मिट्टी की तख्तियाँ जो बाइबल को सच साबित करती हैं
मिट्टी की तख्तियाँ जो बाइबल को सच साबित करती हैं
बाबुल में इंसानों की भाषा की गड़बड़ी के बाद लिखाई के कई अलग-अलग तरीके ईजाद हुए। मसोपोटामिया में रहनेवाले सूमेरी और बाबुली लोग, कीलाक्षर लिपि का इस्तेमाल करते थे। ये कीलाक्षर कैसे लिखे जाते थे? एक कलम, जिसके आगे का हिस्सा तिकोन होता था, उसका इस्तेमाल करके गीली मिट्टी से बनायी तख्तियों पर चिन्ह बनाए जाते थे।
आज पुरातत्वज्ञानियों को खुदाई करने पर ऐसे कीलाक्षर लेख मिले हैं, जिनमें बाइबल में बताए लोगों और घटनाओं का ज़िक्र मिलता है। आइए देखें कि पुराने ज़माने की इस लिखाई के बारे में आज हमारे पास क्या-क्या जानकारी है और ये हमें बाइबल के सच और भरोसेमंद होने का क्या सबूत देते हैं।
रिकॉर्ड, जो आज तक कायम है
विद्वानों का मानना है कि शुरू-शुरू में मसोपोटामिया के लोगों की लिपि चित्रकारी के रूप में होती थी, यानी किसी शब्द या विचार को ज़ाहिर करने के लिए वे उसकी तसवीर या उससे मिलती-जुलती कोई निशानी बनाते थे। मसलन, शुरू में बैल के लिए वे बैल के सिर जैसा दिखनेवाला कोई चित्र बनाते थे। जब लिखित रिकॉर्ड रखने की ज़रूरत बढ़ने लगी, तब कीलाक्षर लिपि का ईजाद हुआ। एनआईवी पुरातत्व की मदद से बाइबल का अध्ययन (अँग्रेज़ी) किताब समझाती है, “कीलाक्षर लिपि के ईजाद होने से अब चिन्हों के ज़रिए एक-एक अक्षर के बजाय, कई पदांश सूचित किए जाने लगे। इस तरह कई पदांशों को मिलाकर शब्द बनाए जाने लगे।” वक्त के गुज़रते, करीब 200 किस्म के अलग-अलग चिन्ह तैयार किए गए, जिससे “भाषा को लिखित रूप देने के लिए जटिल-से-जटिल शब्दों और व्याकरणवाली” कीलाक्षर लिपि तैयार हुई।
करीब सा.यु.पू. 2000 में, यानी इब्राहीम के ज़माने तक, कीलाक्षर लिपि में और भी निखार आया। फिर अगली 20 सदियों के दौरान, करीब 15 भाषाओं में कीलाक्षर लिपि का इस्तेमाल होने लगा। आज तक पुराने ज़माने के जितने भी कीलाक्षर लेख मिले हैं, उनमें से 99 फीसदी से ज़्यादा ऐसे लेख हैं जो मिट्टी की तख्तियों पर लिखे गए थे। पिछले 150 सालों के दौरान ऊर, यूरक, बाबुल, निमरूद, निप्पुर, अशूर, नीनवे, मारी, एबला, ऊगरीट और अमरना जैसी जगहों में, बड़ी तादाद में ऐसी तख्तियाँ पायी गयी हैं। आर्कियॉलजी ओडिसी पत्रिका कहती है: “विशेषज्ञों का कहना है कि उन्होंने अब तक करीब 10 से 20 लाख कीलाक्षर तख्तियाँ खोद निकाली हैं और उन्हें हर साल करीब 25,000 तख्तियाँ मिल रही हैं।”
दुनिया-भर में, कीलाक्षर लेखों का अध्ययन करनेवाले विद्वानों के लिए इन लेखों का अनुवाद करना बहुत बड़ा और मुश्किल काम है। अंदाज़ा लगाया गया है कि “आज जितने कीलाक्षर लेख मौजूद हैं, उनमें से अब तक सिर्फ 10 फीसदी ही पढ़े गए हैं, वह भी एक मर्तबा।”
पुरातत्वज्ञानियों को खुदाई से ऐसे कीलाक्षर लेख मिले हैं, जिनमें दो या तीन भाषाओं में एक ही बात लिखी गयी थी। इससे विद्वानों को कीलाक्षर का मतलब समझने में काफी मदद मिली। विद्वानों ने गौर किया है कि इन अलग-अलग भाषाओं के कीलाक्षर लेखों में एक ही बात दोहरायी गयी है। उन्होंने देखा कि लोगों के नाम, उपाधियाँ, शासकों की वंशावलियाँ, यहाँ तक कि खुद की तारीफ में लिखी बातें, अलग-अलग भाषाओं में दर्ज़ की गयी थीं। इससे विद्वानों को कीलाक्षर लेखों का मतलब समझने में आसानी हुई है।
सन् 1850 के बाद के सालों तक विद्वान, ऐसे कीलाक्षर लेखों को पढ़ने के काबिल हो गए, जो अक्कादी यानी अश्शूरी और बाबुली भाषाओं में लिखे गए थे। ये पुराने ज़माने के मध्य पूर्व देशों में बोली जानेवाली आम भाषाएँ थीं। इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका समझाती है: “एक बार जब विद्वानों ने अक्कादियों की भाषा की गुत्थी सुलझा दी, तो इससे कीलाक्षर लिपि को समझने का राज़ उनके हाथ लग गया और इस समझ के आधार पर उन्होंने दूसरी भाषाओं के कीलाक्षर लेखों का मतलब समझने का तरीका जान लिया।” आज ये कीलाक्षर लेख हमें बाइबल के बारे में क्या जानकारी देते हैं?
सबूत, जो बाइबल से मेल खाते हैं
बाइबल बताती है कि सा.यु.पू. 1070 के करीब दाऊद ने यहो. 10:1; 2 शमू. 5:4-9) मगर कुछ विद्वानों ने बाइबल की इस बात पर शक ज़ाहिर किया। लेकिन सन् 1887 में मिस्र के अमरना नाम के प्रांत में मिट्टी की एक तख्ती के मिलने से इस बारे में कुछ जानकारी हासिल हुई। यह तख्ती खेती-बाड़ी करनेवाली एक स्त्री को मिली थी। इसके बाद, उसी इलाके से 380 तख्तियाँ पायी गयीं। ये तख्तियाँ दरअसल मिस्र (आमनहोटेप III और आकनाटन) और कनानी शासकों के बीच राजनैतिक संबंधों पर पत्र-व्यवहार थे। इनमें से छः चिट्ठियों पर लिखा है कि ये ‘आब्दाइ-हेबा’ की हैं, जो यरूशलेम पर हुकूमत करता था। इससे बाइबल की यह बात पुख्ता होती है कि एक वक्त में यरूशलेम में कनानी राजा हुआ करते थे।
यरूशलेम पर कब्ज़ा करके उस पर अपना अधिकार जमाया, जबकि इससे पहले यहाँ कनानी राजाओं की हुकूमत हुआ करती थी। (बिब्लिकल आर्कियॉलजी रिव्यू पत्रिका कहती है: “अमरना में जो तख्तियाँ मिलीं, वे साफ बताती हैं कि यरूशलेम कोई छोटा-मोटा इलाका नहीं था, बल्कि काफी बड़ा कस्बा था और ‘आब्दाइ-हेबा’ . . . यहाँ का राज्यपाल था। उसका यरूशलेम में निवास था और उसने यहाँ 50 मिस्री सैनिक तैनात कर रखे थे। ये बातें दिखाती हैं कि यरूशलेम पहाड़ी पर बसा एक छोटा-सा राज्य था।” वही पत्रिका आगे कहती है कि “अमरना में मिली चिट्ठियों में दी जानकारी की बिना पर, हम पूरे यकीन के साथ कह सकते हैं कि यरूशलेम वजूद में था और अपने ज़माने के जाने-माने शहरों में से एक था।”
बाबुली और अश्शूरी लेखों में नाम
अश्शूर के लोग अपने देश का इतिहास मिट्टी की तख्तियों, सिलेंडरों, प्रिज़्मों, स्तंभों और बड़ी-बड़ी इमारतों पर लिखा करते थे। बाद में बाबुलियों ने भी ऐसा ही किया। आज जब विद्वानों ने जी-तोड़ मेहनत करके, अक्कादी भाषा यानी प्राचीन अश्शूरी और बाबुलियों की भाषा में लिखे इन कीलाक्षर लेखों को समझने की कोशिश की, तो उन्होंने पाया कि इनमें कुछ ऐसे लोगों के नाम दिए हैं जिनका ज़िक्र बाइबल में भी मिलता है।
बाइबल, ब्रिटिश अजायबघर में (अँग्रेज़ी) किताब कहती है: “जब ‘बाइबल पुरातत्व खोज संस्था’ बनायी गयी, तो इसके कुछ ही समय बाद, सन् 1870 में डॉ. सैमयल बर्च ने इस नयी संस्था के सदस्यों के सामने अपने भाषण में, इब्री और अश्शूरी राजाओं के [कीलाक्षर लेखों में लिखे नाम] पढ़कर सुनाए। इन इब्री राजाओं के नाम हैं, ओम्री, अहाब, येहू, अजर्याह . . . . मनहेम, पेकह, होशे, हिजकिय्याह और मनश्शे। और अश्शूरी राजाओं के नाम हैं, तिग्लत्पिलेसेर . . . [III], सर्गोन, सन्हेरीब, एसर्हद्दोन, अश्शूरबनीपाल, . . . और सीरिया के बेनहदद, हजाएल और रसीन।”
द बाइबल एण्ड रेडियोकार्बन डेटिंग किताब में, इस्राएल और यहूदा राज्य के बारे में बाइबल में दर्ज़ जानकारी की तुलना कीलाक्षर लेखों से की गयी। तुलना करने पर क्या नतीजा निकला? यही कि “दूसरे देशों के लेखों में, यहूदा और इस्राएल देश के कुल मिलाकर 15 या 16 राजाओं के बारे में लिखा है और यह जानकारी [बाइबल में 1 और 2] राजा की किताबों में दी जानकारी से एकदम मेल खाती है। इन राजाओं के नाम और वे किस दौरान जीए थे, इस बारे में बाइबल की किताबें और कीलाक्षर लेख बिलकुल एक-जैसी जानकारी देते हैं। इस्राएल और यहूदा के जितने भी राजाओं के नाम दूसरे देशों के लेखों में हैं, वे सभी बाइबल में पहले से हैं। एक भी नाम ऐसा नहीं, जिसका ज़िक्र 1 और 2 राजा की किताबों में न हो।”
सन् 1879 में कुस्रू सिलेंडर नाम का एक शिलालेख मिला, जो काफी मशहूर है। इसमें लिखा है कि सा.यु.पू. 539 में कुस्रू ने बाबुल पर कब्ज़ा करने के बाद अपनी इस नीति को लागू किया कि सभी गुलाम अपने-अपने वतन लौट सकते हैं। इससे यहूदी बंधुओं को भी फायदा हुआ। (एज्रा 1:1-4) कुस्रू के इस फरमान के बारे में बाइबल में भी लिखा है। मगर एक वक्त था, जब 19वीं सदी के कई विद्वान कहते थे कि बाइबल में दी गयी यह जानकारी सच नहीं है। लेकिन जब कुस्रू सिलेंडर, और साथ ही फारसी हुकूमत के दौर के दूसरे कीलाक्षर लेख मिले, तो यह बात पक्के तौर पर साबित हो गयी कि कुस्रू के फरमान के बारे में बाइबल में दर्ज़ रिकॉर्ड बिलकुल सही है।
सन् 1883 में बाबुल के पास निप्पुर नाम के इलाके में, गुज़रे ज़माने के 700 से ज़्यादा कीलाक्षर लेखों का ढेर मिला। इन लेखों में 2,500 नाम पाए जाते हैं, जिनमें से करीब 70 नाम यहूदियों के मालूम पड़ते हैं। इतिहासकार एडवन यामाऊची का कहना है कि ऐसा लगता है कि “ये आपस में करार करनेवाले दो पक्षों के लोगों, दलालों, गवाहों, कर वसूलनेवालों और शाही दरबार में काम करनेवाले अफसरों” के नाम हैं। इससे सबूत मिलता है कि उस दौर में भी, बाबुल के पासवाले इलाके में यहूदी रहते थे और अलग-अलग काम-धंधे किया करते थे। यह जानकारी काफी मायने रखती है क्योंकि इससे बाइबल में भविष्यवाणी के तौर पर बतायी गयी यह बात पुख्ता होती है कि अश्शूर और बाबुल की बंधुवाई से छूटने के बाद, सिर्फ कुछ “बचे” हुए इस्राएली यहूदा देश लौटे थे, मगर ज़्यादातर लोग बाबुल में ही बसे रहे।—यशा. 10:21, 22.
सामान्य युग पूर्व के शुरू के हज़ार साल के दौरान, कीलाक्षर लिपि और वर्णमाला लिपि, दोनों का चलन जारी रहा। मगर आगे चलकर अश्शूरी और बाबुली लोगों ने कीलाक्षर लिपि का इस्तेमाल बंद कर दिया और वर्णमाला लिपि को अपना लिया।
आज दुनिया के अजायबघरों में ऐसी हज़ारों कीलाक्षर तख्तियों का अंबार लगा हुआ है, जिनका अध्ययन करना बाकी है। अब तक विद्वान जितनी तख्तियों का मतलब बूझने में कामयाब हुए हैं, उनसे यह बात दमदार तरीके से साबित हुई है कि बाइबल में लिखा इतिहास सच है। अब देखना यह है कि जिन लेखों का अध्ययन बाकी है, उनकी जाँच-परख करने पर बाइबल के पक्ष में और भी कितने सबूत खुलकर सामने आते हैं।
[पेज 21 पर तसवीर]
Photograph taken by courtesy of the British Museum