उस परमेश्वर से प्यार कीजिए, जो आपसे प्यार करता है
उस परमेश्वर से प्यार कीजिए, जो आपसे प्यार करता है
“तू परमेश्वर [यहोवा] अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख।”—मत्ती 22:37.
1, 2. कौन-सी आज्ञा सबसे बड़ी है, यह सवाल कैसे खड़ा हुआ?
यीशु के दिनों में, फरीसियों के बीच एक सवाल को लेकर गरमा-गरम बहस छिड़ी हुई थी। वह सवाल था: मूसा की कानून-व्यवस्था के 600 से भी ज़्यादा नियमों में, कौन-सा नियम सबसे बड़ा है? कुछ फरीसियों का दावा था कि बलिदान चढ़ाने का नियम सबसे बड़ा है, क्योंकि उन्हीं से पापों की माफी मिलती है और परमेश्वर का धन्यवाद किया जाता है। जबकि दूसरे फरीसियों का मानना था कि खतना का नियम सबसे अहम है। क्योंकि खतना उस वाचा की निशानी था जो यहोवा ने इब्राहीम के साथ बाँधी थी।—उत्पत्ति 17:9-13.
2 इसके अलावा, पुराने खयालात के कुछ फरीसियों का यह कहना था कि परमेश्वर के दिए सब नियम ज़रूरी हैं। इसलिए चाहे कुछ नियम मामूली क्यों न लगें, उन्हें दूसरों से कम आँकना गलत है। ऐसे में, फरीसियों ने यह सवाल यीशु के सामने रखने का फैसला किया। उन्होंने शायद सोचा होगा कि वह कुछ ऐसा जवाब देगा जिससे लोगों का भरोसा उस पर से उठ जाएगा। उन फरीसियों में से एक ने यीशु के पास आकर पूछा: “व्यवस्था में कौन सी आज्ञा बड़ी है?”—मत्ती 22:34-36.
3. सबसे बड़ी आज्ञा कौन-सी है, इसका यीशु ने क्या जवाब दिया?
3 यीशु ने उस सवाल का जो जवाब दिया, वह आज हमारे लिए बहुत मायने रखता है। उसने चंद शब्दों में एक ऐसा पहलू बताया, जो हमेशा से सच्ची उपासना का एक अहम हिस्सा रहा है और हमेशा रहेगा। यीशु ने व्यवस्थाविवरण 6:5 का हवाला देते हुए कहा: “तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है।” हालाँकि उस फरीसी ने सिर्फ एक आज्ञा के बारे में पूछा था, मगर यीशु ने उसे एक और आज्ञा के बारे में बताया। उसने लैव्यव्यवस्था 19:18 का हवाला देते हुए कहा: “उसी के समान यह दूसरी भी है, कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।” और इससे पहले कि वह फरीसी दूसरे ज़रूरी नियमों की सूची माँगता, यीशु ने अपनी बात खत्म करते हुए कहा: “ये ही दो आज्ञाएं सारी व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं का आधार है।” (मत्ती 22:37-40) इस तरह, यीशु ने ज़ाहिर किया कि ये दो आज्ञाएँ, पवित्र उपासना की बुनियाद हैं। इस लेख में हम पहली और सबसे बड़ी आज्ञा के बारे में चर्चा करेंगे। हमें परमेश्वर से क्यों प्रेम करना चाहिए? हम यह प्रेम कैसे दिखा सकते हैं? हम अपने अंदर यह प्रेम कैसे बढ़ा सकते हैं? इन सारे सवालों के जवाब पाना हमारे लिए निहायत ज़रूरी है। क्योंकि तभी हम यहोवा से अपने सारे मन, प्राण और बुद्धि से प्रेम कर पाएँगे। और इस तरह हम उसे खुश कर पाएँगे।
प्रेम ज़रूरी क्यों है
4, 5. (क) यीशु के जवाब से फरीसी क्यों हैरान नहीं हुआ? (ख) परमेश्वर, होमबलियों और भेंटों से बढ़कर किस बात को सबसे अनमोल समझता है?
4 जिस फरीसी ने यीशु से सवाल किया था, वह यीशु के जवाब से न तो हैरान हुआ और ना ही निराश। क्यों? क्योंकि वह अच्छी तरह जानता था कि परमेश्वर से प्यार करना, सच्ची उपासना का सबसे अहम पहलू है, इसके बावजूद कि कई लोग यह प्यार दिखाने से चूक रहे थे। उन दिनों आराधनालयों में, ‘शेमा’ (विश्वास का ऐलान) नाम की प्रार्थना को ज़ोर-ज़ोर से बोलने का दस्तूर था, जो लोगों को मुँहज़बानी याद थी। इस प्रार्थना में व्यवस्थाविवरण 6:4-9 का भाग भी शामिल था, जिसकी एक आयत का यीशु ने हवाला दिया था। यह वाकया मरकुस की किताब में भी दर्ज़ है, जिसमें फरीसी ने यीशु से आगे कहा: “हे गुरु, बहुत ठीक! तू ने सच कहा, कि वह एक ही है, और उसे छोड़ और कोई नहीं। और उस से सारे मन और सारी बुद्धि और सारे प्राण और सारी शक्ति के साथ प्रेम रखना और पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना, सारे होमों और बलिदानों से बढ़कर है।”—मरकुस 12:32, 33.
5 यह सच है कि कानून-व्यवस्था में होमबलि और भेंट चढ़ाने की माँग की गयी थी। लेकिन परमेश्वर के लिए जो बात सबसे ज़्यादा मायने रखती थी, वह थी कि उसके सेवक सच्चे दिल से उससे प्यार करें। इसलिए परमेश्वर की नज़र में, प्यार और भक्ति से चढ़ायी गयी छोटी-सी गौरैया का, उन हज़ारों मेढ़ों से ज़्यादा मोल था, जो गलत इरादे से चढ़ाए जाते थे। (मीका 6:6-8) उस कंगाल विधवा को याद कीजिए जिसे यीशु ने यरूशलेम के मंदिर में देखा था। उस विधवा ने मंदिर के भंडार में जो दो दमड़ियाँ डाली थीं, उनसे एक गौरैया भी नहीं खरीदी जा सकती थी। मगर यहोवा की नज़र में उसका दान, धनवानों के बड़े-बड़े दान से कहीं ज़्यादा अनमोल था। क्योंकि वह यहोवा से बहुत प्यार करती थी और इसी प्यार ने उसे दान देने के लिए उभारा था, जबकि धनवानों ने तो बस अपनी बढ़ती में से डाला था। (मरकुस 12:41-44) वाकई, यहोवा उस चीज़ को सबसे अनमोल समझता है, जो हम सब अपने अलग-अलग हालात में भी उसे दे सकते हैं। वह है, हमारा प्यार। क्या यह जानकर हमारा हौसला नहीं बढ़ता?
6. पौलुस ने प्यार की अहमियत पर ज़ोर देते हुए क्या लिखा?
6 सच्ची उपासना में प्यार का होना कितना ज़रूरी है, इस बात पर ज़ोर देते हुए प्रेरित पौलुस ने लिखा: “यदि मैं मनुष्यों और स्वर्गदूतों की बोलियां बोलूं, और प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झांझ हूं। और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूं, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूं, और मुझे यहां तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ों को हटा दूं, परन्तु प्रेम न रखूं, तो मैं कुछ भी नहीं। और यदि मैं अपनी सम्पूर्ण संपत्ति कंगालों को खिला दूं, या अपनी देह जलाने के लिये दे दूं, और प्रेम न रखूं, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं।” (1 कुरिन्थियों 13:1-3) इन आयतों से साफ पता चलता है, अगर हम चाहते हैं कि परमेश्वर हमारी उपासना को कबूल करे, तो हमारे दिल में उसके लिए प्यार होना ज़रूरी है। लेकिन हम यहोवा के लिए अपना प्यार कैसे दिखा सकते हैं?
हम यहोवा के लिए अपना प्यार कैसे दिखा सकते हैं?
7, 8. हम यहोवा के लिए अपना प्यार कैसे दिखा सकते हैं?
7 कइयों का मानना है कि प्यार एक ऐसी भावना है जिस पर किसी का काबू नहीं होता। इसलिए लोग अकसर कहते हैं कि उन्हें किसी से प्यार हो गया है। लेकिन सच्चा प्यार सिर्फ एक भावना नहीं जिसे शब्दों में बयान कर देना काफी है। इसकी खासियत है कि यह कामों से ज़ाहिर होता है। बाइबल कहती है कि प्यार “सब से उत्तम मार्ग” है और हमें इसका ‘पीछा करना’ (NHT) चाहिए। (1 कुरिन्थियों 12:31; 14:1) मसीहियों को बढ़ावा दिया गया है कि वे सिर्फ “वचन और जीभ ही से नहीं, पर काम और सत्य के द्वारा भी प्रेम करें।”—1 यूहन्ना 3:18.
8 परमेश्वर के लिए प्यार, हमें ऐसे काम करने के लिए उकसाता है जिससे वह खुश होता है। साथ ही, यह हमें अपनी बातों और कामों से परमेश्वर की हुकूमत को बुलंद करने के लिए उभारता है। इस प्यार की खातिर हम संसार और उसके बुरे तौर-तरीकों से लगाव पैदा करने से दूर रहते हैं। (1 यूहन्ना 2:15, 16) जो लोग परमेश्वर से प्यार करते हैं, वे बुराई से घृणा करते हैं। (भजन 97:10) यही नहीं, अगर हममें परमेश्वर के लिए प्यार है, तो हम अपने पड़ोसी से भी प्यार करेंगे। इस विषय पर चर्चा अगले लेख में की गयी है। इसके अलावा, परमेश्वर से प्यार करने के लिए ज़रूरी है कि हम उसकी आज्ञाओं पर चलें। बाइबल कहती है: “परमेश्वर का प्रेम यह है, कि हम उस की आज्ञाओं को मानें।”—1 यूहन्ना 5:3.
9. यीशु ने परमेश्वर के लिए अपना प्यार कैसे दिखाया?
9 यीशु ने बहुत ही बेहतरीन तरीके से दिखाया कि परमेश्वर से प्यार करने का क्या मतलब है। वह अपने पिता से इतना प्यार करता था कि उसकी इच्छा पूरी करने के लिए, उसने स्वर्ग छोड़ दिया और इंसान बनकर इस धरती पर जीया। उसने अपने कामों और शिक्षाओं से अपने पिता की महिमा की। यहाँ तक कि वह ‘मृत्यु तक आज्ञाकारी रहा।’ (फिलिप्पियों 2:8) इस तरह आज्ञाकारी रहकर, यीशु ने सभी वफादार जनों के लिए परमेश्वर के सामने धर्मी ठहरना मुमकिन कराया। पौलुस ने लिखा: “जैसा एक मनुष्य [आदम] के आज्ञा न मानने से बहुत लोग पापी ठहरे, वैसे ही एक मनुष्य [मसीह यीशु] के आज्ञा मानने से बहुत लोग धर्मी ठहरेंगे।”—रोमियों 5:19.
10. परमेश्वर से प्यार करने के लिए, उसकी आज्ञा मानना क्यों ज़रूरी है?
10 यीशु की तरह, हम भी परमेश्वर की आज्ञा मानकर उसके लिए अपना प्यार दिखाते हैं। यीशु के चहेते प्रेरित, यूहन्ना ने लिखा: “प्रेम यह है, कि हम उस की आज्ञाओं के अनुसार चलें।” (2 यूहन्ना 6) जो लोग सच्चे दिल से यहोवा से प्यार करते हैं, वे मार्गदर्शन के लिए उस पर आस लगाते हैं। वे अच्छी तरह जानते हैं कि वे अपना रास्ता खुद नहीं चुन सकते। इसलिए वे परमेश्वर की बुद्धि पर भरोसा रखते हैं और उसकी दिखायी राह पर चलते हैं। (यिर्मयाह 10:23) वे प्राचीन शहर, बिरीया के भले लोगों की तरह होते हैं, जिन्होंने “बड़ी लालसा” से परमेश्वर के संदेश को कबूल किया था और जिनमें परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने की दिली तमन्ना थी। (प्रेरितों 17:11) यहोवा से सच्चे दिल से प्यार करनेवाले बड़े ध्यान से बाइबल की जाँच करते हैं, ताकि वे अच्छी तरह समझ सकें कि परमेश्वर उनसे क्या चाहता है। इस तरह उन्हें परमेश्वर की आज्ञा मानते रहने में मदद मिली है और ऐसा करके वे अपना प्यार दिखा पाए हैं।
11. परमेश्वर से अपने सारे मन, प्राण, बुद्धि और शक्ति से प्यार करने का क्या मतलब है?
11 जैसे यीशु ने कहा था कि हमें परमेश्वर से अपने सारे मन, प्राण, बुद्धि और शक्ति से प्यार करना चाहिए। (मरकुस 12:30) उसने मन या दिल का ज़िक्र इसलिए किया, क्योंकि दिल ही में प्यार पनपता है। हमारी भावनाएँ, ख्वाहिशें और गहराई में छिपे विचार भी यहीं से उभरते हैं। इतना ही नहीं, यहोवा को खुश करने की चाहत भी हमारे दिल से निकलती है। हम बुद्धि से भी अपने परमेश्वर से प्यार करते हैं। यह दिखाता है कि हम आँख मूँदकर परमेश्वर की भक्ति नहीं करते बल्कि हमने यहोवा, उसके गुणों, स्तरों और मकसदों के बारे में सीखा है। हम अपने प्राण से भी उससे प्यार करते हैं, यानी ज़िंदगी-भर तन-मन से उसकी सेवा और महिमा करते हैं। और-तो-और, इसमें हम अपनी पूरी शक्ति भी लगा देते हैं।
हमें यहोवा से प्यार क्यों करना चाहिए
12. परमेश्वर क्यों चाहता है कि हम उससे प्यार करें?
12 इसकी एक वजह यह है कि यहोवा चाहता है कि हम उसके जैसे गुण दिखाएँ। परमेश्वर, प्रेम का स्त्रोत और उसका साक्षात् रूप है। प्रेरित यूहन्ना ने ईश्वर-प्रेरणा से लिखा: “परमेश्वर प्रेम है।” (1 यूहन्ना 4:8) इंसान को परमेश्वर के स्वरूप में सिरजा गया था। यह दिखाता है कि हमें एक-दूसरे से प्यार करने के लिए बनाया गया है। दरअसल, यहोवा प्यार की बिना पर ही हुकूमत करता है। वह चाहता है कि उसकी प्रजा उससे प्यार करे, अपनी मरज़ी से उसकी धर्मी हुकूमत के अधीन रहे और इस वजह से उसकी सेवा करे। सचमुच, प्यार से ही पूरे जहान में शांति और एकता कायम हो सकती है।
13. (क) इस्राएलियों से यह क्यों कहा गया था कि ‘वे परमेश्वर अपने प्रभु से प्रेम रखें’? (ख) यहोवा का हमसे यह उम्मीद करना क्यों जायज़ है कि हम उससे प्यार करें?
13 यहोवा से प्यार करने की एक और वजह यह है कि हम उसके सभी उपकारों के लिए एहसानमंद हैं। याद कीजिए कि यीशु ने यहूदियों से कहा था: ‘तू परमेश्वर अपने प्रभु से प्रेम रख।’ यहूदियों को एक ऐसे परमेश्वर से प्यार करने के लिए नहीं कहा गया था, जिससे वे अनजान थे और जो उनसे दूर था। इसके बजाय, उन्हें एक ऐसे परमेश्वर से प्यार करना था जिसने उनके लिए अपना प्यार दिखाया था। जी हाँ, यहोवा उनका परमेश्वर था। उसी ने उन्हें मिस्र से निकालकर, वादा किए गए देश में बसाया था। वही उनका पालनहार और रक्षक था। इसके अलावा, उसे उनसे गहरा लगाव था और वह उन्हें प्यार से अनुशासन भी देता था। और आज, वही यहोवा हमारा परमेश्वर है। उसने हमारे लिए अपने बेटे को छुड़ौती के तौर पर दे दिया ताकि हम हमेशा की ज़िंदगी पा सकें। तो फिर, यहोवा का हमसे यह उम्मीद करना बिलकुल जायज़ है कि हम उससे प्यार करें! हम सभी इंसान प्यार के बदले प्यार दे सकते हैं। इसलिए हमें उस परमेश्वर से प्यार करने के लिए कहा गया है जो हमसे प्यार करता है। बाइबल भी यही बताती है कि यहोवा ने “पहिले . . . हम से प्रेम किया” है।—1 यूहन्ना 4:19.
14. यहोवा का प्यार किस तरह, एक माँ-बाप के प्यार जैसा है?
14 यहोवा इंसानों से वैसा ही प्यार करता है, जैसे एक माँ-बाप अपने बच्चों से करते हैं। असिद्ध होने के बावजूद, वे अपने बच्चों की देखभाल करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। उनके लिए सालों-साल मेहनत करते हैं, भारी खर्च उठाते हैं और ऐसी कई कुरबानियाँ देते हैं। इसके अलावा, वे अपने बच्चों को नसीहत देते हैं, उनका हौसला बढ़ाते हैं, उनकी मदद करते हैं और उन्हें अनुशासन भी देते हैं। यह सब वे इसलिए करते हैं क्योंकि वे अपने बच्चों को खुश और फलते-फूलते हुए देखना चाहते हैं। बदले में माँ-बाप अपने बच्चों से क्या उम्मीद करते हैं? यही कि बच्चे उनसे प्यार करें, उनकी सिखायी बातों को दिल से मानें और बड़े होकर कामयाब इंसान बनें। उसी तरह, स्वर्ग में रहनेवाले हमारे सिद्ध पिता ने हमारे लिए बहुत कुछ किया है। तो क्या उसका हमसे यह उम्मीद करना सही नहीं कि हम उससे प्यार करें और उसका एहसान मानें?
परमेश्वर के लिए प्यार बढ़ाना
15. परमेश्वर से प्यार करने के लिए हमें कौन-सा पहला कदम उठाना चाहिए?
15 बेशक, हमने न तो कभी परमेश्वर को देखा है, ना ही उसकी आवाज़ सुनी है। (यूहन्ना 1:18) मगर वह हमें उसके साथ प्यार-भरा रिश्ता कायम करने का न्यौता देता है। (याकूब 4:8) हम यह रिश्ता कैसे कायम कर सकते हैं? किसी से प्यार करने से पहले उसे जानना ज़रूरी होता है, क्योंकि जाने बगैर उससे गहरा लगाव रखना नामुमकिन है। उसी तरह, यहोवा से प्यार करने के लिए हमें सबसे पहले उसे जानना होगा। उसने हमें अपना वचन, बाइबल दिया है ताकि इसके ज़रिए हम उसके बारे में सीख सकें। यही वजह है कि यहोवा अपने संगठन के ज़रिए हमें हर दिन बाइबल पढ़ने का बढ़ावा देता है। बाइबल ही वह किताब है जो हमें परमेश्वर, उसके गुणों और उसकी पूरी शख्सियत के बारे में सिखाती है। साथ ही, यह बताती है कि हज़ारों सालों के दरमियान वह लोगों के साथ कैसे पेश आया। जब हम इन किस्सों को पढ़कर मनन करते हैं, तो इससे हमारी समझ बढ़ती है और यहोवा के लिए हमारा प्यार और भी गहरा होता है।—रोमियों 15:4.
16. यीशु की सेवा पर मनन करने से, परमेश्वर के लिए हमारा प्यार कैसे गहरा होता है?
16 यहोवा के लिए अपना प्यार बढ़ाने का सबसे अहम तरीका है, यीशु की ज़िंदगी और उसकी सेवा पर मनन करना। यीशु की शख्सियत बिलकुल उसके पिता की तरह थी। इसलिए वह कह सका: “जिस ने मुझे देखा है उस ने पिता को देखा है।” (यूहन्ना 14:9) इन मिसालों को लीजिए: यीशु ने विधवा के एकलौते बेटे को दोबारा ज़िंदा करके जो करुणा दिखायी थी, क्या यह गुण आपके दिल को नहीं छू जाता? (लूका 7:11-15) यीशु, परमेश्वर का बेटा था और उसके जैसा महापुरुष आज तक इस धरती पर पैदा नहीं हुआ, मगर उसने जिस नम्रता के साथ अपने चेलों के पैर धोए, क्या यह गुण आपको उसकी तरफ नहीं खींचता? (यूहन्ना 13:3-5) सब इंसानों से कहीं बढ़कर महान और बुद्धिमान होने के बावजूद, वह लोगों से इस तरह पेश आता था कि बड़े-बूढ़े, यहाँ तक कि बच्चे भी बेझिझक उसके पास चले आते थे। क्या यह बात आपको यीशु को और भी अच्छी तरह जानने के लिए नहीं उकसाती? (मरकुस 10:13, 14) जब हम इन बातों पर मनन करते हैं, तो हम उन मसीहियों के जैसे बन जाते हैं जिनके बारे में पतरस ने लिखा था: “[यीशु] से तुम बिन देखे प्रेम रखते हो।” (1 पतरस 1:8) जैसे-जैसे यीशु के लिए हमारा प्यार बढ़ता है, वैसे-वैसे यहोवा के लिए भी हमारा प्यार गहरा होते जाता है।
17, 18. यहोवा के किन प्यार-भरे इंतज़ामों पर मनन करने से हम उससे और भी ज़्यादा प्यार करने लगते हैं?
17 हम एक और तरीके से परमेश्वर के लिए अपना प्यार बढ़ा सकते हैं। वह है, परमेश्वर ने प्यार से जो बेहिसाब इंतज़ाम किए हैं, उन पर गहराई से सोचना। ये सारे इंतज़ाम उसने इसलिए किए कि हम ज़िंदगी का लुत्फ उठा सकें। जैसे, कुदरत के दिलकश नज़ारे, तरह-तरह का लज़ीज़ खाना और अच्छे दोस्तों के साथ बिताए मीठे पल। इसके अलावा, यहोवा ने और भी कई इंतज़ाम किए हैं जिनसे हमें खुशी और संतुष्टि मिलती है। (प्रेरितों 14:17) हम अपने परमेश्वर के बारे में जितना ज़्यादा सीखते हैं, उतना ज़्यादा हम उसकी अपार भलाई और उदारता की कदर करने लगते हैं। ज़रा अपनी ज़िंदगी के बारे में सोचिए कि यहोवा के आप पर कितने उपकार हैं। क्या आपको नहीं लगता कि वह आपका प्यार पाने का हकदार है?
18 परमेश्वर ने हमें बहुत-से तोहफे दिए हैं, जिनमें से एक है प्रार्थना। हम किसी भी वक्त उससे बात कर सकते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि ‘प्रार्थना का सुननेवाला’ हमारी ज़रूर सुनेगा। (भजन 65:2) गौर कीजिए कि यहोवा ने अपने प्यारे बेटे को हुकूमत और न्याय करने का अधिकार दिया है। लेकिन प्रार्थना सुनने का अधिकार उसने किसी को नहीं दिया है, अपने बेटे को भी नहीं। वह खुद हमारी प्रार्थनाओं को सुनता है। इस तरह वह ज़ाहिर करता है कि उसे हमसे कितना प्यार है और वह हरेक की कितनी परवाह करता है। यही बात हमें उसके करीब लाती है।
19. यहोवा के कौन-से वादे हमें उसके करीब लाते हैं?
19 इसके अलावा, जब हम इस बात पर ध्यान देते हैं कि यहोवा ने इंसानों के लिए क्या ही उज्ज्वल भविष्य तय किया है, तो इससे हम उसके और भी करीब आते हैं। उसका वादा है कि वह सभी बीमारियों, दुःख और मौत को हमेशा के लिए मिटा देगा। (प्रकाशितवाक्य 21:3, 4) इंसानों को सिद्ध किया जाएगा, जिसके बाद किसी को भी हताशा, मायूसी या आफत का शिकार नहीं होना पड़ेगा। भूख, गरीबी और युद्ध का नामो-निशान तक नहीं रहेगा। (भजन 46:9; 72:16) धरती एक फिरदौस बन जाएगी। (लूका 23:43, किताब-ए-मुकद्दस) यहोवा हमें ये सारी आशीषें इसलिए नहीं देगा कि ऐसा करना उसका फर्ज़ है, बल्कि इसलिए कि वह हमसे प्यार करता है।
20. मूसा ने यहोवा से प्यार करने के क्या फायदे बताए?
20 ये सारी बातें दिखाती हैं कि हमारे पास परमेश्वर से प्यार करने और उस प्यार को बढ़ाते रहने की कई ज़बरदस्त वजह मौजूद हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या आप परमेश्वर के लिए अपने प्यार को मज़बूत करते जाएँगे और उसकी दिखायी राह पर चलेंगे? फैसला आपके हाथ में है। सदियों पहले, मूसा यह बात अच्छी तरह जानता था कि यहोवा के लिए प्यार पैदा करने और उसे बनाए रखने के ढेरों फायदे हैं। इसलिए उसने इस्राएलियों से कहा था: “तू जीवन ही को अपना ले, कि तू और तेरा वंश दोनों जीवित रहें; इसलिये अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम करो, और उसकी बात मानो, और उस से लिपटे रहो; क्योंकि तेरा जीवन और दीर्घजीवन यही है।”—व्यवस्थाविवरण 30:19, 20. (w06 12/01)
क्या आपको याद है?
• यहोवा से प्यार करना हमारे लिए क्यों ज़रूरी है?
• हम परमेश्वर के लिए अपना प्यार कैसे दिखा सकते हैं?
• यहोवा से प्यार करने की हमारे पास क्या वजह हैं?
• हम परमेश्वर के लिए अपना प्यार कैसे बढ़ा सकते हैं?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 21 पर तसवीर]
यहोवा उस चीज़ को सबसे अनमोल समझता है जो हम सब उसे दे सकते हैं। वह है, हमारा प्यार
[पेज 23 पर तसवीरें]
“जिस ने मुझे देखा है उस ने पिता को देखा है।”—यूहन्ना 14:9