गम के आँसुओं में डूबे बच्चे
अपनों की मौत का दर्द सहना बहुत मुश्किल होता है। इस दुख से आप कैसे उबर सकते हैं? आइए देखें कि तीन नौजवानों को अपने दुख से उबरने में पवित्र शास्त्र बाइबल से कैसे मदद मिली।
डामी की आपबीती
शुरू में लगा कि पापा को सिर्फ मामूली सिरदर्द है। लेकिन जल्द ही उनका दर्द इतना बढ़ गया कि मम्मी को एम्बुलेंस बुलानी पड़ी। मुझे अब भी याद है कि एम्बुलेंसवाले किस तरह पापा को लेकर गए थे। मुझे तो ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि मैं उन्हें आखिरी बार देख रही हूँ। तीन दिन बाद धमनीविस्फार की वजह से पापा की मौत हो गयी। उस वक्त मैं सिर्फ छः साल की थी।
कई सालों तक पापा की मौत के लिए मैं खुद को दोष देती रही। मेरी आँखों के सामने बार-बार उस दिन का मंज़र घूमता रहता। मैं खुद से पूछती, ‘मैं वहाँ खड़ी-खड़ी देखती क्यों रही? मैंने कुछ किया क्यों नहीं?’ जब मैं बुज़ुर्गों को देखती, जिनकी सेहत ठीक नहीं थी, तो मैं सोचती, ‘ये लोग तो ज़िंदा हैं, फिर मेरे पापा क्यों नहीं?’ कुछ वक्त बीतने पर मम्मी से मुझे बहुत मदद मिली। मैंने अपने दिल की सारी बातें उन्हें बतायीं। हम यहोवा के साक्षी हैं, जिस वजह से इस मुश्किल घड़ी में दूसरे साक्षियों ने भी हमारा बहुत साथ दिया।
कुछ लोग सोचते हैं कि जब किसी की मौत होती है, उस वक्त रो लेने से मन हलका हो जाता है और आप सँभल जाते हैं। लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ। जब पापा की मौत हुई, तब मुझे एहसास ही नहीं हुआ कि यह कितना बड़ा हादसा है। जब मैं 13-14 साल की हुई, तब मुझे उनकी मौत का गम सताने लगा।
जिन नौजवानों ने अपनी माँ या पिता को खोया है, उनसे मैं कहना चाहूँगी, “किसी से बात कीजिए और उसे बताइए कि आपको कैसा लग रहा है। जितनी जल्दी आप किसी को अपने दिल की बातें बताएँगे, उतनी ही जल्दी आप सँभल पाएँगे।”
जब मेरी ज़िंदगी में कोई खास बात होती है, तब मुझे पापा की कमी बहुत खलती है। सोचती हूँ, काश! आज पापा होते। लेकिन मुझे शास्त्र की उस बात से बहुत तसल्ली मिलती है, जो प्रकाशितवाक्य 21:4 में लिखी है। वहाँ लिखा है कि जल्द ही परमेश्वर हमारी “आँखों से हर आँसू पोंछ देगा और न मौत रहेगी, न मातम, न रोना-बिलखना, न ही दर्द रहेगा।”
डेरिक की आपबीती
मेरे पास पापा की बहुत-सी मीठी यादें हैं। हम मिलकर मछलियाँ पकड़ते थे, पहाड़ों पर तंबू लगाकर रहते थे। पापा को पहाड़ बहुत पसंद थे।
पापा को कुछ समय से दिल की बीमारी थी। जब मैं बहुत छोटा था, तब एक-दो बार पापा अस्पताल गए थे। लेकिन मुझे यह अंदाज़ा नहीं था कि उनकी बीमारी कितनी बड़ी है। दिल की बीमारी से ही पापा की मौत हो गयी। उस वक्त मैं नौ साल का था।
जब उनकी मौत हुई, तब मैं खूब रोया। मुझे लगा कि मेरा दम घुट रहा है। मेरा किसी से बात करने का मन नहीं कर रहा था और न ही कुछ करने का। मुझे इतना दुख कभी नहीं हुआ। मेरे चर्च में नौजवानों का एक समूह था और मैं भी उसका सदस्य था।
उस समूह के नौजवानों ने शुरू-शुरू में मेरा खयाल रखा, लेकिन यह सब कुछ ही दिन चला। लोग कहते, “तुम्हारे पापा का वक्त आ गया था” या “परमेश्वर ने उन्हें अपने पास बुला लिया” या फिर “अब वे स्वर्ग में हैं।” उनकी इन बातों से मुझे कोई तसल्ली नहीं मिलती और उस वक्त मैं यह भी नहीं जानता था कि इस बारे में बाइबल में क्या बताया गया है।फिर मेरी मम्मी यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल पढ़ने लगीं। कुछ वक्त बाद मैं और मेरा भाई भी उनके साथ बाइबल पढ़ने लगे। हमने सीखा कि जो मौत की नींद सो रहे हैं, वे किस दशा में हैं और परमेश्वर ने वादा किया है कि बहुत जल्द वह उन्हें ज़िंदा करेगा। (यूहन्ना 5:28, 29) शास्त्र की जिस बात से मुझे सबसे ज़्यादा तसल्ली मिली, वह यशायाह 41:10 में दर्ज़ है। वहाँ लिखा है, “डर मत क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ, घबरा मत क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर हूँ। मैं तेरी हिम्मत बँधाऊँगा, तेरी मदद करूँगा।” यह जानकर मुझे बहुत हिम्मत मिली कि उस मुश्किल वक्त में यहोवा मेरे साथ था और आज भी है।
जीनी की आपबीती
जब मैं सात साल की थी, तब मेरी मम्मी की कैंसर से मौत हो गयी। उस दिन ऐसा लग रहा था, जैसे मैं कोई बुरा सपना देख रही हूँ। मुझे लगा कि धीरे-धीरे मेरी ज़िंदगी बदल रही है। जब मम्मी की मौत हुई, तब वे घर पर ही थीं। नाना-नानी भी उस दिन घर पर ही थे। सब चुपचाप थे। मुझे याद है कि हमने रात को अंडे की भुर्जी खायी थी।
उस वक्त और उसके सालों बाद तक मुझे लगा कि मुझे खुद को सँभालना होगा, नहीं तो मेरी छोटी बहन का क्या होगा। इस वजह से मैंने अपने आँसू पोंछ लिए। आज भी मैं अपना दुख अंदर-ही-अंदर दबा लेती हूँ, लेकिन यह अच्छा नहीं है।
उस वक्त हमारे इलाके में रहनेवाले यहोवा के साक्षियों ने हमारे लिए बहुत कुछ किया। हमने उनकी सभाओं में जाना अभी शुरू ही किया था, फिर भी उन्होंने हमारा इस तरह खयाल रखा, जैसे वे हमारे परिवारवाले हों। हर दिन कोई-न-कोई हमारे लिए खाना बनाकर ले आता। मुझे नहीं लगता कि पापा को एक साल तक शाम को खाना बनाना पड़ा होगा।
मुझे भजन 25:16, 17 में लिखी बात बहुत अच्छी लगती है। यहाँ भजन का लिखनेवाला परमेश्वर से बिनती करता है, “मेरी तरफ मुड़, मुझ पर कृपा कर, मैं अकेला और बेसहारा हूँ। मेरे मन की पीड़ाएँ बढ़ गयी हैं, मुझे दिल की तड़प से राहत दे।” मुझे यह जानकर बहुत तसल्ली मिलती है कि जब हम दुखी होते हैं, तब हम अकेले नहीं होते। परमेश्वर हर वक्त हमारे साथ होता है। बाइबल की मदद से मैं खुद को सँभाल पायी हूँ और अब मैं उन बातों पर मन लगाती हूँ, जिनसे मुझे खुशी मिलती है, जैसे परमेश्वर मौत की नींद सो रहे लोगों को ज़िंदा करेगा और इस धरती को खूबसूरत बगीचे जैसा बना देगा। मुझे आशा है कि एक दिन मैं मम्मी से दोबारा मिलूँगी और उन्हें अच्छी तरह जान पाऊँगी। उस वक्त उनकी सेहत भी एकदम अच्छी होगी।—2 पतरस 3:13.
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