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परमेश्‍वर ने मुझे हर मुश्‍किल में दिलासा दिया

परमेश्‍वर ने मुझे हर मुश्‍किल में दिलासा दिया

परमेश्‍वर ने मुझे हर मुश्‍किल में दिलासा दिया

विक्टोरिया कोजोइ की ज़ुबानी

एक डॉक्टर ने मम्मी से कहा: “इससे ज़्यादा हम आपकी बेटी के लिए और कुछ नहीं कर सकते। अब उसे अपनी पूरी ज़िंदगी बैसाखियों और पैरों को सहारा देनेवाले क्लैम्प का इस्तेमाल करना पड़ेगा।” यह सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ! अगर मैं कभी चल नहीं सकती, तो मैं आगे क्या करूँगी?

मेरा जन्म 17 नवंबर, 1949 को मेक्सिको देश के चियापस राज्य में, टोपोचूलो शहर में हुआ। अपने चार भाई-बहनों में मैं सबसे बड़ी हूँ। पैदाइश के वक्‍त मेरी सेहत अच्छी थी। पर छ: महीने की होते-होते मैंने अचानक ही घुटनों के बल चलना बंद कर दिया और बहुत कम खुद से हिल-डुल पाती थी। दो महीने बाद तो वह भी बंद हो गया। हमारे इलाके के डॉक्टर मेरी हालत देखकर सकते में आ गए, क्योंकि टोपोचूलो में दूसरे बच्चों में भी ऐसे ही लक्षण दिखायी दे रहे थे। इसलिए मेक्सिको सिटी से एक हड्डी रोग-विशेषज्ञ को बुलाया गया और उसने हमारी जाँच की। जाँच के बाद पता चला कि हमें पोलियो है।

तीन साल की उम्र में मेरे कूल्हों, घुटनों और टखनों का ऑपरेशन हुआ। बाद में पोलियो का असर मेरे दाहिने कंधे पर भी हो गया। छ: साल की होने पर मुझे मेक्सिको सिटी ले जाया गया ताकि बच्चों के एक अस्पताल में मेरा इलाज जारी रह सके। मम्मी हमारे शहर के एक खेत में काम करती थी, इसलिए मेक्सिको सिटी में मुझे अपनी नानी के साथ रहना पड़ा। लेकिन ज़्यादातर वक्‍त मैं अस्पताल में ही रहती थी।

आठ साल की होने पर मेरी तबियत सुधरने लगी। लेकिन बाद में मेरी हालत और बिगड़ गयी। मैं जो थोड़ा-बहुत चल पाती थी, अब वह भी धीरे-धीरे बंद हो गया। डॉक्टरों ने कहा कि मुझे अपनी पूरी ज़िंदगी बैसाखियों और क्लैम्प के सहारे गुज़ारनी होगी।

पंद्रह साल की होते-होते मेरी रीढ़ की हड्डी, पैर, घुटने, टखने और एड़ी के 25 ऑपरेशन हो चुके थे। हर ऑपरेशन के बाद मुझे कुछ समय के लिए आराम करना पड़ता था। एक दफा, ऑपरेशन के बाद मेरे पैरों पर पलस्तर चढ़ाया गया। पलस्तर हटाने पर मुझे काफी कसरत करनी पड़ती थी, जिसमें मुझे बहुत दर्द होता था।

सच्चा दिलासा मिला

जब मैं 11 साल की थी, तो एक ऑपरेशन के बाद मम्मी मुझसे मिलने आयी। उस वक्‍त मेरी सेहत सुधरने के लिए मुझे अस्पताल में ही रखा गया था। उसे किसी ने बताया कि यीशु ने बीमारों को ठीक किया था, यहाँ तक कि लकवे के मारे एक आदमी को भी चंगा किया था। उसने मुझे यहोवा के साक्षियों द्वारा छापी गयी प्रहरीदुर्ग पत्रिका दी, जिसमें उसने यह बात पढ़ी थी। मैंने उस पत्रिका को अपने तकिए के नीचे छिपा लिया, लेकिन एक दिन वह गायब हो गयी। दरअसल वह पत्रिका नर्सों के हाथ लग गयी थी। उन्होंने वह पत्रिका पढ़ने के लिए मुझे खूब डाँटा।

करीब एक साल बाद, मम्मी दोबारा मुझसे मिलने आयी। तब तक उसने साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन शुरू कर दिया था। वह मेरे लिए एक किताब लायी, जिसका नाम था फ्रॉम पैराडाइस लॉस्ट टू पैराडाइस रीगेन्ड। * मम्मी ने मुझसे कहा, “अगर तुम वादा की गयी नयी दुनिया में जीना चाहती हो, जहाँ यीशु तुम्हें ठीक कर देगा, तो तुम्हें बाइबल का अध्ययन करना होगा।” इसलिए नानी के कड़े विरोध के बावजूद, मैंने करीब 14 साल की उम्र में साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन शुरू कर दिया। जिस अस्पताल में मेरा इलाज चल रहा था, अगले साल मुझसे वह अस्पताल छोड़ने के लिए कहा गया, क्योंकि वह सिर्फ छोटे बच्चों के लिए था।

मुश्‍किलों का सामना करना

मैं ज़िंदगी से बहुत निराश हो चुकी थी। अपनी नानी के विरोध के कारण मुझे चियापस वापस लौटना पड़ा और मैं अपने मम्मी-पापा के साथ रहने लगी। लेकिन घर के भी हालात अच्छे नहीं थे, पापा को शराब पीने की लत थी। कुछ समय के लिए तो मुझे ऐसा लगने लगा कि मेरे जीने का कोई मकसद ही नहीं है। मेरे मन में विचार आया कि मैं ज़हर खाकर आत्महत्या कर लूँ। मगर जैसे-जैसे मैं बाइबल अध्ययन करती गयी, मेरा नज़रिया बदलता गया। बाइबल में दिए फिरदौस के वादे से मुझे खुशी मिली।

बाइबल में जो बेहतरीन आशा दी गयी है, उसके बारे में मैं दूसरों को बताने लगी। (यशायाह 2:4; 9:6, 7; 11:6-9; प्रकाशितवाक्य 21:3, 4) आखिरकार 8 मई, 1968 में 18 साल की उम्र में बपतिस्मा लेकर मैं यहोवा की साक्षी बन गयी। सन्‌ 1974 से मैं हर महीने 70 से ज़्यादा घंटे लोगों को उस आशा के बारे में बताने में बिताती हूँ, जिससे मुझे जीने की प्रेरणा मिलती है।

एक अच्छी और संतोष भरी ज़िंदगी

कुछ समय बाद, मम्मी और मैं टियवाना शहर में बस गए, जो मेक्सिको और अमरीका की सीमा पर है। हम दोनों एक ऐसी जगह रहते हैं, जो हमारी ज़रूरत के हिसाब से बनी है। अब भी मैं घर के अंदर बैसाखी और क्लैम्प के सहारे चलती हूँ। खाना बनाने, कपड़े धोने और इस्तिरी करने के लिए मैं व्हील-चेयर का इस्तेमाल करती हूँ। प्रचार में जाने के लिए मेरे पास बिजली से चलनेवाली एक गाड़ी है, जिसे मेरी ज़रूरत के हिसाब से बनाया गया है।

मैं रास्ते में और लोगों के घर-घर जाकर उन्हें बाइबल की शिक्षाएँ बताती हूँ। इसके अलावा, मैं पास के एक अस्पताल में भी नियमित तौर पर जाती हूँ और डॉक्टर को दिखाने के लिए इंतज़ार करनेवाले लोगों के साथ बाइबल से चर्चा करती हूँ। उनसे बात खत्म करने के बाद, मैं अपनी गाड़ी से बाज़ार जाकर ज़रूरत का सामान खरीदती हूँ और घर आकर खाना बनाने और घर के काम में मम्मी की मदद करती हूँ।

अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए मैं पुराने कपड़े बेचती हूँ। मम्मी अब 78 साल की हो गयी है। तीन बार दिल का दौरा पड़ने की वजह से वह ज़्यादा काम नहीं कर पाती। इसलिए मैं उनकी दवाई और खाने-पीने का खयाल रखती हूँ। हम दोनों की सेहत ठीक नहीं रहती, फिर भी हम मंडली की सभाओं में हाज़िर होने की कोशिश करते हैं। बीते सालों में मैंने जिन लोगों के साथ बाइबल अध्ययन किया, उनमें से 30 लोग आज खुद भी इस काम में हिस्सा ले रहे हैं।

मुझे पूरा यकीन है कि बाइबल का यह वादा एक-न-एक दिन ज़रूर पूरा होगा: “तब [परमेश्‍वर की नयी दुनिया में] लंगड़ा हरिण की सी चौकड़िया भरेगा।” उस दिन के आने तक परमेश्‍वर के इन वचनों से मुझे दिलासा मिलता है: “मत डर, क्योंकि मैं तेरे संग हूं, इधर उधर मत ताक, क्योंकि मैं तेरा परमेश्‍वर हूं; मैं तुझे दृढ़ करूंगा और तेरी सहायता करूंगा, अपने धर्ममय दहिने हाथ से मैं तुझे सँभाले रहूंगा।”—यशायाह 35:6; 41:10. * (g10-E 12)

[फुटनोट]

^ यह किताब सन्‌ 1958 में प्रकाशित की गयी थी। अब इसकी छपाई बंद हो चुकी है।

^ 30 नवंबर, 2009 को 60 साल की उम्र में विक्टोरिया कोजोइ की मौत हो गयी। उनकी माँ 5 जुलाई, 2009 को गुज़र गयीं।

[पेज 14 पर तसवीर]

सात साल की उम्र में पैरों को सहारा देनेवाले क्लैम्प लगाए हुए

[पेज 15 पर तसवीर]

प्रचार में जाने के लिए मेरे पास बिजली से चलनेवाली एक गाड़ी है, जिसे मेरी ज़रूरत के हिसाब से बनाया गया है