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निजी अध्ययन जो हमें काबिल शिक्षक बनाता है

निजी अध्ययन जो हमें काबिल शिक्षक बनाता है

निजी अध्ययन जो हमें काबिल शिक्षक बनाता है

“उन बातों को सोचता रह और उन्हीं में अपना ध्यान लगाए रह, ताकि तेरी उन्‍नति सब पर प्रगट हो। अपनी और अपने उपदेश की चौकसी रख।”1 तीमुथियुस 4:15, 16.

1. समय और निजी अध्ययन के बारे में क्या बात सच है?

 बाइबल में सभोपदेशक 3:1 कहता है: “प्रत्येक बात के लिए समय नियुक्‍त है।” (NHT) बेशक, यह बात निजी अध्ययन के बारे में भी सच है। अगर अध्ययन के लिए सही समय और जगह न हो, तो ऐसे में बहुत लोगों को आध्यात्मिक बातों पर मनन करना मुश्‍किल लगता है। उदाहरण के लिए, सारा दिन कड़ी मेहनत करने और शाम को भरपेट खाना खाने के बाद, अगर आप टी.वी. के सामने आराम-कुर्सी पर बैठे हों, तो क्या आपको अध्ययन करने का मन करेगा? शायद नहीं। तो क्या किया जाना चाहिए? ज़ाहिर है कि हमें सही वक्‍त और सही जगह चुननी होगी ताकि हम अध्ययन में जो मेहनत लगाते हैं, उससे हम पूरा फायदा पा सकें।

2. निजी अध्ययन के लिए कौन-सा समय सबसे अच्छा है?

2 कई लोगों को अध्ययन के लिए सवेरे का वक्‍त सबसे अच्छा लगता है क्योंकि उस वक्‍त उनका दिमाग ज़्यादा चुस्त रहता है। कुछ लोग दोपहर को अध्ययन के लिए थोड़ा समय निकालते हैं। नीचे बताए लोगों पर गौर कीजिए कि उन्होंने ज़रूरी आध्यात्मिक कामों के लिए कौन-सा समय चुना। प्राचीन इस्राएल के राजा, दाऊद ने लिखा: “प्रात:काल मुझे अपनी करुणा के वचन सुना; क्योंकि मैं तुझ पर भरोसा रखता हूं; मुझे उस मार्ग की शिक्षा दे जिसमें मुझे चलना चाहिए; क्योंकि मैं अपना मन तेरी ही ओर लगाता हूं।” (भजन 143:8, NHT) भविष्यवक्‍ता यशायाह भी अध्ययन करने की अहमियत जानता था। इसलिए उसने कहा: “प्रभु यहोवा ने मुझे सीखनेवालों की जीभ दी है कि मैं थके हुए को अपने वचन के द्वारा संभालना जानूं। भोर को वह नित मुझे जगाता और मेरा कान खोलता है कि मैं शिष्य के समान सुनू।” कहने का मतलब यह है कि हमें अध्ययन करने और यहोवा से बात करने के लिए ऐसा वक्‍त चुनना चाहिए जब हमारा दिमाग पूरी तरह चुस्त हो, फिर चाहे वह दिन का कोई भी समय हो।—यशायाह 50:4, 5; भजन 5:3; 88:13.

3. किस तरह के माहौल में अध्ययन करना बेहतर होगा?

3 अध्ययन से फायदा पाने के लिए एक और बात यह है कि अध्ययन करते वक्‍त हमें आराम-कुर्सी या सोफे पर नहीं बैठना चाहिए। वरना हम अध्ययन के वक्‍त हमेशा चुस्त नहीं रहेंगे। अध्ययन के वक्‍त ज़रूरी है कि हमारा दिमाग अच्छी तरह काम करे लेकिन ज़्यादा आराम से बैठने पर दिमाग सुस्त हो जाएगा। इसके अलावा, अध्ययन और मनन के लिए शांत जगह चुननी चाहिए, जहाँ ध्यान भटकानेवाली चीज़ें न हों। अगर रेडियो या टीवी चल रहा हो या बच्चे आपको परेशान कर रहे हों, तो ऐसे में आप अध्ययन से पूरा फायदा नहीं पा सकेंगे। यीशु के बारे में बाइबल बताती है कि जब उसे मनन करना था, तो वह एक शांत जगह के लिए निकल पड़ा। उसने यह भी बताया कि प्रार्थना ऐसी जगह पर करनी चाहिए जहाँ कोई न हो।—मत्ती 6:6; 14:13; मरकुस 6:30-32.

निजी अध्ययन जो हमें जवाब देने के काबिल बनाता है

4, 5. किन तरीकों से माँग ब्रोशर सिखाने में मददगार है?

4 निजी अध्ययन से हमें ज़्यादा खुशी तब मिलती है जब हम बाइबल की समझ देनेवाली अलग-अलग किताबों वगैरह का इस्तेमाल करके, किसी विषय पर और गहरी खोजबीन करते हैं। खासकर जब कोई नेक इरादे से हमसे सवाल पूछता है, तो उसे जवाब देने के लिए खोजबीन करने पर हमें बहुत खुशी मिलती है। (1 तीमुथियुस 1:4; 2 तीमुथियुस 2:23) बहुत-से नए लोगों ने परमेश्‍वर हमसे क्या माँग करता है? * ब्रोशर से अध्ययन शुरू किया है जो अब 261 भाषाओं में उपलब्ध है। इसमें बिलकुल सरल तरीके से, साथ ही ठीक-ठीक जानकारी दी गयी है और यह पूरी तरह बाइबल पर आधारित है। इस ब्रोशर से लोग थोड़े ही समय में सीख जाते हैं कि सच्ची उपासना के लिए परमेश्‍वर ने क्या नियम दिए हैं। लेकिन यह सिर्फ एक ब्रोशर होने की वजह से, इसमें हर विषय को विस्तार से नहीं समझाया गया है। अगर इसमें दिए किसी विषय पर चर्चा करते वक्‍त आपका बाइबल विद्यार्थी कुछ अहम सवाल पूछता है, तो आप उसे जवाब देने के लिए कैसे खोज करेंगे?

5 जिन लोगों के पास अपनी भाषा में सीडी-रॉम पर वॉचटावर लाइब्रेरी है, वे कंप्यूटर पर ढेर सारी जानकारी बड़ी आसानी से हासिल कर सकते हैं। लेकिन जिनके पास यह नहीं है, वे क्या कर सकते हैं? आइए हम माँग ब्रोशर में दिए दो विषयों की जाँच करें और देखें कि हम उनके बारे में अपनी समझ कैसे बढ़ा सकते हैं और उनके बारे में दूसरों को ब्यौरेदार जवाब कैसे दे सकते हैं। खासकर तब, जब कोई हमसे ऐसे सवाल पूछता है जैसे, परमेश्‍वर कौन है? और यीशु वाकई में कैसा था?—निर्गमन 5:2; लूका 9:18-20; 1 पतरस 3:15.

परमेश्‍वर कौन है?

6, 7. (क) परमेश्‍वर के बारे में क्या सवाल उठता है? (ख) एक पादरी अपने भाषण में कौन-सी अहम बात बताने से चूक गया?

6 माँग ब्रोशर के पाठ 2 में इस अहम सवाल का जवाब दिया गया है, परमेश्‍वर कौन है? यह एक बुनियादी शिक्षा है। अगर एक इंसान परमेश्‍वर को नहीं जानता या उसके वजूद पर शक करता है, तो वह सच्चे परमेश्‍वर की उपासना नहीं कर सकता। (रोमियों 1:19, 20; इब्रानियों 11:6) लेकिन परमेश्‍वर कौन है, इस बारे में दुनिया-भर में लोग सैकड़ों किस्म की धारणाओं को मानते हैं। (1 कुरिन्थियों 8:4-6) परमेश्‍वर कौन है, इस सवाल का हर धर्म अपने तरीके से जवाब देता है। ईसाईजगत के कई धर्मों में परमेश्‍वर को त्रियेक माना जाता है। अमरीका के एक प्रमुख पादरी ने इस विषय पर भाषण दिया था, “क्या आप परमेश्‍वर को जानते हैं?” उसने अपने भाषण में कई बार इब्रानी शास्त्र का हवाला दिया, मगर एक बार भी उसने परमेश्‍वर के नाम का ज़िक्र नहीं किया। उसने बाइबल के एक ऐसे अनुवाद से आयतें पढ़ीं जिसमें यहोवा या याहवे नाम के बजाय “प्रभु” लिखा है, जबकि यह शब्द कोई नाम नहीं है और इसके कई मतलब निकाले जा सकते हैं।

7 उस पादरी ने यिर्मयाह 31:33, 34 (नयी हिन्दी बाइबिल) का हवाला तो दिया, मगर वह परमेश्‍वर का नाम बताने से चूक गया जो कि एक अहम बात है: “तब किसी व्यक्‍ति को अपने पड़ौसी अथवा भाई-बन्धु को यह सिखाने की आवश्‍यकता नहीं पड़ेगी कि ‘प्रभु को जानो,’ [इब्रानी में, “यहोवा को जानो”] क्योंकि छोटे-बड़े सब लोग स्वयं मुझे जानेंगे। . . . मुझ-प्रभु [इब्रानी में, यहोवा] की यह वाणी है।” उस पादरी ने एक ऐसे अनुवाद से पढ़ा, जिसमें परमेश्‍वर का बेजोड़ नाम, यहोवा इस्तेमाल नहीं किया गया है।—भजन 103:1, 2.

8. किस बात से पता चलता है कि यहोवा का नाम इस्तेमाल करना बेहद ज़रूरी है?

8 भजन 8:9 समझाता है कि यहोवा का नाम इस्तेमाल करना क्यों बेहद ज़रूरी है: “हे यहोवा, हे हमारे प्रभु, तेरा नाम सारी पृथ्वी पर क्या ही प्रतापमय है।” ध्यान दीजिए कि यही आयत दूसरी बाइबल में कैसे लिखी है: “हे प्रभु, हमारे स्वामी, तेरा नाम समस्त पृथ्वी पर कितना महान्‌ है!” (नयी हिन्दी बाइबिल; बुल्के बाइबल और किताब-ए-मुकद्दस भी देखिए।) फिर भी जैसे पिछले लेख में बताया गया है, हमारे लिए “परमेश्‍वर का ज्ञान” पाना मुमकिन है, बशर्ते हम बाइबल का अध्ययन करें। तो फिर, परमेश्‍वर के नाम की अहमियत के बारे में उठनेवाले सवालों के जवाब देने में कौन-सा मसीही साहित्य हमारी अच्छी तरह मदद कर सकता है?—नीतिवचन 2:1-6.

9. (क) परमेश्‍वर के नाम का इस्तेमाल करने की अहमियत जानने में कौन-सी किताब हमारी मदद कर सकती है? (ख) बहुत-से अनुवादक, परमेश्‍वर के नाम का सम्मान करने से कैसे चूक गए?

9 परमेश्‍वर के नाम की अहमियत के बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए हम किताब आप पृथ्वी पर परादीस में सर्वदा जीवित रह सकते हैं में खोज सकते हैं। * इसे 131 भाषाओं में अनुवाद किया गया है। इसके चौथे अध्याय, “परमेश्‍वर—वह कौन है?” (पेज 41-44, पैराग्राफ 18-24) में साफ बताया गया है कि मूल इब्रानी पाठ में यहोवा का नाम चार इब्रानी अक्षरों से लिखा जाता है और यह नाम उसमें करीब 7,000 बार आता है। मगर पादरियों और यहूदी धर्म और ईसाईजगत के अनुवादकों ने अपने ज़्यादातर बाइबल अनुवादों से यह नाम जानबूझकर हटा दिया है। * जब वे यहोवा को उसके नाम से पुकारने से इनकार कर देते हैं, तो वे परमेश्‍वर को जानने और उसके साथ एक अच्छा रिश्‍ता रखने का दावा कैसे कर सकते हैं? परमेश्‍वर के सच्चे नाम को जानना ही उसके मकसद और उसकी शख्सियत के बारे में जानने की कुंजी है। इसके अलावा, अगर हम परमेश्‍वर का नाम ज़ुबान पर ही न लाएँ, तो यीशु की सिखायी प्रार्थना के इन शब्दों के क्या मायने रह जाएँगे: “हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए।”—मत्ती 6:9; यूहन्‍ना 5:43; 17:6.

यीशु मसीह कौन है?

10. किन तरीकों से हम यीशु की ज़िंदगी और उसके प्रचार के बारे में पूरा ब्यौरा पा सकते हैं?

10 माँग ब्रोशर के तीसरे पाठ का शीर्षक है, “यीशु मसीह कौन है?” इस पाठ में सिर्फ छः पैराग्राफों के ज़रिए संक्षिप्त में जानकारी दी गयी है कि यीशु कौन है, कहाँ से आया और धरती पर उसके आने का मकसद क्या था। लेकिन अगर आप यीशु की ज़िंदगी का पूरा ब्यौरा चाहते हैं तो सुसमाचार की किताबों के अलावा, वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा से बढ़िया किताब और कोई नहीं है। * यह किताब 111 भाषाओं में मिलती है। इस किताब में, सुसमाचार की चार किताबों के आधार पर, मसीह की ज़िंदगी और उसकी शिक्षाओं के बारे में सिलसिलेवार जानकारी दी गयी है। इसके 133 अध्यायों में यीशु की ज़िंदगी और उसके प्रचार काम से जुड़ी घटनाएँ दर्ज़ हैं। इसके अलावा, यीशु के जीवन के अलग-अलग पहलू के बारे में जाँचने के लिए आप इंसाइट किताब के भाग 2 में “यीशु मसीह” शीर्षक के तहत देख सकते हैं और ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है किताब का अध्याय 4 देख सकते हैं।

11. (क) यीशु के बारे में यहोवा के साक्षियों का विश्‍वास कैसे दूसरे धर्मों से अलग है? (ख) त्रियेक की शिक्षा को झूठ साबित करनेवाली कुछ आयतें क्या हैं और इस संबंध में कौन-सा साहित्य मददगार है?

11 ईसाईजगत में यीशु को लेकर यह वाद-विवाद चल रहा है कि क्या वह “परमेश्‍वर का पुत्र” होने के साथ-साथ “पुत्र परमेश्‍वर” हो सकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो वे त्रियेक की शिक्षा को लेकर उलझे हुए हैं जिसे कैटिकिज़्म ऑफ द कैथोलिक चर्च किताब “ईसाई धर्म का सबसे बड़ा रहस्य” कहती है। लेकिन यहोवा के साक्षियों का विश्‍वास, ईसाईजगत के धर्मों से पूरी तरह अलग है। वे मानते हैं कि यीशु, परमेश्‍वर की सृष्टि है मगर वह परमेश्‍वर नहीं है। इस विषय पर ब्रोशर, क्या आपको त्रियेक में विश्‍वास करना चाहिए? में बहुत बढ़िया तरीके से चर्चा की गयी है।* इसे 95 भाषाओं में अनुवाद किया गया है। यह ब्रोशर कई आयतों का इस्तेमाल करके त्रियेक की शिक्षा को झूठ साबित करता है, जिनमें से कुछ हैं: मरकुस 13:32 और 1 कुरिन्थियों 15:24, 28.

12. अब हमें किस सवाल पर गौर करना चाहिए?

12 अब तक हमने परमेश्‍वर और यीशु मसीह के बारे में जो चर्चा की, वह दिखाती है कि हम किन तरीकों से निजी अध्ययन कर सकते हैं ताकि हम ऐसे लोगों को सही ज्ञान पाने में मदद दें जो बाइबल की सच्चाई नहीं जानते। (यूहन्‍ना 17:3) मगर, उन लोगों के बारे में क्या जो कई सालों से मसीही कलीसिया के सदस्य हैं? उन्होंने बीते समय में बाइबल का काफी ज्ञान हासिल किया है, तो क्या उन्हें भी यहोवा के वचन का निजी अध्ययन करने की ज़रूरत है?

क्यों ‘चौकसी रखें’?

13. निजी अध्ययन के बारे में कुछ लोग शायद कौन-सी गलत राय रखें?

13 कुछ लोग, जो बहुत सालों से कलीसिया के सदस्य हैं, वे शायद बाइबल के उस थोड़े-बहुत ज्ञान से ही काम चलाने की कोशिश करें जो उन्होंने यहोवा के साक्षी बनने के बाद, शुरू के चंद सालों में पाया था। एक साक्षी के लिए यह सोचना बहुत आसान है: “मुझे इतना अध्ययन करने की ज़रूरत नहीं है जितना कि नए लोगों को ज़रूरत है। और फिर मैंने तो बीते सालों में कितनी बार बाइबल और बाइबल की किताबें-पत्रिकाएँ पढ़ी हैं।” यह तो ऐसा कहने के बराबर होगा: “दरअसल, अब मुझे इस बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं कि मैं ठीक से खाता हूँ या नहीं, क्योंकि मैंने गुज़रे वक्‍त में कितनी ही बार खाना खाया है।” हम जानते हैं कि हमारे शरीर को, सही तरीके से तैयार किए गए पौष्टिक आहार की ज़रूरत होती है ताकि इससे शरीर को लगातार ताकत मिलती रहे और वह हमेशा चुस्त-दुरुस्त बना रहे। तो फिर अपनी आध्यात्मिक सेहत और शक्‍ति को बनाए रखने के लिए आध्यात्मिक खुराक लेना और कितना ज़रूरी होगा!—इब्रानियों 5:12-14.

14. हमें अपने बारे में हमेशा चौकस रहने की ज़रूरत क्यों है?

14 इसलिए, हम चाहे सालों से बाइबल का अध्ययन कर रहे हों या कुछ ही समय से, हम सभी को पौलुस की सलाह माननी चाहिए। हालाँकि तीमुथियुस एक अनुभवी और ज़िम्मेदार ओवरसियर बन चुका था, फिर भी पौलुस ने उसे सलाह दी: “अपनी और अपने उपदेश की चौकसी रख। इन बातों पर स्थिर रह, क्योंकि यदि ऐसा करता रहेगा, तो तू अपने, और अपने सुननेवालों के लिये भी उद्धार का कारण होगा।” (1 तीमुथियुस 4:15,16) हमें पौलुस की सलाह पर क्यों ध्यान देना चाहिए? याद करें कि पौलुस ने यह भी बताया था कि हम “शैतान की युक्‍तियों” से और ‘आकाश में रहनेवाली दुष्टता की आत्मिक सेनाओं’ से जंग लड़ रहे हैं। और प्रेरित पतरस ने चेतावनी दी कि इब्‌लीस “इस खोज में रहता है, कि किस को फाड़ खाए।” “किस को” का मतलब यह है कि हम में से कोई भी उसका शिकार हो सकता है। अगर हमें अपने थोड़े-बहुत ज्ञान से तसल्ली हो जाए और हम शैतान से आनेवाले खतरे से सावधान न रहें तो मानो हम उसको हम पर हमला करने का न्यौता दे रहे होंगे और वह तो इसी फिराक में घूम रहा है।—इफिसियों 6:11, 12; 1 पतरस 5:8.

15. आध्यात्मिक रूप से अपना बचाव करने के लिए हमारे पास क्या कवच है और हम उसकी देखभाल कैसे कर सकते हैं?

15 तो फिर अपने बचाव के लिए हमारे पास क्या कवच है? प्रेरित पौलुस हमें याद दिलाता है: “परमेश्‍वर के सारे हथियार [“समस्त अस्त्र-शस्त्र,” NHT] बान्ध लो, कि तुम बुरे दिन में साम्हना कर सको, और सब कुछ पूरा करके स्थिर रह सको।” (इफिसियों 6:13) हमारे ये आध्यात्मिक अस्त्र-शस्त्र शुरू में भले ही अच्छे हाल में रहे हों, लेकिन उनसे हमारी रक्षा होगी या नहीं, यह इस पर निर्भर है कि क्या हम समय-समय पर उनकी देखभाल करते हैं। परमेश्‍वर के उस समस्त अस्त्र-शस्त्र का एक अहम पहलू है, परमेश्‍वर के वचन की ताज़ा जानकारी रखना। इसका मतलब है कि यहोवा अपने वचन और विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास वर्ग के ज़रिए सच्चाई के बारे में दिन-ब-दिन जो समझ दे रहा है, उसकी ताज़ा जानकारी रखना बहुत ज़रूरी है। अपने आध्यात्मिक अस्त्र-शस्त्र की देखभाल करने के लिए नियमित तौर पर बाइबल और बाइबल की समझ देनेवाले साहित्य का निजी अध्ययन करना बहुत अहमियत रखता है।—मत्ती 24:45-47; इफिसियों 6:14, 15.

16. हम यह कैसे परख सकते हैं कि हमारे “विश्‍वास की ढाल” सही हालत में है या नहीं?

16 पौलुस ने हमारे आध्यात्मिक अस्त्र-शस्त्र के एक हिस्से पर खास ज़ोर दिया। वह है “विश्‍वास की ढाल,” जिसकी मदद से हम शैतान के जलते तीरों यानी झूठे इलज़ामों और धर्म-त्यागी शिक्षाओं से बच सकते हैं और उनकी आग को बुझा सकते हैं। (इफिसियों 6:16) इसलिए हमें अपने विश्‍वास की ढाल को जाँचना चाहिए कि वह कितनी मज़बूत है और उसे अच्छी हालत में और मज़बूत बनाए रखने के लिए हम क्या कदम उठा सकते हैं। मिसाल के लिए, आप खुद से पूछ सकते हैं: ‘मैं प्रहरीदुर्ग का इस्तेमाल करके हफ्तेवार बाइबल अध्ययन की तैयारी कैसे करता हूँ? क्या मैं उसकी ठीक से तैयारी करता हूँ ताकि सभा में दूसरों को ‘प्रेम, और भले कामों में उस्काने’ के लिए गहराई से सोचकर जवाब दे सकूँ? लेख में जिन आयतों का हवाला नहीं दिया गया है, क्या मैं उन्हें बाइबल से खोलकर पढ़ता हूँ? क्या मैं सभाओं में पूरे जोश से हिस्सा लेकर दूसरों का उत्साह बढ़ाता हूँ?’ हम जो आध्यात्मिक भोजन लेते हैं वह ठोस भोजन है, इसलिए हमें उसे अच्छी तरह पचाना चाहिए, तभी उससे हमें पूरा-पूरा फायदा होगा।—इब्रानियों 5:14; 10:24.

17. (क) शैतान हमें आध्यात्मिक रूप से कमज़ोर करने के लिए किस विष का इस्तेमाल कर रहा है? (ख) शैतान के विष से बचने का रास्ता क्या है?

17 शैतान जानता है कि हम असिद्ध इंसानों में क्या-क्या कमज़ोरियाँ हैं और वह धूर्त्त तरीकों से हमें फँसाने की कोशिश करता है। बुराई फैलाने के लिए उसका बिछाया एक फँदा यह है कि आज टी.वी., इंटरनॆट, वीडियो और किताबों-पत्रिकाओं में पोर्नोग्राफी या अश्‍लीलता बड़ी आसानी से देखी जा सकती है। कुछ मसीहियों का आध्यात्मिक कवच कमज़ोर पड़ गया है, इसलिए उन्होंने अश्‍लीलता के इस ज़हर को अपने कवच के अंदर घुसने दिया है। और इसलिए वे कलीसिया में सेवा की खास ज़िम्मेदारियों से हाथ धो बैठे हैं या उन्हें इससे भी भयानक अंजाम भुगतने पड़े हैं। (इफिसियों 4:17-19) शैतान के आध्यात्मिक विष से बचने का रास्ता क्या है? वह रास्ता है, नियमित तौर पर निजी बाइबल अध्ययन करना, मसीही सभाओं में जाना और परमेश्‍वर के समस्त आध्यात्मिक अस्त्र-शस्त्र पहनने में कभी-भी लापरवाह न होना। इन सभी इंतज़ामों की मदद से हम सही-गलत में फर्क करने के काबिल होंगे और जिस चीज़ से परमेश्‍वर नफरत करता है, उससे हम भी नफरत करेंगे।—भजन 97:10; रोमियों 12:9.

18. आध्यात्मिक युद्ध में “आत्मा की तलवार” कैसे हमारी मदद कर सकती है?

18 अगर हम नियमित तौर पर बाइबल का अध्ययन करने की आदत बनाए रखें, तो हम परमेश्‍वर के वचन के सही ज्ञान से ताकत पाकर न सिर्फ दुश्‍मन से खुद की रक्षा कर पाएँगे बल्कि “आत्मा की तलवार जो परमेश्‍वर का वचन है” से ज़ोरदार हमला भी कर पाएँगे। परमेश्‍वर का वचन “हर एक दोधारी तलवार से भी बहुत चोखा है, और जीव, और आत्मा को, और गांठ गांठ, और गूदे गूदे को अलग करके, वार पार छेदता है; और मन की भावनाओं और विचारों को जांचता है।” (इफिसियों 6:17; इब्रानियों 4:12) अगर हम उस “तलवार” का इस्तेमाल करने में हुनरमंद होंगे, तो हम ऐसी चीज़ों से लुभाए नहीं जाएँगे, जो दिखने में बहुत आकर्षक लगती हैं मगर असल में नुकसानदेह होती हैं। साथ ही उनका पर्दाफाश करेंगे कि वे दुष्ट शैतान के फँदे हैं जो हमें विनाश की ओर ले जाने के लिए वह बिछाता है। बाइबल के ज्ञान और समझ का हमारा भंडार दुष्ट कामों को नकारने और भले काम करने में हमारी मदद करेगा। इसलिए हम में से हरेक को खुद से पूछने की ज़रूरत है: ‘मेरी तलवार की धार तेज़ है या उस पर ज़ंग लग गयी है? क्या मुझे ऐसी आयतों को याद करना मुश्‍किल लगता है, जो झूठी शिक्षाओं को काटने में मेरी मदद कर सकती हैं?’ आइए हम निजी बाइबल अध्ययन की अच्छी आदतें बनाए रखें और इस तरह शैतान का मुकाबला करें।—इफिसियों 4:22-24.

19. अगर हम निजी अध्ययन करने के लिए मेहनत करेंगे, तो हमें क्या फायदे होंगे?

19 पौलुस ने लिखा: “हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है। ताकि परमेश्‍वर का जन सिद्ध बने, और हर एक भले काम के लिये तत्पर हो जाए।” तीमुथियुस से कहे इन शब्दों को अगर हम गाँठ बाँध लें, तो हम आध्यात्मिक तौर पर खुद को मज़बूत कर पाएँगे और प्रचार में ज़्यादा कुशल होंगे। तीमुथियुस की तरह आध्यात्मिक तरीके से मज़बूत प्राचीन और सहायक सेवक, कलीसिया के लिए बहुत मददगार साबित होंगे और हम सभी विश्‍वास में मज़बूत बने रहेंगे।—2 तीमुथियुस 3:16, 17; मत्ती 7:24-27.

[फुटनोट]

^ दिलचस्पी दिखानेवाले नए लोग माँग ब्रोशर से अध्ययन करने के बाद, अकसर ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है से अध्ययन शुरू करते हैं। उस ब्रोशर और किताब को यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है। इस लेख में दिए सुझावों पर अमल करने से विद्यार्थी की आध्यात्मिक तरक्की में आनेवाली बाधाओं को पार किया जा सकता है।

^ इस किताब को यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है। जिनके पास अपनी भाषा में इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स है, वे उसके दूसरे भाग में शीर्षक “यहोवा” के तहत भी जानकारी पा सकते हैं।

^ यह गौर करने लायक बात है कि हमारी कई हिन्दी बाइबलों में परमेश्‍वर के नाम का अनुवाद, “यहोवा” किया गया है।

^ इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

क्या आपको याद है?

• किन हालात में निजी अध्ययन करना फायदेमंद होता है?

• परमेश्‍वर के नाम के संबंध में बहुत-से बाइबल अनुवादों में कौन-सी गलती की गयी है?

• त्रियेक की शिक्षा को गलत साबित करने के लिए आप बाइबल की किन आयतों का इस्तेमाल करेंगे?

• शैतान की युक्‍तियों से खुद को बचाने के लिए हमें क्या करना चाहिए, फिर चाहे हम कितने ही सालों से सच्चाई में क्यों न हों?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 19 पर तसवीरें]

निजी अध्ययन से फायदा पाने के लिए आपको ऐसा माहौल चुनना चाहिए जहाँ बार-बार आपका ध्यान न भटके

[पेज 23 पर तसवीरें]

क्या आपकी “तलवार” की धार तेज़ है या क्या उस पर ज़ंग लग गयी है?