क्या मेरे लिए मर जाना ही अच्छा है?
युवा लोग पूछते हैं
क्या मेरे लिए मर जाना ही अच्छा है?
हर साल लाखों नौजवान खुद की जान लेने की कोशिश करते हैं। और हज़ारों इसमें कामयाब भी होते हैं। इसलिए “सजग होइए!” के प्रकाशकों ने इस बारे में लेख छापना ज़रूरी समझा है।
“मेरी जान ले ले; क्योंकि मेरे ... जीने से मर जाना बेहतर है।” क्या आप जानते हैं कि यह बात किसने कही थी? क्या एक ऐसे इंसान ने, जो परमेश्वर को नहीं मानता? या एक ऐसे इंसान ने, जिसने परमेश्वर को छोड़ दिया था, या फिर जिसे परमेश्वर ने त्याग दिया था? जी नहीं, इनमें से कोई भी नहीं। यह बात दरअसल परमेश्वर के एक सच्चे भक्त ने कही थी, जो बहुत ही निराश था। उसका नाम था, योना। * (योना 4:3, किताब-ए-मुकद्दस) बाइबल यह नहीं बताती कि योना ने अपनी जान लेने की कोशिश की या नहीं। मगर उसने जिस तरह गिड़गिड़ाकर परमेश्वर से मिन्नत की, उससे एक अहम बात ज़रूर पता चलती है। वह यह कि कभी-कभी परमेश्वर के सेवकों में भी दर्द और बेबसी की भावनाएँ घर कर सकती हैं।—भजन 34:19.
कुछ जवान निराशा की गहरी खाई में इस कदर जा गिरते हैं कि वे जीने की उम्मीद ही छोड़ देते हैं। ऐसे जवान शायद 16 साल की लौरा * की तरह महसूस करें, जो कहती है: “सालों से हताशा की भावना मुझे बार-बार आ घेरती है। और ऐसे में अकसर मैं अपनी जान लेने की सोचती हूँ।” अगर आप किसी ऐसे शख्स को जानते हैं, जिसने खुद को खत्म करने की बात कही है, या खुद आपके मन में यह खयाल आया है, तो आप क्या कर सकते हैं? यह जानने से पहले आइए देखें कि एक इंसान के दिल में खुदकुशी करने की भावना क्यों पनपती है?
निराशा की वजह
आखिर, एक इंसान अपनी जान लेने की क्यों सोचता है? इसकी कई वजह हो सकती हैं। एक है कि हम ‘कठिन समयों’ में जी रहे हैं और बहुत-से जवान ज़िंदगी में आनेवाले तनाव का सामना नहीं कर पाते। (2 तीमुथियुस 3:1) इसके अलावा, अपनी खामियों की वजह से कुछ जवान खुद के और अपने हालात के बारे में गलत नज़रिया पैदा कर लेते हैं। (रोमियों 7:22-24) कुछ ऐसे भी हैं जिनके साथ बुरा सलूक किया जाता है, जिस वजह से वे गहरी उदासी में डूब जाते हैं। दूसरे मामलों में कोई गंभीर बीमारी होने की वजह से जवान मायूस हो सकते हैं। गौरतलब बात यह है कि एक देश में अनुमान लगाया गया कि आत्म-हत्या करनेवाले जवानों में से करीब 90 प्रतिशत किसी-न-किसी मानसिक बीमारी के शिकार थे। *
बेशक, दुनिया में ऐसा कोई नहीं जिसे मुसीबत की मार न सहनी पड़ी हो। बाइबल कहती है: ‘सारी सृष्टि मिलकर कराहती है और पीड़ाओं में पड़ी तड़पती है।’ (रोमियों 8:22) इसमें जवान लोग भी शामिल हैं। दरअसल, जब कोई बुरा हादसा होता है, तो उन्हें गहरा सदमा पहुँचता है। जैसे, जब
◼ उनका कोई रिश्तेदार या दोस्त मर जाता है
◼ उनके परिवार में आए दिन रगड़े-झगड़े होते हैं
◼ वे परीक्षा में फेल हो जाते हैं
◼ वे प्यार-मुहब्बत के मामले में नाकाम हो जाते हैं
◼ उनके साथ बुरा सलूक किया जाता है (इसमें मारना-पीटना या लैंगिक दुर्व्यवहार भी शामिल है)
यह सच है कि आज नहीं तो कल, लगभग सभी जवानों को ऊपर बताए हालात में से किसी एक या उससे ज़्यादा का सामना करना पड़ सकता है। मगर फिर भी ऐसा क्यों होता है कि कुछ इनका सामना कर पाते हैं, जबकि दूसरे नहीं? विशेषज्ञों का कहना है कि जो जवान लोग आसानी से हार मान लेते हैं, उन्हें लगता है कि कोई उनकी मदद नहीं कर सकता और उनकी समस्याओं का कोई हल नहीं। दूसरे शब्दों में कहें तो उन्हें उम्मीद की कोई किरण नज़र नहीं आती। डॉ. कैथलीन मकोय ने सजग होइए! को बताया कि “इस तरह के ज़्यादातर जवान असल में मरना नहीं चाहते। वे तो बस अपने दुःख-दर्द से छुटकारा पाना चाहते हैं।”
क्या वाकई सारे रास्ते बंद हैं?
आप शायद किसी ऐसे शख्स को जानते हों, जो ‘अपने दुःख-दर्द से छुटकारा पाने’ के लिए इतना तरस रहा है कि उसने खुद को खत्म करने की बात कही है। अगर हाँ, तो आप उसकी मदद कैसे कर सकते हैं?
अगर आपका कोई दोस्त इतना मायूस है कि वह मर जाना चाहता है, तो उसे मदद लेने को कायल कीजिए। इसके बाद, किसी ज़िम्मेदार इंसान को इस बारे में बताइए, फिर चाहे आपके दोस्त ने ऐसा करने के लिए आपको मना ही क्यों न किया हो। इस बात की फिक्र मत कीजिए कि आपकी दोस्ती टूट जाएगी। दरअसल, किसी ज़िम्मेदार इंसान को अपने दोस्त की खुदकुशी करने की भावना के बारे में बताने से, आप खुद को “विपत्ति के दिन” में एक “सच्चा मित्र” (नयी हिन्दी बाइबिल) साबित कर रहे होंगे। (नीतिवचन 17:17) और-तो-और, ऐसा करके आप शायद उसकी जान भी बचा पाएँ!
लेकिन तब क्या, अगर आपने खुद को खत्म करने की सोची है? डॉ. मकोय गुज़ारिश करती हैं: “मदद माँगिए। अपने माता-पिता, किसी रिश्तेदार, दोस्त, टीचर, धर्म-गुरु या ऐसे किसी भी इंसान को अपनी भावनाओं के बारे में बताइए, जो आपकी परवाह करता हो, आपकी बात ध्यान से सुनने और उसे गंभीरता से लेने के लिए तैयार हो। साथ ही, जो आपके अज़ीज़ों को आपकी बातें सुनने और समझने में मदद दे सके।”
अपनी परेशानियों के बारे में दूसरों को बताने से आपका कोई नुकसान नहीं होगा, बल्कि इससे आपको फायदा होगा। बाइबल में दी एक मिसाल पर गौर कीजिए। यह मिसाल धर्मी अय्यूब की है। उसकी ज़िंदगी में एक वक्त ऐसा आया, जब उसने कहा: “मैं अपने जीवन से घृणा करता हूँ।” मगर फिर उसने कहा: “मैं अपने कष्टों के विषय में मौन नहीं रहूँगा, मैं कटुता भरे शब्दों में शिकायत करूँगा।” (अय्यूब 10:1, बुल्के बाइबिल) अय्यूब मायूसी के सागर में डूबा था और उसे एहसास था कि उसे अपना दर्द किसी को बयान करने की ज़रूरत है। उसी तरह, आपको भी किसी समझदार दोस्त से अपने दिल की बात कहनी चाहिए। इससे आपके दिल का बोझ हलका होगा।
निराश मसीहियों के लिए एक और मदद हाज़िर है और वह है कलीसिया के प्राचीन। (याकूब 5:14, 15) बेशक, किसी को अपनी समस्याएँ बताने से वे उड़न-छू नहीं हो जाएँगी। मगर हाँ, वह आपको उन समस्याओं को सही नज़रिए से देखने में मदद ज़रूर दे पाएगा। और क्या पता, वह भरोसेमंद दोस्त शायद आपको अपनी समस्याओं का सही हल ढूँढ़ने में भी मदद दे।
हालात बदलते हैं
जब आप पर निराशा की भावना हावी होती है, तो हमेशा याद रखिए: हालात चाहे कितने भी बदतर क्यों न हों, वे कभी-न-कभी बदलेंगे ज़रूर। भजनहार दाऊद ने, जिसे कदम-कदम भजन 6:6) मगर फिर उसने एक और भजन में लिखा: “तूने मेरे विलाप को हर्ष में बदल दिया।”—भजन 30:11, नयी हिन्दी बाइबिल।
पर मुश्किलें झेलनी पड़ी थीं, अपनी एक प्रार्थना में कहा: “मैं कराहते कराहते थक गया [हूँ]; मैं अपनी खाट आंसुओं से भिगोता हूं; प्रति रात मेरा बिछौना भीगता है।” (दाऊद अपने तजुरबे से जानता था कि ज़िंदगी में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। यह सच है कि कई समस्याएँ कुछ वक्त के लिए पहाड़ जैसी लगती हैं। मगर सब्र रखिए, अकसर हालात अच्छे के लिए बदल जाते हैं। कुछ मामलों में तो समस्याएँ इस तरह कम हो सकती हैं, जिसकी आपने शायद ही कभी उम्मीद की हो। दूसरे मामलों में आपको शायद अपनी समस्या का सामना करने की एक ऐसी तरकीब मिल जाए, जिसके बारे में आपने पहले कभी सोचा ही न हो। चाहे जो भी हो, ज़रूरी बात तो यह है कि समस्याएँ हमेशा के लिए नहीं बनी रहती हैं।—2 कुरिन्थियों 4:17.
प्रार्थना की अहमियत
प्रार्थना, बातचीत का सबसे अहम तरीका है, क्योंकि इसके ज़रिए आप स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता से बात कर सकते हैं। आप दाऊद की तरह बिनती कर सकते हैं: “हे ईश्वर, मुझे जांचकर जान ले! मुझे परखकर मेरी चिन्ताओं को जान ले! और देख कि मुझ में कोई बुरी चाल है कि नहीं, और अनन्त के मार्ग में मेरी अगुवाई कर!”—भजन 139:23, 24.
प्रार्थना, समस्याओं से बाहर निकलने का महज़ एक रास्ता नहीं, बल्कि इसके ज़रिए आप सचमुच में परमेश्वर से बात कर सकते हैं। और वह भी यही चाहता है कि आप उससे ‘अपने मन की बातें खुलकर’ कहें। (भजन 62:8) परमेश्वर के बारे में कुछ बुनियादी सच्चाइयों पर ज़रा गौर कीजिए।
◼ वह अच्छी तरह जानता है कि किन हालात की वजह से आप दुःखी हैं।—भजन 103:14.
◼ वह आपको आपसे बेहतर समझता है।—1 यूहन्ना 3:20.
◼ ‘उसे आपकी फिक्र है।’—1 पतरस 5:7, हिन्दुस्तानी बाइबल।
◼ वह नयी दुनिया में आपकी आँखों से “सब आंसू पोंछ डालेगा।”—प्रकाशितवाक्य 21:4.
जब सेहत से जुड़ी समस्याएँ ह
जैसे कि पहले भी बताया गया है, कई बार एक इंसान किसी बीमारी के शिकार होने की वजह से खुदकुशी करने की सोचता है। अगर आपके मामले में भी यह बात सच है, तो मदद माँगने से मत हिचकिचाइए। यीशु ने खुद कहा था कि बीमारों को एक वैद्य की ज़रूरत होती है। (मत्ती 9:12) और खुशी की बात है कि आज कई बीमारियों का इलाज मौजूद है। यही नहीं, इलाज करवाने से आप काफी अच्छा महसूस कर सकते हैं!
बाइबल वादा करती है कि परमेश्वर की नयी दुनिया में “कोई निवासी न कहेगा कि मैं रोगी हूं।” (यशायाह 33:24) मगर उस वक्त के आने तक, ज़िंदगी की चुनौतियों का डटकर मुकाबला कीजिए। जर्मनी में रहनेवाली, हाइडी ने यही किया। वह कहती है: “कभी-कभी निराशा की भावना मुझे इस कदर आ घेरती थी कि मरने के सिवाय, मुझे और कोई रास्ता नहीं सूझता था। मगर प्रार्थना और इलाज की वजह से मैं अब आम ज़िंदगी जी रही हूँ।” तो फिर हिम्मत रखिए, हाइडी की तरह आप भी ज़िंदगी की इस लड़ाई में जीत हासिल कर सकते हैं! * (g 5/08)
इस बारे में सोचिए
◼ कहा जाता है कि खुदकुशी करना, समस्याओं का हल नहीं, बल्कि इससे समस्याएँ किसी दूसरे के मत्थे चली जाती हैं। क्या यह सच है?
◼ जब आपको चिंताएँ कुछ ज़्यादा ही सताने लगती हैं, तो इस बारे में आप किससे बात कर सकते हैं?
[फुटनोट]
^ योना से मिलती-जुलती भावनाएँ रिबका, मूसा, एलिय्याह और अय्यूब ने भी ज़ाहिर की थीं।—उत्पत्ति 25:22; 27:46; गिनती 11:15; 1 राजा 19:4; अय्यूब 3:21; 14:13.
^ इस लेख में नाम बदल दिए गए हैं।
^ मगर साथ ही इस बात पर भी ध्यान दीजिए कि जिन जवानों को मानसिक बीमारी होती है, उनमें से ज़्यादातर खुदकुशी करने की कोशिश नहीं करते।
^ निराशा की भावना का सामना करने के बारे में ज़्यादा जानने के लिए, सजग होइए! (अँग्रेज़ी) के ये अंक देखिए: 8 सितंबर, 2001 के श्रृंखला-लेख, “हताश किशोर लोगों के लिए मदद” और 8 जनवरी, 2004 के श्रृंखला-लेख, “मानसिक समस्याओं को समझना।”
[पेज 28 पर बक्स/तसवीर]
माता-पिताओं के लिए एक पैगाम
दुनिया के कुछ भागों में, बच्चों और जवानों का आत्म-हत्या करना बहुत आम हो गया है। अमरीका की ही मिसाल लीजिए। वहाँ 15 से 25 साल के जवानों में होनेवाली मौत की तीसरी बड़ी वजह है, आत्म-हत्या। यही नहीं, पिछले 20 सालों के दौरान, 10 से 14 साल की उम्रवाले जो बच्चे खुदकुशी करते हैं, उनकी गिनती दुगुनी हो गयी है। आम तौर पर उन जवानों के खुदकुशी करने का खतरा ज़्यादा रहता है, जिन्हें मानसिक समस्या होती है, जिनके परिवार में एक या उससे ज़्यादा लोग आत्म-हत्या कर चुके होते हैं और जिन्होंने पहले भी कई बार खुदकुशी करने की कोशिश की होती है। आगे खतरे की कुछ निशानियाँ दी गयी हैं, जिन्हें देखकर आप जान सकते हैं कि एक जवान अपनी जान लेने की सोच रहा है:
◼ अपने परिवार और दोस्तों से कटे-कटे रहना
◼ न ठीक से खाना, न ठीक से सोना
◼ जिस काम में उसे पहले बड़ा मज़ा आता था, अब उसमें कोई दिलचस्पी न लेना
◼ उसकी शख्सियत में एक बड़ा बदलाव
◼ ड्रग्स लेना या ज़्यादा शराब पीना
◼ अपनी कीमती चीज़ें यूँ ही दूसरों को दे देना
◼ सिर्फ मरने की बात करना या सोचना
डॉ. कैथलीन मकोय ने सजग होइए! को बताया कि माँ-बाप जो सबसे बड़ी भूल करते हैं, वह है ऊपर दी गयी खतरे की निशानियों को नज़रअंदाज़ करना। वे कहती हैं: “कोई भी यह कबूल नहीं करना चाहता कि उसके बच्चे में कुछ खराबी है। इसलिए जब कुछ माता-पिताओं को इस बारे में बताया जाता है, तो वे मानने के लिए तैयार ही नहीं होते। वे खुद को यह कहकर तसल्ली देते हैं कि ‘यह बस एक दौर, जो कुछ समय बाद बीत जाएगा।’ या फिर, “मेरी बेटी हमेशा से ऐसी ही अजीबो-गरीब हरकतें करती रहती है।” ऐसा सोचना खतरनाक हो सकता है! इसलिए आपके बच्चे में अगर खतरे की कोई भी निशानी नज़र आए, तो उसे गंभीरता से लीजिए।”
अगर आपका बेटा या बेटी घोर हताशा या किसी और मानसिक बीमारी का शिकार है, तो मदद लेने से मत झिझकिए। और अगर आपको शक है कि आपका बच्चा अपनी जान लेने की सोच रहा है, तो इस बारे में उससे पूछिए। यह धारणा गलत है कि खुदकुशी के बारे में बात करना, उस काम को बढ़ावा देना है। इसके बिलकुल उलट, जब माता-पिता खुदकुशी के बारे में बात करने में पहल करते हैं, तो उनके जवान बच्चे खुलकर इस बारे में चर्चा करते हैं। इसलिए जब आपका किशोर बेटा या बेटी कबूल करता/ती है कि उसने खुदकुशी करने की सोची है, तो पता लगाइए कि क्या उसने ऐसा करने की योजना बनायी है। अगर वह ‘हाँ’ कहता/ती है, तो उस योजना की एक-एक बात जानने की कोशिश कीजिए। क्योंकि अगर उसने अपनी जान लेने की पूरी तैयारी कर ली है, तो आपको जल्द-से-जल्द उसकी मदद करने की ज़रूरत है। *
यह मत सोचिए कि आपके बच्चे में निराशा की जो भावना है, वह अपने आप गायब हो जाएगी। और अगर आपको लगता है कि वह भावना गायब हो गयी है, तब भी इस नतीजे पर मत पहुँचिए कि समस्या का हल हो गया है। कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि यह सबसे खतरनाक मोड़ होता है। क्यों? डॉ. मकोय कहती हैं: “जो किशोर मायूसी के सागर में डूबा रहता है, उसके पास शायद खुदकुशी करने की ताकत न बचे। मगर एक बार जब वह मायूसी से उबर आता है, तो उसमें अपनी जान लेने की काफी ताकत आ सकती है।”
यह वाकई बड़े दुःख की बात है कि कुछ जवान लोग ज़िंदगी से हार मानकर अपनी जान ले लेते हैं! इसलिए माता-पिताओं और परवाह करनेवाले दूसरे बड़े-बुज़ुर्गों को चाहिए कि वे खतरे की निशानियों को पहचानें और जवानों की मदद करने के लिए फौरन कदम उठाएँ। इस तरह वे ‘हताश प्राणियों को सांत्वना दे’ पाएँगे और उनकी पनाह में जवान लोग खुद को सुरक्षित महसूस करेंगे।—1 थिस्सलुनीकियों 5:14, NW.
[फुटनोट]
^ विशेषज्ञ यह भी चेतावनी देते हैं कि जिन घरों में पिस्तौल या ऐसी दवाइयाँ होती हैं, जिन्हें ज़्यादा लेने से जान जा सकती है, उन घरों में रहनेवालों की खुदकुशी करने की गुंजाइश ज़्यादा होती है। आत्म-हत्या रोकने के लिए बनायी गयी अमरीकी संस्थान (ए.एफ.एस.पी.) कहती है: “रिपोर्ट के मुताबिक, ज़्यादातर लोग ‘सुरक्षा’ या ‘खुद के बचाव’ के लिए अपने घर में पिस्तौल रखते हैं। मगर देखा गया है कि ऐसे घरों में जिन लोगों की मौत होती है, उनमें से 83 प्रतिशत खुद को गोली मारकर आत्म-हत्या करते हैं। और अकसर ये लोग पिस्तौल के मालिक नहीं, बल्कि घर के दूसरे सदस्य होते हैं।”
[पेज 28 पर तसवीर]
प्रार्थना, बातचीत का सबसे अहम तरीका है
[पेज 26 पर चित्र-शीर्षक]
“युवा लोग पूछते हैं” के अगले लेख में यह बताया गया है कि अगर किसी जवान का भाई या बहन खुदकुशी कर लेता/ती है, तो वह इस गम को कैसे सह सकता है
[पेज 27 पर चित्र-शीर्षक]
“युवा लोग पूछते हैं” के और भी लेख, वेब साइट www.watchtower.org/ype पर उपलब्ध हैं