अय्यूब ने यहोवा का नाम रौशन किया
अय्यूब ने यहोवा का नाम रौशन किया
“यहोवा का नाम धन्य है।”—अय्यू. 1:21.
1. अय्यूब की किताब कब और किसने लिखी होगी?
जब मूसा फिरौन से अपनी जान बचाकर भागा, तो वह करीब 40 साल का था। मिस्र से भागकर वह मिद्यान देश में रहने लगा। (प्रेषि. 7:23, 29) उस दौरान उसने शायद अय्यूब पर आयी परीक्षाओं के बारे में सुना हो, जो पास ही के ऊज़ देश में रहता था। इसके कई साल बाद जब मूसा इसराएलियों के साथ वीराने से होकर गुज़र रहा था, तो सफर के आखिर में वे ऊज़ देश के पास पहुँचे। तब मूसा को अय्यूब की ज़िंदगी के आखिरी सालों के बारे में पता चला होगा। यहूदी इतिहास के मुताबिक मूसा ने अय्यूब की मौत के कुछ समय बाद अय्यूब की किताब लिखी।
2. अय्यूब की किताब आज किस तरह यहोवा के सेवकों का विश्वास मज़बूत करती है?
2 अय्यूब की किताब आज परमेश्वर के सेवकों का विश्वास मज़बूत करती है। कैसे? अय्यूब की कहानी स्वर्ग में घटी उन घटनाओं और उनके नतीजों के बारे में बताती है, जो हमारे लिए बहुत मायने रखती हैं। और यह समझने में हमारी मदद करती है कि सारे जहान पर परमेश्वर की हुकूमत का मसला ही सबसे अहम मसला है। साथ ही, अय्यूब का ब्यौरा यह भी समझाता है कि खराई बनाए रखने का क्या मतलब है और क्यों यहोवा कभी-कभी अपने सेवकों को दुख-तकलीफों से गुज़रने देता है। इसके अलावा, अय्यूब की किताब से ही पता चलता है कि शैतान यानी इब्लीस यहोवा का सबसे बड़ा दुश्मन और इंसानों का भी दुश्मन है। यह किताब दिखाती है कि असिद्ध इंसान कड़ी-से-कड़ी परीक्षाओं में भी यहोवा के वफादार रह सकते हैं, ठीक जैसे अय्यूब रहा था। आइए इस किताब में दी कुछ घटनाओं पर गौर करें।
शैतान ने अय्यूब की परीक्षा ली
3. अय्यूब के बारे में हम क्या जानते हैं? शैतान ने उसे अपना निशाना क्यों बनाया?
3 अय्यूब बहुत रईस और रुतबेदार इंसान था। वह अपने परिवार का मुखिया था और नैतिक मामलों में बेदाग था। वह ज़रूरतमंदों की मदद करता था और उसकी सलाह की बहुत कदर की जाती थी। सबसे बड़ी बात, वह परमेश्वर का भय मानता था। उसके बारे में बताया गया है कि वह “खरा और सीधा था और परमेश्वर का भय मानता और बुराई से परे रहता था।” शैतान ने अय्यूब की भक्ति देखकर ही उसे अपना निशाना बनाया, न कि उसकी दौलत या रुतबा देखकर।—अय्यू. 1:1; 29:7-16; 31:1.
4. खराई का मतलब क्या है?
4 अय्यूब की किताब के शुरू में बताया गया है कि एक बार स्वर्ग में यहोवा के सामने स्वर्गदूत हाज़िर हुए। उस वक्त शैतान भी आया और उसने अय्यूब पर इलज़ाम लगाया। (अय्यूब 1:6-11 पढ़िए।) हालाँकि शैतान ने अय्यूब की धन-संपत्ति का ज़िक्र किया, लेकिन उसका असल मकसद अय्यूब की खराई पर सवाल उठाना था। शब्द “खराई” का मतलब है सच्चा, नेक और निर्दोष होना। बाइबल में जब किसी इंसान को खरा कहा जाता है, तो उसका मतलब है कि वह तन-मन से यहोवा से प्यार करता है और हर हाल में उसका वफादार रहता है।
5. शैतान ने अय्यूब के बारे में क्या दावा किया?
5 शैतान ने दावा किया कि अय्यूब सिर्फ स्वार्थ की वजह से परमेश्वर की उपासना करता है। शैतान ने आरोप लगाया कि अय्यूब सिर्फ तब तक यहोवा का वफादार रहेगा, जब तक परमेश्वर उसे मालामाल करता रहेगा और उसकी हिफाज़त करता रहेगा। इस इलज़ाम को झूठा साबित करने के लिए यहोवा ने शैतान को अय्यूब पर मुसीबतें लाने दी। नतीजतन, एक ही दिन में अय्यूब के सारे मवेशी या तो लूट लिए गए या मारे गए, उसके ज़्यादातर सेवकों को मार डाला गया और उसके दस बच्चे भी अपनी जान से हाथ धो बैठे। (अय्यू. 1:13-19) क्या शैतान के इस हमले से अय्यूब ने अपनी खराई छोड़ दी? परमेश्वर का प्रेरित वचन बताता है कि जब अय्यूब पर मुसीबतों का पहाड़ टूटा, तो उसने कहा: “यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है।”—अय्यू. 1:21.
6. (क) स्वर्ग में एक बार फिर जब स्वर्गदूत यहोवा के सामने इकट्ठा हुए, तब क्या हुआ? (ख) जब शैतान ने अय्यूब की खराई पर सवाल उठाया, तो क्या उसके निशाने पर सिर्फ अय्यूब था?
6 कुछ समय बाद, स्वर्ग में एक बार फिर स्वर्गदूत यहोवा के सामने इकट्ठा हुए। शैतान ने दोबारा अय्यूब पर इलज़ाम लगाया और यहोवा से कहा: “खाल के बदले खाल, परन्तु प्राण के बदले मनुष्य अपना सब कुछ दे देता है। सो केवल अपना हाथ बढ़ाकर उसकी हड्डियां और मांस छू, तब वह तेरे मुंह पर तेरी निन्दा करेगा।” गौर कीजिए कि शैतान ने कहा कि “प्राण के बदले मनुष्य अपना सब कुछ दे देता है।” इस तरह उसने न सिर्फ अय्यूब पर, बल्कि यहोवा की उपासना करनेवाले हर “मनुष्य” की खराई पर सवाल उठाया। तब परमेश्वर ने उसे अय्यूब पर एक भयंकर और दर्दनाक बीमारी लाने की इजाज़त दी। (अय्यू. 2:1-8) लेकिन अय्यूब की परीक्षाएँ खत्म नहीं हुई थीं।
अय्यूब के रवैए से हम क्या सीख सकते हैं?
7. अय्यूब की पत्नी और उससे मिलने आए लोगों ने उस पर कैसे दबाव डाला?
7 शुरू में अय्यूब पर जिन मुसीबतों का कहर टूटा, उससे उसकी पत्नी को भी उतना ही दुख पहुँचा, जितना कि खुद अय्यूब को। एक तो सारी धन-संपत्ति लुट गयी, ऊपर से उसका हँसता-खेलता परिवार भी उजड़ गया, इससे उसे कितना बड़ा सदमा पहुँचा होगा। यही नहीं, अपने पति को दर्दनाक बीमारी में तड़पता देख वह खून के आँसू रोयी होगी। तब उसने अय्यूब से कहा: ‘क्या तू अब भी अपनी खराई पर बना है? परमेश्वर की निन्दा कर और मर जा।’ इसके बाद, अय्यूब से मिलने एलीपज, बिलदद और सोपर आए। वे आए तो थे अय्यूब को दिलासा देने, लेकिन अपनी झूठी दलीलों से वे “दुख बढ़ानेवाले शान्तिदाता” (नयी हिन्दी बाइबिल) साबित हुए। आखिर उन्होंने ऐसा क्या कहा? बिलदद ने कहा कि अय्यूब के बच्चे गलत काम करते थे, इसलिए उन्हें अपनी करनी का फल मिला। और एलीपज ने एक तरह से कहा कि अय्यूब को अपने पापों की सज़ा मिल रही है। उसने तो यह तक कहा कि जो लोग खराई बनाए रखते हैं, परमेश्वर की नज़र में शायद ही उनका कुछ मोल हो। (अय्यू. 2:9, 11; 4:8; 8:4; 16:2; 22:2, 3) इन सब इलज़ामों और दबावों के बावजूद अय्यूब अपनी खराई पर बना रहा। यह सच है कि जब उसने “परमेश्वर को नहीं, अपने ही को निर्दोष ठहराया,” तब वह गलत था। (अय्यू. 32:2) लेकिन फिर भी अपनी तमाम आज़माइशों में वह परमेश्वर का वफादार बना रहा।
8. सलाह देनेवालों के लिए एलीहू कैसे एक अच्छी मिसाल है?
8 इसके बाद हम एलीहू के बारे में पढ़ते हैं, जो अय्यूब से मिलने आया था। पहले तो वह अय्यूब और उसके तीन साथियों की दलीलें सुनता रहा। हालाँकि वह उन चारों से उम्र में छोटा था, लेकिन उसने उनसे ज़्यादा समझदारी दिखायी। उसने अय्यूब से बड़ी इज़्ज़त से बात की और खराई के मार्ग पर चलने के लिए उसकी तारीफ की। मगर एलीहू ने यह भी कहा कि अय्यूब खुद को निर्दोष साबित करने पर कुछ ज़्यादा ही आमादा है। उसके बाद उसने अय्यूब को यकीन दिलाया कि वफादारी से परमेश्वर की सेवा करना हमेशा फायदेमंद होता है। (अय्यूब 36:1, 11 पढ़िए।) सलाह देनेवालों के लिए एलीहू क्या ही अच्छी मिसाल है! उसने सब्र रखा, ध्यान से दूसरों की सुनी, जहाँ मुमकिन था वहाँ अय्यूब को सराहा और हौसला बढ़ानेवाली सलाह दी।—अय्यू. 32:6; 33:32, NW.
9. यहोवा ने अय्यूब की कैसे मदद की?
9 इसके बाद अय्यूब के साथ एक हैरतअँगेज़ घटना हुई, खुद यहोवा ने उससे बात की। बाइबल कहती है: ‘यहोवा ने अय्यूब को आँधी में से उत्तर दिया।’ यहोवा ने अय्यूब से कई सवाल किए और इस तरह उसने प्यार से अय्यूब को ताड़ना दी और उसकी सोच सुधारी। अय्यूब ने खुशी-खुशी परमेश्वर की ताड़ना कबूल की और कहा: “मैं तो तुच्छ हूं, . . . मैं धूलि और राख में पश्चाताप करता हूं।” अय्यूब से बात करने के बाद यहोवा का गुस्सा उसके तीन साथियों पर भड़का, क्योंकि उन्होंने “सच नहीं” (बुल्के बाइबिल) कहा। उसने कहा कि वह उन्हें तभी माफ करेगा, जब अय्यूब उनके लिए प्रार्थना करेगा। फिर “जब अय्यूब ने अपने मित्रों के लिये प्रार्थना की, तब यहोवा ने उसका सारा दुःख दूर किया, और जितना अय्यूब का पहिले था, उसका दुगना यहोवा ने उसे दे दिया।”—अय्यू. 38:1; 40:4; 42:6-10.
हम यहोवा से कितना प्यार करते हैं?
10. यहोवा ने शैतान को नज़रअंदाज़ या उसे खत्म क्यों नहीं किया?
10 यहोवा पूरे जहान का सिरजनहार और सारी सृष्टि का मालिक है। तो फिर उसने शैतान के लगाए इलज़ाम को नज़रअंदाज़ क्यों नहीं किया? परमेश्वर जानता था कि न तो शैतान को नज़रअंदाज़ करने और ना ही उसे खत्म करने से उस मसले का हल होगा जो शैतान ने उठाया था। शैतान ने दावा किया था कि भले ही अय्यूब यहोवा का वफादार सेवक है, लेकिन अगर उसे कंगाल कर दिया जाए तो वह वफादार नहीं रहेगा। पर अय्यूब परीक्षा के बावजूद परमेश्वर का वफादार बना रहा। इसके बाद शैतान ने एक और दावा किया। उसने कहा कि अगर किसी भी इंसान के शरीर को तकलीफ पहुँचायी जाए, तो वह परमेश्वर से मुँह मोड़ लेगा। अय्यूब को बहुत तकलीफ झेलनी पड़ी, लेकिन इससे भी उसकी खराई नहीं टूटी। इस तरह वफादार अय्यूब ने असिद्ध होने के बावजूद शैतान को झूठा साबित किया। परमेश्वर के दूसरे उपासकों के बारे में क्या?
11. यीशु ने शैतान के इलज़ामों का मुँहतोड़ जवाब कैसे दिया?
11 परमेश्वर का हर सेवक उस बेरहम दुश्मन शैतान के लगाए इलज़ामों को झूठा साबित कर सकता है। कैसे? शैतान की लायी सारी आज़माइशों के बावजूद अपनी खराई बनाए रखने के ज़रिए। यीशु ने धरती पर आकर शैतान के इलज़ामों का मुँहतोड़ जवाब दिया। यीशु हमारे पहले पिता, आदम की तरह एक सिद्ध इंसान था। उसने मरते दम तक परमेश्वर का वफादार रहकर साबित किया कि शैतान और उसके लगाए सारे इलज़ाम झूठे हैं।—प्रका. 12:10.
12. यहोवा के हरेक सेवक के पास क्या मौका और ज़िम्मेदारी है?
12 हालाँकि शैतान झूठा साबित हुआ है, लेकिन फिर भी वह यहोवा के उपासकों की परीक्षा लेता रहता है। हममें से हरेक के पास अपनी खराई बनाए रखने का मौका है और यह हमारी ज़िम्मेदारी भी है। ऐसा करने के ज़रिए हम दिखाते हैं कि हम यहोवा की सेवा स्वार्थ की वजह से नहीं, बल्कि इसलिए करते हैं क्योंकि हम उससे प्यार करते हैं। अपनी इस ज़िम्मेदारी को हम किस नज़र से देखते हैं? इसे हम बहुत बड़ा सम्मान समझते हैं। परीक्षाओं के वक्त धीरज धरने के लिए यहोवा हमें हिम्मत देता है, यह बात हमें बहुत दिलासा देती है। और हम जानते हैं कि अय्यूब की तरह वह हमारे ऊपर भी ऐसी परीक्षाएँ नहीं आने देता, जो हमारे सहने के बाहर हों।—1 कुरि. 10:13.
शैतान—कट्टर दुश्मन और एक धर्मत्यागी
13. अय्यूब की किताब शैतान के बारे में क्या जानकारी देती है?
13 शैतान कैसे यहोवा के खिलाफ काम कर रहा है, यह हमें मसीही यूनानी शास्त्र में पता चलता है। और प्रकाशितवाक्य की किताब में हम पढ़ते हैं कि बहुत जल्द यहोवा, शैतान को नाश करेगा और अपनी हुकूमत बुलंद करेगा। इब्रानी शास्त्र में भी बताया गया है कि यहोवा को चुनौती देकर और इंसानों को गुमराह करके शैतान ने कितना शर्मनाक काम किया है। शैतान ने बगावत का जो रास्ता अपनाया, उस बारे में हमें अय्यूब की किताब से काफी जानकारी मिलती है। जब शैतान स्वर्ग में होनेवाली सभाओं में हाज़िर हुआ, तो उसका मकसद यहोवा की स्तुति करना नहीं था। उसके मन में ज़हर घुला हुआ था और वह एक गलत मकसद से वहाँ आया था। बाइबल बताती है कि जब शैतान ने अय्यूब पर इलज़ाम लगाया और यहोवा ने उसे अय्यूब को परखने की इजाज़त दी, “तब शैतान यहोवा के साम्हने से चला गया।”—अय्यू. 1:12; 2:7.
14. शैतान ने किस भावना से अय्यूब की परीक्षा ली?
14 इस तरह अय्यूब की किताब साफ दिखाती है कि शैतान इंसानों का दुश्मन है और उसे इंसानों से कोई हमदर्दी नहीं। अय्यूब 1:6 और अय्यूब 2:1 में स्वर्ग में हुई जिन दो सभाओं का ज़िक्र किया गया है, उनके बीच कितना वक्त बीता यह हम ठीक-ठीक नहीं जानते। लेकिन इस दौरान अय्यूब पर बड़ी बेरहमी से परीक्षाएँ लायी गयीं। अय्यूब यहोवा का वफादार बना रहा इसलिए यहोवा, शैतान से कह पाया: “यद्यपि तू ने मुझे [अय्यूब को] बिना कारण सत्यानाश करने को उभारा, तौभी वह अब तक अपनी खराई पर बना है।” पर शैतान हार मानने को तैयार नहीं था। उसने यह माँग की कि अय्यूब की एक और कड़ी परीक्षा ली जाए। शैतान ने उस वक्त तो अय्यूब की परीक्षा ली ही, जब वह दौलतमंद था लेकिन जब वह कंगाल हो गया, तब भी उसे नहीं बख्शा। इससे साफ ज़ाहिर है कि शैतान के दिल में ज़रूरतमंदों या मुसीबत के मारों के लिए कोई दया नहीं है। वह खराई की राह पर चलनेवालों से सख्त नफरत करता है। (अय्यू. 2:3-5) मगर अय्यूब ने परमेश्वर का वफादार रहकर शैतान को झूठा साबित किया।
15. आज के धर्मत्यागी किस तरह शैतान के जैसे हैं?
15 शैतान वह पहला शख्स था, जो धर्मत्यागी बना। आज के धर्मत्यागियों में भी वही बुराइयाँ हैं, जो शैतान में हैं। वे बात-बात में मंडली के भाई-बहनों, मसीही प्राचीनों और शासी निकाय में दोष निकालते रहते हैं। कुछ धर्मत्यागी परमेश्वर के नाम यहोवा का इस्तेमाल करने का विरोध करते हैं। वे न तो यहोवा के बारे में जानना चाहते हैं और ना ही उसकी सेवा करना चाहते हैं। वे अपने पिता शैतान की तरह उन लोगों का विश्वास कमज़ोर करने की कोशिश करते हैं, जो खराई बनाए रखते हैं। (यूह. 8:44) यही वजह है कि यहोवा के सेवक धर्मत्यागियों से कोई वास्ता नहीं रखते।—2 यूह. 10, 11.
अय्यूब ने यहोवा का नाम रौशन किया
16. अय्यूब ने परमेश्वर के लिए कैसा रवैया दिखाया?
16 अय्यूब ने यहोवा का नाम इस्तेमाल किया और उसकी स्तुति की। यहाँ तक कि जब उसे अपने बच्चों की मौत का सदमा बरदाश्त करना पड़ा, तब भी उसने परमेश्वर की निंदा नहीं की। हालाँकि वह तब गलत था, जब उसने कहा कि उसका सबकुछ परमेश्वर ने छीना है, लेकिन फिर भी उसने यहोवा की स्तुति की। आगे जाकर उसने कहा: “देख, [यहोवा] का भय मानना यही बुद्धि है: और बुराई से दूर रहना यही समझ है।”—अय्यू. 28:28.
17. किस बात ने अय्यूब को अपनी खराई पर बने रहने में मदद दी?
17 किस बात ने अय्यूब को अपनी खराई पर बने रहने में मदद दी? अय्यूब ने विपत्ति आने से पहले ही यहोवा के साथ एक करीबी रिश्ता बना लिया था। हम यह पक्के तौर पर नहीं कह सकते कि अय्यूब को उस चुनौती के बारे में पता था या नहीं, जो शैतान ने यहोवा को दी थी। लेकिन हम इतना ज़रूर जानते हैं कि अय्यूब ने ठान लिया था कि वह यहोवा का वफादार बना रहेगा। उसने कहा: “जब तक मेरा प्राण न छूटे तब तक मैं अपनी खराई से न हटूंगा।” (अय्यू. 27:5) अय्यूब ने परमेश्वर के साथ इतना करीबी रिश्ता कैसे बनाया? वह ज़रूर उन बातों पर ध्यान से सोचता होगा, जो उसने परमेश्वर के बारे में सुनी थीं। उसने सुना होगा कि परमेश्वर ने उसके दूर के रिश्तेदारों, अब्राहम, इसहाक और याकूब के साथ कैसा व्यवहार किया था। इसके अलावा सृष्टि पर गौर करके भी वह यहोवा की कई खूबियों के बारे में जान सका होगा।—अय्यूब 12:7-9, 13, 16 पढ़िए।
18. (क) अय्यूब ने यहोवा के लिए अपनी भक्ति कैसे दिखायी? (ख) हम अय्यूब की बढ़िया मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
18 अय्यूब ने परमेश्वर के बारे में जो कुछ भी जाना, उससे उसके अंदर यहोवा को खुश करने की इच्छा पैदा हुई। इसलिए वह यह सोचकर नियमित तौर पर बलि चढ़ाता था कि अगर उसके घरवालों ने परमेश्वर को नाराज़ किया हो या “अपने मन में परमेश्वर की निन्दा की हो,” तो वह यहोवा से उनके लिए माफी माँग सके। (अय्यू. 1:5, NHT) यहाँ तक कि बड़ी-से-बड़ी परीक्षा आने पर भी उसने यहोवा के बारे में अच्छी बातें ही कहीं। (अय्यू. 10:12) हमारे लिए क्या ही बढ़िया मिसाल! हमें भी यहोवा और उसके उद्देश्यों के बारे में सही ज्ञान लेते रहना चाहिए। हमें बाइबल का अध्ययन करने, सभाओं में हाज़िर होने, प्रार्थना और प्रचार करने की अच्छी आदतें डालनी चाहिए। क्योंकि ये आदतें यहोवा के साथ हमारे रिश्ते को मज़बूत बनाती हैं। इसके अलावा, हमें यहोवा का नाम रौशन करने की हर मुमकिन कोशिश करनी चाहिए। जिस तरह अय्यूब की खराई ने यहोवा का दिल खुश किया, उसी तरह आज अपने सेवकों की खराई देखकर भी यहोवा फूला नहीं समाता। इस बारे में हम अगले लेख में और चर्चा करेंगे।
क्या आपको याद है?
• किस वजह से शैतान इब्लीस का ध्यान अय्यूब पर गया?
• अय्यूब को किन परीक्षाओं का सामना करना पड़ा? और उसने कैसा रवैया दिखाया?
• क्या बात हमें अय्यूब की तरह खराई बनाए रखने में मदद देगी?
• अय्यूब की किताब से हम शैतान के बारे में क्या सीखते हैं?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 4 पर तसवीर]
अय्यूब की कहानी से पता चलता है कि सारे जहान पर परमेश्वर की हुकूमत का मसला ही सबसे अहम मसला है
[पेज 6 पर तसवीर]
किन हालात में आपकी खराई की परीक्षा हो सकती है?