दिलों पर लिखी प्यार की व्यवस्था
दिलों पर लिखी प्यार की व्यवस्था
“मैं अपनी व्यवस्था उनके मन में समवाऊंगा, और उसे उनके हृदय पर लिखूंगा।”—यिर्मयाह 31:33.
1, 2. (क) अब हम किस बात पर चर्चा करेंगे? (ख) यहोवा सीनै पर्वत पर कैसे प्रकट हुआ?
पिछले दो लेखों से हमने जाना कि जब मूसा सीनै पर्वत से नीचे आया, तो उसके चेहरे से किरणें निकल रही थीं जिससे यहोवा की महिमा ज़ाहिर होती थी। हमने यह भी गौर किया कि मूसा जिस ओढ़नी से अपने चेहरे को ढकता था उसका क्या मतलब है। आइए अब इसी से जुड़े एक और मामले पर चर्चा करें जो आज मसीहियों के लिए बहुत मायने रखता है।
2 जब मूसा ऊपर पर्वत पर था, तो यहोवा ने उसे आदेश दिए। सीनै पर्वत के सामने इकट्ठे हुए इस्राएलियों ने उस पर्वत पर खुद परमेश्वर के उतरने का हैरतअँगेज़ नज़ारा देखा था। “बादल गरजने और बिजली चमकने लगी, और पर्वत पर काली घटा छा गई, फिर नरसिंगे का शब्द बड़ा भारी हुआ, और छावनी में जितने लोग थे सब कांप उठे। . . . और यहोवा जो आग में होकर सीनै पर्वत पर उतरा था, इस कारण समस्त पर्वत धुएं से भर गया; और उसका धुआं भट्टे का सा उठ रहा था, और समस्त पर्वत बहुत कांप रहा था।”—निर्गमन 19:16-18.
3. यहोवा ने इस्राएल को दस आज्ञाएँ किस तरह दीं, और इस जाति को क्या बात समझ में आयी?
3 यहोवा ने एक स्वर्गदूत के ज़रिए इस्राएलियों से बात की और उन्हें वे नियम दिए जो दस आज्ञाएँ कहलाती हैं। (निर्गमन 20:1-17) इसलिए, इस्राएलियों को कोई शक नहीं था कि ये कानून परमेश्वर की तरफ से थे। यहोवा ने इन आज्ञाओं को पत्थर की पटियाओं पर लिखा। मगर जब मूसा ने इस्राएलियों को सोने के एक बछड़े की उपासना करते देखा, तो क्रोध के मारे उसने इन पटियाओं के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। यहोवा ने फिर से ये आज्ञाएँ पत्थर की पटियाओं पर लिखीं। इस बार, जब मूसा ये पटियाएँ लेकर पर्वत से नीचे उतरा, तो उसके चेहरे से किरणें निकल रही थीं। तब तक सभी ये समझ चुके थे कि परमेश्वर के इन कानूनों की बहुत बड़ी अहमियत है।—निर्गमन 32:15-19; 34:1, 4, 29, 30.
4. दस आज्ञाओं की बड़ी अहमियत क्यों थी?
4 पत्थर की जिन दो पटियाओं पर दस आज्ञाएँ लिखी थीं, उन्हें वाचा के संदूक में रखा गया जो पहले निवासस्थान के और फिर मंदिर के परमपवित्र हिस्से में होता था। इन पर जो कानून लिखे थे वे मूसा की कानून-व्यवस्था के बुनियादी सिद्धांत थे और इन्हीं के आधार पर परमेश्वर, इस्राएल जाति पर हुकूमत करता था। ये कानून इस बात का सबूत थे कि यहोवा अपने चुने हुए लोगों, यानी खास तौर पर इस्राएलियों पर राज कर रहा है।
5. इस्राएल को परमेश्वर ने जो कानून दिए, उनसे उसका प्यार कैसे दिखायी देता है?
5 ये कानून हमें यहोवा के बारे में और खासकर अपने लोगों के लिए उसके प्यार के बारे में बहुत कुछ बताते हैं। जिन लोगों ने इन कानूनों को माना, उनके लिए ये कीमती तोहफा साबित हुए! एक विद्वान ने लिखा: “दुनिया में लोगों ने सही-गलत के बारे में बहुत-से नियम बनाए हैं। कुछ दस आज्ञाओं से पहले लिखे गए थे तो कुछ इनके बाद। . . . मगर, परमेश्वर की दस आज्ञाओं की बराबरी करना या इनसे बेहतर होना तो दूर, इनमें ऐसा कोई नियम नहीं जो थोड़ा-बहुत भी इनके जैसा हो।” मूसा की कानून-व्यवस्था के बारे में यहोवा ने कहा: “अब यदि तुम निश्चय मेरी मानोगे, और मेरी वाचा को पालन करोगे, तो सब लोगों में से तुम ही मेरा निज धन ठहरोगे; समस्त पृथ्वी तो मेरी है। और तुम मेरी दृष्टि में याजकों का राज्य और पवित्र जाति ठहरोगे।”—निर्गमन 19:5, 6.
दिल पर लिखी व्यवस्था
6. पत्थर पर लिखे कानूनों से कौन-सी व्यवस्था कहीं ज़्यादा अनमोल साबित हुई है?
6 यह सच है कि परमेश्वर के इन कानूनों की बड़ी अहमियत थी। लेकिन, क्या आपको पता है कि अभिषिक्त मसीहियों के पास कुछ ऐसा है जो पत्थर पर लिखे कानूनों से कहीं अनमोल है? इस्राएल जाति के साथ बाँधी गयी व्यवस्था वाचा से नयी वाचा बिलकुल अलग थी। इस नयी वाचा के बाँधे जाने के बारे में यहोवा ने यह भविष्यवाणी की थी: “मैं अपनी व्यवस्था उनके मन में समवाऊंगा, और उसे उनके हृदय पर लिखूंगा।” (यिर्मयाह 31:31-34) नयी वाचा के मध्यस्थ यीशु ने अपने चेलों को कानून लिखकर नहीं दिए। उसने जो कहा और किया, उससे अपने चेलों के दिलो-दिमाग में यहोवा की व्यवस्था और कानून बिठाए।
7. “मसीह की व्यवस्था” पहले किसे दी गयी थी, और बाद में और किन लोगों ने इसे अपनाया?
7 इस व्यवस्था को “मसीह की व्यवस्था” कहा जाता है। यह व्यवस्था, पहले याकूब के वंशजों या पैदाइशी इस्राएलियों को नहीं दी गयी, बल्कि एक आत्मिक जाति यानी “परमेश्वर के इस्राएल” को दी गयी। (गलतियों 6:2, 16; रोमियों 2:28, 29) परमेश्वर का इस्राएल, आत्मा से अभिषिक्त मसीहियों से बना है। बाद में, उनके साथ सब जातियों से निकली “बड़ी भीड़” मिल गयी और ये लोग भी यहोवा की उपासना करना चाहते हैं। (प्रकाशितवाक्य 7:9, 10; जकर्याह 8:23) ‘एक ही चरवाहे’ के अधीन “एक ही झुण्ड” के नाते, ये दोनों समूह “मसीह की व्यवस्था” को मानते हैं और अपना हर काम उसी के हिसाब से करते हैं।—यूहन्ना 10:16, NW.
8. मूसा की कानून-व्यवस्था और मसीह की व्यवस्था के बीच क्या फर्क था?
8 पैदाइशी इस्राएली, जन्म से ही मूसा की कानून-व्यवस्था से बंधे होते थे, मगर मसीही अपनी मरज़ी से मसीह की व्यवस्था के अधीन होते हैं। उनकी जाति और जन्मस्थान कोई मायने नहीं रखते। वे यहोवा और उसके मार्गों के बारे में सीखते हैं और उसकी मरज़ी पूरी करने की लालसा करते हैं। परमेश्वर की व्यवस्था उनके मन में ‘समायी’ हुई है, मानो “उनके हृदय पर” लिखी हुई है। इसलिए अभिषिक्त मसीही परमेश्वर की आज्ञा सिर्फ इस वजह से नहीं मानते कि न मानने से उन्हें सज़ा मिलेगी; न ही वे इसे सिर्फ अपना फर्ज़ समझते हैं। उनके आज्ञा मानने की वजह इससे कहीं ज़्यादा गहरी और कहीं ज़्यादा ज़बरदस्त है और उनकी तरह अन्य भेड़ के लोग भी इसीलिए आज्ञा मानते हैं क्योंकि परमेश्वर की व्यवस्था उनके दिलों पर लिखी हुई है।
प्रेम की बुनियाद पर बनाए गए कानून
9. यीशु ने कैसे बताया कि प्रेम यहोवा के कानूनों का सार है?
9 यहोवा के तमाम कानूनों और नियमों का सार एक ही शब्द में दिया जा सकता है: प्रेम। प्रेम हमेशा से शुद्ध उपासना का एक बेहद ज़रूरी हिस्सा रहा है और हमेशा रहेगा। जब यीशु से पूछा गया कि व्यवस्था में कौन-सी आज्ञा सबसे बड़ी है, तो उसने जवाब दिया: “तू परमेश्वर [यहोवा] अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख।” दूसरी बड़ी आज्ञा थी: “तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।” फिर उसने कहा: “ये ही दो आज्ञाएं सारी व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं का आधार है।” (मत्ती 22:35-40) इस तरह यीशु ने दिखाया कि न सिर्फ दस आज्ञाएँ और मूसा की कानून-व्यवस्था, बल्कि सारे इब्रानी शास्त्र की बुनियाद प्रेम था।
10. हम कैसे जानते हैं कि प्रेम, मसीह की व्यवस्था की बुनियाद है?
10 मगर क्या परमेश्वर और पड़ोसी से प्रेम करना उस व्यवस्था की भी बुनियाद है जो मसीहियों के दिल में है? जी हाँ, बिलकुल! मसीह की व्यवस्था में परमेश्वर से सच्चे दिल से प्यार करने के साथ-साथ एक नयी आज्ञा दी गयी है। वह यह कि मसीहियों को ऐसा प्यार दिखाना चाहिए जो खुद को दूसरों के लिए कुरबान कर दे। उन्हें वैसा ही प्यार दिखाना था जैसा यीशु ने दिखाया था, जिसने अपने दोस्तों की खातिर बेझिझक अपनी जान दे दी। यीशु ने अपने चेलों को सिखाया कि वे परमेश्वर से प्रेम करें और जैसे उसने उनसे प्रेम किया था वैसे ही एक-दूसरे से करें। सच्चे मसीहियों का एक-दूसरे के लिए ऐसा उम्दा प्यार दिखाना ही उनके मसीही होने की सबसे बड़ी पहचान है। (यूहन्ना 13:34, 35; 15:12, 13) यीशु ने उन्हें अपने दुश्मनों से भी प्रेम करने की आज्ञा दी।—मत्ती 5:44.
11. यीशु ने परमेश्वर के लिए और इंसानों के लिए प्रेम कैसे दिखाया?
11 यीशु ने प्रेम दिखाने में सबसे उम्दा मिसाल कायम की। वह स्वर्ग में एक शक्तिशाली आत्मिक प्राणी था, मगर जब उसे इस धरती पर अपने पिता के लिए काम करने का मौका मिला, तो उसने एक पल की भी देर नहीं की। उसने न सिर्फ अपनी जान कुरबान की ताकि दूसरों को हमेशा की ज़िंदगी मिले बल्कि उसने लोगों के सामने एक आदर्श रखा कि उन्हें कैसे जीना चाहिए। वह नम्र, कृपालु और दूसरों का लिहाज़ करनेवाला शख्स था। बोझ से दबे लोगों और ज़ुल्म सहनेवालों को उसने सहारा दिया। उसने “अनन्त जीवन की बातें” भी सिखायीं, और यहोवा के बारे में लोगों को सिखाने के लिए दिन-रात एक कर दिया।—यूहन्ना 6:68.
12. हम क्यों कहते हैं कि परमेश्वर और पड़ोसी के लिए प्यार को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता?
12 दरअसल, परमेश्वर और पड़ोसी के लिए प्यार को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। प्रेरित यूहन्ना ने कहा: “प्रेम परमेश्वर से है: . . . यदि कोई कहे, कि मैं परमेश्वर से प्रेम रखता हूं; और अपने भाई से बैर रखे; तो वह झूठा है: क्योंकि जो अपने भाई से, जिसे उस ने देखा है, प्रेम नहीं रखता, तो वह परमेश्वर से भी जिसे उस ने नहीं देखा, प्रेम नहीं रख सकता।” (1 यूहन्ना 4:7, 20) यहोवा से ही प्रेम का गुण निकला है और वही प्रेम का साक्षात् रूप है। वह हर काम प्रेम की खातिर करता है। हम दूसरों से प्रेम इसलिए कर पाते हैं, क्योंकि हम उसी के स्वरूप में बनाए गए हैं। (उत्पत्ति 1:27) अपने पड़ोसी से प्यार करके, हम परमेश्वर के लिए अपना प्यार ज़ाहिर करते हैं।
प्यार करने का मतलब है आज्ञा मानना
13. परमेश्वर के लिए प्रेम दिखाने से पहले, हमें क्या करना चाहिए?
13 जिस परमेश्वर को हम देख नहीं सकते उससे प्यार कैसे कर सकते हैं? सबसे पहला और ज़रूरी कदम है कि हम उसको अच्छी तरह से जानें। हम किसी अजनबी से सचमुच प्यार नहीं कर सकते, न ही उस पर भरोसा रख सकते हैं। इसलिए, परमेश्वर का वचन हमें सलाह देता है कि बाइबल पढ़ने, प्रार्थना करने और जो लोग परमेश्वर को पहले से जानते हैं और उससे प्यार करते हैं, उनके साथ संगति करने से हम उसे और अच्छी तरह जानें। (भजन 1:1, 2; फिलिप्पियों 4:6; इब्रानियों 10:25) सुसमाचार की चार किताबें खासकर बहुत अनमोल हैं, क्योंकि इनमें यीशु मसीह के जीवन और उसकी सेवा का ब्यौरा है जिससे यहोवा की शख्सियत बखूबी ज़ाहिर होती है। जब हम यहोवा को करीब से जानेंगे और उसने जो प्रेम हमें दिखाया है उसके लिए एहसानमंद होंगे, तो दिनोंदिन हमारी यह इच्छा ज़ोर पकड़ती जाएगी कि परमेश्वर की आज्ञा मानें और उसके जैसे बनने की कोशिश करें। जी हाँ, परमेश्वर के लिए प्रेम दिखाने में उसकी आज्ञा मानना शामिल है।
14. यह क्यों कहा जा सकता है कि परमेश्वर के कानून कठिन या बोझ नहीं हैं?
14 जब हम लोगों से प्यार करते हैं, तो हम उनकी पसंद-नापसंद को जानते हैं और उसी हिसाब से उनके साथ पेश आते हैं। हम जिनसे प्यार करते हैं उन्हें नाराज़ नहीं करना चाहते। प्रेरित यूहन्ना ने लिखा: “परमेश्वर का प्रेम यह है, कि हम उस की आज्ञाओं को मानें; और उस की आज्ञाएं कठिन नहीं।” (1 यूहन्ना 5:3) न तो ये आज्ञाएँ कठिन हैं, न ही बहुत सारी हैं। प्यार हमें राह दिखाता है। हमें अपने हर काम के लिए ढेरों नियम याद रखने की ज़रूरत नहीं; परमेश्वर के लिए हमारा प्यार हमें बताता है कि क्या करना चाहिए। अगर हम परमेश्वर से प्यार करते हैं, तो उसकी मरज़ी पूरी करने से हमें सुख मिलेगा। ऐसा करके हम यहोवा को खुश करते हैं और खुद हमारा फायदा होता है, क्योंकि उसकी हिदायतें हमेशा हमारे भले के लिए होती हैं।—यशायाह 48:17.
15. क्या बात हमें यहोवा के जैसा बनने को उभारती है? समझाइए।
15 परमेश्वर का प्रेम हमें उसके जैसे गुण पैदा करने को उभारता है। जब हम किसी से प्यार करते हैं, तो उसकी अच्छाइयों की कदर करते हैं और उसके जैसे बनने की कोशिश करते हैं। यहोवा और यीशु के रिश्ते पर गौर कीजिए। वे शायद अरबों साल से स्वर्ग में एक-साथ थे। उन दोनों के बीच गहरा और सच्चा प्यार था। यीशु की शख्सियत, स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता से इस कदर मिलती थी कि वह अपने चेलों से यह कह सका: “जिस ने मुझे देखा है उस ने पिता को देखा है।” (यूहन्ना 14:9) जैसे-जैसे हम यहोवा और उसके बेटे को करीब से जानेंगे और उनकी अच्छाइयों की कदर करेंगे, वैसे-वैसे हम उनके जैसा बनना चाहेंगे। यहोवा के लिए हमारा प्यार, साथ ही उसकी पवित्र आत्मा की मदद, हमें इस काबिल बनाएगी कि ‘पुराने मनुष्यत्व को उसके कामों समेत उतार डालें। और नए मनुष्यत्व को पहिन लें।’—कुलुस्सियों 3:9, 10; गलतियों 5:22, 23.
कामों से नज़र आनेवाला प्यार
16. हमारे प्रचार और सिखाने के काम से परमेश्वर और पड़ोसी के लिए हमारा प्यार कैसे ज़ाहिर होता है?
16 हम मसीही हैं, इसलिए परमेश्वर और पड़ोसी के लिए हमारा प्यार हमें राज्य का प्रचार करने और चेले बनाने का काम करने को उकसाता है। यह काम करने से हम यहोवा परमेश्वर को खुश करते हैं, जो “यह चाहता है, कि सब मनुष्यों का उद्धार हो; और वे सत्य को भली भांति पहचान लें।” (1 तीमुथियुस 2:3, 4) इस तरह हम दूसरों की मदद कर सकते हैं ताकि वे मसीह की व्यवस्था को अपने दिलों पर लिखवा सकें। और यह देखकर हमें कितनी खुशी होती है कि कैसे उनकी शख्सियत बदलती जाती है और वे यहोवा के गुण ज़ाहिर करने लगते हैं। (2 कुरिन्थियों 3:18) सचमुच, जब हम दूसरों को यहोवा के बारे में सिखाते हैं, तो हम उन्हें दुनिया का सबसे कीमती तोहफा देते हैं। जो यहोवा के दोस्त बनना चाहते हैं, वे इसका आनंद हमेशा-हमेशा तक लेते रहेंगे।
17. दुनिया की चीज़ों के बजाय परमेश्वर और पड़ोसी के लिए प्रेम पैदा करने में क्यों अकलमंदी है?
17 हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जहाँ धन-दौलत और साज़ो-सामान को ही सबकुछ माना जाता है और लोग इन पर जान देते हैं। मगर, ये चीज़ें हमेशा तक नहीं रहतीं। ये चोरी हो सकती हैं या सड़-गलकर नष्ट हो सकती हैं। (मत्ती 6:19) बाइबल हमें आगाह करती है: “संसार और उस की अभिलाषाएं दोनों मिटते जाते हैं, पर जो परमेश्वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा।” (1 यूहन्ना 2:16, 17) जी हाँ, यहोवा सदा तक कायम रहेगा और उसके साथ वे भी कायम रहेंगे जो उससे प्यार करते हैं और उसकी सेवा करते हैं। इसलिए, क्या यह अकलमंदी नहीं कि हम परमेश्वर और लोगों के लिए प्यार पैदा करें, न कि दुनिया की चीज़ों के पीछे भागें जो एक-न-एक-दिन मिट जाएँगी?
18. एक मिशनरी ने कैसे दूसरों की खातिर खुद को कुरबान करनेवाला प्यार दिखाया?
18 जो लोग प्यार की राह पर चलते हैं वे यहोवा की तारीफ करवाते हैं। आइए सोनिया की मिसाल लें जो सेनेगल में मिशनरी सेवा कर रही है। उसने हाइडी नाम की एक स्त्री के साथ बाइबल का अध्ययन किया। यह स्त्री अपने अविश्वासी पति की वजह से एच.आइ.वी. वाइरस से संक्रमित हो गयी। पति की मौत के बाद हाइडी ने बपतिस्मा लिया, मगर बहुत जल्द उसकी सेहत बिगड़ने लगी और वह एड्स की मरीज़ के तौर पर अस्पताल में भरती हो गयी। सोनिया बताती है: “अस्पतालवाले अपनी तरफ से पूरी मेहनत करते थे, मगर उनकी गिनती बहुत कम थी। कलीसिया से कुछ भाई-बहनों को अस्पताल में हाइडी की देखभाल करने के लिए बुलाया गया। अस्पताल में दूसरी रात को, मैं हाइडी के बिस्तर के पास एक चटाई पर लेटती-बैठती और जब तक वह ज़िंदा रही उसकी देखभाल करने में मदद करती रही। अस्पताल के बड़े डॉक्टर ने कहा: ‘हमारे लिए सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि एड्स के मरीज़ों के परिवारवाले भी बीमारी का पता लगने पर उनका साथ छोड़ देते हैं। फिर आप क्यों यह जोखिम उठा रही हैं, जबकि यह न तो आपकी रिश्तेदार हैं, और न आप इसके देश की हैं, न जाति की?’ मैंने उन्हें समझाया कि हाइडी सचमुच मेरी बहन है, यह रिश्ता इतना गहरा है मानो हम एक ही माँ-बाप की बेटियाँ हैं। अपनी इस बहन को जानने के बाद, मुझे उसकी देखभाल करने से खुशी मिलती है।” ऐसा हुआ कि हाइडी की इस तरह प्यार से देखभाल करने का सोनिया की सेहत पर कोई बुरा असर नहीं हुआ।
19. हमारे दिलों पर परमेश्वर की व्यवस्था के होते हुए, हमें किस चीज़ का फायदा उठाना चाहिए?
19 दूसरों की खातिर खुद को कुरबान करनेवाले प्यार की बहुत-सी मिसालें आपको यहोवा के सेवकों के बीच मिलेंगी। आज परमेश्वर के लोगों की पहचान किसी लिखित कानून से नहीं होती। इसके बजाय, हम इब्रानियों 8:10 में जो लिखा है उसे आज पूरा होते देखते हैं: “प्रभु [यहोवा] कहता है, कि जो वाचा मैं उन दिनों के बाद इस्राएल के घराने के साथ बान्धूंगा, वह यह है, कि मैं अपनी व्यवस्था को उन के मनों में डालूंगा, और उसे उन के हृदय पर लिखूंगा, और मैं उन का परमेश्वर ठहरूंगा, और वे मेरे लोग ठहरेंगे।” आइए हम हमेशा प्यार की उस व्यवस्था की दिलो-जान से कदर करें, जिसे यहोवा ने हमारे दिलों पर लिखा है और हर मौके का फायदा उठाकर प्यार दिखाएँ।
20. मसीह की व्यवस्था क्यों अनमोल धन है?
20 सचमुच, दुनिया-भर में फैला और सच्चा प्यार दिखानेवाला हमारा भाईचारा हमें कितनी खुशी देता है, जिसके साथ हम परमेश्वर की सेवा करते हैं! जिन लोगों के दिलों पर मसीह की व्यवस्था लिखी है, उन्हें प्रेम से खाली इस दुनिया में एक अनमोल धन मिला है। उनके पास यहोवा का प्यार तो है ही, साथ ही वे अपने भाईचारे के मज़बूत बंधन से भी खुशी पाते हैं। “देखो, यह क्या ही भली और मनोहर बात है कि भाई लोग आपस में मिले रहें!” हालाँकि यहोवा के साक्षी दुनिया के कई देशों में रहते हैं, कई भाषाएँ बोलते हैं और अलग-अलग संस्कृति से हैं, फिर भी वे जिस एकता से अपने परमेश्वर की उपासना करते हैं, ऐसी एकता दुनिया में कहीं और नहीं पायी जा सकती। इस एकता की वजह से यहोवा का अनुग्रह उन पर है। भजनहार ने लिखा: “यहोवा ने तो वहीं [प्यार से एकता के बंधन में बंधे लोगों के बीच] सदा के जीवन की आशीष ठहराई है।”—भजन 133:1-3.
क्या आप जवाब दे सकते हैं?
• दस आज्ञाओं की क्या अहमियत थी?
• दिलों पर लिखी व्यवस्था क्या है?
• “मसीह की व्यवस्था” में प्रेम की क्या अहमियत है?
• हम किन तरीकों से परमेश्वर और पड़ोसी के लिए प्रेम दिखा सकते हैं?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 25 पर तसवीर]
इस्राएलियों को पत्थर की पटियाओं पर लिखे कानून दिए गए थे
[पेज 26 पर तसवीरें]
मसीहियों के दिलों पर परमेश्वर का कानून लिखा है
[पेज 28 पर तसवीर]
सन् 2004 के ज़िला अधिवेशन में सेनेगल की एक लड़की के साथ सोनिया