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काठ

काठ

एक सीधा खंभा जिस पर किसी को लटकाया जाता था। कुछ राष्ट्रों में अगर किसी को मौत की सज़ा दी जाती थी तो उसे काठ पर लटकाया जाता था और उसकी लाश उसी पर छोड़ दी जाती थी। या फिर किसी को मारकर उसकी लाश काठ पर लटकायी जाती थी। ऐसा इसलिए किया जाता था ताकि सरेआम उसकी बदनामी हो और दूसरों को चेतावनी मिले। अश्‍शूरी लोग युद्ध में बहुत खूँखार होते थे। वे बंदी बनाए लोगों के पेट में सूली घोंपकर सीधे छाती में निकालते थे और उनकी लाशों को उसी पर लटकने के लिए छोड़ देते थे। मगर यहूदियों के कानून के मुताबिक जो परमेश्‍वर की निंदा करने या मूर्तिपूजा जैसे घोर पाप करता था, उसे पहले पत्थर मारकर या किसी और तरीके से मार डाला जाता था। फिर उसकी लाश को काठ या पेड़ पर लटकाया जाता था ताकि दूसरों को चेतावनी मिले। (व्य 21:22, 23; 2शम 21:6, 9) रोम के लोग कभी-कभी मुजरिम को काठ पर बाँध देते थे और वह कई दिनों तक दर्द से तड़पता रहता था और आखिरकार भूख-प्यास और गरमी से मर जाता था। मगर कई बार वे काठ पर मुजरिम के हाथ-पैर कीलों से ठोंक देते थे, जैसा उन्होंने यीशु के साथ किया था। (लूक 24:20; यूह 19:14-16; 20:25; प्रेष 2:23, 36; यातना का काठ देखें।) इसके अलावा, जिन आयतों में ‘काठ में कस देना’ लिखा है, उसका मतलब है लकड़ी का एक ढाँचा जिसमें एक इंसान को जकड़कर सज़ा दी जाती थी। कई काठ ऐसे थे जिनमें सिर्फ पैर जकड़े जाते थे, जबकि दूसरे किस्म के काठ में हाथ-पैर और गरदन जकड़े जाते थे जिस वजह से पूरा शरीर मुड़ा हुआ रहता था।​—यिर्म 20:2; प्रेष 16:24.