अपनी शादीशुदा ज़िंदगी में खुशी पाइए
अपनी शादीशुदा ज़िंदगी में खुशी पाइए
“घर [“घराना,” NW] बुद्धि से बनता है, और समझ के द्वारा स्थिर होता है।”—नीति. 24:3.
1. परमेश्वर ने पहले मनुष्य के सिलसिले में अपनी बुद्धि कैसे ज़ाहिर की?
स्वर्ग में रहनेवाला हमारा बुद्धिमान पिता जानता है कि हमारी भलाई किस में है। मिसाल के लिए, वह जानता था कि उसके मकसद को पूरा होने के लिए अदन के बाग में पहले “मनुष्य का अकेला रहना अच्छा नहीं।” इसलिए उसने अपने मकसद का एक अहम पहलू यह ठहराया कि शादीशुदा जोड़े बच्चे पैदा करें और ‘पृथ्वी को भर’ दें।—उत्प. 1:28; 2:18, फुटनोट।
2. इंसानों की भलाई के लिए यहोवा ने क्या इंतज़ाम किया?
2 यहोवा ने कहा: “मैं उसके लिये एक ऐसा सहायक बनाऊंगा जो उस से मेल खाए।” यह कहने के बाद उसने आदम को भारी नींद में सुला दिया और उसके सिद्ध शरीर में से एक पसली निकाली। तब उसने उस पसली से एक स्त्री बनायी। इसके बाद जब यहोवा उस सिद्ध स्त्री, हव्वा को आदम के पास लाया, तब आदम ने कहा: “अब यह मेरी हड्डियों में की हड्डी और मेरे मांस में का मांस है: सो इसका नाम नारी होगा, क्योंकि यह नर में से निकाली गई है।” हव्वा वाकई आदम से मेल खाती थी, यानी वह आदम की साथी बनकर उसका हाथ बँटाने के लिए बिलकुल सही थी। हालाँकि इन दोनों की शख्सियत अलग-अलग थी, मगर फिर भी वे सिद्ध थे और परमेश्वर के स्वरूप में बनाए गए थे। इस तरह, परमेश्वर ने दुनिया की सबसे पहली शादी रचायी। यह परमेश्वर के ज़रिए किया गया एक ऐसा इंतज़ाम था, जिसके तहत आदम और हव्वा को एक-दूसरे का साथ देना था। और इस इंतज़ाम को कबूल करने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई।—उत्प. 1:27; 2:21-23.
3. आज लोग शादी के वरदान को किस नज़र से देखते हैं, और इससे क्या सवाल उठते हैं?
3 दुःख की बात है कि आज, जहाँ देखो वहाँ बगावत करने का रवैया साफ नज़र आता है। इस रवैए की वजह से जो समस्याएँ उठती हैं, उनके लिए परमेश्वर ज़िम्मेदार नहीं। और यही रवैया लोग, परमेश्वर से मिले शादी के वरदान के सिलसिले में भी अपनाते हैं। वे शादी को दकियानूसी मानते हैं और कहते हैं कि शादी बरबादी है और सारी फसाद की जड़। इसी के चलते, तलाक आम हो गया है। माँ-बाप बच्चों से प्यार नहीं करते और जब उनके बीच झगड़ा होता है, तो वे अपने मतलब के लिए बच्चों को मोहरा बनाकर इस्तेमाल करते हैं। कई माता-पिता परिवार की शांति और एकता बनाए रखने की खातिर भी एक-दूसरे के साथ समझौता करने के लिए तैयार नहीं होते। (2 तीमु. 3:3, NW) तो फिर ऐसे मुश्किल दौर में पति-पत्नी अपनी शादीशुदा ज़िंदगी में खुशी कैसे बरकरार रख सकते हैं? एक-दूसरे को सहयोग देने और यहोवा की हिदायतों को पूरी तरह मानने से उनकी शादी कैसे टूटने से बच सकती है? हमारे ज़माने के जिन जोड़ों ने अपनी शादीशुदा ज़िंदगी में खुशी बरकरार रखी है, उनकी मिसालों से हम क्या सीख सकते हैं?
यहोवा की हिदायतों को पूरी तरह मानना
4. (क) पौलुस ने शादी के मामले में क्या हिदायत दी? (ख) आज्ञाकारी मसीही किस तरह पौलुस की हिदायत को मानते हैं?
4 मसीही प्रेरित पौलुस ने इश्वर-प्रेरणा से विधवाओं को यह हिदायत दी कि अगर वे दोबारा शादी करने का चुनाव करें, तो उन्हें ऐसा “केवल प्रभु में” करना चाहिए। (1 कुरि. 7:39) जो मसीही पहले यहूदी धर्म को मानते थे, उनके लिए यह हिदायत कोई नयी बात नहीं थी। क्योंकि यहोवा ने इस्राएलियों को जो व्यवस्था दी थी, उसमें साफ-साफ बताया गया था कि उन्हें आस-पास की विधर्मी जातियों में से किसी से ‘ब्याह शादी नहीं करनी’ थी। इतना ही नहीं, यहोवा ने यह भी समझाया था कि इस स्तर को तोड़ने का क्या खतरा है: “क्योंकि [गैर-इस्राएली स्त्रियाँ] तेरे बेटे को मेरे पीछे चलने से बहकाएंगी, और दूसरे देवताओं की उपासना करवाएंगी; और इस कारण यहोवा का कोप तुम पर भड़क उठेगा, और वह तुझ को शीघ्र सत्यानाश कर डालेगा।” (व्यव. 7:3, 4) जीवन-साथी चुनने के मामले में यहोवा आज अपने सेवकों से क्या उम्मीद करता है? यही कि उन्हें ऐसे शख्स को अपना जीवन-साथी चुनना चाहिए जो “प्रभु में” है, यानी जो समर्पित और बपतिस्मा-शुदा है। यहोवा की इस हिदायत को पूरी तरह मानना अक्लमंदी है।
5. यहोवा और शादीशुदा मसीही, शादी की शपथ को किस नज़र से देखते हैं?
5 शादी के समय ली गयी शपथ परमेश्वर की नज़र में पवित्र है। सबसे पहली शादी के बारे में खुद परमेश्वर के बेटे यीशु ने कहा: “जिसे परमेश्वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे।” (मत्ती 19:6) हम जो शपथ लेते हैं, उसे पूरा करना बेहद ज़रूरी है। इस बात की गंभीरता को याद दिलाते हुए भजनहार ने कहा: “परमेश्वर को धन्यवाद ही का बलिदान चढ़ा, और परमप्रधान के लिये अपनी मन्नतें पूरी कर।” (भज. 50:14) हालाँकि नए शादीशुदा जोड़ों के आगे बेशुमार खुशियाँ धरी होती हैं, मगर शादी के वक्त उन्होंने जो शपथ ली थी, उसकी गंभीरता और उसके साथ आनेवाली ज़िम्मेदारियों को उन्हें कभी नहीं भूलना चाहिए।—व्यव. 23:21.
6. यिप्तह की मिसाल से हम क्या सबक सीख सकते हैं?
6 यिप्तह की मिसाल पर ध्यान दीजिए। वह सा.यु.पू. 12वीं सदी में इस्राएल का एक न्यायी था। एक बार उसने यहोवा के सामने यह शपथ खायी: “यदि तू निःसन्देह अम्मोनियों को मेरे हाथ में कर दे, तो जब मैं कुशल के साथ अम्मोनियों के पास से लौट आऊं तब जो कोई मेरे भेंट के लिये मेरे घर के द्वार से निकले वह यहोवा का ठहरेगा, और मैं उसे होमबलि करके चढ़ाऊंगा।” जब यिप्तह युद्ध जीतकर मिस्पा में अपने घर लौटा, तो उससे मिलने के लिए सबसे पहले उसकी इकलौती बेटी बाहर आयी। यह देखकर क्या यिप्तह ने अपनी शपथ तोड़ दी? जी नहीं। उसने कहा: “मैं ने यहोवा को वचन दिया है, और उसे टाल नहीं सकता।” (न्यायि. 11:30, 31, 35) यिप्तह जानता था कि अगर वह अपना वादा पूरा करेगा, तो उसके वंश को आगे बढ़ानेवाला कोई न होगा। इसके बावजूद, उसने यहोवा से किया अपना वादा निभाया। माना कि यिप्तह का वादा, शादी की शपथ से अलग था, मगर अपना वादा पूरा करके उसने जो बढ़िया मिसाल कायम की, उससे मसीही पति-पत्नी सबक सीख सकते हैं।
शादीशुदा ज़िंदगी की कामयाबी का राज़ क्या है?
7. नए शादीशुदा जोड़ों को अपनी ज़िंदगी में क्या फेरबदल करने की ज़रूरत पड़ती है?
7 कई शादीशुदा जोड़े उन हसीन लम्हों को याद करके फूले नहीं समाते, जो उन्होंने शादी से पहले की मुलाकातों में बिताए थे। अपने होनेवाले हमसफर को जानना उनके लिए क्या ही अनोखा एहसास था! उन्होंने एक-दूसरे के साथ जितना ज़्यादा वक्त बिताया, उतना ही वे करीब आते गए। मगर एक जोड़े की शादी चाहे इस तरह की मुलाकातों के बाद हुई हो या उनकी शादी घरवालों ने तय की हो, एक बात पक्की है, शादी के बंधन में बँधने के बाद उन्हें अपनी ज़िंदगी में कुछ फेरबदल करने की ज़रूरत पड़ती है। एक पति कबूल करता है: “जब हमारी नयी-नयी शादी हुई, तब हमारे सामने एक बड़ी समस्या आयी। वह यह कि हम भूल जाते थे कि अब हम कुँवारे नहीं रहे। कुछ समय तक तो हमें अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मेलजोल रखने के मामले में फेरबदल करना मुश्किल लग रहा था।” एक और पति को लीजिए, जिसकी शादी को 30 साल बीत चुके हैं। शुरू-शुरू में उसे एहसास हुआ कि अपनी शादीशुदा ज़िंदगी में तालमेल बनाए रखने के लिए “उसे सिर्फ अपने बारे में ही नहीं, बल्कि अपनी पत्नी के बारे में भी सोचना था।” कोई भी न्यौता कबूल करने या किसी को ज़बान देने से पहले, वह अपनी पत्नी से सलाह-मशविरा करता था और फिर दोनों की पसंद-नापसंद को ध्यान में रखते हुए फैसला करता था। ऐसे हालात में जब पति-पत्नी एक-दूसरे को लिहाज़ दिखाते हैं, तो उन्हें काफी फायदा होता है।—नीति. 13:10.
8, 9. (क)पति-पत्नी के लिए खुलकर बातचीत करना क्यों ज़रूरी है? (ख) किन मामलों में फेरबदल करना मददगार साबित हो सकता है, और क्यों?
8 कभी-कभी शादी ऐसे दो लोगों का मिलन होती है जो अलग-अलग संस्कृति के होते हैं। खासकर ऐसे पति-पत्नियों के लिए आपस में खुलकर बातचीत करना बेहद ज़रूरी है। हरेक का बातचीत करने का तरीका अलग-अलग होता है। इसलिए अगर आप गौर करें कि आपका साथी रिश्तेदारों से कैसे बातचीत करता है, तो आप उसे और भी अच्छी तरह जान पाएँगे। कभी-कभी ऐसा होता है कि एक शख्स जो कहता है उससे नहीं, मगर वह जिस अंदाज़ से कहता है उससे उसकी सोच पता चलती है। और कई बार तो उसकी खामोशी भी काफी कुछ कह जाती है। (नीति. 16:24; कुलु. 4:6) ऐसे में, खुशी बनाए रखने के लिए पति-पत्नी को समझ से काम लेने की ज़रूरत है।—नीतिवचन 24:3 पढ़िए।
9 कई जोड़ों ने पाया है कि शौक और मन-बहलाव के मामले में भी कुछ फेरबदल करना ज़रूरी है। शादी से पहले आपका साथी खेल-कूद या दूसरे मनोरंजन में शायद ज़्यादा वक्त बिताया करता था। मगर अब शादी के बाद क्या यह सही नहीं होगा कि वह ऐसे मनोरंजन में कम समय बिताए? (1 तीमु. 4:8) यही सिद्धांत, रिश्तेदारों के साथ वक्त बिताने के मामले में भी लागू होता है। लाज़िमी है कि पति-पत्नी को साथ मिलकर आध्यात्मिक या दूसरे काम करने के लिए वक्त की ज़रूरत है।—मत्ती 6:33.
10. माता-पिता और शादीशुदा बच्चे एक-दूसरे के लिए लिहाज़ कैसे दिखा सकते हैं, ताकि उनका आपसी रिश्ता अच्छा बना रहे?
10 जब एक पुरुष शादी करता है, तो वह एक तरह से अपने माता-पिता को छोड़ देता है। यही बात स्त्री के बारे में भी कही जा सकती है। (उत्पत्ति 2:24 पढ़िए।) मगर अपने माता-पिता का आदर करने की परमेश्वर की आज्ञा, शादी के बाद भी लागू होती है। इसलिए ज़ाहिर सी बात है कि शादी के बाद भी, पति-पत्नी अपने माता-पिता या अपने ससुरालवालों के साथ वक्त बिताएँगे। एक पति, जिसकी शादी को 25 साल हो चुके हैं, कहता है: “कभी-कभी अपनी पत्नी की ख्वाहिशें और ज़रूरतें पूरी करने के साथ-साथ अपने माता-पिता, भाई-बहनों और ससुरालवालों की ख्वाहिशें और ज़रूरतें पूरी करना बहुत ही मुश्किल होता है। ऐसे हालात से निपटने के लिए मुझे उत्पत्ति 2:24 में दर्ज़ सिद्धांत से काफी मदद मिली है। यह सच है कि अपने परिवारवालों या ससुरालवालों को वफादारी दिखाना और उनसे जुड़ी अपनी ज़िम्मेदारियाँ पूरी करना ज़रूरी है। मगर इस आयत से मुझे पता चला कि अपनी पत्नी को वफादारी दिखाना उससे कहीं ज़्यादा ज़रूरी है।” उसी तरह, मसीही माता-पिता अपने शादीशुदा बच्चों को लिहाज़ दिखाते हैं और कबूल करते हैं कि उनका भी अब अपना एक परिवार है और उस परिवार का मार्गदर्शन करने की खास ज़िम्मेदारी पति की है।
11, 12. शादीशुदा जोड़ों के लिए पारिवारिक अध्ययन और प्रार्थना करना क्यों ज़रूरी है?
11 शादीशुदा ज़िंदगी को खुशहाल बनाने के लिए पारिवारिक अध्ययन का एक अच्छा शेड्यूल होना बेहद ज़रूरी है। कई मसीही परिवारों का अनुभव इस बात को पुख्ता करता है। पारिवारिक अध्ययन का शेड्यूल बनाना और उसे कायम रखना आसान नहीं। परिवार का एक मुखिया कबूल करता है: “अगर हमें अपने अतीत में कुछ फेरबदल करने का मौका मिलता, तो सबसे पहले हम अपनी शादीशुदा ज़िंदगी की शुरूआत से पारिवारिक अध्ययन का एक अच्छा शेड्यूल बनाते और उस पर कायम रहते।” वह आगे कहता है: “जब मैं और मेरी पत्नी मिलकर बाइबल का अध्ययन करते हैं और उसे कोई सच्चाई बड़ी दिलचस्प लगती है, तो वह खुशी से झूम उठती है। उसकी यह खुशी देखना मेरे लिए किसी नायाब तोहफे से कम नहीं।”
12 पारिवारिक अध्ययन के अलावा, पति-पत्नी को साथ मिलकर प्रार्थना भी करनी चाहिए। (रोमि. 12:12) जब पति-पत्नी एक होकर यहोवा की उपासना करते हैं, तो वे यहोवा के और भी करीब आते हैं। (याकू. 4:8) और इससे उनकी शादी का बंधन भी मज़बूत होता है। एक मसीही पति कहता है: “जब हममें से कोई गलती करता है और दूसरे को ठेस पहुँचाता है, तो चाहे वह गलती कितनी ही छोटी क्यों न हो, हम फौरन माफी माँगते हैं। और साथ मिलकर प्रार्थना करते वक्त उन गलतियों का ज़िक्र करते हैं। ऐसा करके हम दिखाते हैं कि हमें अपने किए पर सचमुच पछतावा है।”—इफि. 6:18.
एक-दूसरे को लिहाज़ दिखाइए
13. पति-पत्नी के बीच लैंगिक संबंध के मामले में पौलुस ने क्या सलाह दी?
13 शादीशुदा मसीहियों को चाहिए कि वे ऐसे गिरे हुए कामों से दूर रहें, जो सेक्स के पीछे पागल दुनिया में काफी आम हैं। क्योंकि ऐसे कामों से उनके रिश्ते की पवित्रता पर दाग लग सकता है। इस विषय पर बात करते वक्त, पौलुस ने सलाह दी: “पति अपनी पत्नी का हक्क पूरा करे; और वैसे ही पत्नी भी अपने पति का। पत्नी को अपनी देह पर अधिकार नहीं पर उसके पति का अधिकार है; वैसे ही पति को भी अपनी देह पर अधिकार नहीं, परन्तु पत्नी को।” यह कहने के बाद पौलुस ने यह साफ हिदायत दी: “तुम एक दूसरे से अलग न रहो; परन्तु केवल कुछ समय तक आपस की सम्मति से।” क्यों? वह इसलिए ताकि “प्रार्थना के लिये अवकाश मिले, और फिर एक साथ रहो, ऐसा न हो, कि तुम्हारे असंयम के कारण शैतान तुम्हें परखे।” (1 कुरि. 7:3-5) प्रार्थना का ज़िक्र करके पौलुस ने दिखाया कि एक मसीही को अपनी ज़िंदगी में उपासना को पहली जगह देनी चाहिए। मगर साथ ही, उसने यह भी साफ बताया कि हरेक शादीशुदा मसीही को अपने जीवन-साथी की शारीरिक और मानसिक ज़रूरतों का खयाल रखना चाहिए।
14. पति-पत्नी के बीच रखे जानेवाले संबंध के मामले में बाइबल के कौन-से सिद्धांत लागू होते हैं?
14 पति-पत्नी को आपस में संबंध रखने के मामले में खुलकर बातचीत करनी चाहिए। यही नहीं, उन्हें याद रखना चाहिए कि इस पहलू में कोमलता न दिखाने से कई समस्याएँ खड़ी हो सकती हैं। (फिलिप्पियों 2:3, 4 पढ़िए; मत्ती 7:12 से तुलना कीजिए।) यह बात ऐसे कुछ परिवारों में देखी गयी है, जिनमें पति-पत्नी में से कोई एक सच्चाई में नहीं है। जब ऐसे जोड़ों के बीच कोई तकरार हो जाती है, तो जो मसीही है, वह अपने अच्छे व्यवहार से, कृपा दिखाकर और सहयोग देकर हालात को सुधार सकता है। (1 पतरस 3:1, 2 पढ़िए।) यहोवा और अपने जीवन-साथी के लिए प्यार, साथ ही लिहाज़ दिखाने की भावना, एक मसीही को अपनी शादीशुदा ज़िंदगी के इस पहलू में मदद देगी।
15. एक खुशहाल शादीशुदा ज़िंदगी में आदर दिखाना क्यों ज़रूरी है?
15 एक प्यार करनेवाला पति शादीशुदा ज़िंदगी के दूसरे पहलुओं में भी अपनी पत्नी का आदर करेगा। मिसाल के लिए, वह छोटी-मोटी बातों में भी अपनी पत्नी की भावनाओं के लिए लिहाज़ दिखाएगा। एक पति जिसकी शादी को 47 साल हो चुके हैं, कबूल करता है: “इस मामले में मैं अभी-भी सीख रहा हूँ।” दूसरी तरफ, मसीही पत्नियों को सलाह दी गयी है कि वे अपने-अपने पति का गहरा आदर करें। (इफि. 5:33, आर.ओ.वी.) लेकिन अगर एक पत्नी अपने पति की हमेशा बुराई करे और दूसरों के सामने उसकी खामियाँ निकाले, तो वह अपने पति का आदर नहीं कर रही होगी। नीतिवचन 14:1 कहता है: “हर बुद्धिमान स्त्री अपने घर को बनाती है, पर मूढ़ स्त्री उसको अपने ही हाथों से ढा देती है।”
शैतान को मौका मत दीजिए
16. शादीशुदा जोड़े अपनी ज़िंदगी में इफिसियों 4:26, 27 में दी बात कैसे लागू कर सकते हैं?
16 “क्रोध तो करो, पर पाप मत करो: सूर्य अस्त होने तक तुम्हारा क्रोध न रहे। और न शैतान को अवसर दो।” (इफि. 4:26, 27) अगर हम इन शब्दों पर अमल करें, तो इससे हम शादीशुदा ज़िंदगी में होनेवाले झगड़ों को सुलझा पाएँगे, या फिर उन्हें होने ही न देंगे। एक बहन कहती है: “आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ कि मेरे और मेरे पति के बीच बहस हुई हो और हमने इस बारे में बात न की हो। फिर चाहे मामले को सुलझाने के लिए हमें कई घंटे क्यों न बिताने पड़े हों।” अपनी शादीशुदा ज़िंदगी की शुरूआत में इस बहन और उसके पति ने ठान लिया था कि वे दिन के खत्म होने तक एक भी समस्या को बिना सुलझाए नहीं रहने देंगे। उस बहन ने बताया, “हमने तय कर लिया था कि हमारे बीच समस्या चाहे जो भी हो, हम एक-दूसरे की गलती को माफ करके उसे भूल जाएँगे और अगला दिन नए ढंग से शुरू करेंगे।” इस तरह उन्होंने ‘शैतान को अवसर नहीं दिया।’
17. अगर पति-पत्नी एक-दूसरे से मेल नहीं खाते, तो क्या बात उनकी मदद कर सकती है?
17 लेकिन तब क्या, अगर आपने एक ऐसे शख्स से शादी की है जो आपसे मेल नहीं खाता? ऐसे में आप शायद पाएँ कि उसके साथ आपका रिश्ता उतना मधुर नहीं है, जितना कि दूसरे जोड़ों का है। लेकिन शादी के बंधन के बारे में सिरजनहार जो नज़रिया रखता है, अगर आप उसे याद रखें तो इससे आपको काफी मदद मिलेगी। पौलुस ने ईश्वर-प्रेरणा से मसीहियों को यह सलाह दी: “विवाह सब में आदर की बात समझी जाए, और बिछौना निष्कलंक रहे; क्योंकि परमेश्वर व्यभिचारियों, और परस्त्रीगामियों का न्याय करेगा।” (इब्रा. 13:4) और इन शब्दों को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता: “जो डोरी तीन तागे से बटी हो वह जल्दी नहीं टूटती।” (सभो. 4:12) अगर पति-पत्नी में यहोवा के नाम को पवित्र करने की दिली ख्वाहिश हो, तो उनका आपसी रिश्ता और उनका परमेश्वर के साथ रिश्ता भी मज़बूत होगा। उन्हें चाहिए कि वे अपनी शादीशुदा ज़िंदगी को कामयाब बनाने के लिए जी-तोड़ मेहनत करें। क्योंकि ऐसा करने से शादी के बंधन की शुरूआत करनेवाले परमेश्वर यहोवा की महिमा होगी।—1 पत. 3:11.
18. शादीशुदा ज़िंदगी के बारे में आप क्या यकीन रख सकते हैं?
18 मसीहियों के लिए अपनी शादीशुदा ज़िंदगी में खुशी पाना वाकई मुमकिन है। मगर इसके लिए उन्हें कड़ी मेहनत करने और मसीही गुण दिखाने की ज़रूरत है। इन गुणों में से एक है, एक-दूसरे के लिए लिहाज़ दिखाना। आज, दुनिया-भर के यहोवा के साक्षियों की कलीसियाओं में ऐसे बेशुमार जोड़े हैं, जिन्होंने साबित कर दिखाया है कि शादीशुदा ज़िंदगी में खुशी पाना मुमकिन है।
आप क्या जवाब देंगे?
• शादीशुदा ज़िंदगी में खुशी पाना नामुमकिन क्यों नहीं?
• शादीशुदा ज़िंदगी को कामयाब बनाने में कौन-सी बातें मदद कर सकती हैं?
• शादीशुदा जोड़ों को अपने अंदर किन गुणों को बढ़ाने की ज़रूरत है?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 9 पर तसवीर]
कोई भी न्यौता कबूल करने या किसी को ज़बान देने से पहले, शादीशुदा जोड़े समझ से काम लेते हुए एक-दूसरे के साथ सलाह-मशविरा करते हैं
[पेज 10 पर तसवीर]
झगड़ों को उसी दिन सुलझाने की कोशिश कीजिए और इस तरह ‘शैतान को अवसर मत दीजिए’