“उद्धार यहोवा ही की ओर से होता है”
“उद्धार यहोवा ही की ओर से होता है”
जब किसी देश पर आफत आती है या देशों के बीच तनाव पैदा होता है, तो लोग सुरक्षा के लिए अपनी-अपनी सरकार पर आस लगाते हैं। और ऐसे वक्त पर सरकारें भी पूरी जनता का समर्थन पाने के लिए बड़े ज़ोर-शोर से योजनाएँ बनाती हैं। इन योजनाओं के ज़रिए लोगों में जितनी ज़्यादा देश-भक्ति की भावना बढ़ायी जाती है, उतने ही देश-भक्ति के कार्यक्रम चलाए जाते हैं और लोगों में अपने वतन के लिए जोश बढ़ता जाता है।
जब एक देश पर संकट के काले बादल मँडराते हैं, तो देश-भक्ति की भावना अकसर लोगों की आपसी एकता को मज़बूत करती है और उन्हें एहसास दिलाती है कि उनका देश कितना ताकतवर है। और इससे उनमें एक-दूसरे को सहारा देने और समाज की भलाई के लिए कदम उठाने की प्रेरणा जाग सकती है। लेकिन, द न्यू यॉर्क टाइम्स मैगज़ीन का एक लेख बताता है कि “दूसरी सभी भावनाओं की तरह देश-भक्ति की भावना भी खतरनाक साबित हो सकती है” क्योंकि “अगर इस भावना को काबू में न रखा जाए, तो यह तबाही मचा सकती है।” देश-प्रेम दिखाने के आम तरीके भी भयानक रूप ले सकते हैं और इससे देश के कुछेक लोगों के नागरिक अधिकारों और अपना धर्म मानने की उनकी आज़ादी खतरे में पड़ सकती है। ऐसे हालात में खासकर सच्चे मसीहियों पर बहुत दबाव आता है कि वे अपने धार्मिक विश्वास से मुकर जाएँ। जब उनके सामने ऐसे हालात पैदा होते हैं, तो वे क्या करते हैं? ऐसे वक्त पर समझ से काम लेने और परमेश्वर के लिए अपनी खराई बनाए रखने में बाइबल के कौन-से उसूल उनकी मदद करते हैं?
“तू उनको दण्डवत् न करना”
कभी-कभी, राष्ट्रीय झंडे को सलाम करना, देश-प्रेम दिखाने का आम तरीका माना जाता है। लेकिन ज़्यादातर झंडों में सितारों और आकाश की दूसरी चीज़ों, साथ ही धरती की चीज़ों की तसवीरें होती हैं। ऐसी चीज़ों के सामने झुकने के बारे में परमेश्वर की क्या राय है, यह हमें उस आज्ञा से पता चलता है जो उसने अपने लोगों को दी थी: “तू अपने लिये कोई मूर्ति खोदकर न बनाना, न किसी कि प्रतिमा बनाना, जो आकाश में, वा पृथ्वी पर, वा पृथ्वी के जल में है। तू उनको दण्डवत् न करना, और न उनकी उपासना करना; क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर यहोवा जलन रखने वाला [‘एकनिष्ठ भक्ति की माँग करनेवाला,’ NW] ईश्वर हूं।”—निर्गमन 20:4, 5.
क्या एक राष्ट्रीय झंडे को सलामी देने या उसके सामने घुटने टेकने से, यहोवा परमेश्वर को एकनिष्ठ भक्ति देने की आज्ञा का सचमुच उल्लंघन होता है? यह सच है कि प्राचीन समय में इस्राएलियों के वीराने में रहते वक्त उनके भी कुछ “प्रतीक” या झंडे थे जिनके चारों तरफ, तीन-तीन गोत्रों के समूह में लोग, पड़ाव डालते थे। (गिनती 2:1, 2, NHT) इन प्रतीकों के लिए बाइबल में इस्तेमाल किए गए इब्रानी शब्दों के बारे में मैक्लिंटॉक और स्ट्राँग का विश्वकोश कहता है: “इन इब्रानी शब्दों में से एक भी शब्द का वह मतलब नहीं है, जो आम-तौर पर शब्द ‘प्रतीक’ सुनते ही हमारे खयाल में आता है, यानी झंडा।” इसके अलावा, इस्राएल में उन प्रतीकों को पवित्र नहीं माना जाता था, ना ही उनके साथ कोई रीति-रिवाज़ जुड़े थे। इन प्रतीकों का इस्तेमाल बस निशानियों के तौर पर किया जाता था, यह दिखाने के लिए कि लोगों को कहाँ-कहाँ इकट्ठा होना है।
निवासस्थान और सुलैमान के मंदिर में, करूबों की नक्काशी का मकसद सिर्फ स्वर्ग में रहनेवाले करूबों का एक नमूना पेश करना था। (निर्गमन 25:18; 26:1, 31, 33; 1 राजा 6:23, 28, 29; इब्रानियों 9:23, 24) करूबों की ये नक्काशियाँ, उपासना के लिए नहीं बनायी गयी थीं। यह इस बात से पता चलता है कि आम इस्राएली कभी-भी इन करूबों को नहीं देख सकते थे और सचमुच के स्वर्गदूतों की उपासना करने की भी मनाही की गयी है।—कुलुस्सियों 2:18; प्रकाशितवाक्य 19:10; 22:8, 9.
इसके अलावा, वीराने में इस्राएलियों की यात्रा के दौरान मूसा के बनाए ताँबे के साँप की मिसाल पर भी गौर कीजिए। साँप की वह प्रतिमा एक चिन्ह के तौर पर इस्तेमाल की गयी थी और उससे भविष्य में होनेवाली एक घटना को दर्शाया गया था। (गिनती 21:4-9; यूहन्ना 3:14, 15) उसे श्रद्धा नहीं दी जाती थी या उपासना में उसका इस्तेमाल नहीं किया जाता था। लेकिन मूसा के समय के सदियों बाद, इस्राएली, परमेश्वर की आज्ञा के खिलाफ जाकर उस प्रतिमा की उपासना करने लगे, यहाँ तक कि उन्होंने उसके आगे धूप भी जलाया। इसलिए, यहूदा के राजा हिजकिय्याह ने उसे चूर-चूर करवा दिया।—2 राजा 18:1-4.
क्या आज के राष्ट्रीय झंडे भी ऐसे प्रतीक हैं जो किसी फायदेमंद काम के लिए खड़े किए जाते हैं? झंडे दरअसल किस बात को दर्शाते हैं? लेखक, जे. पॉल विलियम्स ने कहा: “राष्ट्रवाद के विश्वास की सबसे बड़ी निशानी और उपासना की सबसे खास चीज़ है, झंडा।” दी इनसाक्लोपीडिया अमैरिकाना कहती है: “झंडा भी, क्रूस की तरह पवित्र है।” झंडा, एक राष्ट्रीय चिन्ह है। इसलिए झंडे के सामने झुकना या उसको सलामी देना, राष्ट्र को श्रद्धा देने की एक धार्मिक रस्म है। ऐसा करना यह विश्वास ज़ाहिर करता है कि उद्धार, सरकार की ओर से मिलता है। इसलिए यह मूर्तिपूजा के बारे में बाइबल में बताए नियम के खिलाफ है।
बाइबल साफ शब्दों में बताती है: “उद्धार यहोवा ही की ओर से होता है।” (भजन 3:8) उद्धार का श्रेय, इंसान के बनाए संगठनों या उन्हें दर्शानेवाले चिन्हों को नहीं दिया जाना चाहिए। प्रेरित पौलुस ने अपने मसीही भाई-बहनों को सलाह दी: “हे मेरे प्रियो, मूर्तिपूजा से भागो।” (1 कुरिन्थियों 10:14, NHT) शुरू के मसीहियों ने ऐसे कामों में हिस्सा नहीं लिया जिनमें देश की उपासना की जाती थी। डैनियल पी. मैनिक्स, ने किताब वे जो मरने वाले थे (अँग्रेज़ी) में कहा: “मसीहियों ने . . . [रोमी] सम्राट की संरक्षक आत्मा को बलिदान चढ़ाने से इनकार कर दिया—उनका ऐसा इनकार करना एक तरह से आज के ज़माने में झंडे को सलामी देने से इनकार करने के बराबर है।” आज के सच्चे मसीही भी यही नज़रिया रखते हैं। वे यहोवा को एकनिष्ठ भक्ति देना चाहते हैं, इसलिए वे किसी भी देश के झंडे को सलामी नहीं देते। इस तरह वे परमेश्वर को सबसे ऊँचा दर्जा देते हैं, मगर वे सरकारों और उनके शासकों का आदर भी करते हैं। उन्हें अपनी इस ज़िम्मेदारी का भी एहसास है कि उन्हें सरकार के “प्रधान अधिकारियों” के अधीन रहना है। (रोमियों 13:1-7) लेकिन राष्ट्र-गान और देश-भक्ति के दूसरे गीत गाने के बारे में बाइबल क्या कहती है?
राष्ट्र-गान क्या हैं?
दी इनसाक्लोपीडिया अमैरिकाना कहती है: “राष्ट्र-गान में देश-प्रेम की भावना ज़ाहिर की जाती है और अकसर ईश्वर से बिनती की जाती है कि वह देश की जनता या उसके शासकों का मार्गदर्शन और उनकी रक्षा करे।” राष्ट्र-गान, दरअसल एक राष्ट्र के लिए गाया जानेवाला भजन या प्रार्थना है। यह आम तौर पर, देश की समृद्धि और उसके हमेशा कायम रहने के लिए की जानेवाली प्रार्थना होती है। क्या सच्चे मसीहियों को ऐसी प्रार्थनाओं में शरीक होना चाहिए?
भविष्यवक्ता यिर्मयाह ऐसे लोगों के बीच रहता था जो परमेश्वर के सेवक होने का दावा करते थे। फिर भी यहोवा ने उसे आज्ञा दी: “इस प्रजा के लिये तू प्रार्थना मत कर, न इन लोगों के लिये ऊंचे स्वर से पुकार न मुझ से बिनती कर, क्योंकि मैं तेरी नहीं सुनूंगा।” (यिर्मयाह 7:16; 11:14; 14:11) यिर्मयाह को यह आज्ञा क्यों दी गयी थी कि वह उन लोगों की खातिर प्रार्थना न करे? क्योंकि वे चोरी, हत्या, व्यभिचार, झूठी शपथ खाने और मूर्तिपूजा जैसे अपराध करने में डूबे हुए थे।—यिर्मयाह 7:9.
यीशु मसीह की मिसाल पर गौर कीजिए कि उसने क्या कहा: “मैं . . . संसार के लिये बिनती नहीं करता हूं परन्तु उन्हीं के लिये जिन्हें तू ने मुझे दिया है।” (यूहन्ना 17:9) बाइबल बताती है कि “सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है” और यह ‘मिटता जाता है।’ (1 यूहन्ना 2:17; 5:19) तो फिर, सच्चे मसीहियों का ज़मीर उन्हें यह प्रार्थना करने की इजाज़त कैसे देगा कि शैतान का यह संसार समृद्ध और हमेशा बरकरार रहे?
यह सच है कि सभी राष्ट्रीय गीतों में परमेश्वर से बिनती नहीं की जाती। इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका कहती है: “राष्ट्रीय गीतों में तरह-तरह की भावनाएँ इज़हार की जाती हैं, किसी में सम्राट की सलामती की प्रार्थना की जाती है, तो किसी में देश के इतिहास में हुई कुछ अहम लड़ाइयों या संग्रामों का ज़िक्र किया जाता है . . . तो किसी में वतन के लिए प्यार के यशायाह 2:4) प्रेरित पौलुस ने लिखा था: “यद्यपि हम शरीर में चलते फिरते हैं, तौभी शरीर के अनुसार नहीं लड़ते। क्योंकि हमारी लड़ाई के हथियार शारीरिक नहीं।”—2 कुरिन्थियों 10:3, 4.
कुछ बोल होते हैं।” लेकिन जो लोग परमेश्वर को खुश करना चाहते हैं, वे क्या किसी भी राष्ट्र के युद्धों और क्रांतियों के बारे में गर्व महसूस कर सकते हैं? सच्चे उपासकों के बारे में यशायाह ने यह भविष्यवाणी की: “वे अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल और अपने भालों को हंसिया बनाएंगे।” (ज़्यादातर राष्ट्र-गीतों में एक देश के लिए अभिमान ज़ाहिर किया जाता है या उसे बाकी देशों से महान कहकर उसका गुणगान किया जाता है। ऐसा रवैया बाइबल के मुताबिक सही नहीं है। प्रेरित पौलुस ने अरियुपगुस पर भाषण देते वक्त कहा था: “[यहोवा परमेश्वर] ने एक ही मूल से मनुष्यों की सब जातियां सारी पृथ्वी पर रहने के लिये बनाई हैं।” (प्रेरितों 17:26) प्रेरित पतरस ने कहा था: “परमेश्वर किसी का पक्ष नहीं करता, बरन हर जाति में जो उस से डरता और धर्म के काम करता है, वह उसे भाता है।”—प्रेरितों 10:34, 35.
बाइबल से पायी समझ के मुताबिक, बहुत-से लोग झंडे को सलाम न करने और देश-भक्ति के गीत न गाने का फैसला करते हैं। लेकिन अगर कभी उन्हें झंडे को सलाम करने या देश-भक्ति के गीत गाने को कहा जाता है, तो वे क्या करते हैं?
आदर के साथ इनकार करें
प्राचीन बाबुल के राजा, नबूकदनेस्सर ने अपने साम्राज्य की एकता मज़बूत करने के लिए, दूरा नाम के मैदान में सोने की एक विशाल मूरत खड़ी करवायी। फिर उसने एक उद्घाटन समारोह आयोजित किया जिसमें उसने अपने अधिपतियों, हाकिमों, गवर्नरों, जजों और दूसरे उच्च अधिकारियों को आने का न्यौता दिया। वहाँ इकट्ठे हुए सभी लोगों को आज्ञा दी गयी कि संगीत शुरू होते ही, वे उस मूरत के आगे झुककर उसकी उपासना करें। जिन लोगों को बुलावा भेजा गया उनमें ये तीन इब्री जवान भी थे—शद्रक, मेशक, और अबेदनगो। उन्होंने कैसे दिखाया कि वे उस धार्मिक समारोह में हिस्सा नहीं ले रहे हैं? संगीत शुरू होते ही जब वहाँ मौजूद बाकी सभी लोगों ने मूरत को दण्डवत किया, तब ये तीनों इब्री जवान खड़े रहे।—दानिय्येल 3:1-12.
आज के समय में आम तौर पर हाथ आगे फैलाकर, सलामी देकर या छाती पर हाथ रखकर झंडे को श्रद्धा दी जाती है। कभी-कभी किसी खास मुद्रा में रहकर झंडे को सलाम किया जाता है। कुछ देशों में स्कूल के बच्चों को झंडे के सामने घुटने टेकना या उसे चूमना पड़ता है। ऐसे हालात में जब दूसरे झंडे को सलामी देते हैं, तब सच्चे मसीही चुपचाप खड़े रहकर
दिखाते हैं कि वे उसे सलामी नहीं देते बल्कि सिर्फ उसका आदर करते हैं।लेकिन तब क्या जब एक समारोह इस तरह आयोजित किया जाता है कि उसमें सिर्फ खड़े रहने का मतलब ही उसमें भाग लेना है? मिसाल के लिए, मान लीजिए कि पूरे स्कूल की तरफ से एक विद्यार्थी को चुना जाता है कि वह क्लासरूम के बाहर लगे झंडे के पास जाए और उसे सलाम करे और बाकी बच्चे क्लासरूम में सावधान खड़े रहें। इस हालात में एक विद्यार्थी का सिर्फ खड़े रहना भी यही दिखाएगा कि वह क्लासरूम के बाहर झंडे को सलामी देनेवाले विद्यार्थी के साथ सहमत है और समारोह में हिस्सा ले रहा है, फिर चाहे वह सावधान खड़ा रहे या किसी और तरह से खड़ा रहे। इस तरह के मामले में, जो हिस्सा नहीं लेना चाहते और सिर्फ आदर दिखाना चाहते हैं, उन्हें चुपचाप बैठे रहना चाहिए। लेकिन अगर समारोह के शुरू होने से पहले ही पूरी क्लास खड़ी है, तब क्या? ऐसे में झंडे की सलामी के वक्त खड़े ही रहने का मतलब उसमें भाग लेना नहीं होगा।
मान लीजिए कि एक व्यक्ति से कहा जाता है कि वह झंडे को सलाम न करे मगर वह किसी परेड में, क्लासरूम में या किसी और जगह पर झंडे को सिर्फ पकड़कर खड़ा रहे ताकि बाकी लोग उसे सलामी दे सकें। झंडे को पकड़ना बाइबल की आज्ञा मानकर ‘मूर्तिपूजा से भागना’ नहीं होगा, उलटा इसका मतलब मूर्तिपूजा के समारोह में सबसे खास भूमिका अदा करना होगा। यही बात देश-भक्ति की परेड में हिस्सा लेने के बारे में भी सच है। परेड में हिस्सा लेना, देश को श्रद्धा देना है इसलिए सच्चे मसीही अपने विवेक के कहे मुताबिक उसमें हिस्सा नहीं लेते।
जब राष्ट्र-गान गाए जाते हैं, तो उसमें ज़ाहिर की जानेवाली भावनाओं के साथ सहमति दिखाने के लिए अकसर एक व्यक्ति को सिर्फ खड़ा होना पड़ता है। ऐसे मामलों में मसीही, खड़े नहीं होते। लेकिन अगर वे राष्ट्र-गान के शुरू होने से पहले ही खड़े हैं, तो उसके शुरू होने पर बैठने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि वे खासकर उस गीत के लिए खड़े नहीं हैं। दूसरी तरफ, जब एक समूह के लोग बैठे हुए हैं, और उन्हें कहा जाता है कि वे खड़े होकर गीत गाएँ, तो ऐसे में अगर एक मसीही आदर दिखाने के लिए सिर्फ खड़ा होता है, तो यह गलत नहीं होगा। ऐसे मौके पर, खड़े रहने का मतलब गीत की भावनाओं के साथ सहमति दिखाना नहीं है।
‘विवेक शुद्ध रखो’
भजनहार ने वर्णन किया कि उपासना में इस्तेमाल की जानेवाली इंसान की बनायी चीज़ें कितनी बेकार हैं। फिर उसने कहा: “जैसी वे हैं वैसे ही उनके बनानेवाले हैं; और उन पर सब भरोसा रखनेवाले भी वैसे ही हो जाएंगे।” (भजन 115:4-8) तो ज़ाहिर है कि ऐसी कोई भी नौकरी करना यहोवा के उपासकों को मंज़ूर नहीं होगा जिसमें उपासना की चीज़ें बनाना शामिल हो, जैसे राष्ट्रीय झंडे बनाने का काम। (1 यूहन्ना 5:21) नौकरी की जगह, शायद ऐसे हालात भी पैदा हों जिनमें मसीही, आदर के साथ दिखा सकते हैं कि वे न तो झंडे की और ना ही उस चीज़ की उपासना करते हैं जिसे झंडा दर्शाता है, बल्कि सिर्फ यहोवा की ही उपासना करते हैं।
मिसाल के लिए, एक मालिक शायद अपने कर्मचारी से कहे कि वह एक इमारत पर लगे झंडे को ऊँचा करे या उसे नीचे करे। एक मसीही को यह करना मंज़ूर होगा या नहीं, यह इस बात पर निर्भर है कि उन हालात के बारे में उसका अपना नज़रिया क्या है। अगर झंडा ऊँचा करना या नीचे करना एक खास समारोह का हिस्सा है, जिसमें लोग सावधान खड़े हैं या झंडे को सलामी दे रहे हैं, तो इस हालात में ऐसा करने का मतलब उस समारोह में हिस्सा लेना है।
लेकिन जब कोई समारोह शामिल नहीं होता, तो ऐसे में किसी इमारत पर लगे झंडे को ऊपर उठाना या नीचे करना, दूसरे कामों के ही बराबर है जो रोज़ किए जाते हैं, जैसे, इमारत के दरवाज़े और खिड़कियाँ खोलना, बंद करना। समारोह के न होने पर झंडा, सिर्फ राष्ट्र की निशानी होता है। ऐसे हालात में ऑफिस के झंडे को ऊपर या नीचे करने का काम एक मसीही करना चाहेगा या नहीं, यह उसे बाइबल से तालीम पाए अपने विवेक के मुताबिक खुद फैसला करना चाहिए। (गलतियों 6:5) हो सकता है, एक मसीही का विवेक उसे ऐसा करने की इजाज़त न दे और इसलिए वह शायद अपने सुपरवाइज़र से यह गुज़ारिश करे कि वह झंडा ऊपर करने या नीचे करने का काम किसी और कर्मचारी को सौंप दे। दूसरी तरफ एक मसीही को शायद लगे कि ऐसा करना किसी समारोह का हिस्सा नहीं है, इसलिए उसका विवेक उसे वह काम करने की इजाज़त दे। सच्चे मसीही चाहे जो भी फैसला करें, उन्हें परमेश्वर की नज़रों में अपना ‘विवेक शुद्ध’ रखना चाहिए।—1 पतरस 3:16.
बाइबल के मुताबिक, ऐसी सरकारी इमारतों में काम करना या उनमें कदम रखना गलत नहीं है जहाँ देश का झंडा रहता है, जैसे नगरपालिका के दफ्तरों और स्कूलों में। इतना ही नहीं, डाक टिकटों, गाड़ी के लाइसेंस प्लेट या दूसरी सरकारी चीज़ों पर भी झंडे की निशानियाँ हो सकती हैं। ऐसी चीज़ों का इस्तेमाल करने का मतलब देश की भक्ति करना नहीं है। इन चीज़ों पर झंडे या उसके चित्र का होना अहम बात नहीं है बल्कि यह बात अहमियत रखती है कि एक व्यक्ति उसकी ओर कैसा रवैया दिखाता है।
अकसर खिड़कियों, दरवाज़ों, कारों, डेस्क या दूसरी चीज़ों पर झंडे लगे रहते हैं। ऐसे कपड़े भी बेचे जाते हैं जिन पर झंडों की आकृतियाँ बनी होती हैं। कुछ देशों में ऐसी चीज़ें पहनना गैर-कानूनी है। लेकिन अगर एक देश में यह गैर-कानूनी नहीं है, तो भी उन्हें पहनने से संसार के बारे में एक मसीही का क्या नज़रिया ज़ाहिर होगा? यीशु मसीह ने अपने चेलों के बारे में कहा था: “जैसे मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं।” (यूहन्ना 17:16) और इस बात को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए कि एक मसीही के ऐसा करने से दूसरे मसीहियों पर इसका क्या असर पड़ेगा। क्या इससे कुछ लोगों के विवेक को चोट पहुँचेगी? क्या विश्वास में मज़बूत रहने का उनका इरादा कमज़ोर हो सकता है? पौलुस ने मसीहियों को सलाह दी: “उत्तम से उत्तम बातों को प्रिय जानो, और मसीह के दिन तक सच्चे बने रहो; और ठोकर न खाओ [‘दूसरों को ठोकर न खिलाओ,’ NW]।”—फिलिप्पियों 1:10.
‘सब के साथ कोमल हो’
आज के इस “कठिन समय” में जब संसार के हालात बदतर होते जा रहे हैं, तो यह मुमकिन है कि देश-भक्ति की भावनाएँ पहले से भी गहरी होती जाएँगी। (2 तीमुथियुस 3:1) जो परमेश्वर से प्यार करते हैं, वे यह कभी न भूलें कि उद्धार, यहोवा ही की ओर से होता है। वह हमारी एकनिष्ठ भक्ति पाने का हकदार है। जब यीशु के प्रेरितों से यहोवा की मरज़ी के खिलाफ कुछ करने के लिए कहा गया तो उन्होंने जवाब दिया: “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है।”—प्रेरितों 5:29.
प्रेरित पौलुस ने लिखा: ‘प्रभु के दास को झगड़ालू होना न चाहिए, पर वह सब के साथ कोमल हो।’ (2 तीमुथियुस 2:24) इसलिए मसीही, झंडे की सलामी और राष्ट्र-गान के मामले में, बाइबल से तालीम पाए विवेक के मुताबिक निजी फैसले करते वक्त दूसरों के साथ शांति, आदर और कोमलता से पेश आने की कोशिश करते हैं।
[पेज 23 पर तसवीर]
तीन इब्री जवान, परमेश्वर को खुश करने के इरादे पर अटल रहे, साथ ही आदर से पेश आए
[पेज 24 पर तसवीर]
देश-भक्ति दिखाने के अवसर पर एक मसीही को क्या करना चाहिए?