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‘दुनिया की फितरत’ का डटकर मुकाबला कीजिए

‘दुनिया की फितरत’ का डटकर मुकाबला कीजिए

‘दुनिया की फितरत’ का डटकर मुकाबला कीजिए

‘हम ने दुनिया की फितरत नहीं, बल्कि वह पवित्र शक्‍ति पायी है, जो परमेश्‍वर की ओर से है।’—1 कुरि. 2:12, NW.

सन्‌ 1911 में ब्रिटेन सरकार ने कोयले की खदानों में काम करनेवालों की हिफाज़त के लिए एक कानून जारी किया। इसके तहत हर खदान में मज़दूरों को अपने साथ दो कनारी पक्षी रखने थे। मगर किस लिए? अगर खदान में आग लग जाती, तो बचाव-कर्मी इन पक्षियों को खदान में ले जाते थे। ये पक्षी, कार्बन मोनोक्साइड जैसी ज़हरीली गैसों का तुरंत पता लगा सकते थे। अगर हवा में यह ज़हरीली गैस होती थी, तो पक्षी छटपटाने लगते और बेहोश हो जाते थे। यह चेतावनी बहुत ज़रूरी होती थी, क्योंकि कार्बन मोनोक्साइड गैस रंगहीन और गंधहीन होती है। यह गैस इंसान की लाल रक्‍त कोशिकाओं को शरीर में ऑक्सीजन पहुँचाने से रोकती है, जिससे उसकी मौत हो सकती है। इस चेतावनी के बगैर, बचाव-कर्मी और मज़दूर उस ज़हरीली गैस से बेहोश होकर मर सकते थे।

2 मसीही भी खदान के मज़दूरों की तरह खतरे का सामना करते हैं। किस मायने में? जब यीशु ने अपने चेलों को दुनिया-भर में सुसमाचार का प्रचार करने का काम सौंपा, तो वह जानता था कि उन्हें यह काम ऐसे माहौल में करना था, जिस पर शैतान और दुनिया की फितरत या रवैए का ज़ोर चलता था। (मत्ती 10:16; 1 यूह. 5:19) यीशु को अपने चेलों की इतनी फिक्र थी कि उसने अपनी मौत से पहले की रात अपने पिता से कहा: “मैं यह बिनती नहीं करता, कि तू उन्हें जगत से उठा ले, परन्तु यह कि तू उन्हें उस दुष्ट से बचाए रख।”—यूह. 17:15.

3 यीशु ने अपने चेलों को खबरदार किया कि अगर वे सावधान न रहें, तो दुनिया का बुरा असर उन पर हावी हो सकता है, जिससे उनकी मौत हो सकती है। उसकी चेतावनी आज हमारे लिए खास मतलब रखती है, क्योंकि हम जगत के अंत के दौरान जी रहे हैं। उसने अपने चेलों को चिताया: “जागते रहो . . . कि तुम इन सब आनेवाली घटनाओं से बचने, और मनुष्य के पुत्र के साम्हने खड़े होने के योग्य बनो।” (लूका 21:34-36) खुशी की बात यह है कि यीशु ने यह भी वादा किया कि उसका पिता उसके चेलों को पवित्र शक्‍ति देगा, ताकि वे सीखी बातों को याद कर सकें, सतर्क रह सकें और साहसी बन सकें।—यूह. 14:26.

4 आज हमारे बारे में क्या? क्या हमें भी पवित्र शक्‍ति मिल सकती है? अगर हाँ, तो इसे पाने के लिए हमें क्या करना होगा? दुनिया की फितरत क्या है और यह कैसे काम करती है? और हम इस फितरत का कैसे डटकर मुकाबला कर सकते हैं?—1 कुरिन्थियों 2:12 पढ़िए। *

पवित्र शक्‍ति या दुनिया की फितरत?

5 ऐसी बात नहीं कि सिर्फ पहली सदी में ही मसीहियों को पवित्र शक्‍ति मिली थी। आज भी हमें पवित्र शक्‍ति मिल सकती है। इसकी बदौलत हमें सही काम करने की हिम्मत मिल सकती है, साथ ही यह हममें यहोवा की सेवा के लिए जोश भर सकती है। (रोमि. 12:11; फिलि. 4:13) पवित्र शक्‍ति हममें प्रेम, कृपा और भलाई जैसे गुण भी पैदा कर सकती है, जो ‘आत्मा [“पवित्र शक्‍ति,” NW] के फल’ हैं। (गल. 5:22, 23) लेकिन यहोवा अपनी पवित्र शक्‍ति उन लोगों पर ज़बरदस्ती नहीं थोपता, जो इसे कबूल करना ही नहीं चाहते।

6 इन बातों को ध्यान में रखते हुए, हमें खुद से यह सवाल पूछना चाहिए: ‘मैं परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति कैसे पा सकता हूँ?’ बाइबल बताती है कि हम कई तरीकों से पवित्र शक्‍ति पा सकते हैं। एक आसान और अहम तरीका है, परमेश्‍वर से पवित्र शक्‍ति माँगना। यीशु ने कहा था: “जब तुम बुरे होकर अपने लड़केबालों को अच्छी वस्तुएं देना जानते हो, तो स्वर्गीय पिता अपने मांगनेवालों को पवित्र शक्‍ति क्यों न देगा।” (लूका 11:13, NW) एक और तरीका है, पवित्र शक्‍ति की प्रेरणा से लिखे परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करना और उसमें दी सलाहों को मानना। (2 तीमु. 3:16) बेशक सिर्फ बाइबल पढ़ने से ही हर कोई परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति नहीं पा सकता। लेकिन अगर एक नेकदिल मसीही परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करे, तो वह उसमें दी भावनाओं और विचारों को समझ पाएगा। इसके अलावा, हमें यह कबूल करने की ज़रूरत है कि यहोवा ने यीशु को अपना नुमाइंदा ठहराया है और उसी के ज़रिए वह अपनी पवित्र शक्‍ति देता है। (कुलु. 2:6) इसलिए हमें चाहिए कि हम यीशु की मिसाल पर चलें और उसकी शिक्षाओं के मुताबिक जीएँ। (1 पत. 2:21) हम जितना ज़्यादा मसीह के जैसा बनने की कोशिश करेंगे, उतना ज़्यादा हमें पवित्र शक्‍ति मिलेगी।

7 इसके बिलकुल उलट, जिन पर दुनिया के रवैए का असर होता है, वे शैतान की शख्सियत ज़ाहिर करने लगते हैं। (इफिसियों 2:1-3 पढ़िए।) यह रवैया आज लोगों पर अलग-अलग तरीकों से असर करता है। यह उन्हें परमेश्‍वर के स्तरों के खिलाफ काम करने के लिए वरगलाता है। यह उनमें “शरीर की अभिलाषा, और आंखों की अभिलाषा और जीविका का घमण्ड” पैदा करता है। (1 यूह. 2:16) यह व्यभिचार, मूर्तिपूजा, टोना, ईर्ष्या, क्रोध और पियक्कड़पन जैसे शरीर के काम करने को उकसाता है। (गल. 5:19-21) यह धर्मत्यागियों की अशुद्ध बातों को भी बढ़ावा देता है। (2 तीमु. 2:14-18) ज़ाहिर है कि एक इंसान जितना ज़्यादा दुनिया के रवैए को अपने ऊपर हावी होने देता है, उतना ज़्यादा वह शैतान की शख्सियत ज़ाहिर करने लगता है।

8 हालाँकि इस रवैए से बचने के लिए हम दुनिया से अलग तो नहीं रह सकते, लेकिन एक काम ज़रूर कर सकते हैं। हम चुन सकते हैं कि क्या हम अपनी ज़िंदगी पर दुनिया की फितरत का असर होने देंगे या पवित्र शक्‍ति का? आज जो लोग दुनिया के रवैए की गिरफ्त में हैं, वे इससे आज़ाद हो सकते हैं और पवित्र शक्‍ति की दिखायी राह पर चल सकते हैं। लेकिन इसके उलट भी हो सकता है। जो लोग आज पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन पर चल रहे हैं, उन पर दुनिया की फितरत हावी हो सकती है। (फिलि. 3:18, 19) आइए देखें कि हम इस फितरत का कैसे डटकर मुकाबला कर सकते हैं।

खतरे की निशानियों को पहचानिए

9 इस लेख की शुरूआत में हमने देखा कि ज़हरीली गैस के खतरे को पहचानने के लिए खदान के मज़दूर कनारी पक्षी का इस्तेमाल करते थे। अगर पक्षी बेहोश होकर गिर जाता, तो वे समझ जाते थे कि ज़िंदा बचने के लिए उन्हें फौरन कदम उठाना है। यही बात हम मसीहियों के बारे में भी सच है। तो फिर ऐसी कुछ निशानियाँ क्या हैं, जो हमें आगाह करती हैं कि हम पर दुनिया के रवैए का असर हो रहा है?

10 जब हमने शुरू-शुरू में परमेश्‍वर के वचन में दी सच्चाइयाँ सीखीं और फिर यहोवा को अपना जीवन समर्पित किया, तो हम शायद बिना नागा बाइबल पढ़ते थे, सच्चे दिल से और अकसर यहोवा से प्रार्थना करते थे। इतना ही नहीं, हम खुशी-खुशी मसीही सभाओं में जाते थे। और बेशक, ये सभाएँ हमारे लिए रेगिस्तान में लहलहाते बगीचे की तरह तरो-ताज़ा करनेवाली थीं। इस तरह हम दुनिया के रवैए के शिकंजे से छूट पाए और हमें उससे दूर रहने में मदद मिली।

11 लेकिन अब सवाल है कि क्या हम आज भी हर दिन बाइबल पढ़ते हैं? (भज. 1:2) क्या हम सच्चे दिल से और अकसर यहोवा से प्रार्थना करते हैं? क्या हमें आज भी मसीही सभाओं से उतना ही लगाव है जितना पहले था? और क्या हम नियमित तौर पर सारी सभाओं में हाज़िर होते हैं? (भज. 84:10) या फिर क्या इनमें से कुछ अच्छी आदतें छूट गयी हैं? माना कि हमारा ज़्यादातर समय और ताकत हमारी ज़िम्मेदारियों को पूरा करने में निकल जाती है और इस वजह से शायद मसीही कामों का एक अच्छा शेड्‌यूल बनाए रखना मुश्‍किल हो। लेकिन हमारी अच्छी आदतें छूटने की असली वजह कहीं यह तो नहीं कि हम पर दुनिया का रवैया हावी हो रहा है? अगर ऐसी बात है, तो क्या हम दोबारा उन अच्छी आदतों को डालने की पूरी-पूरी कोशिश करेंगे?

‘सुस्त न हो जाओ’

12 दुनिया की फितरत का डटकर मुकाबला करने के लिए हमें और क्या करने की ज़रूरत है? जब यीशु ने अपने चेलों को ‘जागते रहने’ की सलाह दी, तो उससे पहले उसने उन्हें कुछ खतरों से खबरदार किया। वे खतरे क्या थे, इस बारे में यीशु ने कहा: “[“अपने विषय में,” नयी हिन्दी बाइबिल] सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन खुमार और मतवालेपन, और इस जीवन की चिन्ताओं से सुस्त हो जाएं, और वह दिन तुम पर फन्दे की नाईं अचानक आ पड़े।”—लूका 21:34, 35.

13 ज़रा यीशु की इस चेतावनी पर ध्यान दीजिए। क्या उसके कहने का मतलब था कि खाने-पीने का मज़ा लेना गलत है? जी नहीं। यीशु सुलैमान की इस बात से अच्छी तरफ वाकिफ था: “मैं ने जान लिया है कि मनुष्यों के लिये आनन्द करने और जीवन भर भलाई करने के सिवाय, और कुछ भी अच्छा नहीं; और यह भी परमेश्‍वर का दान है कि मनुष्य खाए-पीए और अपने सब परिश्रम में सुखी रहे।” (सभो. 3:12, 13) मगर यीशु यह भी जानता था कि दुनिया की फितरत है, बेरोकटोक खाओ-पीओ।

14 हम कैसे जान सकते हैं कि इस मामले में दुनिया की फितरत ने हमें कहीं अंधा तो नहीं कर दिया है? हम खुद से ये सवाल पूछ सकते हैं: ‘जब मैं पेटूपन के बारे में बाइबल या हमारे साहित्य में दी सलाह को पढ़ता हूँ, तो मैं कैसा रवैया दिखाता हूँ? क्या मैं उसे गैर-ज़रूरी या कठोर समझकर ठुकरा देता हूँ? या क्या मैं अपने खाने की आदत के बारे में सफाई पेश करता हूँ या बहाने बनाता हूँ? * अगर मैं शराब पीता हूँ, तो उसे सही मात्रा में लेने और “पियक्कड़पन” से कोसों दूर रहने की सलाह को किस नज़र से देखता हूँ? क्या मैं यह सोचकर इस सलाह को दरकिनार कर देता हूँ कि यह मुझ पर लागू नहीं होती? अगर शराब पीने की मेरी आदत पर दूसरे चिंता ज़ाहिर करते हैं, तो क्या मैं त्योरियाँ चढ़ा लेता हूँ? क्या मैं दूसरों से यह कहता हूँ कि इस मामले में बाइबल की सलाह मानना इतना ज़रूरी नहीं?’ जी हाँ, इन मामलों में एक इंसान जो रवैया दिखाता है, उससे पता चलता है कि उस पर दुनिया की फितरत हावी हो रही है या नहीं।—रोमियों 13:11-14 से तुलना कीजिए।

चिंताओं में डूबने से बचिए

15 दुनिया की फितरत का डटकर मुकाबला करने का एक और ज़रूरी कदम है, अपनी चिंताओं पर काबू पाना। यीशु जानता था कि असिद्ध इंसानों में छोटी-छोटी बातों को लेकर चिंता करने की आदत होती है। इसलिए उसने प्यार से अपने चेलों को खबरदार किया: “चिन्ता न करना।” (मत्ती 6:25) यह सच है कि कुछ मामलों में चिंता करना जायज़ है। जैसे, परमेश्‍वर को खुश करने, मसीही ज़िम्मेदारियाँ सँभालने और अपने परिवार की बुनियादी ज़रूरतें पूरी करने के मामलों में। (1 कुरि. 7:32-34) तो फिर, हम यीशु की दी इस चेतावनी से क्या सीख सकते हैं?

16 दुनिया की फितरत लोगों को अपनी दौलत और साज़ो-सामान का दिखावा करने पर ज़ोर देती है। इस वजह से कई लोग ऐसी चिंताएँ पाल लेते हैं जिससे उनकी सेहत या खुशी पर बन आती है। यह दुनिया हमें यकीन दिलाने पर आमादा है कि पैसे से ही हमें सच्ची सुरक्षा मिल सकती है। और यह भी कि एक इंसान की कीमत उसके मसीही गुणों से नहीं, बल्कि इस बात से आँकी जाती है कि उसके पास कितनी दौलत और साज़ो-सामान की चीज़ें हैं। जो लोग इस छलावे में आ जाते हैं, वे दौलत के गुलाम बन जाते हैं। और उन्हें हमेशा यही फिक्र खाए जाती है कि कैसे नयी-से-नयी और बड़ी-से-बड़ी चीज़ें हासिल करें। (नीति. 18:11) साज़ो-सामान के बारे में इस तरह का गलत नज़रिया रखने से एक मसीही गहरी चिंता में डूब सकता है और सच्चाई में ठंडा पड़ सकता है।—मत्ती 13:18, 22 पढ़िए।

17 हम गहरी चिंता में डूबने से बच सकते हैं, बशर्ते हम यीशु की यह आज्ञा मानें: “तुम पहले परमेश्‍वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहो।” यीशु हमसे वादा करता है कि अगर हम ऐसा करें, तो हमारी बुनियादी ज़रूरतें पूरी की जाएँगी। (मत्ती 6:33, NHT) हम कैसे दिखा सकते हैं कि हमें इस वादे पर भरोसा है? एक तरीका है, पैसों के मामले में परमेश्‍वर की धार्मिकता की खोज करना, यानी सही-गलत के बारे में उसके स्तरों पर चलना। मिसाल के लिए, हम आय की रिटर्न भरते वक्‍त गलत जानकारी नहीं देते, ना ही बिज़नेस में लेन-देन करते वक्‍त “छोटे-मोटे” झूठ बोलते हैं। अगर हम किसी से कर्ज़ लेते हैं, तब हम उसे चुकाने की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं ताकि हमारी “हां” का मतलब “हां” हो। (मत्ती 5:37; भज. 37:21) ऐसी ईमानदारी दिखाने से एक इंसान अमीर तो नहीं बनेगा, मगर परमेश्‍वर उससे ज़रूर खुश होगा, उसका ज़मीर उसे नहीं कचोटेगा और उसकी चिंताएँ भी काफी हद तक कम हो जाएँगी।

18 पहले राज्य की खोज करने में यह जानना शामिल है कि हमें अपनी ज़िंदगी में किस बात को पहली जगह देनी चाहिए। यीशु का उदाहरण लीजिए। कभी-कभी वह अच्छे किस्म का कपड़ा पहनता था। (यूह. 19:23) वह अपने करीबी दोस्तों के साथ अच्छा खाना और बढ़िया शराब का लुत्फ उठाता था। (मत्ती 11:18, 19) लेकिन अच्छे कपड़े पहनना और मौज-मस्ती करना उसकी ज़िंदगी का मकसद नहीं था। ये चीज़ें उसके लिए खाने में नमक जैसी थीं, पूरा-का-पूरा खाना नहीं। उसका भोजन तो यह था कि वह यहोवा की मरज़ी पूरी करे। (यूह. 4:34-36) यीशु के नक्शेकदम पर चलने से हमें ज़िंदगी में ढेरों आशीषें मिलती हैं। कैसी आशीषें? जब हम कुचले हुए लोगों को बाइबल से सांत्वना देते हैं, तो हमें खुशी मिलती है। हमें कलीसिया का प्यार और सहारा मिलता है। और-तो-और, हम यहोवा का दिल खुश करते हैं। जब हम अहम बातों को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देते हैं, तो हम साज़ो-सामान और मन-बहलाव की चीज़ों के गुलाम नहीं बनते। ये तो महज़ एक ज़रिया हैं, जिनसे हमें यहोवा की उपासना करने में मदद मिलती है। परमेश्‍वर के राज्य से जुड़े कामों में जोशीला होने से हम पर दुनिया की फितरत हावी नहीं होगी।

‘पवित्र शक्‍ति की बातों पर मन’ लगाइए

19 कहा जाता है, विचार कामों की जननी है। इसलिए जिन कामों को कई लोग कहते हैं कि अनजाने में किए गए हैं, अकसर वे दुनियावी सोच का अंजाम होते हैं। इस वजह से प्रेरित पौलुस याद दिलाता है कि हमें खबरदार रहना चाहिए कि हम क्या सोचते हैं। वह लिखता है: “शारीरिक व्यक्‍ति शरीर की बातों पर मन लगाते हैं; परन्तु आध्यात्मिक आत्मा [“पवित्र शक्‍ति,” NW] की बातों पर मन लगाते हैं।”—रोमि. 8:5.

20 दुनिया की फितरत का हमारी सोच और हमारे कामों पर असर न हो, इसके लिए हमें क्या करना चाहिए? हमें अपने दिलो-दिमाग की हिफाज़त करनी चाहिए और अपने मन में ऐसे विचार नहीं भरने चाहिए जिन्हें दुनिया बढ़ावा देती है। मिसाल के लिए, जब मनोरंजन की बात आती है, तो हम ऐसे कार्यक्रमों से अपने दिलो-दिमाग को मलिन नहीं होने देते हैं, जिनमें बढ़-चढ़कर अनैतिकता या हिंसा दिखायी जाती है। हम जानते हैं कि परमेश्‍वर की शुद्ध या पवित्र शक्‍ति किसी गंदे दिमाग पर काम नहीं करती। (भज. 11:5; 2 कुरि. 6:15-18) इसके अलावा, जब हम रोज़ बाइबल पढ़ते हैं, प्रार्थना और मनन करते हैं, साथ ही मसीही सभाओं में हाज़िर होते हैं, तो हम पवित्र शक्‍ति को अपने दिलो-दिमाग पर काम करने देते हैं। यही नहीं, जब हम प्रचार में लगातार हिस्सा लेते हैं, तो हम पवित्र शक्‍ति के साथ काम कर रहे होते हैं।

21 इसमें कोई शक नहीं कि हमें दुनिया की फितरत का और शरीर की जिन अभिलाषाओं को वह बढ़ावा देती है, उनका डटकर मुकाबला करना चाहिए। इसके लिए बहुत मेहनत लगती है। लेकिन हमारी मेहनत ज़रूर रंग लाएगी, क्योंकि जैसा पौलुस ने कहा: “शरीर पर मन लगाना तो मृत्यु है, परन्तु आत्मा [“पवित्र शक्‍ति की बातों,” NW] पर मन लगाना जीवन और शान्ति है।”—रोमि. 8:6.

[फुटनोट]

^ 1 कुरिन्थियों 2:12 (NW): ‘हम ने दुनिया की फितरत नहीं, बल्कि वह पवित्र शक्‍ति पायी है, जो परमेश्‍वर की ओर से है।’

^ एक पेटू इंसान वह होता है जो हर समय खाने का लालच करता है और ठूँस-ठूँसकर खाता है। यह समस्या दरअसल एक इंसान की सोच या उसके दिमाग से शुरू होती है। इसलिए एक इंसान पेटू है या नहीं, यह उसके वज़न से नहीं, बल्कि खाने के मामले में उसके रवैए से पता चलता है। शायद एक इंसान का वज़न सामान्य हो या वह दुबला-पतला भी हो, मगर फिर भी वह पेटू हो सकता है। दूसरी तरफ, कुछ लोगों में मोटापा किसी बीमारी की वजह से या खानदानी हो सकता है। तो फिर एक इंसान खाने के मामले में कितना लालची है, इससे तय होता है कि वह पेटू है या नहीं, न कि उसके वज़न से।—1 नवंबर, 2004 की प्रहरीदुर्ग में “पाठकों के प्रश्‍न” देखिए।

क्या आपको याद है?

• पवित्र शक्‍ति पाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

• दुनिया का रवैया किन तरीकों से हम पर असर कर सकता है?

• हम दुनिया की फितरत का डटकर मुकाबला कैसे कर सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

1, 2. (क) बीते ज़माने में ब्रिटेन की खदानों में कनारी पक्षी क्यों रखे जाते थे? (ख) मसीही किस खतरे का सामना करते हैं?

3, 4. यीशु ने अपने चेलों को क्या चेतावनी दी और यह हमारे लिए क्यों खास मतलब रखती है?

5, 6. (क) पवित्र शक्‍ति हमारे लिए क्या कर सकती है? (ख) इसे पाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

7. दुनिया का रवैया लोगों पर किन तरीकों से असर करता है?

8. हममें से हरेक जन क्या चुनाव कर सकता है?

9-11. ऐसी कुछ निशानियाँ क्या हैं, जो हमें आगाह करती हैं कि हम पर दुनिया के रवैए का असर हो रहा है?

12. यीशु ने अपने चेलों को किसके विषय में ‘सावधान रहने’ को कहा और क्यों?

13, 14. खाने-पीने के मामले में हम खुद से क्या सवाल पूछ सकते हैं?

15. यीशु ने हमें किस आदत से खबरदार रहने को कहा?

16. दुनिया की फितरत का कई लोगों पर क्या असर होता है?

17. हम गहरी चिंता में डूबने से कैसे बच सकते हैं?

18. (क) यीशु ने हमारे लिए क्या बढ़िया उदाहरण रखा? (ख) उसके नक्शेकदम पर चलने से हमें कैसी आशीषें मिलती हैं?

19-21. हम किस तरह ‘पवित्र शक्‍ति की बातों पर मन लगा’ सकते हैं और ऐसा करना क्यों ज़रूरी है?

[पेज 21 पर तसवीर]

स्कूल या काम पर जाने से पहले, पवित्र शक्‍ति के लिए प्रार्थना कीजिए

[पेज 23 पर तसवीरें]

हमें अपने दिलो-दिमाग को शुद्ध रखना चाहिए, बिज़नेस के लेन-देन में ईमानदार होना चाहिए और खाने-पीने में संयम बरतना चाहिए