सच्चे संत कैसे आपकी मदद कर सकते हैं?
सच्चे संत कैसे आपकी मदद कर सकते हैं?
कुछ बाइबलों में जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “सन्त” किया गया है, उसका अनुवाद “पवित्र जन” भी किया जा सकता है। बाइबल में यह शब्द किन लोगों के लिए इस्तेमाल किया गया है? एन एक्सपॉज़िट्री डिक्शनरी ऑफ न्यू टॆस्टमेंट वर्ड्स कहती है: “जब यह शब्द, विश्वासियों के बारे में बताने के लिए बहुवचन में इस्तेमाल किया जाता है, तो यह सभी विश्वासियों को दर्शाता है, सिर्फ उन लोगों को ही नहीं जो खास तौर से पवित्र थे या उन मरे हुओं को नहीं जिनके पवित्र काम दूसरों के कामों से उम्दा थे।”
इसलिए, प्रेरित पौलुस ने शुरू के सभी मसीहियों को सच्चे संत या पवित्र जन कहा। मसलन, सा.यु. पहली सदी में उसने “परमेश्वर की उस कलीसिया के नाम जो कुरिन्थुस में है; और सारे अखया [रोम का एक प्रांत] के सब पवित्र लोगों के नाम” एक खत लिखा। (2 कुरिन्थियों 1:1) बाद में उसने रोम की कलीसिया और उनके साथ रहनेवाले “सभी सन्तों को” खत लिखा। (रोमियों 16:15, बुल्के बाइबिल) ज़ाहिर है कि जब पौलुस ने यह खत लिखा, तब तक ये पवित्र जन ज़िंदा ही थे और उन्हें उनके किसी खास सद्गुण की वजह से दूसरे विश्वासियों से ऊँचा दर्जा नहीं दिया गया था। तो फिर, उन्हें किस बिनाह पर संत कहलाने का सम्मान दिया गया?
परमेश्वर की ओर से पवित्र ठहराए गए
परमेश्वर का वचन दिखाता है कि इंसान या कोई संगठन, एक व्यक्ति को संत नहीं ठहरा सकता। यह कहता है: ‘परमेश्वर ने हमारा उद्धार किया, और पवित्र बुलाहट से बुलाया, और यह हमारे कामों के अनुसार नहीं; पर उसकी मनसा और अनुग्रह के अनुसार है।’ (2 तीमुथियुस 1:9) एक व्यक्ति यहोवा की तरफ से बुलावा पाकर और उसकी अपार दया और उसके उद्देश्य के मुताबिक ही पवित्र ठहराया जाता है।
मसीही कलीसिया के पवित्र जन वे लोग हैं जिनके साथ “नई वाचा” बाँधी गयी है। यीशु मसीह का बहाया गया लहू इस वाचा को जायज़ करार देता और उसके सदस्यों को पवित्र ठहराता है। (इब्रानियों 9:15; 10:29; 13:20, 24) परमेश्वर की नज़रों में शुद्ध होने के कारण वे “याजकों का पवित्र समाज” बनते हैं और वे ‘ऐसे आत्मिक बलिदान चढ़ाते हैं, जो यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर को ग्राह्य हैं।’—1 पतरस 2:5, 9.
संतों से या उनके ज़रिए प्रार्थना करना
लाखों लोगों का मानना है कि “संत,” विश्वासियों को खास शक्ति प्रदान कर सकते हैं इसलिए वे या तो संतों से ताल्लुक रखनेवाली चीज़ों का इस्तेमाल करके या फिर उनके नाम से प्रार्थनाएँ करके उनको श्रद्धा देते हैं। लेकिन क्या ऐसा करना बाइबल के मुताबिक सही है? यीशु ने पहाड़ी उपदेश में अपने अनुयायियों को सिखाया कि उन्हें परमेश्वर से प्रार्थना कैसे करनी चाहिए। उसने कहा: “सो तुम इस मत्ती 6:9) यह दिखाता है कि प्रार्थना, सिर्फ यहोवा परमेश्वर से की जानी चाहिए, किसी और से नहीं।
रीति से प्रार्थना किया करो; ‘हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए।’” (यह साबित करने के लिए कि “संतों” के ज़रिए प्रार्थना करना बाइबल के मुताबिक सही है, कुछ धर्म-विज्ञानी रोमियों 15:30 का हवाला देते हैं। इस आयत में हम पढ़ते हैं: “हे भाइयो; मैं यीशु मसीह का जो हमारा प्रभु है और पवित्र आत्मा के प्रेम का स्मरण दिला कर, तुम से बिनती करता हूं, कि मेरे लिये परमेश्वर से प्रार्थना करने में मेरे साथ मिलकर लौलीन रहो।” क्या पौलुस उन विश्वासियों से यह कह रहा था कि वे उससे प्रार्थना करें या उसके नाम से परमेश्वर से प्रार्थना करें? नहीं। हालाँकि बाइबल में हमें सच्चे संतों या पवित्र जनों की खातिर प्रार्थना करने के लिए बढ़ावा दिया गया है, लेकिन परमेश्वर ने बाइबल में कहीं भी यह आज्ञा नहीं दी है कि हमें पवित्र जनों से या उनके ज़रिए प्रार्थना करनी चाहिए।—फिलिप्पियों 1:1, 3, 4.
लेकिन परमेश्वर ने खुद एक व्यक्ति को नियुक्त किया है जिसके ज़रिए हम प्रार्थना कर सकते हैं। वह कौन है? इस बारे में यीशु मसीह ने कहा था: “मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता।” यीशु ने यह भी कहा: ‘मेरे नाम से जो कुछ पिता से मांगो, वह तुम्हें देगा।’ (यूहन्ना 14:6; 15:16) हम इस बात का पूरा यकीन रख सकते हैं कि यीशु के नाम से की जानेवाली प्रार्थनाओं को यहोवा ज़रूर सुनेगा। यीशु के बारे में बाइबल कहती है: “जो उसके द्वारा परमेश्वर के पास आते हैं, वह उन का पूरा पूरा उद्धार कर सकता है, क्योंकि वह उन के लिये बिनती करने को सर्वदा जीवित है।”—इब्रानियों 7:25.
जब यीशु, हमारा ज़रिया होने के लिए तैयार है, तो ईसाईजगत के ज़्यादातर लोग “संतों” के नाम से क्यों प्रार्थना करते हैं? अपनी किताब, विश्वास का युग (अँग्रेज़ी) में इतिहासकार, विल ड्यूरंट बताते हैं कि संतों के नाम से प्रार्थना करने की प्रथा कैसे शुरू हुई। वे बताते हैं कि लोग हालाँकि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के लिए गहरी श्रद्धा रखते थे और दूसरों से ज़्यादा यीशु को पहुँच के लायक समझते थे, लेकिन “यीशु के बताए धन्य वचनों का घोर उल्लंघन करने के बाद, एक इंसान में [यीशु] से आमने-सामने बात करने की हिम्मत शायद ही रहेगी। इसलिए उन्हें यह बात ज़्यादा सही लगी कि वे संतों के सामने, जिनके बारे में उन्हें पक्का यकीन था कि चर्च की तरफ से संत ठहराए जाने की वजह से वे ज़रूर स्वर्ग में होंगे, अपनी मिन्नतें पेश करें और संतों से यह बिनती करें कि वे उनकी तरफ से मसीह से याचना करें।” क्या लोगों का यह मानना सही है कि वे यीशु
के ज़रिए, सीधे परमेश्वर से प्रार्थना करने के लायक नहीं हैं?बाइबल समझाती है कि हम यीशु के ज़रिए, “भरोसे के साथ निर्भय होकर” परमेश्वर से प्रार्थना कर सकते हैं। (इफिसियों 3:11, 12, द होली बाइबल, आर.ओ.वी.) सर्वशक्तिमान परमेश्वर, इंसानों से इतना दूर नहीं कि वह हमारी प्रार्थनाएँ सुन न सके। भजनहार, दाऊद ने पूरे भरोसे के साथ यह प्रार्थना की: “हे प्रार्थना के सुननेवाले! सब प्राणी तेरे ही पास आएंगे।” (भजन 65:2) यहोवा, मरे हुए “संतों” के अवशेषों के ज़रिए शक्ति प्रदान नहीं करता बल्कि जो पूरे विश्वास के साथ उससे पवित्र आत्मा देने की बिनती करते हैं उन पर वह अपनी पवित्र आत्मा उंडेलता है। यीशु ने दलील देते हुए समझाया: “जब तुम बुरे होकर अपने लड़केबालों को अच्छी वस्तुएं देना जानते हो, तो स्वर्गीय पिता अपने मांगनेवालों को पवित्र आत्मा क्यों न देगा।”—लूका 11:13.
पवित्र जनों की भूमिका
पौलुस ने जिन पवित्र जनों को पत्रियाँ लिखीं, उनको मरे आज सदियाँ बीत चुकी हैं। उनकी मौत के लंबे अरसे बाद उनका स्वर्ग में पुनरुत्थान किया गया और उन्हें “जीवन का मुकुट” दिया गया। (प्रकाशितवाक्य 2:10) इन सच्चे संतों के बारे में यहोवा परमेश्वर की उपासना करनेवाले यह समझते हैं कि उनकी पूजा करना बाइबल के खिलाफ है और यह बीमारियों, प्राकृतिक विपत्तियों, आर्थिक अस्थिरता, बुढ़ापे और मौत से छुटकारा नहीं दिला सकता। इसलिए शायद आप पूछें, ‘क्या परमेश्वर के पवित्र जन सचमुच हमारी परवाह करते हैं? क्या हम उनसे मदद पाने की उम्मीद कर सकते हैं?’
दानिय्येल ने अपनी एक भविष्यवाणी में पवित्र जनों का खास ज़िक्र किया है। सामान्य युग पूर्व छठी सदी में दानिय्येल ने एक रोमांचक दर्शन देखा था, जो आज हमारे दिनों में भी पूरा हो रहा है। उसने देखा कि इंसान की बनायी सरकारें, जिनकी तुलना समुद्र से निकलनेवाले चार भयानक पशुओं से की गयी है, इंसानों की असल ज़रूरतें पूरी करने में नाकाम होती हैं। उनके बारे में बताने के बाद, दानिय्येल ने भविष्यवाणी की: “परन्तु परमप्रधान के पवित्र लोग राज्य को पाएंगे, और युगानयुग उसके अधिकारी बने रहेंगे।”—दानिय्येल 7:17, 18.
पौलुस ने “पवित्र लोगों” को मिलनेवाली इस “मीरास” या विरासत की सच्चाई को पुख्ता किया। (इफिसियों 1:18-21) उनको मिलनेवाली विरासत यह है कि वे स्वर्ग में मसीह के साथी राजा बनेंगे। यीशु के लहू ने 1,44,000 पवित्र जनों के लिए स्वर्ग में पुनरुत्थान पाकर महिमा हासिल करने का रास्ता खोल दिया। प्रेरित यूहन्ना ने कहा: “धन्य और पवित्र वह है, जो इस पहिले पुनरुत्थान का भागी है; ऐसों पर दूसरी मृत्यु का कुछ भी अधिकार नहीं, पर वे परमेश्वर और मसीह के याजक होंगे, और उसके साथ हजार वर्ष तक राज्य करेंगे।” (प्रकाशितवाक्य 20:4, 6; 14:1, 3) दर्शन में यूहन्ना ने अनगिनत स्वर्गीय प्राणियों को, महिमा से भरपूर, यीशु के सामने यह गीत गाते देखा: “तू ने . . . अपने लोहू से हर एक कुल, और भाषा, और लोग, और जाति में से परमेश्वर के लिये लोगों को मोल लिया है। और उन्हें हमारे परमेश्वर के लिये एक राज्य और याजक बनाया; और वे पृथ्वी पर राज्य करते हैं।” (प्रकाशितवाक्य 5:9, 10) इस बात से हमें कितनी सांत्वना मिलती है! राज करनेवाले इन स्त्री-पुरुषों को यहोवा परमेश्वर ने खुद बड़े ध्यान से चुना है। इसके अलावा, उन्होंने धरती पर वफादारी से सेवा की है, और वे तकरीबन ऐसी हर तकलीफ से गुज़रे हैं जो इंसानों पर आती है। (1 कुरिन्थियों 10:13) इसलिए हम भरोसा रख सकते हैं कि पुनरुत्थान पानेवाले ये पवित्र जन या संत हम पर दया और हमदर्दी दिखाते हुए राज करेंगे, हमारी कमज़ोरियों और मजबूरियों को ध्यान में रखते हुए हमारे साथ पेश आएँगे।
राज्य के शासन में मिलनेवाली आशीषें
परमेश्वर का राज्य यानी उसकी सरकार, बहुत जल्द धरती पर से हर तरह की बुराई और दुःख-तकलीफ का नामोनिशान मिटा देगी। उस वक्त, इंसान परमेश्वर के इतने करीब महसूस करेंगे, जितना उन्होंने पहले कभी महसूस नहीं किया। यूहन्ना ने लिखा: “फिर मैं ने सिंहासन में से किसी को ऊंचे शब्द से यह कहते हुए सुना, कि देख, परमेश्वर का डेरा मनुष्यों के बीच में है; वह उन के साथ डेरा करेगा, और वे उसके लोग होंगे, प्रकाशितवाक्य 21:3, 4.
और परमेश्वर आप उन के साथ रहेगा; और उन का परमेश्वर होगा।” इससे इंसानों को बेशुमार आशीषें मिलेंगी क्योंकि भविष्यवाणी आगे कहती है: “वह उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं।”—वह क्या ही खुशी का समय होगा! मसीह यीशु और 1,44,000 पवित्र जनों के सिद्ध शासन के दूसरे नतीजों के बारे में मीका 4:3,4 कहता है: “[यहोवा] बहुत देशों के लोगों का न्याय करेगा, और दूर दूर तक की सामर्थी जातियों के झगड़ों को मिटाएगा; सो वे अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल, और अपने भालों से हंसिया बनाएंगे; तब एक जाति दूसरी जाति के विरुद्ध तलवार फिर न चलाएगी; और लोग आगे को युद्ध-विद्या न सीखेंगे। परन्तु वे अपनी अपनी दाखलता और अंजीर के वृक्ष तले बैठा करेंगे, और कोई उनको न डराएगा; सेनाओं के यहोवा ने यही वचन दिया है।”
पवित्र लोग, सभी को यह न्यौता दे रहे हैं कि वे इन आशीषों का फायदा उठाएँ। ये सच्चे संत, जिनकी तुलना एक दुल्हन से की गयी है, लगातार यह न्योता देते हैं: “आ।” आयत आगे कहती है: “और सुननेवाला भी कहे, कि आ; और जो प्यासा हो, वह आए, और जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले।” (प्रकाशितवाक्य 22:17) “जीवन का जल” किन बातों को दर्शाता है? इसमें बहुत-सी बातें शामिल हैं, जिनमें से एक है, परमेश्वर के उद्देश्यों के बारे में सही-सही जानकारी पाना। यीशु ने परमेश्वर से प्रार्थना में कहा था: “अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें।” (यूहन्ना 17:3) यह ज्ञान, बाइबल का नियमित तौर पर अध्ययन करने से हासिल किया जा सकता है। हम कितने शुक्रगुज़ार हैं कि परमेश्वर के वचन से हम, पवित्र जनों की सही-सही पहचान कर सकते हैं और जान सकते हैं कि परमेश्वर उनके ज़रिए कैसे इंसानों को हमेशा के लिए फायदा पहुँचाएगा।
[पेज 4 पर तसवीर]
परमेश्वर की प्रेरणा पाकर पौलुस ने सच्चे संतों को पत्रियाँ लिखीं
[पेज 5 पर तसवीर]
यीशु के वफादार प्रेरित, सच्चे संत या पवित्र जन बने
[पेज 6 पर तसवीर]
हम यीशु मसीह के ज़रिए पूरे भरोसे के साथ परमेश्वर से प्रार्थना कर सकते हैं
[पेज 7 पर तसवीर]
पुनरुत्थान पानेवाले संत या पवित्र जन, हमदर्दी दिखाते हुए धरती पर शासन करेंगे