जैसे-जैसे अंत नज़दीक आ रहा है, यहोवा पर भरोसा रखिए
जैसे-जैसे अंत नज़दीक आ रहा है, यहोवा पर भरोसा रखिए
“यहोवा पर सदा भरोसा रख।”—यशा. 26:4.
1. परमेश्वर के सेवकों और दुनिया के लोगों में क्या फर्क है?
हम ऐसे संसार में जीते हैं जहाँ लाखों लोगों को नहीं मालूम कि वे किस पर भरोसा करें। हो सकता है कि कई बार उनका भरोसा टूटा हो या किसी ने उन्हें ठेस पहुँचायी हो। लेकिन यहोवा के सेवक इन लोगों से बिलकुल अलग हैं। वे परमेश्वर की बुद्धि के निर्देशन पर चलते हैं और जानते हैं कि दुनिया या “प्रधानों” पर भरोसा रखने का कोई फायदा नहीं। (भज. 146:3) वे अपनी ज़िंदगी और अपना भविष्य यहोवा के सुपुर्द कर देते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि वह उनसे प्यार करता है और अपने वादे का पक्का है।—रोमि. 3:4; 8:38, 39.
2. यहोशू ने परमेश्वर पर भरोसा करने के बारे में क्या कहा?
2 पुराने ज़माने के यहोशू ने भी इस बात को पुख्ता किया कि परमेश्वर भरोसे के लायक है। अपने जीवन के आखिरी दिनों में उसने अपने संगी इसराएलियों से कहा: “तुम सब अपने अपने हृदय और मन में जानते हो, कि जितनी भलाई की बातें हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमारे विषय में कहीं उन में से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही; वे सब की सब तुम पर घट गई हैं।”—यहो. 23:14.
3. परमेश्वर का नाम उसके बारे में क्या ज़ाहिर करता है?
3 यहोवा अपने वादों को पूरा करता है, मगर सिर्फ इसलिए नहीं कि वह अपने सेवकों से प्यार करता है बल्कि खासकर अपने नाम की खातिर ऐसा करता है। (निर्ग. 3:14; 1 शमू. 12:22) उसके नाम के बारे में जे. बी. रॉदरहैम ने दी एम्फसाईज़्ड बाइबल के शुरूआती शब्दों में कहा: “[परमेश्वर का नाम] उसका सबसे बड़ा वादा है, इससे पता चलता है कि वह किसी भी हालात, मुश्किल या ज़रूरत के मुताबिक खुद को ढाल सकता है . . . [उसका नाम] एक प्रतिज्ञा है, उसके बारे में खुलासा करता है और उसे याद रखने में हमारी मदद करता है। परमेश्वर अपने नाम के प्रति हमेशा वफादार रहेगा; वह अपने नाम से कभी शर्मिंदा नहीं होगा।”
4. (क) यशायाह 26:4 हमें क्या करने का बढ़ावा देता है? (ख) इस लेख में हम किन बातों पर गौर करेंगे?
4 खुद से पूछिए: ‘क्या मैं यहोवा को इतनी अच्छी तरह जानता हूँ कि उस पर पूरा-पूरा भरोसा कर सकूँ? क्या मैं भविष्य का सामना इस यकीन के साथ करता हूँ कि हालात पूरी तरह परमेश्वर के काबू में हैं?’ यशायाह 26:4 कहता है: “यहोवा पर सदा भरोसा रख, क्योंकि प्रभु यहोवा सनातन चट्टान है।” यह सच है कि बाइबल के ज़माने की तरह परमेश्वर आज किसी चमत्कार के ज़रिए इंसानों की ज़िंदगी में दखल नहीं देता। फिर भी “सनातन चट्टान” होने के नाते उस पर “सदा” भरोसा किया जा सकता है। हमारा भरोसेमंद परमेश्वर आज कैसे अपने वफादार सेवकों की मदद करता है? आइए तीन तरीकों पर गौर करें: जब हम किसी प्रलोभन से बचने के लिए उससे बिनती करते हैं तो वह हमारी मदद करता है, जब हम लोगों की बेरुखी या विरोध का सामना करते हैं तो वह हमें सहने की ताकत देता है और जब चिंताएँ हमें घेर लेती हैं तो वह हमें सँभाल लेता है। इन बातों पर गौर करते वक्त यह ज़रूर सोचिए कि आप कैसे यहोवा पर अपना भरोसा मज़बूत कर सकते हैं।
प्रलोभन आने पर परमेश्वर पर भरोसा रखें
5. जब परमेश्वर पर भरोसा करने की बात आती है तो कौन-सी बात हमारे लिए बड़ी परीक्षा हो सकती है?
5 यहोवा ने फिरदौस लाने या मरे हुओं को दोबारा ज़िंदा करने का जो वादा किया है कई बार उन पर भरोसा करना आसान होता है क्योंकि हम इन वादों को पूरा होते देखना चाहते हैं। लेकिन जब नैतिक मामलों की बात आती है, तब भी क्या हम यकीन करते हैं कि यहोवा के निर्देशनों पर चलना और उसके स्तरों को मानना ही सही है और उसी से हमें सच्ची खुशी मिलेगी? राजा सुलैमान ने यह सलाह दी: “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।” (नीति. 3:5, 6) गौर कीजिए कि यहाँ हमारे “काम” और “मार्ग” के बारे में ज़िक्र किया गया है। जी हाँ, इसका मतलब है हमें सिर्फ अपनी मसीही आशा को ही नहीं थामें रहना चाहिए बल्कि अपनी पूरी ज़िंदगी से यह ज़ाहिर करना चाहिए कि हम परमेश्वर पर भरोसा करते हैं। लेकिन प्रलोभन आने पर हम यहोवा पर अपना भरोसा कैसे दिखा सकते हैं?
6. बुरे विचारों को ठुकराने के अपने इरादे को हम कैसे मज़बूत कर सकते हैं?
6 बुरी बातों को दरकिनार करने की शुरूआत मन से होती है। (रोमियों 8:5; इफिसियों 2:3 पढ़िए।) तो फिर आप बुरे विचारों से दूर रहने की कैसे ठान सकते हैं? इन पाँच तरीकों पर गौर कीजिए: 1. प्रार्थना के ज़रिए परमेश्वर से मदद माँगिए। (मत्ती 6:9, 13) 2. बाइबल के उन उदाहरणों पर गौर कीजिए जिन्होंने यहोवा की नहीं सुनी और जिन्होंने सुनी। फिर ध्यान दीजिए कि उनका क्या नतीजा हुआ। * (1 कुरिं. 10:8-11) 3. सोचिए कि पाप करने से आपको और आपके अज़ीज़ों को कितना दुख होगा। 4. सोचिए कि जब परमेश्वर का कोई सेवक घोर पाप कर बैठता है, तो परमेश्वर को कैसा महसूस होता होगा। (भजन 78:40, 41 पढ़िए।) 5. कल्पना कीजिए कि जब यहोवा देखता है कि उसका कोई वफादार सेवक बुराई को ठुकराकर सही काम कर रहा है, फिर चाहे वह लोगों के सामने हो या अकेले में, तो उसे कितनी खुशी होती होगी। (भज. 15:1, 2; नीति. 27:11) आप भी यहोवा पर अपना भरोसा दिखा सकते हैं।
बेरुखी और विरोध के दौरान परमेश्वर पर भरोसा रखें
7. यिर्मयाह को किन परीक्षाओं का सामना करना पड़ा और कभी-कभी वह कैसा महसूस करता था?
7 हमारे कई भाई-बहन ऐसे इलाकों में सेवा करते हैं जहाँ धीरज रखना वाकई मुश्किल होता है। भविष्यवक्ता यिर्मयाह ने ऐसे ही हालात में परमेश्वर की सेवा की थी। उस वक्त यहूदा राज्य विनाश के कगार पर खड़ा था और वहाँ बहुत उथल-पुथल मची थी। हर रोज़ यहोवा पर उसके विश्वास की परीक्षा होती थी क्योंकि वह पूरी ईमानदारी से परमेश्वर का न्यायदंड लोगों को सुनाता था। एक बार तो उसका वफादार सहायक बारूक भी शिकायत करने लगा कि उसकी हिम्मत टूट चुकी है। (यिर्म. 45:2, 3) क्या यिर्मयाह निराश हो गया? हाँ, एक बार ऐसा हुआ था। उसने दुख के मारे कहा: “स्रापित हो वह दिन जिस में मैं उत्पन्न हुआ! . . . मैं क्यों उत्पात और शोक भोगने के लिये जन्मा और कि अपने जीवन में परिश्रम और दु:ख देखूं, और अपने दिन नामधराई में व्यतीत करूं?”—यिर्म. 20:14, 15, 18.
8, 9. यिर्मयाह 17:7, 8 और भजन 1:1-3 के मुताबिक हमें अच्छे फल लाने के लिए क्या करते रहना चाहिए?
8 फिर भी यिर्मयाह ने हिम्मत नहीं हारी। वह यहोवा पर भरोसा करता रहा। इसका नतीजा यह हुआ कि इस वफादार भविष्यवक्ता ने यिर्मयाह 17:7, 8 में दर्ज़ यहोवा के इन शब्दों को पूरा होते देखा: “धन्य है वह पुरुष जो यहोवा पर भरोसा रखता है, जिस ने परमेश्वर को अपना आधार माना हो। वह उस वृक्ष के समान होगा जो नदी के तीर पर लगा हो और उसकी जड़ जल के पास फैली हो; जब घाम होगा तब उसको न लगेगा, उसके पत्ते हरे रहेंगे, और सूखे वर्ष में भी उनके विषय में कुछ चिन्ता न होगी, क्योंकि वह तब भी फलता रहेगा।”
9 फल के वृक्ष को अगर “नदी के तीर” पर या ऐसे बाग में लगाया जाए जहाँ पानी की कोई कमी नहीं होती तो वह हमेशा हरा-भरा रहता है, उसी तरह यिर्मयाह भी ‘फलता रहा।’ उसके चारों तरफ उसकी खिल्ली उड़ानेवाले दुष्ट लोग थे मगर उसने खुद पर उनका असर नहीं होने दिया। इसके बजाय वह जीवन देनेवाले “जल” के सोते से जुड़ा रहा और यहोवा की कही हर बात को दिल में उतारता रहा। (भजन 1:1-3 पढ़िए; यिर्म. 20:9) यिर्मयाह हमारे लिए कितना अच्छा उदाहरण है, खास तौर पर उनके लिए जो मुश्किल इलाकों में प्रचार करते हैं। अगर आपके हालात भी ऐसे हैं तो यहोवा पर पूरी तरह निर्भर रहिए, जो आपको धीरज धरने में मदद देगा ताकि आप “उसके नाम का सरेआम ऐलान करते” रहें।—इब्रा. 13:15.
10. हमें क्या आशीषें मिली हैं और हमें खुद से क्या पूछना चाहिए?
10 इन आखिरी दिनों में आनेवाली मुश्किलों का सामना करने में मदद देने के लिए यहोवा ने हमारे लिए बहुत-से इंतज़ाम किए हैं। उसने हमें अपना पूरा वचन दिया है जिसका बिलकुल सही तरीके से ज़्यादा-से-ज़्यादा भाषाओं में अनुवाद किया जा रहा है। वह विश्वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाले दास वर्ग के ज़रिए सही समय पर बहुतायत में आध्यात्मिक भोजन मुहैया कराता है। और उसने हमें हिम्मत बढ़ानेवाले भाई-बहनों का बहुत बड़ा समूह दिया है जिनसे हम सभाओं और सम्मेलनों में मिलते हैं। क्या आप इन इंतज़ामों का पूरा फायदा उठाते हैं? जो ऐसा करते हैं वे सभी “हर्ष के मारे जयजयकार करेंगे।” लेकिन जो लोग यहोवा की नहीं सुनते वे ‘शोक से चिल्लाएँगे और खेद के मारे हाय हाय करेंगे।’—यशा. 65:13, 14.
चिंताओं का सामना करते वक्त परमेश्वर पर भरोसा रखें
11, 12. दुनिया की समस्याओं को देखते हुए क्या करना बुद्धिमानी होगी?
11 जैसा कि बाइबल में भविष्यवाणी की गयी है आज मानवजाति पर मुसीबतों की बाढ़-सी आयी हुई है। (मत्ती 24:6-8; प्रका. 12:12) जब असल में बाढ़ आती है तो आमतौर पर लोग भागकर किसी ऊँची जगह पर चले जाते हैं, जैसे किसी इमारत की छत पर। उसी तरह जैसे-जैसे दुनिया की समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं, लाखों लोगों को लगता है कि रुपये-पैसे, राजनैतिक या धार्मिक संस्थानों, यहाँ तक कि विज्ञान और तकनीक की ऊँची जगह पर सुरक्षा मिल सकती है। लेकिन हकीकत तो यह है कि इनमें से कोई भी सच्ची सुरक्षा नहीं दे सकता। (यिर्म. 17:5, 6) जबकि दूसरी तरफ यहोवा के सेवकों के पास सच्ची सुरक्षा की जगह है और वह है “सनातन चट्टान।” (यशा. 26:4) भजनहार ने अपने गीत में लिखा: “[यहोवा] मेरी चट्टान, और मेरा उद्धार है, वह मेरा गढ़ है।” (भजन 62:6-9 पढ़िए।) हम इस चट्टान को अपनी शरण कैसे बना सकते हैं?
12 परमेश्वर के वचन में दी सलाहें अकसर इंसानी बुद्धि से एकदम अलग होती हैं और जब हम इन्हें मानते हैं तो असल में हम यहोवा के करीब आते हैं। (भज. 73:23, 24) उदाहरण के लिए इंसानी बुद्धि से प्रभावित होकर लोग कह सकते हैं: ‘एक ही ज़िंदगी मिली है इसलिए जितना मज़ा लूटना है लूट लो।’ ‘अच्छी नौकरी करो, खूब शोहरत कमाओ।’ ‘ज़्यादा-से-ज़्यादा पैसा बनाओ।’ ‘ये खरीदो, वो खरीदो।’ ‘घूमो-फिरो, दुनिया का मज़ा लो।’ दूसरी तरफ परमेश्वर की बुद्धि यह सलाह देती है: “इस दुनिया का इस्तेमाल करनेवाले ऐसे हों जो इसका पूरा-पूरा इस्तेमाल नहीं करते, इसलिए कि इस दुनिया का दृश्य बदल रहा है।” (1 कुरिं. 7:31) उसी तरह यीशु हमें बढ़ावा देता है कि हम राज के कामों को हमेशा पहली जगह दें और इस तरह “स्वर्ग में धन” जमा करें, जहाँ वह पूरी तरह सुरक्षित रहेगा।—मत्ती 6:19, 20.
13. पहला यूहन्ना 2:15-17 को ध्यान में रखते हुए हमें खुद से क्या पूछना चाहिए?
13 “दुनिया” और “दुनिया की चीज़ों” के बारे में आप जो रवैया रखते हैं क्या उससे ज़ाहिर होता है कि आपको परमेश्वर पर पूरा भरोसा है? (1 यूह. 2:15-17) क्या आपमें आध्यात्मिक धन और राज के कामों में ज़िम्मेदारियाँ पाने की इच्छा है और वे आपके लिए अहमियत रखती हैं या फिर दुनियावी चीज़ें आपके लिए ज़्यादा मायने रखती हैं? (फिलि. 3:8) क्या आप ‘अपनी आँख को एक ही चीज़ पर टिकाए’ रखने में मेहनत करते हैं? (मत्ती 6:22) यह बात सच है कि परमेश्वर नहीं चाहता कि आप सोचे-समझे बगैर या गैर ज़िम्मेदाराना तरीके से काम करें, खास तौर पर जब आपको अपने परिवार की देखभाल करनी हो। (1 तीमु. 5:8) लेकिन वह यह ज़रूर चाहता है कि उसके सेवक उस पर पूरा भरोसा रखें, न कि शैतान की इस डूबती दुनिया पर।—इब्रा. 13:5.
14-16. ‘अपनी आँख एक ही चीज़ पर टिकाए रखने’ और राज के कामों को पहली जगह देने से कुछ लोगों को क्या फायदे हुए?
14 रिचर्ड और रूथ के उदाहरण पर गौर कीजिए, जिनके तीन छोटे बच्चे हैं। रिचर्ड बताता है: “मेरा दिल कहता था कि मैं यहोवा की सेवा में और ज़्यादा कर सकता हूँ। मेरी ज़िंदगी सुकून से कट रही थी, मगर मुझे लगता था कि एक तरह से मैं यहोवा को उतना ही दे रहा हूँ जितना मैं अपनी बहुतायत में से दे सकता हूँ। इस मामले में प्रार्थना और सोच-विचार करने के बाद मैंने और रूथ ने तय किया कि भले ही इस वक्त देश की अर्थव्यवस्था डाँवाडोल है, लेकिन मैं अपने मालिक से कहूँगा कि वह मेरे काम करने के दिन कम कर दें ताकि मुझे हफ्ते में सिर्फ चार दिन काम करना पड़े। उन्होंने मेरी गुज़ारिश कबूल कर ली और एक महीने के अंदर मैंने नए शेड्यूल के मुताबिक काम करना शुरू कर दिया।” आज रिचर्ड कैसा महसूस करता है?
15 वह कहता है “हालाँकि मेरी तनख्वाह पहले से 20 प्रतिशत कम हो गयी है लेकिन अब मुझे साल में 50 दिन और मिलते हैं जिस वजह से मैं अपने परिवार को ज़्यादा वक्त और बच्चों को अच्छी तालीम दे पाता हूँ। अब मैं प्रचार में पहले से दुगना समय बिताता हूँ, मेरे पास तीन गुना ज़्यादा बाइबल अध्ययन हैं, और मैं मंडली में पहले से ज़्यादा ज़िम्मेदारियाँ निभा रहा हूँ। अब मेरे पास बच्चों की देखभाल करने के लिए ज़्यादा वक्त रहता है जिस वजह से मेरी पत्नी समय-समय पर सहयोगी पायनियर सेवा कर पाती है। मैंने ठान लिया है कि जब तक मुमकिन है तब तक मैं इस शेड्यूल के मुताबिक काम करूँगा।”
16 रॉय और पिटीना के दो बच्चे हैं, एक बेटा और एक बेटी। बेटी उनके साथ रहती है मगर फिर भी उन्होंने फैसला किया कि वे कम घंटे काम करेंगे ताकि वे पूरे समय की सेवा कर सकें। रॉय कहता है “मैं हफ्ते में तीन दिन और पिटीना दो दिन काम करती है। और हमने अपना घर बेचकर एक छोटा अपार्टमेंट ले लिया जिसकी देखभाल करना ज़्यादा आसान है। बच्चे होने से पहले हम पायनियर सेवा करते थे और पायनियर सेवा करने की हमारी यह इच्छा कभी खत्म नहीं हुई। इसलिए जब बच्चे बड़े हुए तो हमने फिर से पूरे समय की सेवा शुरू कर दी। इस सेवा से हमें जो आशीषें मिलीं उनकी तुलना बड़ी-से-बड़ी रकम से नहीं की जा सकती।”
‘परमेश्वर की शांति’ तुम्हारे दिल की हिफाज़त करे
17. कल न जाने क्या हो, इस डर पर काबू पाने में बाइबल की आयतों ने कैसे आपकी मदद की है?
17 हममें से कोई नहीं जानता कि कल हमारे साथ क्या होगा क्योंकि सब कुछ “समय और संयोग के वश में है।” (सभो. 9:11) लेकिन कल क्या होगा यह सोचकर हमें आज मन की शांति नहीं खोनी चाहिए। क्योंकि डर में अकसर वे लोग जीते हैं जिनके पास वह सुरक्षा नहीं जो परमेश्वर के साथ एक रिश्ता होने से मिलती है। (मत्ती 6:34) प्रेषित पौलुस ने लिखा: “किसी भी बात को लेकर चिंता मत करो, मगर हर बात में प्रार्थना और मिन्नतों और धन्यवाद के साथ अपनी बिनतियाँ परमेश्वर को बताते रहो। और परमेश्वर की वह शांति जो हमारी समझने की शक्ति से कहीं ऊपर है, . . . तुम्हारे दिल के साथ-साथ तुम्हारे दिमाग की सोचने-समझने की ताकत की हिफाज़त करेगी।”—फिलि. 4:6, 7.
18, 19. परमेश्वर किन तरीकों से हमारी हिम्मत बढ़ाता है? उदाहरण दीजिए।
18 कई भाई-बहनों ने महसूस किया है कि मुश्किल हालात में यहोवा ने उन्हें शांति और सुकून दिया। एक बहन कहती है: “एक डॉक्टर खून चढ़ाने के लिए बार-बार मुझ पर ज़ोर डाल रहा था। वह जब भी मिलता, सबसे पहले यही कहता: ‘यह क्या बकवास है कि तुम खून नहीं चढ़वाओगी?’ उस वक्त और दूसरे मौकों पर मैंने मन-ही-मन यहोवा से प्रार्थना की और तब मैंने अपने अंदर परमेश्वर की शांति महसूस की। मैं खुद को चट्टान की तरह मज़बूत महसूस करने लगी। खून की कमी की वजह से मैं बहुत कमज़ोर हो गयी थी फिर भी मैं बाइबल से साफ-साफ बता सकी कि मैं खून क्यों नहीं लूँगी।”
19 परमेश्वर कभी-कभी संगी विश्वासियों या सही वक्त पर आध्यात्मिक भोजन मुहैया कराने के ज़रिए हमें हिम्मत देता है। शायद आपने किसी भाई-बहन को यह कहते सुना हो: “यह लेख मेरे लिए ही लिखा गया है। इसकी मुझे बहुत ज़रूरत थी।” जी हाँ, हमारे हालात चाहे कैसे भी हों या हमारी जो भी ज़रूरत हो, अगर हम यहोवा पर पूरा भरोसा रखें, तो वह अपने प्यार का सबूत ज़रूर देगा। आखिर हम उसकी “भेड़ें” हैं और उसने हमें अपना नाम दिया है।—भज. 100:3; यूह. 10:16; प्रेषि. 15:14, 17.
20. जब शैतान की दुनिया खत्म हो जाएगी, तब यहोवा के सेवक क्यों सुरक्षित रहेंगे?
20 जैसे-जैसे ‘यहोवा के रोष का दिन’ तेज़ी से नज़दीक आ रहा है, शैतान की दुनिया जिस किसी पर भी भरोसा रखती है वह नाश हो जाएगा। सोना, चाँदी और दूसरी कीमती चीज़ें सुरक्षा नहीं दे सकतीं। (सप. 1:18; नीति. 11:4) सिर्फ हमारी “सनातन चट्टान” ही हमें सुरक्षा दे पाएगी। (यशा. 26:4) इसलिए आइए यहोवा के बताए धर्मी मार्गों पर चलते रहें, बेरुखी या विरोध के बावजूद उसके राज का प्रचार करते रहें और अपनी सारी चिंताएँ उस पर डाल दें। इस तरह हम दिखाएँगे कि हम यहोवा पर पूरा भरोसा करते हैं। तब हम सचमुच में ‘निडरता से बसे रहेंगे, और बेखटके सुख से रहेंगे।’—नीति. 1:33.
[फुटनोट]
क्या आप समझा सकते हैं?
हम ऐसे वक्त में परमेश्वर पर कैसे भरोसा रख सकते हैं:
• जब गलत काम करने का प्रलोभन आता है?
• जब हम बेरुखी या विरोध का सामना करते हैं?
• जब चिंताएँ आ घेरती हैं?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 13 पर तसवीर]
परमेश्वर के स्तरों पर चलने से खुशी मिलती है
[पेज 15 पर तसवीर]
“प्रभु यहोवा सनातन चट्टान है”