर ठहराने की कोशिश की। उसने पहला झूठ बोला और हव्वा को बहकाया जिस वजह से उसने यहोवा की आज्ञा तोड़ दी। (1 तीमु. 2:14) फिर हव्वा ने अपने पति को भी परमेश्वर के खिलाफ बगावत में शामिल कर लिया। (उत्प. 3:1-6) पूरे विश्व के इतिहास में इतने बुरे हालात कभी न हुए थे। हालाँकि शैतान यहोवा पर सच न बोलने का इलज़ाम लगा रहा था, फिर भी यहोवा ने यह ज़रूरी नहीं समझा कि वह शपथ खाकर पक्का करे कि उसका मकसद पूरा होकर ही रहेगा। इसके बजाय उसने एक वादा किया, जिसका मतलब परमेश्वर के तय समय पर समझ में आता। उसने बताया कि वह कैसे यह समस्या हल करेगा। उसने कहा, “मैं तेरे [शैतान] और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्न करुंगा, वह [वादा किया गया वंश] तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा।”—उत्प. 3:15; प्रका. 12:9.
शपथ खाना—कानूनी गारंटी
4, 5. अब्राहम ने कई मौकों पर क्या कानूनी गारंटी दी?
4 मानवजाति की शुरूआत में, जब परमेश्वर ने आदम और हव्वा को बनाया तब किसी बात के सच होने की शपथ खाने की ज़रूरत नहीं होती थी। वह इसलिए कि परमेश्वर से प्यार करनेवाले और उसकी मिसाल पर चलनेवाले सिद्ध इंसान हमेशा सच बोलते हैं और वे एक-दूसरे पर पूरा भरोसा रख सकते हैं। मगर जब पहले जोड़े ने पाप किया और वे असिद्ध हो गए, तो हालात एकदम बदल गए। समय के चलते इंसान का झूठ बोलना और एक-दूसरे को धोखा देना आम हो गया। ऐसे में किसी अहम मामले को सच साबित करने के लिए शपथ खाना ज़रूरी हो गया।
5 शपथ खाना कानूनी गारंटी थी और कुल पिता अब्राहम ने कम-से-कम तीन मौकों पर शपथ खायी। (उत्प. 21:22-24; 24:2-4, 9) मिसाल के लिए, ऐसा तब हुआ जब वह एलाम के राजा और उसका साथ देनेवालों को हराकर लौट रहा था। उस समय सदोम और शालेम के राजा अब्राहम से मिलने आए। शालेम का राजा मेल्कीसेदेक, “परमप्रधान ईश्वर का याजक” भी था। उसने अब्राहम को आशीर्वाद दिया और परमेश्वर की महिमा की, क्योंकि परमेश्वर ने अब्राहम को उसके दुश्मनों पर जीत दिलायी। (उत्प. 14:17-20) फिर जब सदोम का राजा, अब्राहम को इनाम देना चाहता था क्योंकि वह दुश्मन सेना से राजा के लोगों को छुड़ा लाया था, तो अब्राहम ने कहा, “परमप्रधान ईश्वर यहोवा, जो आकाश और पृथ्वी का अधिकारी है, उसकी मैं यह शपथ खाता हूं, कि जो कुछ तेरा है उस में से न तो मैं एक सूत, और न जूती का बन्धन, न कोई और वस्तु लूंगा; कि तू ऐसा न कहने पाए, कि अब्राम मेरे ही कारण धनी हुआ।”—उत्प. 14:21-23.
यहोवा ने खायी अब्राहम से शपथ
6. (क) अब्राहम ने हमारे लिए क्या मिसाल रखी? (ख) अब्राहम ने परमेश्वर की आज्ञा मानी, इससे हमें क्या फायदा होगा?
6 यहोवा परमेश्वर ने भी कई बार शपथ खायी ताकि असिद्ध इंसान उसके वादों पर यकीन रख सकें। उसने शपथ खाते वक्त कुछ इस तरह के शब्द इस्तेमाल किए, “प्रभु यहोवा यों कहता है, मेरे जीवन की सौगन्ध।” (यहे. 17:16) बाइबल ऐसे 40 से भी ज़्यादा मौकों का ज़िक्र करती है, जब यहोवा ने शपथ खायी। इनमें से शायद सबसे जाना-माना उदाहरण, अब्राहम के साथ खायी शपथ का है। अब्राहम के जीते-जी यहोवा ने उसके साथ कई बार करार या वादे किए। इनसे अब्राहम समझ पाया कि वादा किया गया वंश उसी के परिवार से, उसके बेटे इसहाक के ज़रिए आएगा। (उत्प. 12:1-3, 7; 13:14-17; 15:5, 18; 21:12) एक समय ऐसा आया कि यहोवा ने अब्राहम की कड़ी परीक्षा ली। उसने अब्राहम को आज्ञा दी कि वह अपने अज़ीज़ बेटे की कुरबानी दे। अब्राहम ने बिना देर किए परमेश्वर की आज्ञा मानी। मगर जैसे ही वह अपने बेटे की बलि चढ़ानेवाला था, एक स्वर्गदूत ने उसे रोक दिया। फिर यहोवा ने यह शपथ खायी, “मैं अपनी ही यह शपथ खाता हूं, कि तू ने जो यह काम किया है कि अपने पुत्र, वरन अपने एकलौते पुत्र को भी, नहीं रख छोड़ा; इस कारण मैं निश्चय तुझे आशीष दूंगा; और निश्चय तेरे वंश को आकाश के तारागण, और समुद्र के तीर की [बालू] के किनकों के समान अनगिनित करूंगा, और तेरा वंश अपने शत्रुओं के नगरों का अधिकारी होगा: और पृथ्वी की सारी जातियां अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी: क्योंकि तू ने मेरी बात मानी है।”—उत्प. 22:1-3, 9-12, 15-18.
7, 8. (क) परमेश्वर ने अब्राहम से शपथ क्यों खायी? (ख) यह क्यों कहा जा सकता है कि परमेश्वर की शपथ से मसीह की “दूसरी भेड़ें” फायदा पाएँगी?
7 परमेश्वर ने अब्राहम से यह शपथ क्यों खायी कि उसके वादे ज़रूर पूरे होंगे? ऐसा उसने उन लोगों को भरोसा दिलाने और उनका विश्वास मज़बूत करने के लिए किया जो मसीह के संगी वारिस और वादा किए गए “वंश” का दूसरा भाग बनते। (इब्रानियों 6:13-18 पढ़िए; गला. 3:29) जैसा कि प्रेषित पौलुस ने समझाया, यहोवा ने “शपथ खाते हुए अपने वादे को पुख्ता किया, ताकि इन दो अटल बातों [उसके वादे और उसकी शपथ] के ज़रिए जिनके बारे में परमेश्वर का झूठ बोलना नामुमकिन है हमें . . . ऐसा ज़बरदस्त हौसला मिले कि हम उस आशा पर पकड़ हासिल कर सकें जो हमारे सामने रखी है।”
8 ऐसा नहीं कि परमेश्वर ने अब्राहम से जो शपथ खायी थी, उससे सिर्फ अभिषिक्त मसीहियों को फायदा होता। यहोवा ने शपथ खायी थी कि अब्राहम के “वंश” के ज़रिए “पृथ्वी की सारी जातियां अपने को . . . धन्य मानेंगी।” (उत्प. 22:18) इन ‘सारी जातियों’ में मसीह की वफादार “दूसरी भेड़ें” भी शामिल हैं जिन्हें धरती पर फिरदौस में हमेशा जीने की आशा है। (यूह. 10:16) चाहे आपकी आशा स्वर्ग की हो या धरती पर रहने की, लगातार परमेश्वर की आज्ञा मानकर अपनी आशा पर ‘पकड़ हासिल कीजिए।’—इब्रानियों 6:11, 12 पढ़िए।
अब्राहम से खायी शपथ से जुड़ी कुछ और शपथ
9. जब अब्राहम के वंशज मिस्रियों की गुलामी में थे, तो यहोवा ने क्या शपथ खायी?
9 अब्राहम से वादा करने के सदियों बाद, यहोवा ने इन वादों के पूरे होने की फिर से शपथ खायी। यह तब हुआ जब उसने मूसा को अब्राहम के वंशजों से बात करने के लिए भेजा, जो उस वक्त मिस्रियों की गुलामी में थे। (निर्ग. 6:6-8) आगे चलकर उस मौके का ज़िक्र करते हुए परमेश्वर ने कहा, “जिस दिन मैं ने इसराएल को चुन लिया, . . . मैं ने उन से यह भी शपथ खाई, कि मैं तुम को मिस्र देश से निकालकर एक देश में पहुंचाऊंगा, जिसे मैं ने तुम्हारे लिये चुन लिया है; वह सब देशों का शिरोमणि है, और उस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं।”—यहे. 20:5, 6.
10. इसराएलियों को मिस्र की गुलामी से आज़ाद कराने के बाद, यहोवा ने उनसे क्या वादा किया?
10 इसराएलियों को मिस्र की गुलामी से आज़ाद कराने के बाद, यहोवा ने उनसे एक और वादा किया, “यदि तुम निश्चय मेरी मानोगे, और मेरी वाचा को पालन करोगे, तो सब लोगों में से तुम ही मेरा निज धन ठहरोगे; समस्त पृथ्वी तो मेरी है। और तुम मेरी दृष्टि में याजकों का राज्य और पवित्र जाति ठहरोगे।” (निर्ग. 19:5, 6) परमेश्वर ने इसराएलियों को क्या ही बड़ा सम्मान दिया था! अगर वे यहोवा की आज्ञा मानते, तो उनमें से कुछ याजकों के राज्य के तौर पर सेवा करते और इससे पूरी मानवजाति को फायदा होता। बाद में यहोवा ने समझाया कि जब उसने इसराएलियों से उस वक्त वादा किया था, तो उसने उनसे शपथ या ‘सौगन्ध खाकर वाचा बान्धी’ थी।—यहे. 16:8.
11. जब यहोवा ने इसराएलियों के आगे यह पेशकश रखी कि वे उसकी खास जाति बन सकते हैं, तो उन्होंने क्या कहा?
11 उस वक्त यहोवा ने इसराएलियों से यह शपथ नहीं खिलवायी कि वे उसकी आज्ञा मानेंगे, न ही उनसे इस अनमोल रिश्ते में बँधने की ज़ोर-ज़बरदस्ती की। इसके बजाय, उन्होंने अपनी मरज़ी से कहा, “जो कुछ यहोवा ने कहा है वह सब हम नित करेंगे।” (निर्ग. 19:8) तीन दिन बाद, यहोवा परमेश्वर ने इसराएलियों पर ज़ाहिर किया कि वह अपनी चुनी हुई जाति से क्या चाहता है। पहले उसने उन्हें दस आज्ञाएँ दीं और फिर मूसा के ज़रिए कुछ और आज्ञाएँ बतायीं जो निर्गमन 20:22 से निर्गमन 23:33 में दर्ज़ हैं। इस पर इसराएलियों ने क्या कहा? “तब सब लोग एक स्वर से बोल उठे, कि जितनी बातें यहोवा ने कही हैं उन सब बातों को हम मानेंगे।” (निर्ग. 24:3) फिर मूसा ने वे नियम “वाचा की पुस्तक” में लिखे और वह पुस्तक लोगों के सामने ज़ोर से पढ़ी, ताकि पूरी जाति वे नियम दोबारा सुन सके। तब तीसरी बार, लोगों ने वादा किया कि “जो कुछ यहोवा ने कहा है उस सब को हम करेंगे, और उसकी आज्ञा मानेंगे।”—निर्ग. 24:4, 7, 8.
12. इसराएलियों के साथ करार करने के बाद, यहोवा ने क्या किया? परमेश्वर से वादा करने के बाद इसराएलियों ने क्या किया?
12 इसराएलियों के साथ किए करार के मुताबिक यहोवा ने जो करने का वादा किया था, उसे वह फौरन पूरा करने लगा। उसने उपासना के लिए निवासस्थान और याजकों का इंतज़ाम किया। ये याजक असिद्ध लोगों को परमेश्वर के साथ एक रिश्ता कायम करने में मदद देते। मगर दूसरी तरफ, इसराएली परमेश्वर को किया अपना समर्पण जल्द ही भूल गए और उन्होंने “इसराएल के पवित्र को खेदित” किया। (भज. 78:41) उदाहरण के लिए, जिस दौरान परमेश्वर मूसा को सीनै पहाड़ पर निर्देशन दे रहा था, तब इसराएलियों ने सब्र नहीं दिखाया और परमेश्वर पर से उनका विश्वास उठने लगा। वे सोचने लगे कि मूसा ने उन्हें छोड़ दिया है, इसलिए उन्होंने सोने का एक बछड़ा बनाया और कहा, “हे इसराएल तेरा परमेश्वर जो तुझे मिस्र देश से छुड़ा लाया है वह यही है।” (निर्ग. 32:1, 4) फिर वे उस मूरत के आगे दंडवत करने और बलिदान चढ़ाने लगे और कहा कि वे “यहोवा के लिये पर्ब्ब” मना रहे हैं। यह देखकर यहोवा ने मूसा से कहा, ‘जिस मार्ग पर चलने की आज्ञा मैं ने उनको दी थी उसको उन्होंने झटपट छोड़ दिया है।’ (निर्ग. 32:5, 6, 8) दुख की बात है कि तब से इसराएलियों ने यहोवा से कई बार मन्नतें मानी, मगर उन्हें पूरा न किया।—गिन. 30:2.
दो और शपथ
13. परमेश्वर ने राजा दाविद से क्या शपथ खायी? हम कैसे जानते हैं कि वह शपथ वादा किए गए वंश के बारे में थी?
13 राजा दाविद की हुकूमत के दौरान यहोवा ने दो और शपथ खायीं जिनसे उन सभी को फायदा होता जो उसकी आज्ञा मानते। पहली शपथ खाते हुए उसने दाविद से कहा कि उसकी राजगद्दी हमेशा बनी रहेगी और उसका वंशज उसकी राजगद्दी पर बैठेगा। (भज. 89:35, 36; 132:11, 12) इसका मतलब था कि वादा किया गया वंश ‘दाविद का वंशज’ कहलाता। (मत्ती 1:1; 21:9) दाविद ने नम्रता दिखाते हुए अपने इस वंशज को “प्रभु” कहा क्योंकि मसीह को उससे ऊँचा पद दिया जाता।—मत्ती 22:42-44.
14. यहोवा ने वादा किए गए वंश के बारे में क्या शपथ खायी? इस शपथ से हमें क्या फायदा होता है?
14 दूसरी शपथ में यहोवा ने दाविद पर यह ज़ाहिर किया कि वादा किया गया वंश न सिर्फ राजा होगा, बल्कि इंसानों की खातिर महायाजक के तौर पर भी सेवा करेगा। परमेश्वर ने इसराएलियों को जो कानून दिया था, उसके मुताबिक याजकों को लेवी के गोत्र से होना था और राजाओं को यहूदा के गोत्र से। उस वक्त कोई भी शख्स राजा और याजक दोनों नहीं हो सकता था। पर दाविद ने अपने आनेवाले महान वारिस के बारे में कहा, “मेरे प्रभु से यहोवा की वाणी यह है, कि तू मेरे दहिने हाथ बैठ, जब तक मैं तेरे शत्रुओं को तेरे चरणों की चौकी न कर दूं। यहोवा ने शपथ खाई और न पछताएगा, कि तू मेल्कीसेदेक की रीति पर सर्वदा का याजक है।” (भज. 110:1, 4) जैसे दाविद ने भविष्यवाणी की थी, वादा किया गया वंश, यीशु मसीह आज स्वर्ग से राज कर रहा है। साथ ही वह इंसानों के लिए महायाजक के तौर पर सेवा कर रहा है और पश्चाताप दिखानेवालों को परमेश्वर के साथ एक अच्छा रिश्ता कायम करने में मदद दे रहा है।—इब्रानियों 7:21, 25, 26 पढ़िए।
परमेश्वर का आत्मिक इसराएल
15, 16. (क) बाइबल में कौन-से दो इसराएल का ज़िक्र किया गया है? किस इसराएल पर आज परमेश्वर की आशीष है? (ख) कसम खाने के विषय में यीशु ने अपने चेलों को क्या आज्ञा दी थी?
15 इसराएल जाति ने यीशु मसीह को ठुकरा दिया इसलिए आखिरकार यहोवा ने भी उसे ठुकरा दिया। इसके अलावा, इसराएली “याजकों का राज्य” बनने का मौका भी गवाँ बैठे। यीशु ने यहूदी अगुवों से कहा, “परमेश्वर का राज तुमसे ले लिया जाएगा और उस जाति को, जो इसके योग्य फल पैदा करती है, दे दिया जाएगा।” (मत्ती 21:43) उस जाति की शुरूआत ईसवी सन् 33 में पिन्तेकुस्त के दिन हुई, जब परमेश्वर ने यरूशलेम में इकट्ठा हुए यीशु के 120 चेलों पर अपनी पवित्र शक्ति ऊँडेली। इन्हें ‘परमेश्वर का इसराएल’ कहा गया। जल्द ही इसमें दूसरे राष्ट्रों के लोग भी शामिल हो गए और इसकी गिनती हज़ारों में पहुँच गयी।—गला. 6:16.
16 पैदाइशी इसराएल जाति ने परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानी, लेकिन परमेश्वर का आत्मिक इसराएल हमेशा उसकी आज्ञा मानता है और इस तरह अच्छे फल पैदा करता है। आत्मिक इसराएल के सदस्य परमेश्वर की जो आज्ञाएँ मानते हैं, उनमें से एक है शपथ खाने के बारे में। जब यीशु धरती पर था, तो लोग झूठी कसमें खाते थे या फिर गैर-ज़रूरी बातों पर कसम खाते थे। (मत्ती 23:16-22) यीशु ने अपने चेलों को सिखाया, “कभी कसम न खाना . . . बस तुम्हारी ‘हाँ’ का मतलब हाँ हो, और ‘न’ का मतलब न। इसलिए कि इससे बढ़कर जो कुछ कहा जाता है वह शैतान से होता है।”—मत्ती 5:34, 37.
यहोवा के वादे हमेशा पूरे होते हैं
17. अगले लेख में हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?
17 क्या इसका मतलब शपथ खाना हमेशा गलत होता है? और इससे भी ज़रूरी, अपनी ‘हाँ’ का मतलब हाँ होने में क्या शामिल है? इन सवालों के जवाब हम अगले लेख में देखेंगे। जब हम परमेश्वर के वचन पर मनन करते हैं, तो ऐसा हो कि यह हमें हमेशा यहोवा की आज्ञा मानने के लिए उकसाए। ऐसा करने पर परमेश्वर अपने वादे और शपथ के मुताबिक हमेशा हमें आशीष देगा।