अपने बच्चों को क्यों ज़ोर से पढ़कर सुनाएँ?
अपने बच्चों को क्यों ज़ोर से पढ़कर सुनाएँ?
“वह अपने हाथों में एक किताब घसीटती, घुटनों के बल सरकती हुई मेरे पास आयी और गोदी में चढ़ गयी। उसकी किताब के पन्ने मुड़े, . . . पीनट बटर से सने हुए थे और मानो कह रही हो . . . , ‘डैडी मुझे पढ़ना सिखाओ ना, मुझे भी यह किताब पढ़नी है।’” —डा. क्लिफोर्ड शिमेल्स, शिक्षाशास्त्र के प्रोफेसर।
बच्चे बहुत जल्द सीखते हैं। खोज से पता चला है कि तीन साल से कम उम्र के बच्चों में बड़ी तेज़ी से मस्तिष्क विकास होता है। माता-पिता के रोज़ाना के काम जैसे पढ़ना, गाना और उनसे लाड़-प्यार करना, ये सारे काम बच्चों को अच्छी तरह से बढ़ने में एक अहम भूमिका निभा सकते हैं। फिर भी एक अध्ययन के मुताबिक दो से आठ साल के बच्चों के माता-पिता में से सिर्फ आधे ही अपने बच्चों को रोज़ पढ़कर सुनाते हैं। आप शायद सोच सकते हैं, ‘क्या पढ़कर सुनाने से वाकई मेरे बच्चे पर कोई गहरा असर होता है?’
पढ़ने का शौक पैदा करना
विशेषज्ञ सुझाते हैं कि पढ़ने से वाकई बच्चों पर गहरा असर होता है। पढ़नेवालों की एक जाति बनना (अँग्रेज़ी) रिपोर्ट कहती है: “बच्चों का ज्ञान बढ़ाने में कामयाबी के लिए सबसे ज़रूरी है, बच्चों को ज़ोर से पढ़कर सुनाना। यह खासकर स्कूल जाने के पहले के सालों में किया जाना चाहिए।”
जब हम बच्चों को कहानियाँ पढ़कर सुनाते हैं तो वे छोटी उम्र में ही सीख जाते हैं कि किताबों में जो शब्द इस्तेमाल किए जाते हैं, उन्हें हम बातचीत में भी इस्तेमाल करते हैं। साथ ही वे किताबों की भाषा से भी वाकिफ होते हैं। ज़ोर से पढ़ने के बारे में छपी एक पुस्तिका कहती है: “हर बार जब हम बच्चे को पढ़कर सुनाते हैं तो हम उनके दिमाग में यह बिठा रहे होते हैं कि पढ़ना ‘मज़ेदार’ है। ज़ोर से पढ़कर सुनाना, विज्ञापन की तरह काम करता है, इससे बच्चे का दिमाग ऐसे ढल जाता है कि किताबें और छपी हुई जानकारी को पढ़ना उसे मज़ेदार लगता है।” अगर माता-पिता अपने बच्चों में किताब पढ़ने की ललक पैदा करें, तो बच्चे किताबों के शौकीन हो सकते हैं।
उन्हें संसार को समझने में मदद करना
जो माता-पिता ज़ोर से पढ़कर सुनाते हैं, वे अपने बच्चों को एक कीमती तोहफा दे सकते हैं और वह है, लोगों, जगहों और बहुत-सी चीज़ों का ज्ञान। ज़्यादा खर्च न करते हुए किताब के पन्नों के ज़रिए वे पूरी दुनिया “घूम” सकते हैं। उदाहरण के लिए, दो साल के एन्थनी की बात लीजिए। उसकी माँ उसके पैदा होने के बाद से ही उसे पढ़कर सुनाती थी। वह कहती है: “पहली बार चिड़िया-घर की सैर करना, उसका दूसरा सफर था।” यह उसका दूसरा सफर कैसे हो सकता है? हालाँकि चिड़िया-घर में वह पहली दफा हकीकत में ज़िंदा जेबरा, शेर, जिराफ और दूसरे जानवरों को देख रहा था, मगर एक तरह से वह इन जानवरों से पहले ही मिल चुका था क्योंकि वह इनके बारे में जानता था।
उसकी माँ आगे कहती है: “एन्थनी अपनी ज़िंदगी के शुरूआती दो सालों में अनगिनत लोगों से मिला, कई जानवरों को जाना, साथ ही बहुत-सी चीज़ों और बातों के बारे में भी सीखा। और यह सब कुछ उसने किताबों के ज़रिए किया।” जी हाँ, छोटी उम्र के बच्चों को ज़ोर से पढ़कर सुनाने से उनमें दुनिया की समझ काफी बढ़ सकती है।
नज़दीकी रिश्ता बनाना
बढ़ती उम्र के बच्चों में ऐसे रवैये पैदा होते हैं जो आगे चलकर उनकी ज़िंदगी पर असर करता है। इसलिए माता-पिता को चाहिए कि अपने बच्चों में एक करीबी रिश्ते की बुनियाद डालें जिसमें विश्वास, आपस में आदर और एक-दूसरे को समझने की भावना हो। ऐसा करने के लिए पढ़ना मददगार साबित हो सकता है।
जब माता-पिता अपने बच्चों को अपनी बाँहों में लेकर, उन्हें पढ़कर सुनाते हैं तो उनका यह इज़हार एकदम साफ सुनायी देता है: “मैं तुम्हें बहुत प्यार करता/करती हूँ।” कनाडा में एक माँ, फीबी अपने बेटे को, जो अब आठ साल का है, पढ़कर सुनाने के बारे में कहती है: “मैं और मेरे पति मानते हैं कि इसी वजह से नेथन हमारे बहुत करीब महसूस करता है। वह हमसे कुछ नहीं छिपाता और अकसर अपने दिल की बात कहता है। इस तरह हमारे बीच एक बहुत ही खास बंधन बन गया है।”
सिन्डी की बेटी जब करीब एक साल की हुई, तब वह बैठना सीख रही थी और एक-दो मिनट के लिए सुनकर समझ सकती थी। सिन्डी ने उसी उम्र में उसे पढ़कर सुनाने की आदत बना ली। क्या इतनी मेहनत और समय बिताने का कोई फायदा हुआ है? सिन्डी कहती है: “अकसर एबिगेल के स्कूल में हुई कुछ घटना या उसकी सहेलियों के साथ हुए झगड़ों के बारे में जानने के लिए ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती। दोस्तों की तरह बस उसके साथ शांत माहौल में किताब पढ़ना ही काफी होता है। कौन माता-पिता नहीं चाहेगा कि बच्चे इस तरह उनके साथ खुलकर बात करें?” यह तय है कि ज़ोर से पढ़कर सुनाने से माता-पिता और बच्चे के बीच एक करीबी रिश्ता बन सकता है।
जीवन में ज़रूरी काबिलीयतों का बीज बोना
किताब मज़बूत परिवार बनाने के 3 कदम (अँग्रेज़ी) कहती है: “आजकल टेलीविज़न और दूसरे माध्यमों के ज़रिए हमारे बच्चों के दिमाग में भरने के लिए दुनिया भर की बेकार जानकारी मौजूद है। इसलिए उन्हें पहले से कहीं बढ़कर मानसिक पोषण, सही सोच-विचार, बुद्धि और अच्छे स्तरों की ज़रूरत है ताकि वे एक आदर्श ज़िंदगी जी सकें और ज़िंदगी को एक सही नज़रिए से देख सकें।” लेकिन बच्चों पर सही और सबसे बेहतरीन असर, माता-पिता से बढ़कर कोई और नहीं डाल सकता है।
बच्चों को पढ़ने के लिए ऐसी किताबें देनी चाहिए जिनमें जटिल और बड़ी खूबसूरती से लिखे वाक्य पाए जाते हैं। ऐसा करना फायदेमंद हो सकता है क्योंकि बच्चे इन किताबों के ज़रिए यह सीखते हैं कि कैसे, लिखकर या बातों से अपनी भावनाओं को ज़ाहिर करना है। शिशुओं को किताबों की ज़रूरत है (अँग्रेज़ी) की लेखिका डौरथी बटलर कहती हैं: “एक व्यक्ति की सोच उसकी भाषा पर निर्भर करती है। जहाँ तक सीखने और बुद्धि बढ़ाने की बात आती है तो इसमें भाषा वाकई सबसे अहम कड़ी है।” अच्छी बातचीत करने की काबिलीयत, मज़बूत रिश्तों की बुनियाद है।
अच्छी किताबों को पढ़ने से अच्छे आदर्शों और गुणों को भी बढ़ावा मिलता है। जब माता-पिता अपने बच्चों को पढ़कर सुनाते हैं और दलीलें देकर उनको समझाते-बुझाते हैं तो वे उनमें समस्याओं का हल निकालने की काबिलीयत पैदा करते हैं। सिन्डी अपनी बेटी, एबिगेल को पढ़कर सुनाते वक्त उसे बड़े गौर से देखती थी कि कहानी की परिस्थिति के प्रति उसका क्या रवैया है। वह कहती है: “इस तरह माता-पिता होने के नाते हम उसकी शख्सियत की एक-एक बात को बड़ी बारीकी से जान पाए
और इस छोटी उम्र से ही गलत सोच-विचार को उसके दिमाग से हटाने में मदद कर पाए।” सचमुच, बच्चों को ज़ोर से पढ़कर सुनाने से हम उनके दिलो-दिमाग को रोशन करते हैं।पढ़ाई को मज़ेदार बनाइए
पढ़ते वक्त बच्चों पर “ज़्यादा दबाव मत डालिए।” माहौल को शांत, हल्का-फुल्का और मज़ेदार बनाए रखिए। समझदार माता-पिता जानते हैं कि उन्हें कब पढ़ाई रोकनी है। लीना कहती है: “कभी-कभी मेरा दो साल का बेटा ऐन्ड्रू इतना थक जाता है कि वह ज़्यादा देर नहीं बैठ पाता और बेचैन होने लगता। हम उसका मिज़ाज़ देखकर ज़्यादा देर तक नहीं पढ़ते हैं। हम नहीं चाहते कि ऐन्ड्रू को पढ़ाई एक बोझ लगे या उसे खीज आने लगे, इसलिए जब वह ज़्यादा देर तक सुनना नहीं चाहता तो हम उसके साथ ज़बरदस्ती नहीं करते।”
ज़ोर से पढ़ने का मतलब सिर्फ किताबें पढ़ना नहीं बल्कि इसमें दूसरी बहुत-सी बातें भी शामिल हैं। यह जानिए कि तसवीरों वाली किताब के पन्नों को ठीक कब पलटना है जिससे कि बच्चों के मन में आगे की कहानी जानने की उत्सुकता जागे। रुक-रुककर पढ़ने के बजाय साफ तरीके से पढ़िए। आवाज़ में उतार-चढ़ाव लाते हुए और शब्दों के भावों पर ज़ोर देते हुए पढ़ने से कहानी में जान आ जाएगी। आपकी आवाज़ में प्यार और अपनापन होने से आपके बच्चे सुरक्षित महसूस करेंगे।
आपके पढ़ने से बच्चे को भरपूर फायदा तब होगा है जब वह भी पढ़ाई में भाग लेता हो। बीच-बीच में रुककर ऐसे सवाल पूछिए जिनके जवाब वह फट से दे सके। फिर अपनी तरफ से कुछ और सुझाव देकर उसके जवाब को खुलकर समझाइए।
सोच-समझकर किताबें चुनिए
अच्छी किताबें चुनना, शायद सबसे ज़रूरी बात हो सकती है। इसके लिए आपको थोड़ी मेहनत करनी होगी। ध्यान से किताबों की जाँच कीजिए और सिर्फ वही किताबें लीजिए जिनमें सही या फायदेमंद बातें लिखी हों और जिन कहानियों से हम अच्छे सबक सीख सकते हैं। उसकी जिल्द, तसवीरों और लेखन शैली पर गौर कीजिए। ऐसी किताबें चुनिए जो माता-पिता और बच्चों दोनों के लिए दिलचस्प हों। अकसर बच्चे बार-बार एक ही कहानी को पढ़कर सुनाने के लिए कहते हैं।
दुनिया भर के माता-पिताओं ने खासकर बाइबल कहानियों की मेरी पुस्तक * को बहुत पसंद किया है। यह किताब इसी मकसद से तैयार की गयी है कि माता-पिता अपने छोटे बच्चों के लिए इससे पढ़कर सुनाएँ। इससे बच्चे सिर्फ अच्छा पढ़ना ही नहीं सीखते बल्कि बाइबल में उनकी दिलचस्पी भी बढ़ती है।
जो माता-पिता अपने बच्चों को पढ़कर सुनाते हैं, वे उनमें पढ़ने की अच्छी आदत डालते हैं और इससे उन्हें पूरी ज़िंदगी अच्छे नतीजे मिल सकते हैं। जोऐन अपनी बेटी के बारे में कहती है: “जॆनिफर स्कूल जाने से पहले पढ़ना-लिखना सीख गयी और उसमें पढ़ने का शौक भी पैदा हुआ, मगर इससे कहीं ज़्यादा उसके मन में हमारे महान सिरजनहार, यहोवा के लिए प्यार बढ़ने लगा। जॆनिफर उसके लिखित वचन, बाइबल पर भरोसा करना और अपने सारे फैसले उसी के मुताबिक करना सीख गयी।” सचमुच, अपने बेटे या बेटी के दिल में ऐसा प्यार पैदा करना, उसे पढ़ना-लिखना सिखाने से ज़्यादा महत्त्व रखता है।(g01 11/22)
[फुटनोट]
^ यहोवा के साक्षियों द्वारा प्रकाशित।
[पेज 28 पर बक्स/तसवीर]
जब आप अपने बच्चों को पढ़कर सुनाते हैं
• जब वे नन्हे होते तभी से इसकी शुरुआत कीजिए।
• पढ़ने से पहले अपने बच्चे को शांत होने का समय दीजिए।
• आप दोनों को जो कहानियाँ पसंद हों, वही पढ़िए।
• जितनी बार हो सके उतनी बार पढ़िए और पूरी भावनाओं के साथ पढ़िए।
• अपने बच्चों से सवाल पूछने के ज़रिए उन्हें भी पढ़ाई में शामिल कीजिए।
[पेज 27 पर चित्र का श्रेय]
Photograph taken at the Wildlife Conservation Society’s Bronx Zoo