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अध्याय छः

उसने दिल खोलकर परमेश्‍वर से प्रार्थना की

उसने दिल खोलकर परमेश्‍वर से प्रार्थना की

1, 2. (क) हन्‍ना सफर की तैयारी करते वक्‍त क्यों दुखी थी? (ख) हम हन्‍ना की कहानी से क्या सीख सकते हैं?

हन्‍ना सफर की तैयारियों में लगी हुई है और अपनी समस्याओं को भूलने की पूरी कोशिश कर रही है। देखा जाए तो यह खुशी का मौका है, क्योंकि उसका पति एलकाना हमेशा की तरह इस बार भी सालाना त्योहार में उपासना के लिए अपने पूरे परिवार को शीलो ले जा रहा है। यहोवा भी यही चाहता था कि ऐसे मौकों पर उसके लोग खुशियाँ मनाएँ। (व्यवस्थाविवरण 16:15 पढ़िए।) इसमें कोई शक नहीं कि हन्‍ना भी बचपन से इन त्योहारों के समय बड़ी खुश रहती थी। मगर कुछ सालों से ऐसे मौकों पर उसकी खुशी छिन गयी थी।

2 उसका पति एलकाना उससे बहुत प्यार करता था। मगर एलकाना की एक और पत्नी भी थी जिसका नाम पनिन्‍ना था। ऐसा लगता है कि पनिन्‍ना ने हन्‍ना का जीना मुश्‍किल करने की ठान ली थी। पनिन्‍ना इन सालाना मौकों पर भी उसका दुख बढ़ा देती थी। कैसे? इससे भी ज़रूरी सवाल यह है कि यहोवा पर विश्‍वास होने की वजह से हन्‍ना कैसे अपनी समस्या का सामना कर पायी जिसका कोई हल नज़र नहीं आ रहा था? अगर आप ज़िंदगी में ऐसी मुश्‍किलों का सामना कर रहे हैं जिससे आपकी खुशी छिन गयी है, तो आपको हन्‍ना की कहानी से बहुत हिम्मत मिल सकती है।

‘तू क्यों इतनी उदास है?’

3, 4. (क) हन्‍ना की ज़िंदगी में कौन-सी दो बड़ी समस्याएँ थीं? (ख) हर समस्या का सामना करना क्यों हन्‍ना के लिए मुश्‍किल था?

3 बाइबल बताती है कि हन्‍ना की ज़िंदगी में दो बड़ी समस्याएँ थीं। एक समस्या को वह किसी तरह झेल सकती थी, मगर दूसरी पर उसका कोई ज़ोर नहीं था। पहली समस्या यह थी कि उसकी एक सौतन थी जो उससे बहुत नफरत करती थी और दूसरी, वह बाँझ थी। जो औरत बच्चे के लिए तरसती है उसके लिए बाँझ होना बहुत दुख की बात होती है। हन्‍ना के ज़माने में और उसके समाज में बाँझ होना और भी दुख की बात होती थी। हर परिवार में बच्चे का होना ज़रूरी माना जाता था ताकि वह वंश को आगे बढ़ा सके। इसलिए बाँझ होना बदनामी और शर्म की बात मानी जाती थी।

4 अगर पनिन्‍ना, हन्‍ना को दुख न देती तो शायद उसके लिए अपनी तकलीफ झेलना थोड़ा आसान होता। जिस किसी परिवार में एक-से-ज़्यादा पत्नियाँ थीं वह परिवार कभी खुश नहीं रहा। पत्नियों के बीच तकरार, होड़ लगाना और दुख देना, यह सब बहुत आम था। एक-से-ज़्यादा पत्नियाँ रखने का रिवाज़, यहोवा के स्तर के बिलकुल खिलाफ था। यहोवा ने अदन के बाग में यह स्तर ठहराया था कि एक आदमी की एक ही पत्नी होनी चाहिए। (उत्प. 2:24) इस तरह बाइबल दिखाती है कि एक-से-ज़्यादा पत्नियाँ रखने से परिवार में कितनी मुसीबतें आ सकती हैं। एलकाना के परिवार की कहानी इस बात का एक सबूत है।

5. पनिन्‍ना, हन्‍ना को क्यों दुख देना चाहती थी और उसने यह कैसे किया?

5 एलकाना, पनिन्‍ना से ज़्यादा हन्‍ना को प्यार करता था। यहूदी इतिहास के मुताबिक, उसने पहले हन्‍ना से शादी की थी और कुछ साल बाद पनिन्‍ना से। बात चाहे जो भी हो, पनिन्‍ना हन्‍ना से बहुत जलती थी और उसने हन्‍ना को दुख देने के कई तरीके ढूँढ़ निकाले थे। पनिन्‍ना के एक-के-बाद एक कई बच्चे हुए थे जबकि हन्‍ना बाँझ थी, इसलिए पनिन्‍ना खुद को बड़ा समझने लगी। हन्‍ना से हमदर्दी जताने और उसे दिलासा देने के बजाय पनिन्‍ना उसे बाँझ होने का एहसास दिला-दिलाकर उसकी दुखती रग पर हाथ रखती। बाइबल बताती है कि “हन्‍ना की सौतन उसे दुख देने के लिए उस पर लगातार ताने कसती थी।” (1 शमू. 1:6) पनिन्‍ना जानबूझकर यह सब करती थी। वह हन्‍ना के दिल को चोट पहुँचाना चाहती थी और वह ऐसा करने में कामयाब भी हुई।

हन्‍ना बाँझ होने की वजह से बहुत दुखी थी और पनिन्‍ना ने उसका दुख बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी

6, 7. (क) हालाँकि एलकाना ने हन्‍ना को दिलासा देने की कोशिश की, फिर भी हन्‍ना ने उसे पूरी कहानी क्यों नहीं बतायी होगी? (ख) क्या हन्‍ना इसलिए बाँझ थी क्योंकि यहोवा उससे नाखुश था? समझाइए। (फुटनोट देखें।)

6 ऐसा मालूम पड़ता है कि हन्‍ना को दुख देने का सबसे बढ़िया मौका उसे सालाना त्योहारों के वक्‍त मिलता था जब वे सफर करके शीलो जाते थे। पनिन्‍ना के कई बच्चे थे, इसलिए एलकाना “उसके सभी बेटे-बेटियों” को उन बलिदानों में से हिस्से देता था जो यहोवा को चढ़ाए जाते थे। मगर वह अपनी प्यारी पत्नी हन्‍ना को एक खास हिस्सा देता था। इसलिए पनिन्‍ना जलन के मारे हन्‍ना को नीचा दिखाती थी और उसे बाँझ होने का एहसास दिलाती थी, इसलिए बेचारी हन्‍ना रोने लगती और कुछ खाती-पीती नहीं थी। एलकाना देख सकता था कि उसकी प्यारी हन्‍ना हताश है और कुछ खा नहीं रही है, इसलिए वह उसे दिलासा देने की कोशिश करता। वह हन्‍ना से कहता, “हन्‍ना, तू क्यों रो रही है? कुछ खाती क्यों नहीं? क्यों इतनी उदास है? क्या मैं तेरे लिए दस बेटों से भी बढ़कर नहीं?”​—1 शमू. 1:4-8.

7 एलकाना समझ गया कि हन्‍ना बाँझ होने की वजह से इतनी दुखी है। और जब वह उसे अपने प्यार का यकीन दिलाता तो वह ज़रूर उसकी कदर करती होगी। * मगर एलकाना ने अपनी बातों में पनिन्‍ना के बुरे व्यवहार का कोई ज़िक्र नहीं किया और न ही बाइबल बताती है कि हन्‍ना ने उसे इस बारे में कुछ बताया। शायद हन्‍ना ने सोचा होगा कि अगर वह पनिन्‍ना की शिकायत लगाएगी तो मामला और बिगड़ जाएगा। उसने यह भी सोचा होगा कि शायद ही एलकाना इस समस्या का कोई हल कर सकता है। उलटा पनिन्‍ना की नफरत और बढ़ जाती और उसके बच्चे और दास-दासियाँ भी उसकी तरह हन्‍ना को सताने लगते। ऐसे में हन्‍ना अपने ही घर में परायी हो जाती और ठुकरायी हुई महसूस करती।

जब हन्‍ना के साथ घर पर बुरा व्यवहार हो रहा था तो उसने दिलासे के लिए यहोवा से बिनती की

8. जब कोई आपके साथ बुरा व्यवहार या अन्याय करता है, तो आपको यह याद रखने से क्यों दिलासा मिलेगा कि यहोवा न्याय का परमेश्‍वर है?

8 पनिन्‍ना हन्‍ना से कितनी नफरत करती थी, इस बारे में एलकाना को पूरी जानकारी थी या नहीं, यह हम नहीं जानते। मगर एक बात तय है कि यहोवा परमेश्‍वर सबकुछ देख रहा था। इसलिए उसके वचन में ये सारी बातें दर्ज़ हैं। इससे उन लोगों को कड़ी चेतावनी मिलती है जो दूसरों से जलने और नफरत करने की वजह से उनके साथ बुरा व्यवहार करते हैं। दूसरी तरफ, हन्‍ना जैसे मासूम और शांति-पसंद लोग इस बात से दिलासा पा सकते हैं कि न्याय का परमेश्‍वर यहोवा अपने वक्‍त पर और अपने तरीके से सबकुछ ठीक कर देगा। (व्यवस्थाविवरण 32:4 पढ़िए।) शायद हन्‍ना भी यह बात जानती थी, इसलिए उसने मदद के लिए यहोवा को ही पुकारा।

“उसके चेहरे पर फिर उदासी न रही”

9. हन्‍ना ने अपनी सौतन के बुरे व्यवहार के बावजूद शीलो जाने का जो फैसला किया, उससे हम क्या सीख सकते हैं?

9 सुबह-सुबह एलकाना के घर में हलचल मची हुई थी। हर कोई, यहाँ तक कि बच्चे भी सफर की तैयारी में लगे हुए थे। शीलो जाने के लिए इस बड़े परिवार को एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश से होते हुए 30 किलोमीटर से ज़्यादा लंबा सफर तय करना था। * पैदल सफर करने में उन्हें एक या दो दिन लगते। हन्‍ना जानती थी कि उसकी सौतन इस बार भी उसे नहीं छोड़ेगी। फिर भी वह घर पर बैठी नहीं रही बल्कि उसने शीलो जाने का फैसला किया। इस तरह हन्‍ना आज तक यहोवा के उपासकों के लिए एक अच्छी मिसाल रही है। चाहे लोग हमारे साथ बुरा व्यवहार क्यों न करें, हमें यहोवा की उपासना कभी नहीं छोड़नी चाहिए। अगर हम उसकी उपासना करना छोड़ दें तो हमें वे आशीषें नहीं मिलेंगी जिनसे हमें धीरज धरने की ताकत मिलती है।

10, 11. (क) हन्‍ना मौका मिलते ही पवित्र डेरे की तरफ क्यों चली गयी? (ख) हन्‍ना ने कैसे दिल खोलकर अपने पिता यहोवा से प्रार्थना की?

10 पूरा दिन घुमावदार पहाड़ी रास्ते पर चलने के बाद, उन्हें शीलो दिखायी देने लगा। यह शहर एक पहाड़ी पर बसा था, जो चारों तरफ से बड़ी-बड़ी पहाड़ियों से घिरा हुआ था। जैसे-जैसे वे शीलो के करीब पहुँच रहे थे, हन्‍ना ने मन में बहुत सोचा होगा कि वह यहोवा से प्रार्थना में क्या कहेगी। वहाँ पहुँचने के बाद पूरा परिवार खाना खाने बैठा। फिर मौका मिलते ही हन्‍ना अकेली यहोवा के पवित्र डेरे की तरफ चली गयी। डेरे की दहलीज़ के पास महायाजक एली बैठा था। मगर हन्‍ना ने उसे नहीं देखा क्योंकि उसका पूरा ध्यान यहोवा से प्रार्थना करने पर लगा हुआ था। यहाँ आकर उसे पूरा यकीन हो गया कि उसकी पुकार सुनी जाएगी। चाहे उसकी दुर्दशा कोई न समझे, लेकिन स्वर्ग में रहनेवाला उसका पिता ज़रूर समझेगा। वह खुद को और रोक न सकी और रोने लगी।

11 सिसकियाँ भरते-भरते हन्‍ना का पूरा शरीर काँप रहा था। वह मन-ही-मन यहोवा से बात कर रही थी। जब वह अपने दिल का दर्द शब्दों में बयान कर रही थी तो उसके होंठ काँप रहे थे। उसने देर तक प्रार्थना की और अपने पिता यहोवा के आगे अपने दिल का सारा हाल कह सुनाया। उसने परमेश्‍वर से सिर्फ एक औलाद की भीख नहीं माँगी। वह न सिर्फ आशीष पाना चाहती थी बल्कि उससे जो बन पड़ता उसे देना भी चाहती थी। इसलिए उसने एक मन्‍नत मानी कि अगर उसके एक बेटा होगा तो वह उसे जीवन-भर के लिए यहोवा की सेवा में दे देगी।​—1 शमू. 1:9-11.

12. जैसे हन्‍ना की मिसाल दिखाती है, हमें प्रार्थना के बारे में क्या बात याद रखनी चाहिए?

12 प्रार्थना के मामले में हन्‍ना, यहोवा के सभी सेवकों के लिए एक बेहतरीन मिसाल है। यहोवा हमसे कहता है कि हम उससे प्रार्थना में खुलकर बात करें और बेझिझक उसे अपनी परेशानियाँ बताएँ, ठीक जैसे एक छोटा बच्चा अपने पिता पर भरोसा करता है और उसे सारी बातें बताता है। (भजन 62:8; 1 थिस्सलुनीकियों 5:17 पढ़िए।) प्रार्थना के बारे में प्रेषित पतरस ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से यह बात लिखी जिससे हमें बहुत दिलासा मिलता है: “तुम अपनी सारी चिंताओं का बोझ उसी पर डाल दो क्योंकि उसे तुम्हारी परवाह है।”​—1 पत. 5:7.

13, 14. (क) एली, हन्‍ना के बारे में क्या मान बैठा और क्यों? (ख) कैसे पता चलता है कि हन्‍ना का विश्‍वास बहुत मज़बूत था?

13 मगर इंसान यहोवा की तरह नहीं होते। वे हमारी भावनाएँ और हमारा दर्द पूरी तरह नहीं समझ सकते। जब हन्‍ना रोती हुई प्रार्थना कर रही थी तो अचानक एक आवाज़ आयी जिससे वह चौंक गयी। यह आवाज़ महायाजक एली की थी, जो उसे ध्यान से देख रहा था। उसने कहा, “तू कब तक नशे में रहेगी? जा, नशा उतरने के बाद आना।” एली ध्यान से देख रहा था कि हन्‍ना के होंठ काँप रहे हैं, वह सिसकियाँ भर रही है और उसका मन बेचैन है। लेकिन यह पूछने के बजाय कि हन्‍ना को क्या हुआ, वह तुरंत मान बैठा कि वह नशे में है।​—1 शमू. 1:12-14.

14 ज़रा सोचिए, दुख की उस घड़ी में हन्‍ना पर क्या गुज़री होगी। उसने सोचा भी नहीं होगा कि महायाजक एली, जो इतने ऊँचे पद पर है, उस पर ऐसा गलत इलज़ाम लगा सकता है! लेकिन ऐसे में भी हन्‍ना ने विश्‍वास की क्या ही बढ़िया मिसाल रखी! उसने एक इंसान की खामियों की वजह से निराश होकर यहोवा की उपासना करना नहीं छोड़ा। उसने आदर के साथ एली को अपनी हालत बतायी। जब एली को अपनी गलती का एहसास हुआ तो उसने शायद नरमी से उससे बात की। उसने कहा, “बेफिक्र होकर घर जा। इसराएल का परमेश्‍वर तेरी बिनती सुने, तेरी मनोकामना पूरी करे।”​—1 शमू. 1:15-17.

15, 16. (क) यहोवा के आगे अपना दिल खोल देने और डेरे में उसकी उपासना करने का हन्‍ना पर क्या असर हुआ? (ख) जब हम निराश होते हैं तब हम हन्‍ना की तरह क्या कर सकते हैं?

15 यहोवा के आगे अपना दिल खोल देने और पवित्र डेरे में उसकी उपासना करने का हन्‍ना पर क्या असर हुआ? बाइबल बताती है, “तब वह औरत वहाँ से चली गयी। उसने जाकर कुछ खाया और उसके चेहरे पर फिर उदासी न रही।” (1 शमू. 1:18) जी हाँ, हन्‍ना ने राहत महसूस की। उसने अपने दिल का सारा बोझ अपने पिता यहोवा पर डाल दिया था जो उससे ज़्यादा ताकतवर था। (भजन 55:22 पढ़िए।) क्या आपको लगता है कि ऐसी कोई समस्या है जिसे परमेश्‍वर हल नहीं कर सकता? आज तक न तो ऐसी कोई समस्या उठी है, न कभी उठेगी!

16 जब हम परेशानियों के बोझ से दबे होते हैं या फिर निराशा की भावनाएँ हमें आ घेरती हैं, तो हमें भी वही करना चाहिए जो हन्‍ना ने किया था। हमें दिल खोलकर “प्रार्थना के सुननेवाले” से बात करनी चाहिए। (भज. 65:2) अगर हम विश्‍वास के साथ ऐसा करें तो “परमेश्‍वर की वह शांति जो समझ से परे है” हमारी निराशा को दूर कर देगी।​—फिलि. 4:6, 7.

“हमारे परमेश्‍वर जैसी चट्टान और कोई नहीं”

17, 18. (क) एलकाना ने कैसे दिखाया कि उसे हन्‍ना की मन्‍नत से कोई एतराज़ नहीं था? (ख) क्या बात दिखाती है कि पनिन्‍ना की बातों का हन्‍ना पर कोई असर नहीं हो रहा था?

17 अगली सुबह हन्‍ना, एलकाना के साथ फिर से पवित्र डेरे गयी। उसने ज़रूर अपने पति को अपनी गुज़ारिश और मन्‍नत के बारे में बताया होगा, क्योंकि मूसा के कानून के मुताबिक अगर एक पत्नी अपने पति की इजाज़त के बिना कोई मन्‍नत मानती, तो पति उस मन्‍नत को रद्द कर सकता था। (गिन. 30:10-15) लेकिन इस वफादार आदमी ने ऐसा नहीं किया। इसके बजाय, उन दोनों ने पवित्र डेरे में यहोवा की उपासना की और घर लौट गए।

18 इसके बाद से हन्‍ना पर पनिन्‍ना की कड़वी बातों का कोई असर नहीं हुआ और पनिन्‍ना को भी इस बात का एहसास हुआ होगा। कब? बाइबल यह नहीं बताती। लेकिन हन्‍ना के “चेहरे पर फिर उदासी न रही,” ये शब्द दिखाते हैं कि उस दिन से वह दुखी नहीं थी बल्कि खुश रहने लगी। पनिन्‍ना को जल्द पता चल गया होगा कि अब उसके बुरे व्यवहार का हन्‍ना पर कोई असर नहीं हो रहा है। इसके बाद बाइबल में कहीं पनिन्‍ना का ज़िक्र नहीं मिलता।

19. (क) हन्‍ना को क्या आशीष मिली? (ख) उसने कैसे दिखाया कि वह नहीं भूली कि उसे यह आशीष किसने दी है?

19 कुछ समय बाद हन्‍ना गर्भवती हुई। अब उसकी खुशी का ठिकाना न रहा! लेकिन एक पल के लिए भी वह भूली नहीं कि उसे यह खुशी किसने दी है। हन्‍ना को एक लड़का हुआ और उसने उसका नाम शमूएल रखा, जिसका मतलब है “परमेश्‍वर का नाम।” ज़ाहिर है कि यह नाम परमेश्‍वर का नाम पुकारने की तरफ इशारा करता है, जैसे हन्‍ना ने किया था। उस साल वह एलकाना और अपने परिवार के साथ शीलो नहीं गयी। अगले तीन साल तक हन्‍ना अपने बच्चे शमूएल के साथ घर पर ही रही, जब तक कि उसका दूध छुड़ाया नहीं गया। फिर उसने उस दिन के लिए हिम्मत जुटायी जब उसे अपने कलेजे के टुकड़े से बिछड़ना था।

20. हन्‍ना और एलकाना ने यहोवा से किया अपना वादा कैसे पूरा किया?

20 हन्‍ना के लिए अपने बच्चे से जुदा होना बहुत मुश्‍किल रहा होगा। बेशक, वह जानती थी कि पवित्र डेरे में शमूएल की अच्छी देखभाल होगी। शायद वहाँ सेवा करनेवाली कुछ औरतें उसका खयाल रखतीं। फिर भी शमूएल काफी छोटा था और ऐसे में कौन माँ अपने छोटे बच्चे से अलग रहना चाहेगी? मगर हन्‍ना और एलकाना कुढ़ते हुए नहीं बल्कि एहसान-भरे दिल से उसे यहोवा के भवन में ले गए। वहाँ उन्होंने बलिदान चढ़ाए और फिर शमूएल को एली के हाथों सौंप दिया। उन्होंने एली को याद दिलाया कि तीन साल पहले हन्‍ना ने मन्‍नत मानी थी।

हन्‍ना अपने बेटे शमूएल के लिए एक बड़ी आशीष थी

21. हन्‍ना की प्रार्थना से कैसे पता चलता है कि उसे यहोवा पर गहरा विश्‍वास था? (यह बक्स भी देखें, “ दो बेहतरीन प्रार्थनाएँ।”)

21 इसके बाद, हन्‍ना ने यहोवा से एक प्रार्थना की जिसे परमेश्‍वर ने अपने वचन में दर्ज़ करवाना सही समझा। यह प्रार्थना 1 शमूएल 2:1-10 में लिखी है। इसे पढ़ने पर आप पाएँगे कि हन्‍ना की हर बात से उसका गहरा विश्‍वास साफ झलकता है। उसने यहोवा की तारीफ की कि वह कितने बढ़िया तरीके से अपनी शक्‍ति का इस्तेमाल करता है। वह जिस तरह घमंडियों को गिराता है, दुख के मारों को आशीष देता है और किसी की भी जान ले सकता है या उसे मौत से बचा सकता है, वैसा कोई और नहीं कर सकता! हन्‍ना ने प्रार्थना में अपने पिता यहोवा की पवित्रता, उसके न्याय और उसकी वफादारी की भी तारीफ की। यहोवा के इन सारे गुणों की वजह से वह कह सकी, “हमारे परमेश्‍वर जैसी चट्टान और कोई नहीं।” वाकई, यहोवा पूरी तरह भरोसेमंद और कभी न बदलनेवाला परमेश्‍वर है। वह कुचले हुओं और दीन-दुखियों के लिए एक शरण है, जो मदद के लिए उसे पुकारते हैं।

22, 23. (क) हम क्यों कह सकते हैं कि शमूएल को यकीन था कि उसके माँ-बाप उससे प्यार करते हैं? (ख) यहोवा ने हन्‍ना को और क्या आशीष दी?

22 छोटे शमूएल के लिए यह क्या ही बड़ी आशीष थी कि उसकी माँ को यहोवा पर पक्का विश्‍वास था। यहोवा के भवन में बड़े होते वक्‍त उसे ज़रूर अपनी माँ की याद आती होगी, लेकिन उसे ऐसा कभी नहीं लगा कि उसके माँ-बाप उसे भूल गए हैं। क्योंकि साल-दर-साल हन्‍ना शीलो आती थी और अपने दुलारे के लिए बिन आस्तीन का एक बागा बनाकर लाती थी। बागे के हर टाँके से अपने बेटे के लिए हन्‍ना का प्यार झलकता था। (1 शमूएल 2:19 पढ़िए।) हम कल्पना कर सकते हैं कि हन्‍ना कितने प्यार से अपने बेटे को बागा पहनाती होगी और उसकी सिलवटों को ठीक करती होगी। बागा पहनाते हुए जब वह उससे मीठी-मीठी बातें करती होगी और उसका जोश बढ़ाती होगी, तो वह कैसे प्यार से उसे निहारती होगी। सच, शमूएल के लिए उसकी माँ किसी आशीष से कम नहीं थी और जब शमूएल बड़ा हुआ तो वह भी अपने माँ-बाप और पूरे इसराएल के लिए आशीष साबित हुआ।

23 यहोवा भी हन्‍ना को नहीं भूला। उसने हन्‍ना को और आशीष दी जिस वजह से उसके पाँच और बच्चे हुए। (1 शमू. 2:21) लेकिन शायद हन्‍ना के लिए सबसे बड़ी आशीष थी, अपने पिता यहोवा के साथ उसका रिश्‍ता जो सालों के गुज़रते मज़बूत होता गया। हमारी दुआ है कि हन्‍ना के जैसा विश्‍वास बढ़ाने से यहोवा के साथ आपका रिश्‍ता भी मज़बूत होता जाए।

^ पैरा. 7 हालाँकि बाइबल बताती है कि “यहोवा ने हन्‍ना की कोख बंद कर दी थी,” मगर इस बात का कोई सबूत नहीं कि परमेश्‍वर इस नम्र और वफादार औरत से नाखुश था। (1 शमू. 1:5) बाइबल में कुछ घटनाओं का ज़िक्र ऐसे किया गया है मानो यहोवा ने किया है, जबकि उसका असली मतलब यह है कि उसने उन घटनाओं को सिर्फ कुछ समय के लिए होने दिया था।

^ पैरा. 9 इस दूरी का हिसाब शायद इस बात से लगाया गया है कि एलकाना का शहर रामाह यीशु के दिनों में अरिमतियाह नाम से जाना जाता था।