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क्या परमेश्‍वर को कोई परवाह है?

क्या परमेश्‍वर को कोई परवाह है?

क्या परमेश्‍वर को कोई परवाह है?

एक नवंबर 1755, सुबह का वक्‍त। पुर्तगाल का लिस्बन शहर भूकंप के ज़ोरदार झटके से दहल उठा। भूकंप से सुनामी आयी, फिर पूरे शहर में आग की तेज़ लपटें उठीं और इस तबाही में हज़ारों की जान चली गयी।

सन्‌ 2010 में हैती में एक ज़बरदस्त भूकंप आया। इस भूकंप के बाद, कनाडा के नैशनल पोस्ट अखबार के संपादक ने अपने लेख में कहा: “जब-जब कोई बड़ा हादसा होता है, तब-तब ऊपरवाले पर इंसान के विश्‍वास की परख होती है। लेकिन कुछ हादसे ऐसे होते हैं जो हमारे विश्‍वास को झकझोरकर रख देते हैं। लिस्बन में हुआ [भयानक] हादसा और हैती में आया भूकंप, इसके कुछ उदाहरण हैं।” लेख के आखिर में उसने कहा: “शायद भगवान्‌ को हैती के लोगों की परवाह नहीं रही।”

“सर्वशक्‍तिमान” होने के नाते यहोवा परमेश्‍वर के पास असीम ताकत है, इतनी ताकत कि वह दुख-तकलीफों को भी खत्म कर सकता है। (भजन 91:1) यही नहीं, हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि उसे हमारी फिक्र है। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं?

हम परमेश्‍वर के बारे में क्या जानते हैं?

परमेश्‍वर उन लोगों के लिए करुणा महसूस करता है जो दुख-तकलीफों से गुज़रते हैं। प्राचीन समय में जब इसराएली मिस्र में गुलाम थे और मिस्रियों के हाथों ज़ुल्म सह रहे थे, तो परमेश्‍वर ने मूसा से कहा: “मैंने मिस्र में रहने वाली अपनी प्रजा की दयनीय दशा देखी और अत्याचारियों से मुक्‍ति के लिए उसकी पुकार सुनी है। मैं उसका दुःख अच्छी तरह जानता हूँ।” (निर्गमन 3:7, वाल्द-बुल्के अनुवाद) इससे क्या पता चलता है? यही कि परमेश्‍वर इंसानों की दुख-तकलीफें देखकर उसे अनदेखा नहीं करता। सदियों बाद, यशायाह नाम के एक भविष्यवक्‍ता ने इसराएलियों के बारे में लिखते वक्‍त कहा: “उनके सब दुखों में [परमेश्‍वर ने] भी दुख उठाया।”—यशायाह 63:9, अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन।

“उसकी सारी गति न्याय की है।” (व्यवस्थाविवरण 32:4) परमेश्‍वर जो भी करता है उसमें उसका न्याय झलकता है, वह किसी का पक्ष नहीं लेता। वह “अपने भक्‍तों के मार्ग की रक्षा करता है,” मगर उसके स्तरों पर चलनेवालों को जो “क्लेश देते हैं, उन्हें वह बदले में क्लेश” ज़रूर देगा। (नीतिवचन 2:8; 2 थिस्सलुनीकियों 1:6, 7) वह “हाकिमों का पक्ष नहीं करता और धनी और कंगाल दोनों को अपने बनाए हुए जानकर उन में कुछ भेद नहीं करता।” (अय्यूब 34:19) इसके अलावा, परमेश्‍वर जानता है कि इंसानों की दुख-तकलीफें दूर करने का सबसे बढ़िया तरीका क्या है। जबकि दुख-तकलीफें मिटाने के इंसान के तरीके ऐसे हैं मानो किसी को गोली लगी हो और मरहम-पट्टी के नाम पर उसके ज़ख्म पर बस बैंड-एड लगा दिया गया हो। इससे ज़ख्म सिर्फ छिप जाएगा मगर ठीक नहीं होगा, न ही उस घायल इंसान की तकलीफ दूर होगी।

परमेश्‍वर “दयालु और अनुग्रहकारी, . . . और अति करुणामय [‘अटल कृपा से भरपूर,’ NW]” है। (निर्गमन 34:6) बाइबल के मुताबिक “दया” का मतलब है, तरस खाना और हमदर्दी की कोमल भावना रखना जो एक व्यक्‍ति को दूसरों की मदद करने के लिए उकसाता है। इब्रानी भाषा में जिस मूल शब्द का अनुवाद “अनुग्रहकारी” किया गया है वह “ऐसे व्यक्‍ति के लिए इस्तेमाल होता है जो ज़रूरतमंदों की मदद कर सकता है और उसका दिल उसे ऐसा करने के लिए उभारता है।” थियोलॉजिकल डिक्शनरी ऑफ दी ओल्ड टेस्टामेंट के मुताबिक, जिस शब्द का अनुवाद “अटल कृपा” किया गया है, उसमें “किसी ऐसे व्यक्‍ति की खातिर कदम उठाना शामिल है जो मुसीबत का मारा है या दुखों से घिरा है।” इंसान को तकलीफ में देखकर यहोवा न सिर्फ तड़प उठता है बल्कि दया, अनुग्रह और अटल कृपा का गुण उसे उकसाता है कि वह उनकी मदद के लिए कदम उठाए। इसलिए हम पूरा भरोसा रख सकते हैं कि वह दुख-तकलीफों को ज़रूर खत्म करेगा।

पिछले लेख में हमने देखा कि इंसान की ज़्यादातर दुख-तकलीफों के पीछे कौन-सी तीन वजह हैं। और इन वजहों के लिए परमेश्‍वर ज़िम्मेदार नहीं है। आइए हम एक-एक करके इन वजहों की गहराई से जाँच करें। (g11-E 07)

एक इंसान का अपना चुनाव

पहला इंसान आदम, शुरू-शुरू में परमेश्‍वर की हुकूमत के अधीन था। लेकिन जब उसके सामने चुनाव आया, तो उसने इस हुकूमत को ठुकराने और परमेश्‍वर से आज़ाद होकर इसके अंजाम भुगतने का फैसला किया। उत्पत्ति 2:17 में यहोवा ने आदम को खबरदार किया था कि उसकी आज्ञा न मानने पर वह “अवश्‍य मर जाएगा।” आदम ने जानबूझकर यह चेतावनी नहीं मानी। परमेश्‍वर की सिद्ध हुकूमत के खिलाफ जाने का नतीजा यह हुआ कि सभी इंसानों में पाप और असिद्धता आ गयी। बाइबल समझाती है: “एक आदमी से पाप दुनिया में आया और पाप से मौत आयी, और इस तरह मौत सब इंसानों में फैल गयी क्योंकि सबने पाप किया।” (रोमियों 5:12) लेकिन परमेश्‍वर, पाप के हर बुरे असर को मिटा देगा।

अचानक होनेवाली घटनाएँ

जैसा कि ऊपर बताया गया है, आदम ने परमेश्‍वर का मार्गदर्शन ठुकरा दिया, वह मार्गदर्शन जिससे इंसान को हर विपत्ति से यहाँ तक कि प्राकृतिक विपत्तियों से भी हिफाज़त मिल सकती थी। आदम के फैसले की तुलना एक ऐसे मरीज़ से की जा सकती है जो एक काबिल और तजुरबेकार डॉक्टर की सलाह ठुकरा देता है। डॉक्टर बेहतर जानता है कि मरीज़ को क्या खतरे हो सकते हैं और किन बातों से उसकी हालत और बिगड़ सकती है। फिर भी अगर मरीज़ जानबूझकर डॉक्टर की बात नहीं मानता तो उसे इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा। यही बात इंसानों के बारे में सच साबित हुई है। उनकी लापरवाही की वजह से पृथ्वी तबाह-बरबाद हो रही है। उन्हें पृथ्वी की प्राकृतिक शक्‍तियों के बारे में पूरा ज्ञान नहीं है और न ही वे ऐसी इमारतें बनाते हैं जो कुदरती आफतों को झेल सकें। इसीलिए जब ये विपत्तियाँ अपना कहर ढाती हैं तो ज़्यादा तबाही मचाती हैं। लेकिन परमेश्‍वर इन हालात को हमेशा तक नहीं रहने देगा।

“इस दुनिया का राजा”

जब शैतान ने परमेश्‍वर के खिलाफ बगावत की तो परमेश्‍वर ने उसे तुरंत क्यों नहीं खत्म कर दिया? उसे इतने लंबे समय तक क्यों शासन करने दिया? एक किताब कहती है, “जब कोई भी नयी सरकार सत्ता में आती है, तो शुरू-शुरू में वह अपने राज में होनेवाली समस्याओं का दोष पुरानी सरकार पर मढ़ सकती है।” इसलिए अगर यहोवा ने ‘इस दुनिया के राजा’ शैतान को अपनी नयी सरकार चलाने की पूरी मोहलत न दी होती, तो शैतान कह सकता था कि उसके राज में होनेवाली सारी समस्याओं के लिए पिछली सरकार यानी परमेश्‍वर की सरकार ज़िम्मेदार है। (यूहन्‍ना 12:31) परमेश्‍वर ने शैतान को इस दुनिया पर हुकूमत करने का पूरा-पूरा मौका दिया। उसे मोहलत देकर यह साबित हो गया कि वह हुकूमत करने में बुरी तरह नाकाम रहा है। अब सवाल यह है, हम कैसे यकीन कर सकते हैं कि दुख-तकलीफों का अंत ज़रूर होगा?

[पेज 6 पर तसवीर]

गोली लगने पर क्या कोई डॉक्टर उस गहरे ज़ख्म पर एक मामूली बैंड-एड लगाएगा?