अंधेर से भरी दुनिया
अंधेर से भरी दुनिया
क्या आप मानते हैं कि आज दुनिया में चारों तरफ अंधेर-ही-अंधेर है? आखिर, यह अंधेर नहीं तो क्या है कि हम चाहे कितने ही काबिल हों और कितना ही सोच-समझकर अपनी ज़िंदगी के मंसूबे बाँधें, फिर भी कोई गारंटी नहीं कि हम दौलत या कामयाबी हासिल कर लेंगे या कम-से-कम अपना पेट भर सकेंगे। दुनिया में अकसर वही होता है जो प्राचीन समय के बुद्धिमान राजा सुलैमान ने कहा था: “न बुद्धिमान लोग रोटी पाते [हैं] न समझवाले धन, और न प्रवीणों पर अनुग्रह होता है।” ऐसा क्यों? सुलैमान आगे वजह बताता है: “वे सब समय और संयोग के वश में” हैं।—सभोपदेशक 9:11.
‘जब बुरा समय अचानक आ पड़ता है’
“समय और संयोग” का मतलब है, गलत वक्त पर गलत जगह होना। इस वजह से हमारे साथ ऐसा हादसा हो सकता है, जिससे हमारी वह सारी उम्मीदें, सारी योजनाएँ धरी-की-धरी रह जाती हैं जो हमने बहुत सोच-समझकर बनायी थीं। सुलैमान के मुताबिक, हम इंसानों पर जब ‘बुरा समय अचानक आ पड़ता है,’ तो हम ‘जाल में फंसी मछलियों और फंदे में फंसे पक्षियों’ की तरह बिलकुल बेबस हो जाते हैं। (सभोपदेशक 9:12, NHT) इसकी एक मिसाल ऐसे करोड़ों लोग हैं जो अपने बाल-बच्चों का पेट भरने के लिए खून-पसीना एक करके खेतों में मज़दूरी करते हैं। लेकिन कई बार होता यह है कि बारिश की एक बूँद भी नहीं पड़ती और उनकी सारी फसल बरबाद हो जाती है। ऐसे में वे अचानक “बुरे समय” के जाल में जकड़ जाते हैं।
यह सच है कि जब दुनिया में किसी देश के लोग “बुरे समय” के शिकार होते हैं, तो उनकी मदद करने के लिए दूसरे देश आगे आते हैं। मगर जितनी मदद दी जाती है, वह भी अंधेर ही लगता है। मसलन, जब पूरे अफ्रीका में अकाल पड़ा, तो इससे निपटने के लिए हाल के एक साल में पैसा दान करने का वादा किया गया। लेकिन एक जानी-मानी राहत एजेन्सी ने कहा कि “पूरे [अफ्रीकी] महाद्वीप को जितनी रकम राहत के लिए दी गयी, उससे पाँच गुना ज़्यादा पैसा खाड़ी युद्ध पर खर्च किया गया था।” ज़रा सोचिए, क्या यह अंधेर नहीं कि दुनिया के अमीर देशों ने एक पूरे महाद्वीप में अकाल से पीड़ित लोगों को राहत पहुँचाने के लिए जितना दान दिया, उससे पाँच गुना ज़्यादा पैसा लड़ाई पर लुटा दिया, और वह भी एक देश में चल रही लड़ाई पर? और यह कहाँ का न्याय है कि एक तरफ बहुत-से लोग पैसों से खेल रहे हैं, जबकि दूसरी तरफ दुनिया की 25 प्रतिशत आबादी गरीबी और तंगी की मार झेल रही है, और हर साल लाखों बच्चे ऐसी बीमारियों से मर रहे हैं जिनका इलाज तो है, मगर उनके परिवार के पास इलाज के लिए पैसे नहीं हैं? यह अंधेर नहीं तो और क्या है!
इससे साफ पता चलता है कि “बुरे समय” के लिए सिर्फ “समय और संयोग” को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। दुनिया में ऐसी कई ज़बरदस्त ताकतें भी काम करती हैं जिनके आगे हमारा
कोई ज़ोर नहीं चलता। इसके बजाय, इनका हमारी ज़िंदगी पर गहरा असर होता है और इन्हीं से तय होता है कि आगे हमारे साथ क्या होगा। इस बात की सच्चाई हमें सन् 2004 के पतझड़ में, यूरोप के अलान्या देश के बेसलान शहर में हुए एक हादसे से देखने को मिलती है। एक दिन वहाँ आतंकवादियों और सुरक्षा बलों के बीच ऐसी घमासान लड़ाई हुई कि सैकड़ों लोग मारे गए। इनमें कई छोटे-छोटे बच्चे भी थे जिनका स्कूल में वह पहला दिन था। माना कि इस वारदात में कौन मारे गए और कौन बच गए, यह सब इत्तफाक की बात है, मगर इस “बुरे समय” की असली वजह लोगों के बीच हुई लड़ाई थी।क्या ऐसा हमेशा होता रहेगा?
अंधेर के बारे में कुछ लोग कहते हैं: “यही तो ज़िंदगी की हकीकत है। दुनिया में ऐसा हमेशा से होता आया है और होता रहेगा।” उनके मुताबिक, ताकतवर लोग हमेशा कमज़ोरों पर ज़ुल्म करते रहेंगे और अमीर, गरीबों का खून चूसते रहेंगे। वे कहते हैं कि जब तक इंसान है तब तक यह सब चलता रहेगा, और उसके साथ-साथ “समय और संयोग” भी हम पर अपना कहर ढाते रहेंगे।
मगर क्या सचमुच दुनिया में यह सब दस्तूर चलता रहेगा? क्या ऐसा कभी नहीं होगा कि जो लोग अपनी काबिलीयत का सोच-समझकर और बुद्धिमानी से इस्तेमाल करते हैं, उन्हें अपनी कड़ी मेहनत का उतना फल मिलेगा जिसके वे हकदार हैं? क्या कोई ऐसा है जो अंधेर से भरी इस दुनिया को हमेशा के लिए, पूरी तरह बदल दे? गौर कीजिए कि अगला लेख इस बारे में क्या कहता है।
[पेज 2 पर चित्र का श्रेय]
पहला पेज: एक बच्चे के साथ आदमी: UN PHOTO 148426/McCurry/Stockbower
[पेज 3 पर चित्र का श्रेय]
MAXIM MARMUR/AFP/Getty Images