अध्याय 68
परमेश्वर का बेटा “दुनिया की रौशनी” है
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यीशु बताता है कि परमेश्वर का बेटा कौन है
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यहूदी लोग किसके गुलाम हैं?
त्योहार के आखिरी दिन यीशु मंदिर में दान-पात्रों के पास सिखा रहा है जहाँ लोग दान डालते हैं। (यूहन्ना 8:20; लूका 21:1) ये पात्र शायद ‘औरतों के आँगन’ में हैं।
त्योहार के दिनों में रात के वक्त दान-पात्रोंवाली जगह को खास तौर से रौशन किया जाता है। यहाँ चार बड़ी-बड़ी दीवटें हैं। हर दीवट में चार बड़े-बड़े पात्र जैसा कुछ है जिसमें तेल भरा हुआ है। दीवटों से निकलनेवाली रौशनी काफी दूर तक चमक रही है। यीशु इसी रौशनी की मिसाल देकर कहता है, “मैं दुनिया की रौशनी हूँ। जो मेरे पीछे चलता है वह हरगिज़ अंधकार में न चलेगा, मगर जीवन की रौशनी उसके पास होगी।”—यूहन्ना 8:12.
यह बात फरीसियों को बिलकुल सही नहीं लगती। वे यीशु से कहते हैं, “तू खुद अपने बारे में गवाही देता है, इसलिए तेरी गवाही सच्ची नहीं है।” यीशु उनसे कहता है, “अगर मैं अपने बारे में गवाही देता हूँ, तो भी मेरी गवाही सच्ची है क्योंकि मैं जानता हूँ कि मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ जा रहा हूँ। मगर तुम नहीं जानते कि मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ जा रहा हूँ।” फिर यीशु उनसे कहता है, “तुम्हारे अपने कानून में भी लिखा है, ‘दो लोगों की गवाही सच्ची मानी जाए।’ एक मैं खुद हूँ जो अपने बारे में गवाही देता हूँ और दूसरा पिता है जिसने मुझे भेजा है, वह मेरे बारे में गवाही देता है।”—यूहन्ना 8:13-18.
मगर फरीसी कहते हैं, “कहाँ है तेरा पिता?” यीशु उनसे कहता है, “तुम न तो मुझे जानते हो, न ही मेरे पिता को। अगर तुम मुझे जानते, तो मेरे पिता को भी जानते।” (यूहन्ना 8:19) अब फरीसी यीशु को गिरफ्तार कर लेना चाहते हैं, लेकिन कोई उसे छूता तक नहीं।
फिर यीशु उनसे कहता है, “मैं जा रहा हूँ और तुम मुझे ढूँढ़ोगे। मगर तुम अपनी पापी हालत में मरोगे। जहाँ मैं जा रहा हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते।” मगर वे कहते हैं, “क्या यह अपनी जान लेनेवाला है? क्योंकि यह कह रहा है, ‘जहाँ मैं जा रहा हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते।’” वे नहीं जानते कि यीशु असल में कहाँ से आया है, इसीलिए यूहन्ना 8:21-23.
वे उसकी बात का मतलब नहीं समझ पाते। यीशु उनसे कहता है, “तुम नीचे के हो और मैं ऊपर का हूँ। तुम इस दुनिया के हो और मैं इस दुनिया का नहीं।”—धरती पर आने से पहले यीशु स्वर्ग में था और वही मसीहा है। मगर धर्म गुरु यह बात मानने के बजाय यीशु से नफरत करते हैं और उससे कहते हैं, “तू है कौन?”—यूहन्ना 8:25.
जब यीशु देखता है कि फरीसी उसका विरोध किए जा रहे हैं, तो वह उनसे कहता है, ‘तुमसे बात करने का क्या फायदा?’ फिर भी वह उन्हें अपने पिता के बारे में बताता है और कहता है कि क्यों उन्हें यीशु की बात सुननी चाहिए, “जिसने मुझे भेजा है वह सच्चा है और जो बातें मैंने उससे सुनीं, वही मैं दुनिया में बता रहा हूँ।”—यूहन्ना 8:25, 26.
इसके बाद यीशु बताता है कि उसे अपने पिता पर कितना भरोसा है जबकि उन लोगों को नहीं है: “जब तुम इंसान के बेटे को ऊँचे पर चढ़ा चुके होगे, तो तुम जान लोगे कि मैं वही हूँ। मैं अपनी मरज़ी से कुछ भी नहीं करता, बल्कि जैसा पिता ने मुझे सिखाया है मैं ये बातें बताता हूँ। जिसने मुझे भेजा है वह मेरे साथ है। उसने मुझे अकेला नहीं छोड़ा, क्योंकि मैं हमेशा वही करता हूँ जिससे वह खुश होता है।”—यूहन्ना 8:28, 29.
मगर जो लोग यीशु पर विश्वास करते हैं, उनसे वह कहता है, “अगर तुम हमेशा मेरी शिक्षाओं को मानोगे, तो तुम सचमुच मेरे चेले ठहरोगे। तुम सच्चाई को जानोगे और सच्चाई तुम्हें आज़ाद करेगी।”—यूहन्ना 8:31, 32.
आज़ादी की बात सुनते ही कुछ लोग कहते हैं, “हम अब्राहम के वंशज हैं और कभी किसी के गुलाम नहीं रहे। तो फिर तू कैसे कह सकता है कि तुम आज़ाद हो जाओगे?” यहूदियों को कभी-कभी दूसरे देशों के लोगों ने गुलाम बना लिया था, फिर भी वे नहीं मानते कि वे गुलाम रहे हैं। मगर यीशु उनसे साफ कहता है कि वे गुलाम ही हैं: “हर कोई जो पाप करता है वह पाप का गुलाम है।”—यूहन्ना 8:33, 34.
यहूदी नहीं मान रहे हैं कि वे पाप के गुलाम हैं और उन्हें आज़ाद होने की ज़रूरत है। इसलिए उनका बहुत बुरा अंजाम होगा। यीशु कहता है, “गुलाम घर में हमेशा तक नहीं रहता, मगर बेटा हमेशा तक रहता है।” (यूहन्ना 8:35) एक गुलाम को जायदाद में से विरासत पाने का अधिकार नहीं होता और उसे घर से कभी-भी निकाला जा सकता है। लेकिन एक बेटे के पास विरासत पाने का अधिकार होता है। चाहे वह सगा हो या गोद लिया गया हो, वह घर में “हमेशा” यानी सारी ज़िंदगी रहता है।
बेटे के बारे में सच्चाई जानने से ही लोग पाप से आज़ाद होंगे। यीशु कहता है, “अगर बेटा तुम्हें आज़ाद करे, तो तुम सचमुच आज़ाद हो जाओगे।”—यूहन्ना 8:36.