“दौड़ो कि इनाम पा सको”
“दौड़ो कि इनाम पा सको”
“तुम इस तरह से दौड़ो कि इनाम पा सको।”—1 कुरिं. 9:24.
1, 2. (क) पौलुस ने इब्रानी मसीहियों का हौसला बढ़ाने के लिए क्या उदाहरण दिया? (ख) परमेश्वर के सेवकों को क्या करने की सलाह दी गयी है?
इब्रानियों के खत में प्रेषित पौलुस ने संगी मसीहियों का हौसला बढ़ाने के लिए दौड़ का एक ज़बरदस्त उदाहरण दिया। उसने उन्हें याद दिलाया कि वे जीवन की दौड़ में अकेले नहीं हैं। उनके चारों तरफ उन ‘गवाहों का घना बादल’ है जिन्होंने कामयाबी के साथ अपनी दौड़ खत्म की है। जब इब्रानी मसीही पुराने ज़माने के सेवकों के उदाहरणों पर गौर करते कि कैसे उन्होंने वफादारी दिखाते हुए कड़ी मेहनत की, तो उन्हें भी बिना हिम्मत हारे इस दौड़ में आगे बढ़ने का हौसला मिलता।
2 पिछले लेख में हमने उनमें से कुछ लोगों की ज़िंदगी पर गौर किया, जो ‘गवाहों के घने बादल’ में शामिल थे। सभी ने अटूट विश्वास दिखाया जिसकी वजह से वे आखिरी साँस तक जीवन की दौड़ में दौड़ते रहे और परमेश्वर के वफादार बने रहे। हम भी उनसे सीख सकते हैं। याद कीजिए पौलुस ने संगी भाइयों को सलाह दी थी कि “आओ हम हरेक बोझ को और उस पाप को जो आसानी से हमें उलझाकर फँसा सकता है, उतार फेंकें और उस दौड़ में जिसमें हमें दौड़ना है धीरज से दौड़ते रहें।”—इब्रा. 12:1.
3. यूनानी खेलों के धावकों के उदाहरण से पौलुस क्या सलाह दे रहा था?
3 पौलुस के ज़माने में दौड़ एक मशहूर खेल था, जिसके बारे में किताब शुरूआती मसीहियत का माहौल (अँग्रेज़ी) कहती है कि “यूनानी लोग नग्न अवस्था में कसरत करते और नग्न ही प्रतियोगिता में दौड़ते थे।” * ये धावक शरीर से ऐसे सभी बोझ या वज़न उतार फेंकते थे, जो उन्हें दौड़ में धीमा कर सकते थे। बेशक, हम उनकी इस अवस्था को बुरा समझेंगे, मगर गौरतलब है कि उनका एक ही लक्ष्य था, और वह था, जीतना। इस आयत से पौलुस यह बताना चाह रहा था कि इनाम जीतने के लिए ज़रूरी है कि धावक किसी भी रुकावट को आड़े न आने दें। पौलुस की यह सलाह हम पर भी लागू होती है। तो आज कौन-सा बोझ या वज़न जीवन की दौड़ में आड़े आ सकता है और हमें इनाम पाने से रोक सकता है?
“हरेक बोझ को . . . उतार फेंकें”
4. नूह के दिनों में लोग किन कामों में व्यस्त थे?
4 पौलुस ने सलाह दी कि हम “हरेक बोझ को . . . उतार फेंकें।” इसमें हर वह चीज़ शामिल है जो हमारा ध्यान जीवन की दौड़ से भटका सकती है जिसमें हम जी-जान से दौड़ रहे हैं। तो ये बोझ क्या हो सकते हैं? पौलुस ने गवाहों के घने बादल में नूह का भी ज़िक्र किया था, जिससे हमें यीशु की कही बात याद आती है कि “ठीक जैसा नूह के दिनों में हुआ था, वैसा ही इंसान के बेटे के दिनों में भी होगा।” (लूका 17:26) तब यीशु आनेवाले भयानक विनाश की बात नहीं कर रहा था बल्कि वह लोगों की जीवन-शैली की बात कर रहा था। (मत्ती 24:37-39 पढ़िए।) नूह के दिनों के ज़्यादातर लोग अपने ही कामों में मगन थे। परमेश्वर को खुश करना तो दूर वे उसमें दिलचस्पी तक नहीं लेते थे। क्यों? क्योंकि खाने-पीने और शादी-ब्याह जैसी आम बातों से उनका ध्यान भटक गया था। जैसा कि यीशु ने बताया असल समस्या थी कि “उन्होंने कोई ध्यान न दिया।”
5. जीवन की दौड़ में कामयाब होने के लिए क्या बात हमारी मदद कर सकती है?
5 नूह और उसके परिवार की तरह आज हमें भी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में बहुत-से काम होते हैं। हमें रोज़ी-रोटी कमानी और अपने परिवार की देखभाल करनी पड़ती है। इसमें हमारा बहुत सारा वक्त, ताकत और रुपया-पैसा चला जाता है। खास तौर पर इस डगमगाती अर्थव्यवस्था के माहौल में हम और भी परेशान हो जाते हैं। समर्पित मसीही होने के नाते हम पर परमेश्वर की सेवा में भी बहुत-सी ज़िम्मेदारियाँ हैं। हम प्रचार में जाते हैं, मसीही सभाओं की तैयारी करते हैं और खुद को आध्यात्मिक तौर पर मज़बूत रखने के लिए निजी अध्ययन और पारिवारिक उपासना करते हैं। नूह ने भी यह सब किया और उसने यह किस हद तक किया? “जैसी परमेश्वर ने उसे आज्ञा दी थी, नूह ने . . . सब कुछ वैसा ही किया।” (उत्प. 6:22, NHT) जी हाँ, मसीही दौड़ को जीतने के लिए बेहद ज़रूरी है कि हम बेकार की चीज़ों को दरकिनार कर कम-से-कम बोझ उठाएँ।
6, 7. हमें यीशु की कौन-सी सलाह गाँठ बाँध लेनी चाहिए?
6 जब पौलुस ने कहा कि हम “हरेक बोझ को . . . उतार फेंकें” तो उसका क्या मतलब था? यह सच है कि हम खुद को सारी ज़िम्मेदारियों से फारिग नहीं कर सकते। इस मामले में हमें यीशु के शब्दों को ध्यान में रखना चाहिए: “कभी-भी चिंता न करना, न ही यह कहना, ‘हम क्या खाएँगे?’ या, ‘हम क्या पीएँगे?’ या, ‘हम क्या पहनेंगे?’ क्योंकि इन्हीं सब चीज़ों के पीछे दुनिया के लोग दिन-रात भाग रहे हैं। मगर तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है कि तुम्हें इन सब चीज़ों की ज़रूरत है।” (मत्ती 6:31, 32) यीशु के कहने का मतलब था कि खाने-पहनने जैसी आम बातों को अगर जीवन में सही जगह न दी जाए तो वे बोझ या ठोकर का कारण बन सकती हैं।
7 यीशु के शब्दों पर ध्यान दीजिए: “तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है कि तुम्हें इन सब चीज़ों की ज़रूरत है।” इसका मतलब है कि स्वर्ग में रहनेवाला हमारा पिता यहोवा हमारी ज़रूरतों का खयाल रखने की अपनी ज़िम्मेदारी निभाएगा। बेशक, “इन सब चीज़ों” में वे चीज़ें शामिल नहीं जो शायद हमें पसंद हों या जिन्हें हम चाहते हों। फिर भी यीशु के कहे मुताबिक हमें उन बुनियादी चीज़ों के बारे में भी बहुत ज़्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए जिनके “पीछे दुनिया के लोग दिन-रात भाग रहे हैं।” क्यों? क्योंकि यीशु ने आगे चलकर अपने सुननेवालों को यह सलाह दी: “खुद पर ध्यान दो कि हद-से-ज़्यादा खाने और पीने से और ज़िंदगी की चिंताओं के भारी बोझ से कहीं तुम्हारे दिल दब न जाएँ और वह दिन तुम पर पलक झपकते ही अचानक फंदे की तरह न आ पड़े।”—लूका 21:34, 35.
8. खासकर आज क्यों “हरेक बोझ को . . . उतार” फेंकने का वक्त है?
8 दौड़ की सीमा रेखा बस आ पहुँची है। ऐसा ना हो कि हम बेमतलब का बोझ लादकर खुद को इस कदर थका दें कि सीमा रेखा के करीब पहुँचकर भी उसे पार न कर पाएँ। यह कितने दुख की बात होगी! प्रेषित पौलुस ने क्या ही बुद्धि-भरी सलाह दी: “परमेश्वर की भक्ति ही अपने आप में बड़ी कमाई है, बशर्ते कि जो हमारे पास है हम उसी में संतोष करें।” (1 तीमु. 6:6) पौलुस के शब्दों को दिल में उतारने से हमारे इनाम जीतने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाएगी।
“पाप . . . जो आसानी से हमें उलझाकर फँसा सकता है”
9, 10. (क) ‘पाप जो आसानी से हमें उलझाकर फँसा सकता है,’ वह क्या है? (ख) हम कैसे उलझकर गिर सकते हैं?
9 “हरेक बोझ” के अलावा पौलुस ने कहा कि हम उस “पाप को जो आसानी से हमें उलझाकर फँसा सकता है” उतार फेंकें। यह क्या हो सकता है? जिस यूनानी शब्द का अनुवाद ‘आसानी से उलझनेवाला’ किया गया है यह बाइबल में सिर्फ इसी आयत में आता है। विद्वान ऐल्बर्ट बॉर्नज़ का कहना है: “जिस तरह एक धावक यह ध्यान में रखता है कि वह कोई ऐसा कपड़ा न पहने जो दौड़ते वक्त उसकी टाँगों में उलझ जाए, ठीक उसी तरह मसीहियों को ध्यान रखना चाहिए कि वे उलझानेवाली चीज़ों को एक तरफ रख दें।” क्या चीज़ एक मसीही को उलझा सकती है जिससे उसका विश्वास कमज़ोर पड़ सकता है?
10 एक मसीही का विश्वास रातों-रात खत्म नहीं हो जाता। ऐसा शायद धीरे-धीरे हो, यहाँ तक कि उसे इसका एहसास भी ना हो। पौलुस ने अपने खत में ‘बहककर धीरे-धीरे दूर चले जाने’ और ‘दिल कठोर होकर दुष्ट हो जाने’ के खतरे के बारे में चिताया था। (इब्रा. 2:1; 3:12) अगर एक धावक की टाँगों में कपड़ा उलझ जाए तो इसमें शक नहीं कि वह लड़खड़ाकर गिर जाएगा। इसलिए उसे कपड़े के गलत चुनाव से सावधान रहना चाहिए। लेकिन किस वजह से एक धावक गलत कपड़े का चुनाव कर सकता है? शायद लापरवाही, खुद पर ज़रूरत से ज़्यादा भरोसा, या फिर उसका ध्यान भटक जाने से वह ऐसा कर सकता है। पौलुस की सलाह से हम क्या सबक सीख सकते हैं?
11. क्या बात हमारे विश्वास का गला घोंट सकती है?
11 हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि अपनी ज़िंदगी में हम जो करते हैं उसका असर हमारे विश्वास पर होता है, यहाँ तक कि हम अपने विश्वास को पूरी तरह खो सकते हैं। “पाप . . . जो आसानी से हमें उलझाकर फँसा सकता है” उसके बारे में एक और विद्वान का कहना है कि “हमारे हालात, हमारी शख्सियत और संगति की वजह से पाप का हम पर बहुत ज़्यादा असर होता है।” कहने का मतलब है कि हमारे चारों तरफ का माहौल, हमारी कमज़ोरियाँ और हमारे दोस्त हम पर बहुत ज़्यादा असर करते हैं। ये हमारे विश्वास को कमज़ोर कर सकते हैं या उसका गला घोंट सकते हैं।—मत्ती 13:3-9.
12. अपने विश्वास को बरकरार रखने के लिए हमें कौन-सी सलाह दिल में उतारने की ज़रूरत हे?
12 सालों से विश्वासयोग्य और सूझबूझ से काम लेनेवाला दास हमें बताता आ रहा है कि हम जो देखते या सुनते हैं यानी जिन चीज़ों पर अपना दिल-दिमाग लगाते हैं, उससे हमें सावधान रहना चाहिए। हमें खबरदार किया गया है कि हम रुपए-पैसे और ज़मीन-जायदाद हासिल करने में उलझ न जाएँ। हो सकता है, हम दुनिया की चमक-दमक और सुख-सुविधा के नए-नए सामान खरीदने के चक्कर में अपनी मंज़िल से भटक जाएँ। यह सोचना बहुत बड़ी भूल होगी कि ये सलाह कुछ ज़्यादा ही कठोर है या सिर्फ दूसरों पर लागू होती है क्योंकि हम तो इस खतरे में नहीं पड़ेंगे। शैतानी दुनिया बड़ी चालाकी से जाल बिछाती है जिसकी हमें भनक तक नहीं लगती। कुछ लोग लापरवाही, खुद पर ज़रूरत से ज़्यादा भरोसा या दूसरी चीज़ों पर ध्यान देने की वजह से भटक गए हैं। अगर हम भी भटक गए तो जीवन का इनाम पाने की हमारी आशा खतरे में पड़ जाएगी।—1 यूह. 2:15-17.
13. हम खुद को खतरनाक असर से कैसे बचा सकते हैं?
13 रोज़ाना हमारा मिलना ऐसे लोगों से होता है जो दुनिया के लक्ष्यों, मूल्यों और सोच को बढ़ावा देते हैं। (इफिसियों 2:1, 2 पढ़िए।) यह काफी हद तक हम पर निर्भर करता है कि हम उनका खुद पर कितना असर होने देते हैं और उनके बारे में कैसा रवैया दिखाते हैं। पौलुस ने जिस “हवा” का ज़िक्र किया वह जानलेवा है। हमें लगातार ध्यान देने की ज़रूरत है कि कहीं दुनिया की यह हवा हमारा दम न घोंट दे और हम जीवन की दौड़ को खत्म न कर सकें। धीरज के साथ दौड़ते रहने के लिए हम किसकी मिसाल पर गौर कर सकते हैं? आप शायद कहें यीशु की, जिसने जीवन की दौड़ में उम्दा मिसाल कायम की। (इब्रा. 12:2) पौलुस भी हमारे लिए एक अच्छा उदाहरण है जो खुद मसीही दौड़ में शामिल था और जिसने संगी मसीहियों से गुज़ारिश की कि वे उसकी मिसाल पर चलें।—1 कुरिं. 11:1; फिलि. 3:14.
“इनाम पा सको”—कैसे?
14. मसीही दौड़ में हिस्सा लेने के बारे में पौलुस का क्या नज़रिया था?
14 अपनी मसीही दौड़ के लिए पौलुस ने कैसा रवैया दिखाया? इफिसुस के प्राचीनों से आखिरी बार बात करते हुए उसने कहा: “मैं अपनी जान को ज़रा भी कीमती नहीं समझता कि इसकी परवाह करूँ, बस इतना चाहता हूँ कि मैं किसी तरह अपनी दौड़ पूरी कर सकूँ और अपनी सेवा पूरी कर सकूँ। यही सेवा जो मुझे प्रभु यीशु से मिली थी।” (प्रेषि. 20:24) जीवन की दौड़ पूरी करने के लिए वह कोई भी कुरबानी देने को तैयार था, यहाँ तक कि अपनी जान की भी। अगर वह अपनी दौड़ पूरी नहीं करता तो खुशखबरी सुनाने में की गयी उसकी सारी मेहनत पर पानी फिर जाता। वह जानता था कि दौड़ में वह भी हार सकता है इसलिए उसने खुद पर हद-से-ज़्यादा भरोसा नहीं दिखाया। (फिलिप्पियों 3:12, 13 पढ़िए।) अपने जीवन के आखिरी वक्त में जाकर ही उसने पूरे भरोसे के साथ कहा कि “मैंने अच्छी लड़ाई लड़ी है। मैंने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैंने विश्वास को थामे रखा है।”—2 तीमु. 4:7.
15. पौलुस ने अपने संगी मसीहियों को क्या बढ़ावा दिया?
15 इसके अलावा पौलुस की यह दिली तमन्ना थी कि उसके संगी मसीही इस दौड़ को बीच में छोड़ने की बजाय इसे पूरी करें। उदाहरण के लिए उसने फिलिप्पी के मसीहियों से गुज़ारिश की कि वे अपने उद्धार के लिए मेहनत करें। उसने उनसे कहा: “जीवन के वचन पर मज़बूत पकड़ बनाए” रखो। फिर कहा: “ताकि मसीह के दिन मुझे खुशी मनाने की वजह मिले कि मैं बेकार ही नहीं दौड़ा या मैंने बेकार ही कड़ी मेहनत नहीं की।” (फिलि. 2:16) उसने कुरिंथ के मसीहियों को भी बढ़ावा दिया: “तुम इस तरह से दौड़ो कि इनाम पा सको।”—1 कुरिं. 9:24.
16. लक्ष्य या इनाम हमारे लिए असल क्यों होना चाहिए?
16 मैराथन जैसी लंबी दौड़ में सीमा रेखा शुरूआत में दिखायी नहीं देती। फिर भी पूरी दौड़ के दौरान धावक उस रेखा को ध्यान में रखता है। जैसे-जैसे वह अपने लक्ष्य के करीब पहुँचता है, उसका ध्यान और भी बढ़ जाता है। वैसा ही ध्यान हमें अपने जीवन की दौड़ में लगाना चाहिए। हमारा लक्ष्य या इनाम हमारे मन में साफ या असल होना चाहिए, तभी हम उसे हासिल कर सकेंगे।
17. इनाम पर नज़र रखने में विश्वास की क्या भूमिका है?
17 पौलुस ने लिखा: “विश्वास, आशा की हुई चीज़ों का पूरे भरोसे के साथ इंतज़ार करना है और उन असलियतों का साफ सबूत है, जो अभी दिखायी नहीं देतीं।” (इब्रा. 11:1) अब्राहम और सारा आराम की ज़िंदगी छोड़कर दूसरे “देश में अजनबी और मुसाफिर” के तौर पर जीने के लिए तैयार थे। उन्हें किस बात से मदद मिली? उन्होंने परमेश्वर की “वादा की गयी बातों को दूर ही से [पूरा होते] देखा।” मूसा ने “पाप में थोड़े दिन के सुख” और “मिस्र के खज़ानों” को ठुकरा दिया। उसे ऐसा करने के लिए विश्वास और ताकत कहाँ से मिली? उसने “अपनी नज़र इनाम पाने पर लगाए” रखी। (इब्रा. 11:8-13, 24-26) हम समझ सकते हैं कि क्यों पौलुस ने कहा कि इन सभी ने “विश्वास” दिखाया। विश्वास की वजह से ही वे अपनी मुश्किलों और परीक्षाओं को सह पाए और देख पाए कि परमेश्वर उनके लिए क्या कर रहा है और आगे क्या करेगा।
18. ‘आसानी से उलझानेवाले पाप’ को दूर करने के लिए हम क्या कारगर कदम उठा सकते हैं?
18 इब्रानियों के 11वें अध्याय में जिन विश्वासी स्त्री-पुरुषों का ज़िक्र किया गया है उनके उदाहरण पर मनन करके और उनकी मिसाल पर चलकर हम उनके जैसा विश्वास पैदा कर सकते हैं और ‘आसानी से उलझानेवाले पाप’ को दूर कर सकते हैं। (इब्रा. 12:1) इसके अलावा हम उनके जैसा विश्वास दिखानेवाले भाई-बहनों के साथ इकट्ठा हो सकते हैं ताकि हम “प्यार और बढ़िया कामों में उकसाने के लिए एक-दूसरे में गहरी दिलचस्पी” ले सकें।—इब्रा. 10:24.
19. इनाम पर नज़र टिकाए रखने के बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?
19 हम अपनी दौड़ बस खत्म करने पर हैं। सीमा रेखा इतनी नज़दीक है मानो हम उसे देख सकते हैं। यह मुमकिन है कि हम भी विश्वास और यहोवा की मदद से “हरेक बोझ को और उस पाप को जो आसानी से हमें उलझाकर फँसा सकता है, उतार फेंकें।” जी हाँ, हम इस तरह दौड़ सकते हैं कि हम इनाम पा सकें। ये हमारे पिता और परमेश्वर यहोवा की तरफ से मिलनेवाली आशीषें हैं जिनका उसने वादा किया है।
[फुटनोट]
^ यह बात पुराने ज़माने के यहूदियों को बहुत बुरी लगती थी। दूसरे मक्काबियों की किताब के मुताबिक जब धर्मत्यागी महायाजक जेसन ने यरूशलेम में यूनानियों की तरह जिमखाना खुलवाने की बात कही तो यहूदी भड़क उठे और बड़ा विवाद शुरू हो गया।—2 मक्का. 4:7-17.
क्या आपको याद है?
• “हरेक बोझ” को उतार फेंकने में क्या शामिल है?
• एक मसीही कैसे अपना विश्वास खो सकता है?
• हमें अपनी नज़र इनाम पर क्यों टिकाए रखनी चाहिए?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 23 पर तसवीर]
क्या है वह “पाप . . . जो आसानी से हमें उलझाकर फँसा सकता है” और यह कैसे हो सकता है?