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‘पवित्र शक्‍ति परमेश्‍वर के गहरे रहस्यों की खोजबीन करती है’

‘पवित्र शक्‍ति परमेश्‍वर के गहरे रहस्यों की खोजबीन करती है’

‘पवित्र शक्‍ति परमेश्‍वर के गहरे रहस्यों की खोजबीन करती है’

“पवित्र शक्‍ति सब बातों की खोजबीन करती है, यहाँ तक कि परमेश्‍वर के गहरे रहस्यों की भी।”—1 कुरिं. 2:10.

1. पहले कुरिंथियों 2:10 में पौलुस ने पवित्र शक्‍ति की किस भूमिका के बारे में बताया और इससे कौन-से सवाल खड़े होते हैं?

 यहोवा की पवित्र शक्‍ति के कामों के लिए हमें बहुत आभारी होना चाहिए। बाइबल कहती है कि पवित्र शक्‍ति एक मददगार है और वरदान भी, साथ ही यह गवाही देती और बिनती भी करती है। (यूह. 14:16; प्रेषि. 2:38; रोमि. 8:16, 26, 27) और प्रेषित पौलुस ने पवित्र शक्‍ति की एक और अहम भूमिका के बारे में बताया। उसने कहा: “पवित्र शक्‍ति सब बातों की खोजबीन करती है, यहाँ तक कि परमेश्‍वर के गहरे रहस्यों की भी।” (1 कुरिं. 2:10) वाकई, यहोवा अपनी पवित्र शक्‍ति की मदद से गहरी आध्यात्मिक सच्चाइयों का खुलासा करता है। क्या उसकी मदद के बिना यहोवा के मकसदों के बारे में जानकारी पाना मुमकिन होता? (1 कुरिंथियों 2:9-12 पढ़िए।) फिर भी इससे जुड़े कई सवाल मन में खड़े होते हैं, जैसे: पवित्र शक्‍ति कैसे “परमेश्‍वर के गहरे रहस्यों” की खोजबीन करती है? यहोवा ने पहली सदी में किसके ज़रिए इन रहस्यों को उजागर किया? आज हमारे दिनों में कैसे और किसके ज़रिए पवित्र शक्‍ति गहरे रहस्यों की खोजबीन करती है?

2. पवित्र शक्‍ति किन दो तरीकों से काम करती है?

2 यीशु ने बताया कि पवित्र शक्‍ति दो तरीकों से काम करेगी। अपनी मौत से कुछ समय पहले यीशु ने अपने प्रेषितों से कहा: “वह मददगार, यानी पवित्र शक्‍ति जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हें सारी बातें सिखाएगा और जितनी बातें मैंने तुम्हें बतायी हैं वे सब तुम्हें याद दिलाएगा।” (यूह. 14:26) इससे ज़ाहिर होता है कि पवित्र शक्‍ति एक शिक्षक और याद दिलानेवाले के तौर पर काम करेगी। एक शिक्षक के तौर पर यह मसीहियों को उन बातों को समझने में मदद देगी जो उन्होंने पहले नहीं समझी थीं। और एक याद दिलानेवाले के तौर पर यह उन्हें वे बातें याद करने और सही-सही लागू करने में मदद देगी जो पहले समझायी जा चुकी हैं।

पहली सदी में

3. यीशु के किन शब्दों से ज़ाहिर होता कि “परमेश्‍वर के गहरे रहस्यों” का खुलासा धीरे-धीरे होगा?

3 यीशु ने खुद अपने चेलों को कई नयी सच्चाइयाँ सिखायीं। फिर भी उन्हें और भी बहुत कुछ सीखना था। यीशु ने अपने प्रेषितों से कहा: “मुझे तुमसे और भी बहुत-सी बातें कहनी हैं, मगर इस वक्‍त तुम इन्हें समझ नहीं सकते। लेकिन जब वह मददगार आएगा, यानी सच्चाई की पवित्र शक्‍ति, तो वह सच्चाई की पूरी समझ पाने में तुम्हारी मदद करेगा।” (यूह. 16:12, 13) इस तरह यीशु ने ज़ाहिर किया कि पवित्र शक्‍ति की मदद से उन्हें धीरे-धीरे दूसरी गहरी आध्यात्मिक बातों की समझ मिलेगी।

4. ईसवी सन्‌ 33 में पिन्तेकुस्त के दिन कैसे पवित्र शक्‍ति ने एक शिक्षक और याद दिलानेवाले के तौर पर काम किया?

4 ईसवी सन्‌ 33 में पिन्तेकुस्त के दिन “सच्चाई की पवित्र शक्‍ति” 120 मसीहियों पर उँडेली गयी जो यरूशलेम में जमा हुए थे। लोग देख और सुन सकते थे कि मसीहियों पर पवित्र शक्‍ति आयी है। (प्रेषि. 1:4, 5, 15; 2:1-4) चेलों ने “परमेश्‍वर के शानदार कामों” के बारे में अलग-अलग भाषाओं में बात की। (प्रेषि. 2:5-11) यह वक्‍त अब नए रहस्यों के खुलने का था। भविष्यवक्‍ता योएल ने यह भविष्यवाणी की थी कि पवित्र शक्‍ति उँडेली जाएगी। (योए. 2:28-32) और वहाँ जमा लोगों ने इस भविष्यवाणी को जिस तरह पूरा होते देखा, उसकी उम्मीद तो किसी ने भी नहीं की थी। अब प्रेषित पतरस उठकर इस वाकए के बारे में सबको समझाता है। (प्रेषितों 2:14-18 पढ़िए।) उस वक्‍त पवित्र शक्‍ति ने पतरस के ज़रिए एक शिक्षक का काम किया और लोगों को समझाया कि योएल की भविष्यवाणी को चेले पूरा कर रहे हैं। पवित्र शक्‍ति ने याद दिलाने का भी काम किया, क्योंकि पतरस ने न सिर्फ योएल की बल्कि आगे समझाते समय दाविद के लिखे दो भजनों का भी हवाला दिया। (भज. 16:8-11; 110:1; प्रेषि. 2:25-28, 34, 35) वहाँ जमा लोगों ने जो देखा और सुना, वह वाकई परमेश्‍वर के गहरे रहस्यों का खुलासा था।

5, 6. (क) ईसवी सन्‌ 33 में पिन्तेकुस्त के बाद नयी वाचा से जुड़े किन अहम सवालों का जवाब देना ज़रूरी था? (ख) किन लोगों ने ये सवाल खड़े किए और कैसा फैसला लिया गया?

5 पहली सदी के मसीहियों को और भी काफी कुछ समझने की ज़रूरत थी। उदाहरण के लिए पिन्तेकुस्त के दिन से नयी वाचा की शुरूआत हुई थी, तो उससे संबंधित कुछ सवाल खड़े हुए। क्या नयी वाचा में सिर्फ यहूदी और यहूदी धर्म अपनानेवाले लोग ही शामिल हो सकते हैं? क्या गैर-यहूदी भी नयी वाचा का हिस्सा बन सकते हैं और पवित्र शक्‍ति से अभिषिक्‍त हो सकते हैं? (प्रेषि. 10:45) क्या गैर-यहूदी पुरुषों पर भी मूसा का नियम लागू होता है और इसके लिए उन्हें खतना कराना ज़रूरी है? (प्रेषि. 15:1, 5) ये वाकई अहम सवाल थे। इन गहरी बातों की खोजबीन और समझ के लिए यहोवा की पवित्र शक्‍ति की मदद की ज़रूरत थी। लेकिन यह किन लोगों के ज़रिए काम करेगी?

6 नयी वाचा से जुड़ा हर सवाल ज़िम्मेदार भाइयों ने खड़ा किया था। शासी निकाय की सभा में पतरस, पौलुस और बरनबास सभी मौजूद थे और उन्होंने बताया कि यहोवा ने कैसे खतना रहित गैर-यहूदियों पर ध्यान दिया है। (प्रेषि. 15:7-12) इस सबूत पर विचार करने के साथ-साथ इब्रानी शास्त्र की बातों पर गौर किया गया और पवित्र शक्‍ति की मदद से शासी निकाय एक फैसले पर पहुँचा। फिर उसने अपना फैसला लिखित रूप में सभी मंडलियों को भेजा।—प्रेषितों 15:25-30; 16:4, 5 पढ़िए; इफि. 3:5, 6.

7. गहरी सच्चाइयों की समझ कैसे ज़ाहिर की गयी?

7 दूसरे कई मुद्दों के बारे में यूहन्‍ना, पतरस, याकूब और पौलुस के खतों के ज़रिए साफ-साफ समझ दी गयी जो परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखे गए थे। लेकिन एक वक्‍त ऐसा आया जब मसीही यूनानी शास्त्र का लिखना पूरा हुआ, तब भविष्यवाणी के वरदान और हैरतअंगेज़ तरीके से जानकारी का उजागर होना बंद हो गया। (1 कुरिं. 13:8) क्या पवित्र शक्‍ति इसके बाद भी एक शिक्षक और याद दिलानेवाले के तौर पर काम करना जारी रखती? क्या यह मसीहियों को परमेश्‍वर के गहरे रहस्यों की समझ देते रहती? भविष्यवाणी दिखाती है कि ऐसा होता।

अंत के दिनों में

8, 9. अंत के दिनों में परमेश्‍वर की बातों को सिखाने के लिए कौन ‘चमकेंगे’?

8 अंत के दिनों के बारे में बताते वक्‍त एक स्वर्गदूत ने यह भविष्यवाणी की: “तब सिखानेवालों की चमक आकाशमण्डल की सी होगी, और जो बहुतों को धर्मी बनाते हैं, वे सर्वदा तारों की नाईं प्रकाशमान रहेंगे। . . . इस से ज्ञान बढ़ भी जाएगा।” (दानि. 12:3, 4) तो ये सिखानेवाले कौन होंगे जिनमें चमक होगी? यीशु ने गेहूँ और जंगली पौधे के बीज का जो दृष्टांत दिया, उससे हमें इसके बारे में पता चलता है। उसने ‘दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्‍त’ के बारे में बताते समय कहा: “जो परमेश्‍वर की नज़र में नेक हैं, वे उस वक्‍त अपने पिता के राज में सूरज की तरह तेज़ चमकेंगे।” (मत्ती 13:39, 43) यीशु ने समझाया कि “नेक” लोग, “राज के बेटे हैं” यानी अभिषिक्‍त जन।—मत्ती 13:38.

9 क्या सभी अभिषिक्‍त जन ‘चमकेंगे’? एक मायने में हाँ, क्योंकि सभी प्रचार करते और चेला बनाते, साथ ही सभाओं में एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते, इस तरह वे सब मसीहियों के लिए बढ़िया उदाहरण रखते। (जक. 8:23) अंतिम दिनों में इन कामों के अलावा गहरे रहस्यों का भी खुलासा होता, जैसे दानिय्येल ने भविष्यवाणी की थी। उसने कहा था कि अंत के दिनों तक उन पर “मुहर” लगी रहेगी। (दानि. 12:9) तो कैसे और किसके ज़रिए पवित्र शक्‍ति गहरे रहस्यों को उजागर करती?

10. (क) इन अंतिम दिनों में पवित्र शक्‍ति ने किसके ज़रिए गहरी सच्चाइयों की समझ दी है? (ख) समझाइए कि यहोवा के महान लाक्षणिक मंदिर के बारे में कैसे और साफ जानकारी मिली।

10 आज पवित्र शक्‍ति ‘विश्‍वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाले दास’ के ज़िम्मेदार प्रतिनिधि, शासी निकाय को गहरी सच्चाइयाँ समझने में मदद देती है। (मत्ती 24:45; 1 कुरिं. 2:13) ये प्रतिनिधि साक्षियों के विश्‍व मुख्यालय में रहते हैं। अगर किसी जानकारी पर फेरबदल करनी पड़े तो शासी निकाय मिलकर उस पर गौर करता है। (प्रेषि. 15:6) फिर वे जो सीखते हैं, अगर ज़रूरी हो तो उसे सभी के फायदों के लिए प्रकाशित करते हैं। (मत्ती 10:27) जैसे-जैसे समय गुज़रता है, शायद उस बारे में और साफ जानकारी देने की ज़रूरत पड़े, तब उसके बारे में भी वे पूरी ईमानदारी से समझाते हैं।—“पवित्र शक्‍ति ने लाक्षणिक मंदिर के मतलब के बारे में कैसे समझाया” बक्स देखिए।

आज पवित्र शक्‍ति की भूमिका से फायदा पाना

11. आज परमेश्‍वर के गहरे रहस्यों की समझ हासिल करने में सभी मसीही पवित्र शक्‍ति की भूमिका से कैसे फायदा पाते हैं?

11 परमेश्‍वर के गहरे रहस्यों की समझ हासिल करने में सभी वफादार मसीही पवित्र शक्‍ति की भूमिका से फायदा पाते हैं। आज हम भी पहली सदी के मसीहियों की तरह बाइबल पर आधारित साहित्य का अध्ययन करते हैं, फिर उन बातों को याद करते और उन्हें लागू करते हैं, जिन्हें समझने में पवित्र शक्‍ति ने हमारी मदद की थी। (लूका 12:11, 12) लेकिन इन गहरी बातों को समझने के लिए ज़रूरी नहीं कि हम बहुत पढ़े-लिखे हों। (प्रेषि. 4:13) तो फिर परमेश्‍वर के गहरे रहस्यों की समझ बढ़ाने के लिए हमें क्या करना चाहिए? कुछ सुझावों पर गौर कीजिए।

12. हमें कब पवित्र शक्‍ति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए?

12 पवित्र शक्‍ति के लिए प्रार्थना कीजिए। बाइबल से जुड़े विषयों के बारे में गौर करने से पहले हमें पवित्र शक्‍ति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमें मार्गदर्शन दे। हमें प्रार्थना तब भी करनी चाहिए जब हम अकेले होते हैं या हमारे पास बहुत कम समय होता है। इस तरह नम्रता से की गयी बिनती से हमारे प्यारे पिता का दिल यकीनन खुश होगा। जैसा कि यीशु ने कहा था, जब हम सच्चे दिल से बिनती करते हैं तो यहोवा खुलकर हमें अपनी पवित्र शक्‍ति देता है।—लूका 11:13.

13, 14. सभाओं की तैयारी करने से कैसे हमें परमेश्‍वर के वचन के गहरे रहस्यों को समझने में मदद मिलती है?

13 सभाओं के लिए तैयारी कीजिए। दास वर्ग के ज़रिए हमें ‘सही वक्‍त पर खाना’ मिलता है। “दास” बाइबल के आधार पर जानकारी देता है, फिर सभाओं और अध्ययन का अच्छा इंतज़ाम करता है। इस तरह वह अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करता है। जब “भाइयों की सारी बिरादरी” को किसी खास जानकारी पर चर्चा करने के लिए कहा जाता है, तो उसके पीछे वाजिब कारण होता है। (1 पत. 2:17; कुलु. 4:16; यहू. 3) इसलिए अगर हम दी गयी सलाह को मानने की पूरी कोशिश करें तो हम पवित्र शक्‍ति का साथ दे रहे होंगे।—प्रका. 2:29.

14 मसीही सभाओं की तैयारी करते वक्‍त अच्छा होगा, अगर हम बाइबल के हवाले पढ़ें और समझने की कोशिश करें कि ये कैसे दिए गए विषय से मेल खाते हैं। ऐसा करते रहने से धीरे-धीरे बाइबल के बारे में हमारी समझ और गहरी होती जाएगी। (प्रेषि. 17:11, 12) वचन खोलकर पढ़ने से मन में उसकी छाप बैठ जाती है जो पवित्र शक्‍ति बाद में याद दिलाने में हमारी मदद कर सकती है। इसके अलावा, अगर हम बाइबल खोलकर वचन को पन्‍नों पर देखते हैं, तो इससे उसकी तसवीर मन में बैठ जाती है और ज़रूरत पड़ने पर उसे ढूँढ़ना आसान हो जाता है।

15. हमें क्यों नए साहित्य से वाकिफ रहना चाहिए और हम यह कैसे कर सकते हैं?

15 नए प्रकाशनों से वाकिफ रहिए। कुछ प्रकाशित साहित्य की चर्चा सभाओं में नहीं की जाती, फिर भी वे हमारे फायदे के लिए तैयार किए जाते हैं। यहाँ तक कि जनता को पेश करने की पत्रिकाएँ भी हमें ध्यान में रखकर तैयार की जाती हैं। ऐसे नए साहित्य शायद हमने आधे-अधूरे पढ़े हों या बिलकुल न पढ़ पाए हों। अकसर इस भाग-दौड़ की दुनिया में हमें कई मौकों पर इंतज़ार करना पड़ता है। अगर ये साहित्य हमारे साथ हों तो इस समय का अच्छा फायदा उठाकर हम इन्हें पढ़ सकते हैं। कुछ लोग चलते या गाड़ी चलाते वक्‍त हमारे साहित्य के ऑडियो रिकार्डिंग सुनकर नयी जानकारी से वाकिफ रहते हैं। ऐसे साहित्य का मज़ा आम इंसान तो उठाता ही है, लेकिन क्योंकि इन्हें बड़ी खोजबीन के साथ तैयार किया जाता है तो इन्हें पढ़कर हम सभी आध्यात्मिक बातों के लिए अपनी कदर बढ़ा सकते हैं।—हब. 2:2.

16. मन में उठनेवाले सवालों को लिखकर रखने और फिर उन्हें समझने के लिए खोजबीन करने से क्या फायदा हो सकता है?

16 मनन कीजिए। जब आप बाइबल या उस पर आधारित कोई साहित्य पढ़ते हैं तो रुककर उस पर सोचिए। जब आप विचारों की पटरी पर आगे बढ़ते जाएँगे तब बीच-बीच में आपके मन में कुछ सवाल उठेंगे। आप ऐसे सवालों को लिखकर रख सकते हैं, जिनके बारे में आप बाद में ज़्यादा जानकारी हासिल कर सकते हैं। अकसर जिज्ञासा बढ़ानेवाले जिन विषयों पर हम खोजबीन करते हैं, वे हमारे ज़हन में बहुत अच्छी तरह बैठ जाते हैं। जो समझ हम हासिल करते हैं वह हमारे निजी खज़ाने में जमा होती जाती है, जिन्हें अपनी ज़रूरत के समय जब चाहे निकाल सकते हैं।—मत्ती 13:52.

17. आप निजी या पारिवारिक अध्ययन कैसे करते हैं?

17 पारिवारिक उपासना के लिए समय तय कीजिए। शासी निकाय ने हम सबको बढ़ावा दिया है कि हम हर हफ्ते की एक शाम या किसी और वक्‍त पर निजी या पारिवारिक अध्ययन के लिए समय निकालें। हमारी सभाओं में जो फेरबदल हुई है, उसकी वजह से हम इस तरह के अध्ययन के लिए समय निकाल सकते हैं। आप पारिवारिक उपासना की शाम को किस विषय पर चर्चा करते हैं? कुछ लोग बाइबल पढ़ते हैं और आयतों के बारे में उठे सवालों पर खोजबीन करते हैं और अपनी बाइबल में उस आयत को समझने के लिए छोटा-सा नोट लिखते हैं। कई परिवार सीखे जा रहे विषय को परिवार में कैसे लागू करना है, इस पर चर्चा करते हैं। कुछ परिवार के मुखिया ऐसे विषय चुनते हैं, जिनके बारे में उन्हें लगता है कि वे उनके परिवार के लिए फायदेमंद होंगे। वे ऐसे विषयों या सवालों पर भी चर्चा करते हैं, जिनके बारे में परिवार ज़्यादा जानना चाहता हो। इसमें शक नहीं जैसे-जैसे समय बीतेगा आप चर्चा करने के नए-नए तरीके और विषय ढूँढ़ेंगे। *

18. हमें परमेश्‍वर के वचन की गहरी सच्चाइयों को सीखने से पीछे क्यों नहीं हटना चाहिए?

18 यीशु ने कहा कि पवित्र शक्‍ति मददगार के तौर पर काम करेगी। इसलिए हमें परमेश्‍वर के वचन की गहरी सच्चाइयों को समझने से पीछे नहीं हटना चाहिए। ये सच्चाइयाँ दरअसल ‘परमेश्‍वर के [अनमोल] ज्ञान’ का हिस्सा हैं और हमें उसके बारे में खोज करने का न्यौता दिया गया है। (नीतिवचन 2:1-5 पढ़िए।) ये “उन्हीं बातों” के बारे में बताती हैं जो ‘परमेश्‍वर ने उनके लिए तैयार की हैं जो उससे प्यार करते हैं।’ जब हम यहोवा के वचन को सीखने में मेहनत करेंगे, तब पवित्र शक्‍ति हमारी मदद करेगी क्योंकि यह “सब बातों की खोजबीन करती है, यहाँ तक कि परमेश्‍वर के गहरे रहस्यों की भी।”—1 कुरिं. 2:9, 10.

[फुटनोट]

^ अक्टूबर 2008 की हमारी राज-सेवा का पेज 8 भी देखिए।

आप कैसे जवाब देंगे?

• पवित्र शक्‍ति किन दो तरीकों से “परमेश्‍वर के गहरे रहस्यों” की खोजबीन करने में मदद करती है?

• पहली सदी में पवित्र शक्‍ति ने किन लोगों के ज़रिए गहरी सच्चाइयों को उजागर किया?

• पवित्र शक्‍ति हमारे दिनों में किस तरह गहरी बातों की और साफ जानकारी देती है?

• पवित्र शक्‍ति की भूमिका से फायदा पाने के लिए आप क्या कर सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 22 पर बक्स]

पवित्र शक्‍ति ने लाक्षणिक मंदिर के मतलब के बारे में कैसे समझाया

परमेश्‍वर के “गहरे रहस्यों” में से एक रहस्य पहली सदी में खोला गया और वह था निवास-स्थान के बारे में। और आगे चलकर मंदिर ने एक और बड़ी सच्चाई को दर्शाया। पौलुस ने उस मंदिर को ‘सच्चा निवास-स्थान’ कहा, “जिसे किसी इंसान ने नहीं बल्कि यहोवा ने खड़ा किया” था। (इब्रा. 8:2) यह एक महान लाक्षणिक मंदिर था जो असल में ऐसा इंतज़ाम था जिससे परमेश्‍वर के करीब आने का रास्ता खुला। यह इंतज़ाम यीशु मसीह के बलिदान से और याजक होने से मुमकिन हुआ।

‘सच्चा निवास-स्थान’ ईसवी सन्‌ 29 में बना जब यीशु ने बपतिस्मा लिया और अब यहोवा उसका सिद्ध बलिदान कबूल कर सकता था। (इब्रा. 10:5-10) यीशु अपनी मौत और फिर से जी उठने के बाद लाक्षणिक मंदिर के परम-पवित्र स्थान में दाखिल हुआ और अपने बलिदान की कीमत देने के लिए “परमेश्‍वर के सामने हाज़िर” हुआ।—इब्रा. 9:11, 12, 24.

एक जगह प्रेषित पौलुस ने अभिषिक्‍त मसीहियों के बारे में लिखा कि वे ‘पवित्र मंदिर बनने के लिए बढ़ते जा रहे हैं।’ (इफि. 2:20-22) क्या यह मंदिर वही ‘सच्चा निवास-स्थान’ है, जिसके बारे में पौलुस ने बाद में इब्रानियों के खत में लिखा? कई दशकों तक यहोवा के सेवकों ने सोचा कि दोनों एक ही हैं। ऐसा माना गया कि अभिषिक्‍त मसीहियों को स्वर्ग में यहोवा के मंदिर का “पत्थर” बनाने के लिए इस धरती पर तैयार किया जा रहा था।—1 पत. 2:5.

लेकिन सन्‌ 1971 में दास वर्ग के ज़िम्मेदार सदस्यों को यह समझ में आने लगा कि इफिसियों में पौलुस द्वारा बताया गया मंदिर परमेश्‍वर का महान लाक्षणिक मंदिर नहीं हो सकता। अगर ‘सच्चा निवास-स्थान’ फिर से जी उठे अभिषिक्‍त मसीहियों से बना होता तो उसका पहला वजूद “प्रभु की मौजूदगी” के दौरान होता जब उनका पुनरुत्थान हुआ। (1 थिस्स. 4:15-17) लेकिन निवासस्थान के बारे में कहते हुए पौलुस ने लिखा: “यही निवास-स्थान इस तय वक्‍त के लिए, जो अभी चल रहा है, एक नमूना है।”—इब्रा. 9:9.

इनकी और दूसरी कई आयतों की ध्यान से तुलना करने पर यह बात साफ हो जाती है कि आज लाक्षणिक मंदिर बनाने का काम नहीं चल रहा है। और यह भी कि अभिषिक्‍त मसीहियों को स्वर्ग में यहोवा के मंदिर का “पत्थर” बनाने के लिए इस धरती पर तैयार नहीं किया जा रहा है। इसके बजाय अभिषिक्‍त मसीही इस समय लाक्षणिक मंदिर के पवित्र स्थान और आँगन में सेवा कर रहे हैं और परमेश्‍वर को “गुणगान का बलिदान” रोज़ाना चढ़ा रहे हैं।—इब्रा. 13:15.

[पेज 23 पर तसवीर]

“परमेश्‍वर के गहरे रहस्यों” के बारे में हम अपनी समझ कैसे बढ़ा सकते हैं?