इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

परमेश्‍वर की भविष्यवाणी के वचन एक सुंदर भविष्य की आशा देते हैं

परमेश्‍वर की भविष्यवाणी के वचन एक सुंदर भविष्य की आशा देते हैं

परमेश्‍वर की भविष्यवाणी के वचन एक सुंदर भविष्य की आशा देते हैं

सच्चे मसीही परमेश्‍वर के वचन, पवित्र बाइबल के बहुत ही शुक्रगुज़ार हैं क्योंकि बाइबल से उन्हें यह पक्का यकीन हुआ है कि उनका भविष्य बहुत ही उज्जवल होगा। परमेश्‍वर यहोवा के साथ उनका रिश्‍ता इतना मज़बूत है कि वे अपने भविष्य को लेकर चिंतित नहीं होते बल्कि उसका खुशी-खुशी इंतज़ार करते हैं। जैसा कि “परमेश्‍वर की भविष्यवाणी के वचन” ज़िला अधिवेशन के पहले भाषण में भी बताया गया था, यहोवा के साक्षी कई सालों से बाइबल का गहराई से अध्ययन करते आए हैं और उन्होंने बहुत कुछ सीखा है। तो अब इस अधिवेशन के ज़रिए यहोवा उन्हें क्या-क्या सिखानेवाला था? यह जानने के लिए अधिवेशन में हाज़िर लोग बाइबल लिए बड़ी बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। नीचे दिया गया हर उपशीर्षक अधिवेशन के हर दिन का विषय है।

पहला दिन: परमेश्‍वर के वचन के उजियाले में चलना

“परमेश्‍वर के वचन ने हमें मार्ग दिखाया है,” भाषण में समझाया गया कि यहोवा के लोग एक ऐसे आदमी की तरह हैं जो रात के अँधेरे में अपना सफर शुरू करता है। अँधेरे में उसे कुछ दिखाई नहीं देता मगर सुबह तड़के उसे धुँधला-सा दिखाई देने लगता है और दोपहर की कड़ी धूप में उसे सब कुछ साफ-साफ नज़र आ जाता है। जैसा कि नीतिवचन 4:18 में बताया गया है, आज परमेश्‍वर की भविष्यवाणी के वचन से सच्चाई की तेज़ रोशनी चमक रही है, इसलिए यहोवा के लोग साफ-साफ देख पाते हैं कि उन्हें किस राह पर चलना है। उन्हें आध्यात्मिक अँधकार में टटोलकर चलने की ज़रूरत नहीं।

मूल-विचार भाषण था, “परमेश्‍वर की भविष्यवाणी के वचन पर ध्यान दें।” इसमें हाज़िर लोगों को याद दिलाया गया कि जो यहोवा की भविष्यवाणी पर भरोसा रखते हैं उन्हें उन लोगों की तरह निराश और बेबस नहीं होना पड़ता है जो झूठे मसीहाओं और झूठे भविष्यवक्‍ताओं की बात मानते हैं। खुद को मसीहा और भविष्यवक्‍ता कहनेवाले लोग हमेशा ही दगाबाज़ निकले हैं। लेकिन यह कहने के लिए सबूतों की कोई कमी नहीं है कि यीशु ही सच्चा मसीहा है! एक सबूत है, यीशु का रूपांतरण जिसमें चमत्कारिक तरीके से इसकी एक झलक दिखायी गयी कि जब यीशु परमेश्‍वर के राज्य का राजा बनेगा, तब वह कितनी महिमा में होगा। भाषण में वक्‍ता ने बताया कि 1914 में राजा बनने के बाद से यीशु 2 पतरस 1:19 में बताया गया “भोर का तारा” भी है। भाई ने कहा, कि ‘मसीहा एक भोर के तारे की तरह परमेश्‍वर के वफादार सभी लोगों के लिए एक नयी दुनिया शुरू होने का पैगाम लेकर आता है।’

दोपहर के कार्यक्रम का पहला भाषण था, “ज्योतियों की तरह चमकना।” इस भाषण में इफिसियों 5:8 के बारे में अच्छी तरह समझाया गया, जहाँ पौलुस सलाह देता है कि हम “ज्योति की सन्तान” की तरह चलते रहें। मसीही न सिर्फ दूसरों को परमेश्‍वर के वचन की सच्चाई बताकर बल्कि खुद उसके मुताबिक चलकर भी ज्योतियों की तरह चमकते हैं। इस तरह वे यीशु के नक्शेकदम पर चलते हैं।

अगर हम ऐसी ज्योति बनना चाहते हैं तो हमें परमेश्‍वर के वचन को पढ़ने में दिलचस्पी लेनी चाहिए। “परमेश्‍वर के वचन को पढ़ने में खुशी पाइए,” इस विषय पर तीन भागों में एक परिचर्चा पेश की गई। पहले भाग में भाई ने बताया कि एक बार एब्रहाम लिंकन ने कहा था कि बाइबल “परमेश्‍वर की ओर से इंसान को मिला सबसे अनमोल तोहफा है।” फिर भाई ने श्रोताओं से पूछा कि क्या उन्होंने बाइबल पढ़ने का एक अच्छा शेड्‌यूल बनाया है और क्या वे उसके मुताबिक बाइबल पढ़ते हैं जिससे ज़ाहिर हो कि वे दिल से यहोवा के वचन की कदर करते हैं? श्रोताओं को प्रोत्साहित किया गया कि वे बाइबल को ध्यान से पढ़ें, जो कुछ वे पढ़ते हैं उसकी तसवीर अपने मन में खीचें और फिर पढ़ी हुई बातों को उन बातों से जोड़ने की कोशिश करें जिन्हें वे पहले से जानते हैं।

परिचर्चा के अगले भाग में ज़ोर देकर कहा गया कि बाइबल में दिया गया “अन्‍न” यानी गूढ़ बातों को जानने के लिए उसका अध्ययन करना ज़रूरी है। इसे सिर्फ सरसरी तौर पर पढ़ लेना काफी नहीं है। (इब्रानियों 5:13, 14) भाई ने बताया कि अध्ययन करने के लिए पहले से ‘मन लगाना’ चाहिए ठीक जैसे इस्राएली याजक एज्रा ने किया था। तभी हमें अध्ययन से पूरा फायदा मिलेगा। (एज्रा 7:10) लेकिन सवाल यह है कि अध्ययन करना इतना ज़रूरी क्यों है? क्योंकि हम जितनी अच्छी तरह अध्ययन करेंगे यहोवा के साथ हमारा रिश्‍ता उतना ही मज़बूत होगा। इसलिए हालाँकि बाइबल का अध्ययन करने में मन लगाने और मेहनत करने की ज़रूरत होती है पर इसके लिए हमें ज़रूर वक्‍त निकालना चाहिए। और अध्ययन इस तरह करना चाहिए कि उससे हमें खुशी और ताज़गी मिले। मगर हम इसके लिए समय कैसे निकाल सकते हैं? इस बारे में परिचर्चा के आखिरी भाग में भाई ने बताया कि हमें समय को “बहुमोल” समझकर उसका अक्लमंदी से इस्तेमाल करना चाहिए। (इफिसियों 5:16) जी हाँ, अध्ययन के लिए वक्‍त निकालने का एक ही रास्ता है, जो वक्‍त हमारे पास है उसका सही इस्तेमाल करना।

“परमेश्‍वर थके हुए को बल देता है,” भाषण में बताया गया कि आजकल ज़्यादातर लोग थके हुए नज़र आते हैं। हम मसीही भी थक जाते हैं इसलिए हमें “असीम सामर्थ” की ज़रूरत है ताकि हम अपनी सेवकाई जारी रख सकें। और ऐसी सामर्थ पाने के लिए हमें सिर्फ यहोवा पर भरोसा रखना चाहिए क्योंकि वही “थके हुए को बल देता है।” (2 कुरिन्थियों 4:7; यशायाह 40:29) भाई ने बताया कि अपना जोश बरकरार रखने के लिए हमें क्या-क्या करना चाहिए। हमें परमेश्‍वर का वचन पढ़ना चाहिए, प्रार्थना करनी चाहिए, मसीही कलीसिया के साथ संगति करनी चाहिए, प्रचार काम में बराबर हिस्सा लेना चाहिए, मसीही ओवरसियरों और दूसरे वफादार भाई-बहनों की मिसाल पर चलना चाहिए। अगला भाषण था, “समय के विचार से शिक्षक बनिए।” इसमें ज़ोर देकर कहा गया कि मसीहियों को न सिर्फ प्रचारक बल्कि शिक्षक भी होना चाहिए। उन्हें सिखाने की कला बढ़ाने के लिए खूब मेहनत करनी चाहिए।—2 तीमुथियुस 4:2.

शुक्रवार का आखिरी भाषण था, “परमेश्‍वर के खिलाफ लड़नेवाले जीत नहीं पाएँगे।” इसमें बताया गया कि किस तरह हाल के समय में कुछ देशों में यहोवा के साक्षियों पर खतरनाक पंथ होने का इलज़ाम लगाया गया। लेकिन हमें ऐसी बातों से डरने की ज़रूरत नहीं क्योंकि यशायाह 54:17 हमारी हिम्मत बँधाते हुए कहता है: “जितने हथियार तेरी हानि के लिये बनाए जाएं, उन में से कोई सफल न होगा, और, जितने लोग मुद्दई होकर तुझ पर नालिश करें उन सभों से तू जीत जाएगा। यहोवा के दासों का यही भाग होगा, और वे मेरे ही कारण धर्मी ठहरेंगे, यहोवा की यही वाणी है।”

दूसरा दिन: भविष्यद्वक्‍ताओं की पुस्तकों में प्रकट की गयी बातें

कार्यक्रम की शुरुआत दैनिक पाठ की चर्चा से हुई। इसके बाद हाज़िर लोगों ने अधिवेशन की दूसरी परिचर्चा का आनंद लिया जिसका शीर्षक था, “ज्योतिवाहक बनकर यहोवा की महिमा करना।” परिचर्चा के पहले भाग में बताया गया कि मसीहियों का मकसद होता है, यहोवा की महिमा करना और इसके लिए वे हर जगह जाकर प्रचार करते हैं। अगले भाग में बताया गया कि दिलचस्पी दिखानेवालों को परमेश्‍वर के संगठन की ओर लाने की ज़रूरत है। यह कैसे किया जा सकता है? बाइबल स्टडी से पहले या बाद में उनके साथ पाँच-दस मिनट इस बात पर चर्चा करनी चाहिए कि आज परमेश्‍वर का संगठन किस तरह काम करता है। इस परिचर्चा के तीसरे भाग में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि हमें अच्छे काम करके परमेश्‍वर की महिमा करनी चाहिए।

“यहोवा के नियमों को दिल से मानिए,” भाषण में भजन 119 की कुछ आयतों पर चर्चा की गई। हमें यहोवा के नियम बार-बार याद दिलाए जाते हैं और ऐसा करना निहायत ज़रूरी है क्योंकि हम सभी को भूल जाने की आदत होती है। इसलिए जब यहोवा बार-बार हमें चितौनियाँ देता है तो उनके लिए हमें अपने दिल में प्रीति बढ़ानी चाहिए, ठीक जैसे भजनहार ने किया था!

इसके बाद बपतिस्मा का भाषण दिया गया जो इस अधिवेशन की एक खासियत थी। भाषण का विषय था, “परमेश्‍वर की भविष्यवाणी के वचन मानिए और बपतिस्मा लीजिए।” बपतिस्मा लेनेवालों को याद दिलाया गया कि मसीह का चेला बनने के लिए सिर्फ बपतिस्मा लेना ही काफी नहीं बल्कि उसके नक्शे-कदम पर बराबर चलते रहना भी ज़रूरी है। (1 पतरस 2:21) इन नए लोगों के लिए कितनी खुशी की बात है कि यूहन्‍ना 10:16 के पूरा होने में उनका भी हिस्सा है! वहाँ यीशु ने भविष्यवाणी की थी कि वह अन्य ‘भेड़ों’ को भी इकट्ठा करेगा जो उसके अभिषिक्‍त शिष्यों के साथ मिलकर सेवा करेंगी।

दोपहर के कार्यक्रम में सबसे पहला भाषण था, “सुनो कि आत्मा क्या कहता है।” इसमें समझाया गया कि बाइबल, “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” और हमारा विवेक जो बाइबल के मुताबिक ढाला गया है, इनके ज़रिए यहोवा की आत्मा हमसे बात करती है। (मत्ती 24:45) इसलिए मसीहियों को यहोवा की मरज़ी जानने के लिए स्वर्ग से कोई आवाज़ सुनने की ज़रूरत नहीं है। अगला भाषण था “ऐसी शिक्षा पर टिके रहना जो ईश्‍वरीय भक्‍ति के मुताबिक है।” इसमें बताया गया कि मसीहियों को गलत शिक्षाओं के बारे में ताक-झाँक नहीं करनी चाहिए जो आज दुनिया में बड़ी तेज़ी से फैल रही हैं। अगर हम नई-नई जानकारियाँ लेने के लिए हद से ज़्यादा बेसब्र हो जाएँगे तो हो सकता है हम कुछ ऐसी बातें भी सीख लें जो हमारे लिए नुकसानदायक हों। ऐसी गलत जानकारियाँ हमें उन लोगों से मिलती हैं जो सच्चाई से भटक चुके हैं और उनके ज़रिए जो शैतान के सोच-विचार फैलाते हैं। तो यह कितना सही होगा कि हम बाइबल और प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! के सभी लेख लगातार पढ़ते रहें।

अगले भाषण का विषय था, “खरी बातों को आदर्श बनाए रखना।” इसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया कि हमें बाइबल की शिक्षाओं से अच्छी तरह वाकिफ होना बहुत ज़रूरी है। (2 तीमुथियुस 1:13) इन शिक्षाओं का अपना एक आदर्श होता है। और इस “आदर्श” को समझने से हम न सिर्फ अपने अंदर परमेश्‍वर के लिए भक्‍ति पैदा कर पाएँगे बल्कि झूठी शिक्षाओं को भी पहचान पाएँगे।

यहोवा के मन को भाना! क्या इससे बढ़कर कोई सम्मान की बात हो सकती है? हाग्गै की भविष्यवाणी के आधार पर एक भाषण दिया गया जिसका विषय था, “यहोवा का भवन ‘मनभावनी वस्तुओं’ से भर रहा है।” इस भाषण ने सुननेवालों में एक नया जोश पैदा किया क्योंकि इसमें उन्हें भरोसा दिलाया गया कि “बड़ी भीड़” का हर सदस्य यहोवा के लिए सचमुच मनभावना है। (प्रकाशितवाक्य 7:9) इसलिए आनेवाले “भारी क्लेश” के दौरान जब यहोवा आखिरी बार जातियों को ‘कम्पकपाएगा’ तब वह बड़ी भीड़ को सही-सलामत बचाएगा। (हाग्गै 2:7, 21, 22; मत्ती 24:21) लेकिन तब तक यहोवा के लोगों को आध्यात्मिक तरीके से जागते रहने की ज़रूरत है। इस बारे में अगले भाग में बताया गया जिसका शीर्षक था, “भविष्यवाणियाँ हमें जागते रहने में मदद करती हैं।” वक्‍ता ने यीशु के शब्दों को दोहराया: “इसलिये जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आएगा।” (मत्ती 24:42) लेकिन आध्यात्मिक तरीके से जागते रहने के लिए हमें क्या करना चाहिए? यहोवा की सेवा में जी-जान से जुटे रहना चाहिए, प्रार्थना में लगे रहना चाहिए और यहोवा के उस महान दिन का इंतज़ार करते रहना चाहिए।

इस दिन का आखिरी भाषण था, “अंत के समय में भविष्यवाणी के वचन।” यह भाषण सालों तक हमें याद रहेगा। क्यों? क्योंकि भाषण में भाई ने एक नई किताब रिलीज़ की जिसका नाम है—दानिय्येल की भविष्यवाणी पर ध्यान दें! भाई ने कहा कि “इस 320 पेजवाली किताब में बहुत मोहक तसवीरें हैं और इसमें दानिय्येल की किताब के हर हिस्से पर चर्चा की गयी है।” यह इस बात का कितना ज़बरदस्त सबूत है कि यहोवा अपनी भविष्यवाणी के वचन हमें और अच्छी तरह समझा रहा है। इससे हमारा विश्‍वास कितना मज़बूत होता है।

तीसरा दिन: परमेश्‍वर की भविष्यवाणी के वचन कभी पूरे हुए बिना नहीं रहते

अधिवेशन के आखिरी दिन की शुरुआत एक परिचर्चा से हुई जिसका शीर्षक था, “ठहराए हुए समय के लिए भविष्यवाणी के वचन।” इसमें तीन भाग थे और इसमें भविष्यद्वक्‍ता हबक्कूक द्वारा सुनाए गए यहोवा के तीन न्यायदंडों के बारे में समझाया गया। पहला न्यायदंड, यहोवा के मार्गों को छोड़ देनेवाली यहूदी जाति को सुनाया गया था और दूसरा, ज़ालिम बाबुल को सुनाया गया था। तीसरा और आखिरी न्यायदंड बहुत जल्द हमारे दिनों में सुनाया जाएगा जब सभी दुष्ट लोगों का नाश कर दिया जाएगा। परिचर्चा के आखिरी भाग में भाई ने अरमगिदोन के बारे में ऐसी बात कही जिससे लोगों में परमेश्‍वर के लिए भय और श्रद्धा पैदा हुई। भाई ने कहा: “जिस दिन यहोवा अपनी महाशक्‍ति का पूरी तरह इस्तेमाल करेगा तो वो सचमुच दिल को दहला देनेवाला, बहुत ही भयानक मंज़र होगा।”

अधिवेशन में एक ऐसा बाइबल ड्रामा दिखाया गया जो लोगों के दिल को छू गया। ड्रामा का नाम था, “परमेश्‍वर से मिली अपनी विरासत की कदर करना।” ड्रामे में दिखाया गया कि आध्यात्मिक बातों के बारे में याकूब और एसाव का नज़रिया एक-दूसरे से कितना अलग था। यह इतने ज़बरदस्त तरीके से पेश किया गया कि लोग खुद का मुआयना करने पर मजबूर हुए। एसाव ने अपनी आध्यात्मिक विरासत को ठुकरा दिया था इसलिए वह विरासत याकूब को मिल गई और याकूब ने उसे जी-जान से संभालकर रखा। ड्रामे के आखिर में वक्‍ता ने पूछा, आज ‘यहोवा ने हमें क्या-क्या उत्तम वरदान दिए हैं?’ इसका जवाब देते हुए उसने कहा: “उसने हमें अपना वचन, बाइबल दिया है; हमेशा-हमेशा तक जीने की आशा दी है; और हमें यह सम्मान दिया है कि हम उसके दूत बनकर लोगों को उसका संदेश दें।”

अगला भाग था, “हमारी अनमोल विरासत आपके लिए क्या मायने रखती है?” अगर हम अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने या पैसे के पीछे भागने के बजाय यहोवा की सेवा और आध्यात्मिक ज़िम्मेदारियों को पूरा करने को ही ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा अहमियत देते हैं, तो हम दिखाते हैं कि हम अपनी अनमोल विरासत की कदर कर रहे हैं। इस तरह हम आदम, एसाव या उन इस्राएलियों से अलग होंगे जो यहोवा के वफादार नहीं रहे। बल्कि यहोवा के साथ हमारा रिश्‍ता और भी मज़बूत होगा।

जन भाषण का विषय था, “जैसे भविष्यवाणी की गयी थी, सब कुछ नया करना।” इसमें “नए आकाश” और “नई पृथ्वी” के बारे में दी गई चार खास भविष्यवाणियों का मतलब समझाया गया। (यशायाह 65:17-25; 66:22-24; 2 पतरस 3:13; प्रकाशितवाक्य 21:1, 3-5) जब यहोवा ने यह भविष्यवाणियाँ की थी, तब उसका यही मकसद था कि ये भविष्यवाणियाँ सा.यु.पू. 537 में बाबुल से लौटे उसके लोगों पर पूरी होने के अलावा, बाद में और भी शानदार तरीके से पूरी हों। जी हाँ, उसने अपनी राज्य सरकार (“नए आकाश”) और बगीचे समान पृथ्वी पर रहनेवाली अपनी प्रजा (“नई पृथ्वी”) को ध्यान में रखकर ये भविष्यवाणियाँ की थीं।

अधिवेशन का सबसे आखिरी भाषण था, “परमेश्‍वर के वचन के मार्गदर्शन पर चलते हुए हमारी उम्मीदें।” इस भाषण ने हमारे अंदर बहुत ही उमंग और जोश पैदा किया। इसमें हमें याद दिलाया गया कि राज्य की घोषणा करने के लिए अब बहुत “कम” समय बचा है। (1 कुरिन्थियों 7:29) जी हाँ, शैतान और उसकी पूरी दुष्ट दुनिया के खिलाफ यहोवा का न्यायदंड पूरा होने में और ज़्यादा वक्‍त नहीं रहा। इसलिए आइए हम भी भजनहार का यह नज़रिया अपनाएँ: “हम यहोवा का आसरा देखते आए हैं; वह हमारा सहायक और हमारी ढाल ठहरा है।” (भजन 33:20) परमेश्‍वर की भविष्यवाणी के वचन पर उम्मीद लगानेवालों का भविष्य वाकई कितना उज्जवल होगा!

[पेज 7 पर तसवीर]

एक शानदार ड्रामा दिखाया गया जिससे यहोवा के सेवकों को मिली आध्यात्मिक विरासत के लिए कदरदानी बढ़ाई गई

[पेज 7 पर तसवीर]

परमेश्‍वर की भविष्यवाणी के वचन पर ध्यान देनेवाले कई लोगों ने बपतिस्मा लिया