अंतिम दिनों में रहनेवाले निष्पक्ष मसीही
अंतिम दिनों में रहनेवाले निष्पक्ष मसीही
“जैसे मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं।”—यूहन्ना 17:16.
1, 2. यीशु ने संसार के साथ अपने चेलों के रिश्ते के बारे में क्या कहा और उसके शब्दों से कौन-से सवाल उठते हैं?
यीशु एक सिद्ध इंसान के रूप में जब धरती पर था, तब उसने अपनी ज़िंदगी की आखिरी रात को अपने चेलों की मौजूदगी में एक लंबी प्रार्थना की। उस प्रार्थना में यीशु ने एक ऐसी बात कही जिससे ज़ाहिर होता है कि सभी सच्चे मसीहियों को कैसा जीवन बिताना चाहिए। उसने अपने चेलों का ज़िक्र करते हुए कहा: “मैं ने तेरा वचन उन्हें पहुंचा दिया है, और संसार ने उन से बैर किया, क्योंकि जैसा मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं। मैं यह बिनती नहीं करता, कि तू उन्हें जगत से उठा ले, परन्तु यह कि तू उन्हें उस दुष्ट से बचाए रख। जैसे मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं।”—यूहन्ना 17:14-16.
2 यीशु ने दो बार कहा कि उसके चेले, संसार के भाग नहीं होंगे। उसने यह भी बताया कि संसार से अलग रहने की वजह से उन पर मुसीबतें आएँगी क्योंकि संसार उनसे नफरत करने लगेगा। मगर फिर भी मसीहियों को घबराने की ज़रूरत नहीं होगी; यहोवा उनकी मदद करेगा। (नीतिवचन 18:10; मत्ती 24:9, 13) यीशु के इन शब्दों को ध्यान में रखते हुए शायद हम पूछें: ‘सच्चे मसीही, संसार के भाग क्यों नहीं हैं? संसार के भाग न होने का मतलब क्या है? जब संसार, मसीहियों से नफरत करता है, तो वे संसार के बारे में कैसा नज़रिया रखते हैं? खासकर, वे संसार की सरकारों को किस नज़र से देखते हैं?’ बाइबल से इन सवालों के जवाब जानना ज़रूरी है क्योंकि इनका हम सभी की ज़िंदगी से नाता है।
“हम परमेश्वर से हैं”
3. (क) किस वजह से हम संसार से अलग हैं? (ख) क्या सबूत है कि संसार, “दुष्ट के वश में पड़ा है”?
3 संसार के भाग न होने की एक वजह यह है कि यहोवा के साथ हमारा एक नज़दीकी रिश्ता है। प्रेरित यूहन्ना ने लिखा: “हम जानते हैं, कि हम परमेश्वर से हैं, और सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है।” (1 यूहन्ना 5:19) यूहन्ना ने संसार के बारे में जो कहा, वह सौ फीसदी सच है। आज संसार में युद्ध, अपराध, क्रूरता, अत्याचार, बेईमानी और अनैतिकता का तेज़ी से बढ़ना यही दिखाता है कि संसार, शैतान के कब्ज़े में है, न कि परमेश्वर के। (यूहन्ना 12:31; 2 कुरिन्थियों 4:4; इफिसियों 6:12) जब एक इंसान, यहोवा का साक्षी बन जाता है, तो वह ऊपर बताया कोई भी गलत काम नहीं करता, ना ही उन्हें मंज़ूर करता है। इस मायने में वह संसार का भाग नहीं रहता।—रोमियों 12:2; 13:12-14; 1 कुरिन्थियों 6:9-11; 1 यूहन्ना 3:10-12.
4. किन तरीकों से हम दिखाते हैं कि हम यहोवा के हैं?
4 यूहन्ना ने कहा कि मसीही, संसार की तरह नहीं हैं बल्कि वे “परमेश्वर से हैं।” यहोवा को अपना जीवन समर्पित करनेवाले सभी लोग यहोवा के हो जाते हैं। प्रेरित पौलुस ने कहा: “यदि हम जीवित हैं, तो प्रभु के लिये जीवित हैं; और यदि मरते हैं, तो प्रभु के लिये मरते है; सो हम जीएं या मरें, हम प्रभु ही के हैं।” (रोमियों 14:8; भजन 116:15) हम यहोवा के लोग होने की वजह से सिर्फ उसी की भक्ति करते हैं, किसी और की नहीं। (निर्गमन 20:4-6) इसलिए एक सच्चा मसीही, संसार की किसी चीज़ को बढ़ावा देने के लिए अपनी ज़िंदगी समर्पित नहीं करता। और हालाँकि वह राष्ट्रीय चिन्हों का आदर करता है मगर न तो वह उनकी उपासना करता और ना ही उनके लिए अपने मन में श्रद्धा की भावना रखता है। वह खेल-कूद के सितारों या नए ज़माने की किसी और मूरत की उपासना भी नहीं करता। दूसरे चाहें तो ऐसी उपासना करें, मसीही उनके अधिकारों की कदर करता है मगर जहाँ तक उसकी बात है वह सिर्फ सिरजनहार ही की उपासना करता है। (मत्ती 4:10; प्रकाशितवाक्य 19:10) यह एक और वजह है जिससे वह संसार से अलग हो जाता है।
“मेरा राज्य इस जगत का नहीं”
5, 6. परमेश्वर के राज्य के अधीन रहने की वजह से हम संसार से कैसे अलग हो जाते हैं?
5 मसीही, यीशु मसीह के चेले और परमेश्वर के राज्य की प्रजा हैं। इस कारण से भी वे संसार के भाग नहीं हैं। जब यीशु पर मुकद्दमा चलाया जा रहा था, तब उसने पुन्तियुस पीलातुस से कहा: “मेरा राज्य इस जगत का नहीं, यदि मेरा राज्य इस जगत का होता, तो मेरे सेवक लड़ते, कि मैं यहूदियों के हाथ सौंपा न जाता: परन्तु अब मेरा राज्य यहां का नहीं।” (यूहन्ना 18:36) राज्य ही वह इंतज़ाम है जिसके ज़रिए यहोवा के नाम पर से कलंक मिटाया जाएगा, उसकी हुकूमत बुलंद की जाएगी और स्वर्ग की तरह धरती पर भी उसकी मरज़ी पूरी होगी। (मत्ती 6:9, 10) यीशु ने अपनी सेवकाई में शुरू से लेकर आखिर तक उस राज्य की खुशखबरी सुनायी और यह भी बताया कि उसके चेले, जगत के अंत तक उस खुशखबरी का ऐलान करेंगे। (मत्ती 4:23; 24:14) सन् 1914 में, प्रकाशितवाक्य 11:15, 16क में बतायी भविष्यवाणी के ये शब्द पूरे हो गए: “जगत का राज्य हमारे प्रभु का, और उसके मसीह का हो गया। और वह युगानुयुग राज्य करेगा।” और वह दिन भी दूर नहीं जब सारी धरती पर सिर्फ, उस स्वर्गीय राज्य का शासन ही चलेगा। (दानिय्येल ) और एक वक्त पर संसार के शासकों को भी कबूल करना पड़ेगा कि शासन करने का अधिकार सिर्फ परमेश्वर के उस राज्य को है।— 2:44भजन 2:6-12.
6 इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए, आज सच्चे मसीही परमेश्वर के राज्य की प्रजा हैं और वे यीशु की सलाह मानकर ‘पहले परमेश्वर के राज्य और धर्म की खोज कर रहे हैं।’ (मत्ती 6:33) इसका मतलब यह नहीं कि वे जिन देशों में रहते हैं उनके साथ गद्दारी करते हैं बल्कि वे आध्यात्मिक मायने में संसार से अलग हो जाते हैं। पहली सदी की तरह, आज भी मसीहियों का सबसे अहम काम है, “परमेश्वर के राज्य की गवाही” देना। (प्रेरितों 28:23) परमेश्वर से मिले इस काम को रोकने का अधिकार किसी भी इंसानी सरकार के पास नहीं है।
7. सच्चे मसीही, निष्पक्ष क्यों हैं और उन्होंने अपना यह नज़रिया कैसे दिखाया है?
7 यहोवा के साक्षी, यहोवा के अपने लोग होने, यीशु के नक्शेकदम पर चलने और परमेश्वर के राज्य की प्रजा होने की वजह से 20वीं और 21वीं सदी में हुए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय झगड़ों में निष्पक्ष बने रहे। उन लड़ाइयों में साक्षियों ने किसी का भी पक्ष नहीं लिया, किसी पर हथियार नहीं उठाया और ना ही दुनिया के किसी मसले को लेकर प्रोपगैंडा किया। हालाँकि उन्हें वहशियों की तरह सताया गया, फिर भी उन्होंने अपने विश्वास का बढ़िया सबूत दिया। इस तरह वे उन सिद्धांतों पर चले जो उन्होंने सन् 1934 में जर्मनी के नात्ज़ी शासकों को बताए थे: “हमें राजनीतिक मामलों में कोई दिलचस्पी नहीं है लेकिन हम पूरी तरह परमेश्वर के उस राज्य को समर्पित हैं, जिसका राजा मसीह है। हम किसी को भी चोट या नुकसान नहीं पहुँचाएँगे। हमें शांति से जीने और जहाँ तक हो सके, सब लोगों की भलाई करने में खुशी होगी।”
मसीह के राजदूत और उपराजदूत
8, 9. आज यहोवा के साक्षी किस अर्थ में राजदूत और उपराजदूत हैं और इस वजह से राष्ट्रों के साथ उनका कैसा नाता है?
8 पौलुस ने अपने और अपने साथी अभिषिक्त मसीहियों के बारे में कहा कि वे “मसीह के राजदूत” हैं और कहा कि “मानो परमेश्वर हमारे द्वारा समझाता है।” (2 कुरिन्थियों 5:20; इफिसियों 6:19ख, 20) सन् 1914 से आत्मा से अभिषिक्त मसीहियों ने जो भूमिका निभायी है, उसकी वजह से उन्हें परमेश्वर के राज्य के राजदूत कहना बिलकुल सही होगा। और वे उस राज्य की “सन्तान” भी हैं। (मत्ती 13:38; फिलिप्पियों 3:20; प्रकाशितवाक्य 5:9, 10) अभिषिक्त जनों के अलावा, यहोवा ने राष्ट्रों में से ‘अन्य भेड़ों’ की एक “बड़ी भीड़” को भी इकट्ठा किया है। इन मसीहियों को धरती पर जीने की आशा है और वे अभिषिक्त सन्तानों को राजदूत की ज़िम्मेदारियाँ निभाने में मदद दे रहे हैं। (यूहन्ना 10:16, NW; प्रकाशितवाक्य 7:9) इन ‘अन्य भेड़ों’ को परमेश्वर के राज्य के “उपराजदूत” कहा जा सकता है।
9 एक राजदूत और उसके कर्मचारी, जिस देश में सेवा करते हैं, वहाँ के मामलों में वे कोई दखल नहीं देते। उसी तरह, मसीही भी राष्ट्रों के राजनीतिक मामलों से कोई लेना-देना नहीं रखते। वे किसी राष्ट्र, जाति या समाज के किसी वर्ग या किसी तबके के पक्ष में या उसके खिलाफ नहीं खड़े होते। (प्रेरितों 10:34, 35) बल्कि वे “सब के साथ भलाई” करते हैं। (गलतियों 6:10) यहोवा के साक्षी इतने निष्पक्ष हैं कि कोई भी उनके संदेश को ठुकराने का यह कारण नहीं बता सकता कि वे किसी एक जाति, राष्ट्र या जन-जाति की तरफदारी करते हैं।
प्रेम उनकी पहचान है
10. एक मसीही में प्रेम का गुण होना कितना ज़रूरी है?
10 ऊपर बताए कारणों के अलावा, मसीहियों के निष्पक्ष रहने का एक और कारण है, दूसरे मसीहियों के साथ उनका रिश्ता। यीशु ने अपने चेलों से कहा: “यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।” (यूहन्ना 13:35) भाईचारे का प्रेम, मसीहियों की एक खास पहचान है। (1 यूहन्ना 3:14) यहोवा और यीशु के साथ एक मसीही तभी अच्छा रिश्ता कायम रख सकता है जब उसका अपने मसीही भाई-बहनों के साथ रिश्ता अच्छा हो। इसलिए वह उनके साथ एक गहरा नाता रखता है। और ऐसा प्रेम वह सिर्फ अपनी कलीसिया के भाई-बहनों के लिए ही नहीं बल्कि ‘संसार में रहनेवाले अपने भाइयों की पूरी बिरादरी’ के लिए दिखाता है।—1 पतरस 5:9, NW.
11. एक-दूसरे से प्रेम करने की वजह से यहोवा के साक्षियों का चालचलन कैसा रहा है?
11 आज, यहोवा के साक्षी, यशायाह 2:4 के इन शब्दों को पूरा करने के ज़रिए भाईचारे का प्रेम दिखा रहे हैं: “वे अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल और अपने भालों को हंसिया बनाएंगे; तब एक जाति दूसरी जाति के विरुद्ध फिर तलवार न चलाएगी, न लोग भविष्य में युद्ध की विद्या सीखेंगे।” (यशायाह 2:4) यहोवा से सिखलाए जाने की वजह से, सच्चे मसीही, परमेश्वर के साथ और एक-दूसरे के साथ शांति से रहते हैं। (यशायाह 54:13) परमेश्वर से और अपने भाइयों से प्यार होने की वजह से, वे दूसरे देशों के मसीही भाई-बहनों या बाहरवालों पर हथियार उठाने के बारे में सोच भी नहीं सकते। शांति और एकता बनाए रखना उनकी उपासना का एक खास पहलू है और यह एक सबूत है कि परमेश्वर की आत्मा सचमुच उन पर काम कर रही है। (भजन 133:1; मीका 2:12; मत्ती 22:37-39; कुलुस्सियों 3:14) वे ‘मेल को ढूँढ़ते और उसी का पीछा करते’ हैं क्योंकि वे जानते हैं कि “यहोवा की आंखें धर्मियों पर लगी रहती हैं।”—भजन 34:14, 15.
संसार के बारे में मसीहियों का नज़रिया
12. संसार के लोगों के बारे में यहोवा के किस नज़रिए को यहोवा के साक्षी भी अपनाते हैं और वे यह कैसे दिखाते हैं?
12 हालाँकि यहोवा ने इस संसार पर न्यायदंड लाने का अपना फैसला सुना दिया है लेकिन उसने अब तक संसार के हरेक इंसान का न्याय नहीं किया है। उनका न्याय वह यीशु के ज़रिए अपने ठहराए हुए समय पर करेगा। (भजन 67:3, 4; मत्ती 25:31-46; 2 पतरस 3:10) उस समय के आने तक वह सभी इंसानों के लिए गहरा प्रेम दिखा रहा है। यहाँ तक कि उसने अपने एकलौते बेटे को भी दे दिया ताकि हर किसी को हमेशा की ज़िंदगी पाने का मौका मिले। (यूहन्ना 3:16) और हम भी परमेश्वर के प्यार की इस मिसाल पर चलकर लोगों को बताते हैं कि उसने इंसानों के उद्धार के लिए क्या इंतज़ाम किए हैं, इसके बावजूद कि वे हमें कई बार दुत्कारते हैं।
13. हमें संसार के शासकों को किस नज़र से देखना चाहिए?
13 हमें संसार के शासकों को किस नज़र से देखना चाहिए? इसका जवाब हम पौलुस के इन शब्दों में पाते हैं: “हर एक व्यक्ति प्रधान अधिकारियों के आधीन रहे; क्योंकि कोई अधिकार ऐसा नहीं, जो परमेश्वर की ओर से न हो; और जो अधिकार हैं, वे [“अपने अपने स्थान पर,” NW] परमेश्वर के ठहराए हुए हैं।” (रोमियों 13:1, 2) इंसानी अधिकारी “अपने अपने स्थान” पर (वे चाहे एक-दूसरे से छोटे या बड़े पद पर हों मगर सभी यहोवा से कम दर्जे के हैं) इसलिए हैं क्योंकि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने उन्हें उन पदों पर रहने की इजाज़त दी है। एक मसीही, संसार के अधिकारियों के अधीन इसलिए रहता है क्योंकि यह यहोवा की आज्ञा है। लेकिन अगर कभी परमेश्वर की माँगों और इंसानी सरकार की माँगों के बीच तकरार पैदा हो जाए, तो मसीही क्या करते हैं?
परमेश्वर का और कैसर का नियम
14, 15. (क) किस तरह दानिय्येल, एक ऐसे हालात से बच सका जिसमें आज्ञा मानने की परीक्षा हो सकती थी? (ख) जब तीन यहूदी जवानों को आज्ञा मानने की परीक्षा का सामना करना ही पड़ा, तो उन्होंने क्या कदम उठाया?
14 इंसानी सरकारों के अधीन रहने और परमेश्वर के अधीन रहने के बीच, सही तालमेल बिठाने में दानिय्येल और उसके तीन साथियों ने एक बढ़िया मिसाल कायम की। जब ये चार यहूदी नौजवान, बाबुल की बंधुवाई में थे, तब उन्होंने उस देश के कायदे-कानूनों को माना और कुछ ही समय बाद उन्हें खास तालीम के लिए चुना गया। तब दानिय्येल ने भाँप लिया कि उस तालीम के दौरान, परमेश्वर का एक नियम तोड़ने की परीक्षा उनके सामने आ सकती है। इसलिए दानिय्येल ने उस मामले से जुड़े अधिकारी से जाकर बात की। नतीजा यह हुआ कि उन चार नौजवानों की खातिर कुछ खास इंतज़ाम किए गए ताकि उन्हें अपने ज़मीर के खिलाफ कोई काम न करना पड़े। (दानिय्येल 1:8-17) यहोवा के साक्षी भी दानिय्येल की तरह अपनी निष्पक्ष स्थिति के बारे में कुशलता से अधिकारियों को बताते हैं ताकि वे बेवजह मुसीबत में न पड़ें।
15 लेकिन बाद में दानिय्येल के साथियों के सामने एक और परीक्षा आयी कि वे किसकी आज्ञा मानेंगे और इस बार वे हालात से नहीं बच सके। बाबुल के राजा ने दूरा नाम के मैदान में एक बड़ी मूरत खड़ी करवायी और बड़े-बड़े अधिकारियों, साथ ही अलग-अलग प्रांतों के प्रशासकों को भी हुक्म दिया कि वे उसके उद्घाटन समारोह में हाज़िर हों। उस वक्त तक दानिय्येल के तीनों दोस्त, बाबुल के एक प्रांत के प्रशासक बन गए थे इसलिए उन्हें भी मूरत के पास आने का हुक्म मिला। समारोह के दौरान, बताए गए वक्त पर वहाँ हाज़िर सभी लोगों को मूरत के सामने सिजदा करना था। लेकिन वे यहूदी जानते थे कि ऐसा करना परमेश्वर के नियम के खिलाफ है। (व्यवस्थाविवरण 5:8-10) इसलिए जब सभी लोगों ने मूरत के आगे सिजदा किया तो वे खड़े ही रहे। राजा का हुक्म न मानने की वजह से उन्होंने एक खौफनाक मौत का खतरा मोल लिया और उनकी जान सिर्फ एक चमत्कार की वजह से बची; मगर उन्हें यहोवा की आज्ञा तोड़ने के बजाय मौत को गले लगाना मंज़ूर था।—दानिय्येल 2:49–3:29.
16, 17. जब प्रेरितों को प्रचार का काम बंद करने की आज्ञा दी गयी तो उन्होंने क्या जवाब दिया और क्यों?
16 पहली सदी में, यीशु मसीह के प्रेरितों को यरूशलेम के यहूदी अगुवों के सामने बुलाया गया और उन्हें हुक्म दिया गया कि वे यीशु के नाम से प्रचार करना बंद कर दें। तब उन्होंने क्या जवाब दिया? यीशु ने उन्हें सभी जातियों के लोगों को चेला बनाने का काम सौंपा था, जिसमें यहूदिया के लोग भी शामिल थे। उसने यह भी बताया कि उन्हें यरूशलेम में और दुनिया की बाकी सभी जगहों में उसकी गवाही देनी है। (मत्ती 28:19, 20; प्रेरितों 1:8) प्रेरित जानते थे कि यीशु की आज्ञाएँ मानने का मतलब परमेश्वर की मरज़ी पूरी करना है। (यूहन्ना 5:30; 8:28) इसलिए उन्होंने कहा: “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है।”—प्रेरितों 4:19, 20; 5:29.
17 इसका मतलब यह नहीं कि उन प्रेरितों ने बगावत की। (नीतिवचन 24:21) लेकिन जब इंसानी शासकों ने उन्हें वह काम करने से मना किया जिसका हुक्म परमेश्वर ने दिया था तो वे सिर्फ यही जवाब दे सकते थे, ‘इंसानों की नहीं बल्कि परमेश्वर की आज्ञा मानना हमारा फर्ज़ है।’ यीशु ने बताया कि हमें “जो कैसर का है वह कैसर को, और जो परमेश्वर का है परमेश्वर को” देना चाहिए। (मरकुस 12:17) अगर हम किसी इंसान के कहने पर परमेश्वर की आज्ञा तोड़ दें, तो हम इंसान को वह चीज़ दे रहे हैं जिस पर परमेश्वर का हक बनता है। इसलिए हम कैसर को सिर्फ वही चीज़ें देते हैं जिन पर उसका हक बनता है और मानते हैं कि सबसे ऊँचा अधिकारी, यहोवा है। यहोवा ही सारे विश्व का मालिक, सिरजनहार और सभी को अधिकार देनेवाला है।—प्रकाशितवाक्य 4:11.
हम स्थिर खड़े रहेंगे
18, 19. हमारे बहुत-से भाइयों ने कौन-सी स्थिति अपनाने में बढ़िया मिसाल रखी और हम कैसे उनकी मिसाल पर चल सकते हैं?
18 आज ज़्यादातर सरकारों ने इस बात को स्वीकार किया है कि यहोवा के साक्षी निष्पक्ष रहते हैं और इसके लिए हम उनके शुक्रगुज़ार हैं। लेकिन कुछ देशों में इसी बात को लेकर साक्षियों का कड़ा विरोध किया गया है। फिर भी, पूरी बीसवीं सदी के दौरान और आज भी, कुछ भाई-बहनों ने आध्यात्मिक अर्थ में पूरे साहस के साथ “विश्वास की अच्छी कुश्ती” लड़ी है।—1 तीमुथियुस 6:12.
19 हम भी उन भाई-बहनों की तरह कैसे स्थिर खड़े रह सकते हैं? सबसे पहले तो हमें याद रखना है कि हमें ज़रूर विरोध का सामना करना पड़ेगा। जब हमारा विरोध किया जाएगा तो हमें निराश नहीं हो जाना चाहिए या फिर हैरान नहीं होना चाहिए। पौलुस ने तीमुथियुस को आगाह किया था: “जितने मसीह यीशु में भक्ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं वे सब सताए जाएंगे।” (2 तीमुथियुस 3:12; 1 पतरस 4:12) आखिर, जब यह संसार शैतान की मुट्ठी में है, तो हम भला विरोध का सामना करने की उम्मीद कैसे नहीं कर सकते? (प्रकाशितवाक्य 12:17) जब तक हम अपनी वफादारी बनाए रखेंगे, तब तक हमें देखकर ‘अचम्भा करनेवाले’ और हमारे बारे में “बुरा भला” कहनेवाले कुछ लोग ज़रूर होंगे।—1 पतरस 4:4.
20. हमें कौन-सी हौसला बढ़ानेवाली सच्चाइयाँ याद दिलायी जाती हैं?
20 दूसरी बात, हमें पूरा भरोसा है कि यहोवा और उसके स्वर्गदूत हमारी मदद करेंगे। जैसे प्राचीन समय में एलीशा ने कहा था, “जो हमारी ओर हैं, वह उन से अधिक हैं, जो उनकी ओर हैं।” (2 राजा 6:16; भजन 34:7) हो सकता है कि किसी अच्छे कारण से यहोवा, कुछ समय तक विरोधियों को हम पर अत्याचार करने की इजाज़त दे। फिर भी वह हमें सहने की शक्ति ज़रूर देता रहेगा। (यशायाह 41:9, 10) कुछ भाई-बहनों को तो जान से मार डाला गया है मगर फिर भी हम डरते नहीं। यीशु ने कहा था: “जो शरीर को घात करते हैं, पर आत्मा को घात नहीं कर सकते, उन से मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नाश कर सकता है।” (मत्ती 10:16-23, 28) इस दुनिया में हम सिर्फ “यात्री” हैं। यहाँ रहते वक्त हम अपने समय का इस्तेमाल “सत्य जीवन को वश में” करने के लिए यानी परमेश्वर की नयी दुनिया में मिलनेवाली हमेशा की ज़िंदगी हासिल करने के लिए करते हैं। (1 पतरस 2:11; 1 तीमुथियुस 6:19) जब तक हम परमेश्वर के वफादार रहेंगे, तब तक कोई भी इंसान हमसे वह इनाम नहीं छीन सकेगा।
21. हमें क्या बात हमेशा याद रखनी चाहिए?
21 इसलिए आइए हम हमेशा याद रखें कि यहोवा परमेश्वर के साथ हमारा कितना अनमोल रिश्ता है। इस बात के लिए हमारी कदरदानी कभी कम न हो कि हमें मसीह के चेले और राज्य की प्रजा बनने की आशीष मिली है। आइए हम सच्चे दिल से अपने भाइयों को प्यार करें और वे हमें जो प्यार देते हैं उसे खुशी-खुशी कबूल करें। और सबसे बढ़कर हम भजनहार के इन शब्दों को मानें: “यहोवा की बाट जोहता रह; हियाव बान्ध और तेरा हृदय दृढ़ रहे; हां, यहोवा ही की बाट जोहता रह!” (भजन 27:14; यशायाह 54:17) तब हम भी, हमसे पहले आए अनगिनत मसीहियों की तरह, स्थिर खड़े रहेंगे और हमारी आशा पक्की रहेगी। जी हाँ, हम ऐसे वफादार मसीह बने रहेंगे जो निष्पक्ष और संसार के भाग नहीं हैं।
क्या आप समझा सकते हैं?
• यहोवा के साथ रिश्ता होने की वजह से हम कैसे संसार से अलग हो जाते हैं?
• परमेश्वर के राज्य की प्रजा होने की वजह से हम संसार के मामलों में कैसे निष्पक्ष होते हैं?
• अपने भाइयों से प्रेम होने की वजह से हम कैसे निष्पक्ष होते यानी संसार से अलग रहते हैं?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 15 पर तसवीर]
परमेश्वर के राज्य की हुकूमत मानने की वजह से, संसार के साथ हमारा रिश्ता कैसा है?
[पेज 16 पर तसवीर]
एक हूटू और एक टूट्सी, खुशी-खुशी मिलकर काम कर रहे हैं
[पेज 17 पर तसवीर]
यहूदी और अरबी मसीही भाई
[पेज 17 पर तसवीर]
सर्बिया, बॉसनिया और क्रोयेशिया के मसीही एक-दूसरे की संगति का आनंद ले रहे हैं
[पेज 18 पर तसवीर]
जब अधिकारी हमें परमेश्वर की आज्ञा तोड़ने का हुक्म देते हैं, तो क्या करना सही होगा?