फेरबदल करने से हमें आशीषें मिली हैं
फेरबदल करने से हमें आशीषें मिली हैं
जेम्स ए. थॉम्पसन की ज़ुबानी
सन् 1928 में जब अमरीका के दक्षिणी इलाके में मेरा जन्म हुआ, तब गोरे और काले लोगों का मिलना-जुलना कानून के खिलाफ था। ऐसा करने पर जेल की सज़ा हो सकती थी या उससे भी बुरा हो सकता था।
उन दिनों अमरीका के कुछ हिस्सों में गोरे और काले यहोवा के साक्षियों की अलग-अलग मंडलियाँ, सर्किट और ज़िले बनाने पड़ते थे। सन् 1937 में मेरे पिताजी, टेनेसी राज्य में स्थित चेटानूगा शहर के अश्वेत भाई-बहनों की मंडली के कंपनी सेवक बने (इसे आज प्राचीनों के निकाय का संयोजक कहा जाता है) और हेनरी निकल्ज़ गोरे भाई-बहनों की मंडली के कंपनी सेवक थे।
मुझे अब भी बचपन के वे सुनहरे पल याद हैं जब मैं रात को, अपने घर के पीछेवाले आँगन में बैठकर पिताजी और भाई निकल्ज़ की बातें सुना करता था। हालाँकि मुझे उनकी सब बातें समझ नहीं आती थीं, मगर जब वे मौजूदा हालात में प्रचार काम को असरदार तरीके से करने के बारे में बात करते, तो मैं बड़े चाव से उनकी सुनता था।
सन् 1930 में हमारे परिवार पर कहर टूट पड़ा जब मेरी माँ की मौत हो गयी। वह सिर्फ 20 साल की थी। पिताजी को अकेले ही मेरी और मेरी बहन डॉरिस की देखभाल करनी पड़ी। उस वक्त मैं सिर्फ दो साल का था और डॉरिस चार साल की। हालाँकि पिताजी को बपतिस्मा लिए ज़्यादा वक्त नहीं हुआ था मगर उन्होंने आध्यात्मिक तौर पर अच्छी तरक्की की थी।
ऐसी मिसाल जिसने मेरी ज़िंदगी पर गहरी छाप छोड़ी
सन् 1933 में पिताजी की मुलाकात एक प्यारी मसीही बहन से हुई जिनका नाम था, लिली मे ग्वेनडोलन थॉमस और जल्द ही उनकी शादी हो गयी। पिताजी और माँ, दोनों ने वफादारी से यहोवा की सेवा करने में डॉरिस और मेरे लिए एक अच्छी मिसाल रखी।
सन् 1938 में यहोवा के साक्षियों की मंडलियों से कहा गया कि अब से प्राचीन चुनाव के ज़रिए नहीं ठहराए जाएँगे बल्कि उन्हें मुख्यालय नियुक्त करेगा, जो न्यू यॉर्क राज्य के ब्रुकलिन शहर में है। मंडलियों को इस प्रस्ताव को कबूल करना था। चेटानूगा के कुछ भाई-बहन इस फेरबदल को अपनाने से कतरा रहे थे। मगर पिताजी ने साफ कह दिया कि संगठन की तरफ से की गयी इस फेरबदल को वे अपना पूरा समर्थन देंगे। पिताजी की वफादारी और माँ ने जिस तरह उनको सहयोग दिया यह मेरे लिए एक अच्छी मिसाल थी जो आज भी मेरे काम आती है।
बपतिस्मा और पूरे समय की सेवा
सन् 1940 में मिशिगन राज्य के डिट्रॉइट शहर में यहोवा के साक्षियों का एक अधिवेशन रखा गया। हमारी मंडली के कई भाई-बहन किराए पर बस लेकर वहाँ गए। हमारे साथ सफर करनेवाले कुछ भाई-बहनों ने वहाँ बपतिस्मा लिया मगर मैंने नहीं लिया। यह देखकर कुछ लोगों को ताज्जुब हुआ क्योंकि मैं पाँच साल की उम्र से प्रचार कर रहा था और एक जोशीला प्रचारक था।
जब उन्होंने मुझसे इस बारे में पूछा तो मैंने जवाब दिया “मुझे इस बात की पूरी समझ नहीं है कि बपतिस्मे का असली मतलब क्या है।” पिताजी ने जब मुझे यह कहते सुना तो वे बहुत हैरान हुए। तब से वे मुझे बपतिस्मे की अहमियत समझाने के लिए और भी मेहनत करने लगे। चार महीने बाद, अक्टूबर 1, 1940 के जाड़े में चेटानूगा शहर से कुछ दूर एक तालाब में मेरा बपतिस्मा हुआ।
चौदह साल की उम्र से मैंने गर्मियों की छुट्टियों में वेकेशन पायनियर सेवा करनी शुरू की। मैं टेनेसी में और पास के जॉर्जिया राज्य के कस्बों में प्रचार करता था। मैं सुबह जल्दी उठता, दोपहर के लिए खाना बाँधता और प्रचार के इलाके तक जाने के लिए सुबह 6 बजे की रेलगाड़ी या बस पकड़ता। प्रचार करके मैं शाम को करीब 6 बजे घर लौटता। मैं अपने साथ जो खाना ले जाता वह अकसर दोपहर होने से पहले ही खत्म हो जाता। हालाँकि मेरे पास पैसे होते, मगर फिर भी मैं दुकान से खाना नहीं खरीद सकता था क्योंकि मैं अश्वेत था। एक बार, मैं आइसक्रीम लेने एक दुकान में गया लेकिन मुझे वहाँ से चले जाने को कहा गया। तब एक गोरी स्त्री ने मुझे आइसक्रीम दुकान के बाहर लाकर दी।
जब मैं हाई स्कूल में था तब अमरीका के दक्षिणी इलाके में अश्वेतों को दूसरों के बराबर अधिकार दिलाने के लिए आंदोलन ज़ोर पकड़ने लगा था। कुछ संगठन, जैसे नेशनल असोसियेशन फॉर दि अड्वानस्मेंट ऑफ कलर्ड पीपल (एन.ए.ए.सी.पी.), विद्यार्थियों पर ज़ोर डालने लगे कि वे भी संगठन से जुड़कर अपने हक के लिए लड़ें। अश्वेत बच्चों के स्कूलों की कोशिश थी कि उनके सभी विद्यार्थी अपना नाम इस संगठन में दर्ज़ कराएँ। मेरा स्कूल भी उनमें से एक था। मुझ पर दबाव डाला गया कि मैं अपनी जाति का साथ दूँ। मगर मैंने साफ इनकार कर दिया और समझाया कि परमेश्वर भेदभाव नहीं करता, वह एक जाति को दूसरी जाति से बढ़कर नहीं समझता और मुझे भरोसा है कि वही इस तरह की नाइंसाफी को मिटाएगा।—यूह. 17:14; प्रेषि. 10:34, 35.
हाई स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के कुछ समय बाद मैंने न्यू यॉर्क शहर जाने का फैसला किया। लेकिन रास्ते में कुछ दोस्तों से मिलने के लिए मैं पेन्सिलवेनिया राज्य के फिलाडेलफिया शहर में ठहरा। वहाँ मैं पहली बार ऐसी मंडली में गया जहाँ काले और गोरे रंग के भाई-बहन एक साथ थे। उस वक्त सफरी निगरान का दौरा चल रहा था और उन्होंने मुझसे कहा कि अगली सभा में मुझे एक भाषण देना होगा। और इस तरह मैंने वहीं रहने का फैसला कर लिया।
फिलाडेलफिया के मेरे दोस्तों में एक जवान बहन भी थी जिसका नाम जेरलडीन वाइट था। बाद में मैं उसे जेरी बुलाने लगा। उसे बाइबल का अच्छा ज्ञान था और वह घर-घर की सेवा में घर-मालिकों से बात करने में माहिर
थी। मुझे खासकर यह बात अच्छी लगी कि हम दोनों का ही लक्ष्य पायनियर बनने का था। अप्रैल 23, 1949 को हमने शादी कर ली।गिलियड का न्यौता
शुरू से ही गिलियड जाना और मिशनरी के तौर पर परदेस में सेवा करना हमारा लक्ष्य था। इस मकसद से हमने ऐसी जगह जाने का फैसला किया जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत थी। कुछ ही समय बाद हमें सेवा करने के लिए न्यू जर्सी राज्य के लॉनसाइड कस्बे में, फिर पेन्सिलवेनिया राज्य के चेस्टर में और आखिर में न्यू जर्सी राज्य के एटलांटिक सिटी भेजा गया। एटलांटिक सिटी में सेवा करते वक्त हमारी शादी के दो साल पूरे हो गए और अब हम गिलियड के लिए अर्ज़ी भर सकते थे। हमने अर्ज़ी भरी मगर एक समस्या थी।
कई जवानों को 1950 के दशक की शुरूआत में कोरियाई युद्ध में हिस्सा लेने के लिए फौज में भर्ती किया जा रहा था। मगर यहोवा के साक्षी इसमें हिस्सा नहीं ले रहे थे इस वजह से फौज में भर्ती करनेवाली फिलाडेलफिया की समिति हमें नापसंद करती थी। वे हमारे लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे थे। बाद में मुझे एक जज ने बताया कि एफ.बी.आई ने मेरे बारे में जाँच-पड़ताल की और पाया कि मैं वाकई निष्पक्ष हूँ। आखिकार 11 जनवरी, 1952 में प्रेसिडेनशिअल अपील बोर्ड ने मुझे 4-डी वर्ग के तहत एक धार्मिक सेवक ठहराया और युद्ध में हिस्सा लेने से छूट दे दी।
उस साल अगस्त में हमें सितंबर से शुरू होनेवाली गिलियड की 20वीं क्लास में जाने का न्यौता मिला। हम उम्मीद कर रहे थे कि क्लास के बाद हमें किसी और देश में सेवा करने के लिए भेजा जाएगा। मेरी बहन डॉरिस गिलियड की 13वीं क्लास में हाज़िर हुई थी और ब्राज़ील में सेवा कर रही थी। जेरी और मुझे यह जानकर बहुत ताज्जुब हुआ कि हमें अमरीका के दक्षिणी इलाके में सर्किट काम के लिए भेजा जा रहा है! हमें ऐलाबामा राज्य के अश्वेत भाई-बहनों की मंडलियों का दौरा करना था। हम दोनों को थोड़ी निराशा हुई क्योंकि हमारी इच्छा किसी और देश में जाकर सेवा करने की थी।
हमें सबसे पहले जिस मंडली का दौरा करना था वह हंटस्विल में थी। वहाँ पहुँचकर हम एक मसीही बहन के घर गए जहाँ हमें ठहरना था। जब हम अपना सामान अंदर ला रहे थे, तो हमने उसे टेलीफोन पर किसी को कहते सुना, “बच्चे पहुँच गए हैं।” हम सिर्फ 24 साल के थे लेकिन दिखते उससे भी छोटे थे। उस सर्किट में हमें “बच्चे” कहकर ही पुकारा जाने लगा।
दक्षिणी इलाके में ज़्यादातर लोग बाइबल की बड़ी इज़्ज़त करते थे। इसलिए उसे अकसर बाइबल बेल्ट कहा जाता था। इस बात को ध्यान में रखते हुए हम आम तौर पर अपनी बातचीत इन तीन मुद्दोंवाली पेशकश से शुरू करते थे:
(1) दुनिया के हालात के बारे में चंद शब्द
(2) बाइबल इसका क्या हल बताती है
(3) बाइबल के मुताबिक हमें क्या करना चाहिए
इसके बाद हम बाइबल अध्ययन शुरू करने के लिए कोई साहित्य पेश करते। यह तरीका इतना कामयाब हुआ कि सन् 1953 में न्यू यॉर्क में रखे गए नयी दुनिया का समाज सम्मेलन में मुझे तीन मुद्दोंवाली इस पेशकश का प्रदर्शन करने को कहा गया।
सन् 1953 की गर्मियों में, मुझे दक्षिणी इलाके के अश्वेत भाई-बहनों की सर्किटों में ज़िला निगरान के तौर पर सेवा करने के लिए कहा गया। हमें वर्जिनिया से लेकर फ्लॉरिडा तक के पूरे इलाके में सफर करना था और पश्चिम में ऐलेबामा और टेनेसी तक। उस वक्त सफरी निगरानों को हालात के मुताबिक खुद को ढालने के लिए तैयार रहना होता था। उदाहरण के लिए, हमें अकसर ऐसे घरों में रहना पड़ता था जहाँ नल नहीं होते थे और हमें चूल्हे के पीछे रखे एक टिन के टब में नहाना पड़ता था। शुक्र है कि यह जगह घर के बाकी हिस्सों से ज़्यादा गरम रहती थी!
जाति-भेद की चुनौती
अमरीका के दक्षिणी इलाके में सेवा करना इतना आसान नहीं था। हमें काफी सूझ-बूझ से काम लेना पड़ता था। अश्वेतों को कपड़े धोने की सार्वजनिक सुविधाओं का इस्तेमाल करने की इजाज़त नहीं थी। इसलिए जेरी वहाँ जाकर कहती कि वह “श्रीमती थॉम्पसन” के कपड़े धोने आयी है। कई लोगों को लगता था कि वह “श्रीमती थॉम्पसन” की नौकरानी है। उस समय, अमरीका में सभी ज़िला निगरान, द न्यू वर्ल्ड सोसाइटी इन एक्शन नाम का वीडियो बड़े परदे पर दिखा रहे थे। जब मुझे बड़ा परदा किराए पर लेना होता, तब मैं दुकान पर फोन करके कहता कि “श्रीमान थॉम्पसन” एक बड़ा परदा किराए पर लेना चाहते हैं। बाद में मैं दुकान जाकर उसे ले लेता। हम हमेशा दूसरों के साथ अदब से पेश आते और अकसर बिना किसी परेशानी के अपनी सेवा कर पाते थे।
रंग-भेद के अलावा एक और तरह का भेदभाव था। अमरीका के दक्षिणी इलाके के लोग उत्तरी इलाके के लोगों को पसंद नहीं करते थे। जब एक अखबार ने छापा कि वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी ऑफ न्यू यॉर्क के जेम्स ए. थॉम्पसन जूनियर एक सम्मेलन में भाषण देनेवाले हैं तो लोगों को लगा कि मैं न्यू यॉर्क से हूँ। इस गलतफहमी की वजह से, सर्किट सम्मेलन के लिए जिस स्कूल ऑडिटोरियम की हमने बुकिंग की थी, वह रद्द कर दी गयी। फिर मैं स्कूल बोर्ड गया और उन्हें समझाया कि मैंने अपनी स्कूल की पढ़ाई चेटानूगा में की थी। इसके बाद हमें वहाँ सर्किट सम्मेलन रखने की इजाज़त दे दी गयी।
1950 के दशक के दौरान जाति को लेकर भेदभाव बढ़ता जा रहा था और कई बार लोग मार-पीट पर उतर आते थे। सन् 1954 में रखे गए कई ज़िला सम्मेलनों में किसी भी अश्वेत भाई का भाषण नहीं था। कई भाई-बहनों को यह बात बहुत बुरी लगी। हमने अपने अश्वेत भाइयों से कहा कि वे धीरज रखें। अगले साल के सम्मेलन में मुझे वक्ता के तौर पर चुना गया। इसके बाद, दक्षिण के कई दूसरे अश्वेत भाइयों को भी कार्यक्रम में भाग दिए गए।
समय के गुज़रते, दक्षिण में जाति के नाम पर होनेवाला खून-खराबा कम हो गया। धीरे-धीरे, गोरे और काले भाई-बहन एक साथ सभाओं में मिलने लगे। इस वजह से कुछ प्रचारकों को दूसरी मंडलियों में जाने को कहा गया, मंडलियों के इलाकों में फेरबदल किए गए और प्राचीनों की ज़िम्मेदारियों में भी फेरबदल करने की ज़रूरत पड़ी। कुछ भाई-बहनों को यह नया इंतज़ाम पसंद नहीं आया। लेकिन ज़्यादातर भाई-बहन, हमारे पिता यहोवा की तरह भेदभाव नहीं करते थे। कई काले और गोरे भाई-बहनों की तो आपस में गहरी दोस्ती थी, जैसा 1930 और 1940 के दशक के दौरान मैंने बचपन में अपने परिवार में देखा था।
एक नयी ज़िम्मेदारी
सन् 1969 के जनवरी महीने में जेरी और मुझे दक्षिण अमरीका के गयाना देश जाने को कहा गया और हम खुशी-खुशी वहाँ जाने के लिए तैयार हो गए। लेकिन पहले हम ब्रुकलिन गए जहाँ मुझे गयाना के प्रचार काम की देख-रेख करने की तालीम दी गयी। जुलाई महीने में हम गयाना पहुँचे। सोलह साल सफरी काम करने के बाद, एक ही जगह रहकर सेवा करने के लिए हमें काफी फेरबदल करनी
पड़ी। जेरी एक मिशनरी के तौर पर अपना ज़्यादातर वक्त प्रचार में बिताती और मैं शाखा दफ्तर में काम करता।शाखा दफ्तर में घास काटने से लेकर 28 मंडलियों के लिए किताबों-पत्रिकाओं का इंतज़ाम करने और मुख्यालय के साथ लिखा-पढ़ी करने तक, मुझे कई काम सँभालने थे। मैं रोज़ 14 से 15 घंटे काम करता। हम दोनों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी मगर हमें अपनी सेवा में बहुत खुशी मिली। जब हम गयाना पहुँचे थे तब वहाँ 950 प्रचारक थे मगर आज वहाँ 2,500 से भी ज़्यादा प्रचारक हैं।
वहाँ का मौसम बहुत अच्छा था और वहाँ तरह-तरह के लाजवाब फल और सब्ज़ियाँ मिलती थीं जिनका हमने आनंद उठाया। मगर हमें सबसे ज़्यादा खुशी इस बात से मिली कि हम सच्चाई के लिए तरसनेवाले नम्र लोगों को परमेश्वर के राज के बारे में सिखा पाए। जेरी अकसर हर हफ्ते 20 बाइबल अध्ययन चलाती थी जिनमें से बहुतों ने तरक्की की और बपतिस्मा लिया। वक्त के गुज़रते, उनमें से कुछ पायनियर बने और कुछ मंडली के प्राचीन, तो कुछ हमारी तरह गिलियड जाकर मिशनरी भी बने।
और चुनौतियाँ, खासकर सेहत को लेकर
सन् 1983 में अमरीका में रहनेवाले मेरे माता-पिता को हमारी मदद की ज़रूरत आ पड़ी। डॉरिस, जेरी और मैंने साथ मिलकर इस बारे में बातचीत की। डॉरिस 35 साल से ब्राज़ील में मिशनरी सेवा कर रही थी। उसने अमरीका लौटकर उनकी देखभाल करने का फैसला किया। उसका कहना था कि जब एक आदमी यह काम कर सकता है तो दो मिशनरियों के वापस लौटने की क्या ज़रूरत है? उनकी मौत के बाद, डॉरिस चेटानूगा में ही रही और आज एक खास पायनियर के तौर पर सेवा कर रही है।
सन् 1995 में मुझे प्रोस्टेट कैंसर हो गया और इस वजह से मुझे अमरीका लौटना पड़ा। हम नॉर्थ कैरालाइना राज्य के गोल्डस्बरो इलाके में बस गए क्योंकि यह जगह टेनेसी में रहनेवाले मेरे परिवार और पेनसिलवेनिया में रहनेवाले जेरी के परिवार के बीचों-बीच है। फिलहाल मेरा कैंसर काबू में है और हम गोल्डस्बरो मंडली में अस्वस्थ खास पायनियरों के तौर पर सेवा कर रहे हैं।
जब मैं पूरे समय की सेवा में बिताए पिछले 65 सालों के बारे में सोचता हूँ तो मेरा दिल यहोवा के लिए एहसान से भर उठता है। उसकी सेवा करने के लिए जेरी और मैंने ने जो फेरबदल किए हैं उसके लिए उसने हमें बहुत-सी आशीषें दी हैं। दाविद के ये शब्द वाकई कितने सच हैं: “[यहोवा] निष्ठावान् के लिए निष्ठावान् है।”—2 शमू. 22:26, वाल्द-बुल्के अनुवाद।
[पेज 3 पर तसवीरें]
पिताजी और भाई निकल्ज़ ने मेरे लिए एक अच्छी मिसाल रखी
[पेज 4 पर तसवीरें]
सन् 1952 में जेरी के साथ, गिलियड जाने के लिए तैयार
[पेज 5 पर तसवीरें]
गिलियड के बाद हमें दक्षिण में सफरी काम के लिए भेजा गया
[पेज 6 पर तसवीर]
सफरी निगरान और उनकी पत्नियाँ श्वेत और अश्वेत लोगों के संयुक्त अधिवेशन की तैयारी में जुटे हैं, 1966
[पेज 7 पर तसवीर]
गयाना में मिशनरी के तौर पर सेवा करने से हमें बहुत खुशी मिली