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परमेश्‍वर का दूत हिम्मत बँधाता है

परमेश्‍वर का दूत हिम्मत बँधाता है

बारहवाँ अध्याय

परमेश्‍वर का दूत हिम्मत बँधाता है

1. यहोवा के मकसद कैसे पूरे होंगे यह जानने की लगन रखने के लिए दानिय्येल को क्या-क्या आशीषें मिलीं?

दानिय्येल को यह जानने की गहरी लगन थी कि यहोवा अपने मकसदों को कैसे पूरा करेगा, और उसे ऐसी लगन रखने के लिए ढेरों आशीषें भी मिलीं। एक तो, उसे मसीहा के प्रकट होने के बारे में 70 सप्ताहों की एक बेजोड़ भविष्यवाणी बताई गई। इसके अलावा, वह अपने जीते-जी यह भी देख सका कि बँधुआई में रहनेवाले वफादार यहूदी आज़ाद होकर अपने वतन लौट रहे हैं। यह सा.यु.पू. 537 में “फारस के राजा कुस्रू के पहिले वर्ष” की बात है।—एज्रा 1:1-4.

2, 3. यहूदा लौटनेवालों के साथ दानिय्येल नहीं गया, इसके क्या कारण हो सकते हैं?

2 दानिय्येल यहूदा लौटनेवालों के साथ नहीं गया। वह बहुत बूढ़ा हो चुका था और इतना लंबा सफर शायद उसके लिए ठीक नहीं होता। वैसे भी, परमेश्‍वर चाहता था कि दानिय्येल बाबुल में ही रहकर उसकी सेवा में और ज़्यादा ज़िम्मेदारियाँ निभाए। यहूदियों को लौटे हुए दो साल बीत चुके थे, इसके बाद क्या हुआ दानिय्येल की किताब बताती है: “फारस देश के राजा कुस्रू के राज्य के तीसरे वर्ष में दानिय्येल पर, जो बेलतशस्सर भी कहलाता है, एक बात प्रगट की गई। और वह बात सच थी कि बड़ा युद्ध होगा। उस ने इस बात को बूझ लिया, और उसको इस देखी हुई बात की समझ आ गई।”—दानिय्येल 10:1.

3 ‘राजा कुस्रू के राज्य का तीसरा वर्ष’ सा.यु.पू. 536/535 था। दानिय्येल को राजपुत्रों और प्रतिष्ठित लोगों के बच्चों के साथ बँधुआ बनाकर जब बाबुल लाया गया था तब से अब तक 80 से भी ज़्यादा साल बीत चुके थे। (दानिय्येल 1:3) अगर दानिय्येल उस वक्‍त तेरह-चौदह का भी होगा तो अब तक उसकी उम्र करीब 100 साल होगी। उसकी ज़िंदगी, वफादारी से यहोवा की सेवा करते रहने की क्या ही उम्दा मिसाल थी!

4. दानिय्येल बूढ़ा हो चला था, फिर भी उसे यहोवा की सेवा में कौन-सा खास काम करना था?

4 भले ही दानिय्येल बूढ़ा हो चला था लेकिन उसे अभी-भी यहोवा की सेवा में बहुत कुछ करना था। उसके ज़रिए परमेश्‍वर एक और ऐसी खास और ज़बरदस्त भविष्यवाणी करनेवाला था जिसकी पूर्ति उस ज़माने से शुरू होकर हमारे ज़माने में और आनेवाले दिनों में भी होनी थी। लेकिन, यह काम सौंपने से पहले यहोवा ने दानिय्येल को तैयार किया। यहोवा ने दानिय्येल की मदद करने के लिए उसकी हिम्मत बँधाई और उसे ताकत दी।

परेशानी की वज़ह

5. दानिय्येल किन खबरों को सुनकर परेशान हो गया होगा?

5 दानिय्येल, अपने वतन लौटनेवाले यहूदियों के साथ तो नहीं गया लेकिन उसका मन वहीं पर लगा हुआ था। वह जानना चाहता था कि वहाँ क्या हो रहा है। ऐसी खबरें मिल रही थीं कि वहाँ सबकुछ ठीक नहीं चल रहा। वैसे तो यरूशलेम के मंदिर की नींव डाली जा चुकी थी और वेदी भी दोबारा बनाई जा चुकी थी। (एज्रा, अध्याय 3) लेकिन पास-पड़ोस में रहनेवाली जातियों के लोग नहीं चाहते थे कि यह काम आगे बढ़े और वे यरूशलेम में रहनेवाले यहूदियों के खिलाफ साज़िशें रच रहे थे। (एज्रा 4:1-5) बेशक, यह सब सुन-सुनकर दानिय्येल बहुत व्याकुल और परेशान हो गया होगा।

6. यरूशलेम की दशा जानकर दानिय्येल क्यों निराश हो गया?

6 यिर्मयाह ने यरूशलेम की उजड़ी हुई दशा के बारे में जो भविष्यवाणी की थी, दानिय्येल उसके बारे में अच्छी तरह जानता था। (दानिय्येल 9:2) उसे यह भी पता था कि यहोवा ने अपने चुने हुए लोगों के लिए जो करने की ठानी है उसके लिए यरूशलेम के मंदिर का दोबारा बनना और वहाँ सच्ची उपासना का फिर से शुरू होना बहुत ज़रूरी है। दानिय्येल यह भी जानता था कि मसीहा के प्रकट होने से पहले यह सब पूरा होना ज़रूरी है। दरअसल, दानिय्येल यहोवा को इतना प्यारा था कि उसने ‘सत्तर सप्ताहों’ की भविष्यवाणी ज़ाहिर करने के लिए दानिय्येल को ही चुना। इस भविष्यवाणी से दानिय्येल जान गया था कि यरूशलेम के फिर से बसाए जाने की आज्ञा के निकलने से 69 “सप्ताह” बीतने पर मसीहा प्रकट होगा। (दानिय्येल 9:24-27) लेकिन यरूशलेम तो अब भी उजाड़ ही पड़ा था और मंदिर के काम में रुकावट आने की वज़ह से देर हो रही थी। ज़ाहिर है कि यह सब जानकर दानिय्येल इतना निराश हो गया कि दुःख के मारे उसका दिल बुझ गया।

7. तीन सप्ताह तक दानिय्येल ने क्या किया?

7 दानिय्येल की किताब कहती है: “उन दिनों मैं, दानिय्येल, तीन सप्ताह तक शोक करता रहा। उन तीन सप्ताहों के पूरे होने तक, मैं ने न तो स्वादिष्ट भोजन किया और न मांस वा दाखमधु अपने मुंह में रखा, और न अपनी देह में कुछ भी तेल लगाया।” (दानिय्येल 10:2, 3) “तीन सप्ताह” या 21 दिनों तक उपवास करना और शोक मनाना बहुत ही लंबा समय था। और उसका यह उपवास “पहले महीने के चौबीसवें दिन” तक चला। (दानिय्येल 10:4) यह पहला महीना निसान का महीना था जिसमें यहूदियों के दो पर्व आते थे। इस महीने के 14वें दिन फसह का पर्व मनाया जाता था और उसके बाद सात दिनों तक अखमीरी रोटी का पर्व मनाया जाता था। दानिय्येल के उपवास के दिनों में यहूदियों के ये दोनों पर्व आए।

8. एक बार पहले भी किस मौके पर दानिय्येल ने मदद के लिए यहोवा से गिड़गिड़ाकर प्रार्थना की थी, और उसका नतीजा क्या हुआ था?

8 एक बार पहले भी कुछ ऐसा ही हुआ था। यह तब की बात है जब दानिय्येल को यह नहीं समझ आ रहा था कि यरूशलेम के उजाड़ रहने की 70 साल की यहोवा की भविष्यवाणी कैसे पूरी होगी। तब उसने क्या किया था? दानिय्येल खुद बताता है, “तब मैं अपना मुख प्रभु परमेश्‍वर की ओर करके गिड़गिड़ाहट के साथ प्रार्थना करने लगा, और उपवास कर, टाट पहिन, राख में बैठकर वरदान मांगने लगा।” उसकी इस प्रार्थना को सुनकर यहोवा ने जिब्राएल नाम के स्वर्गदूत को उसके पास भेजा था और उसके संदेश से दानिय्येल को बहुत हिम्मत मिली थी। (दानिय्येल 9:3, 21, 22) क्या इसी तरह यहोवा इस बार भी दानिय्येल की गिड़गिड़ाहट सुनकर उसकी हिम्मत बँधाता?

हैरतअंगेज़ दर्शन

9, 10. (क) जब दानिय्येल ने दर्शन देखा तब वह कहाँ था? (ख) दानिय्येल ने दर्शन में क्या देखा, बताइए।

9 इस मौके पर भी दानिय्येल को शर्मिन्दा नहीं होना पड़ा। वह हमें बताता है कि आगे क्या हुआ: “फिर पहले महीने के चौबीसवें दिन को जब मैं हिद्देकेल नाम नदी के तीर पर था, तब मैं ने आंखें उठाकर देखा, कि सन का वस्त्र पहिने हुए, और ऊफाज़ देश के कुन्दन से कमर बान्धे हुए एक पुरुष खड़ा है।” (दानिय्येल 10:4, 5) हिद्देकेल उन चार नदियों में से एक थी जो अदन के बाग से निकली थीं। (उत्पत्ति 2:10-14) पुरानी फारसी भाषा में हिद्देकेल टिगरा के नाम से जानी जाती थी जिससे यूनानी नाम टिग्रिस निकला है। हिद्देकेल और फरात नदी के बीच की ज़मीन को मेसोपोटामिया कहा जाने लगा जिसका मतलब है “नदियों के बीच की ज़मीन।” इससे साबित होता है कि दानिय्येल को जब यह दर्शन मिला तब वह बाबेलोनिया के इलाके में ही था, लेकिन शायद बाबुल शहर में नहीं।

10 इसी इलाके में दानिय्येल ने यह गज़ब का दर्शन देखा! आँखें उठाने पर उसे एक ऐसा पुरुष नज़र आया जिसका रूप आम इंसान का सा नहीं था। दानिय्येल उसके रूप के बारे में बताता है: “उसका शरीर फीरोज़ा [“स्वर्णमणि,” न्यू हिन्दी बाइबल] के समान, उसका मुख बिजली की नाईं, उसकी आंखें जलते हुए दीपक की सी, उसकी बाहें और पांव चमकाए हुए पीतल के से, और उसके वचनों का शब्द भीड़ों के शब्द का सा था।”—दानिय्येल 10:6.

11. दानिय्येल और उसके साथ के लोगों पर दर्शन का क्या असर हुआ?

11 यह दर्शन बहुत ही तेजोमय था लेकिन दानिय्येल बताता है, ‘जो लोग मेरे साथ थे, वे उस दर्शन को नहीं देख पाये।’ बाइबल यह नहीं बताती कि वहाँ मौजूद बाकी लोग क्यों “इतना डर गये कि भाग कर कहीं जा छिपे।” जो भी हो, दानिय्येल उस नदी के तट पर अकेला ही रह गया। इस “अद्‌भुत” नज़ारे का दानिय्येल पर इतना ज़बरदस्त असर हुआ कि उसने कहा, “मेरी शक्‍ति जाती रही। मेरा मुख ऐसे पीला पड़ गया जैसे मानो वह किसी मरे हुए व्यक्‍ति का मुख हो। मैं बेबस था।”—दानिय्येल 10:7, 8, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।

12, 13. (क) दूत के वस्त्रों और (ख) उसके रूप से उसके बारे में क्या पता चलता है?

12 आइए इस अद्‌भुत दूत के बारे में और भी जानें, जिसे देखकर दानिय्येल इतना डर गया था। वह “सन का वस्त्र पहिने हुए, और ऊफाज़ देश के कुन्दन से कमर बान्धे हुए” था। प्राचीन इस्राएल में, मंदिर में सेवा करनेवाले महायाजक का पटुका, एपोद, सीनाबन्द और बाकी याजकों के पवित्र वस्त्र महीन सन के बने होते थे और उन पर सोने से सजावट की जाती थी। (निर्गमन 28:4-8; 39:27-29) इस दूत के वस्त्र भी दिखा रहे थे कि वह पवित्रता से शोभायमान है और ज़रूर कोई खास पद रखता है।

13 दानिय्येल इस दूत के रूप को देखकर दंग रह गया। उसका स्वर्णमणि जैसा शरीर दमक रहा था, उसके चेहरे की चमक ऐसी थी कि आँखें चुंधियाँ जाएँ, उसकी तेज़ नज़र धधकती हुई ज्वाला सरीखी थी और उसकी मज़बूत बाँहें और पाँव चमचमा रहे थे। उसकी गर्जदार आवाज़ ऐसी थी कि कलेजा काँप उठे। इससे यह साफ ज़ाहिर है कि वह कोई इंसान नहीं मगर स्वर्ग से उतरा फरिश्‍ता था। जी हाँ, “सन का वस्त्र पहिने हुए” यह शख्स, स्वर्ग में ऊँचा पद रखनेवाला एक स्वर्गदूत था जो खुद पवित्र परमेश्‍वर यहोवा के सामने हाज़िर रहकर सेवा करता था और वहीं से दानिय्येल के लिए संदेश लेकर आया था। *

“अति प्रिय पुरुष” की हिम्मत बँधायी जाती है

14. स्वर्गदूत जो संदेश लाया था उसे सुनने से पहले दानिय्येल को किस मदद की ज़रूरत थी?

14 यहोवा का दूत दानिय्येल के लिए जो संदेश लाया था वह बहुत भारी और भेदभरा था। इसलिए इसे सुनने से पहले, यह ज़रूरी था कि दानिय्येल के कमज़ोर शरीर को ताकत दी जाए और उसकी घबराहट और उसका डर दूर किया जाए। स्वर्गदूत यह जानता था, इसलिए उसने पास आकर बड़े प्यार से दानिय्येल को सहारा देकर उसका हौसला बढ़ाया। आइए हम देखें कि खुद दानिय्येल ने इसके बारे में क्या लिखा।

15. स्वर्गदूत ने दानिय्येल की कैसे मदद की?

15 “मैं ने उस पुरुष के वचनों का शब्द सुना, और जब वह मुझे सुन पड़ा, तब मैं मुंह के बल गिर गया और गहरी नींद में भूमि पर औंधे मुंह पड़ा रहा।” दहशत और असमंजस की वज़ह से दानिय्येल पर बेहोशी छा गयी। ऐसे में स्वर्गदूत ने दानिय्येल के लिए क्या किया? दानिय्येल बताता है, “फिर किसी ने अपने हाथ से मेरी देह को छुआ, और मुझे उठाकर घुटनों और हथेलियों के बल . . . बैठा दिया।” इसके अलावा उस स्वर्गदूत ने दानिय्येल का हौसला बढ़ाने के लिए यह भी कहा: “हे दानिय्येल, हे अति प्रिय पुरुष, जो वचन मैं तुझ से कहता हूं उसे समझ ले, और सीधा खड़ा हो, क्योंकि मैं अभी तेरे पास भेजा गया हूं।” इस मदद से और हौसला देनेवाली बातों से दानिय्येल की जान में जान आयी। दानिय्येल “थरथराता रहा” लेकिन फिर भी वह “खड़ा तो हो गया।”—दानिय्येल 10:9-11.

16. (क) इसका क्या सबूत है कि यहोवा अपने सेवकों की प्रार्थनाओं का फौरन जवाब देता है? (ख) स्वर्गदूत को दानिय्येल तक पहुँचने में देर क्यों हुई? (बक्स भी शामिल कीजिए।) (ग) स्वर्गदूत के पास दानिय्येल के लिए क्या पैगाम था?

16 स्वर्गदूत बताता है कि उसे खासकर इसलिए भेजा गया है कि दानिय्येल की हिम्मत बँधाए। उसने कहा: “हे दानिय्येल, मत डर, क्योंकि पहिले ही दिन को जब तू ने समझने-बूझने के लिये मन लगाया और अपने परमेश्‍वर के साम्हने अपने को दीन किया, उसी दिन तेरे वचन सुने गए, और मैं तेरे वचनों के कारण आ गया हूं।” इसके बाद वह दूत बताता है कि उसे दानिय्येल तक पहुँचने में इतनी देर क्यों लगी: “फारस के राज्य का प्रधान इक्कीस दिन तक मेरा साम्हना किए रहा; परन्तु मीकाएल जो मुख्य प्रधानों में से है, वह मेरी सहायता के लिये आया, इसलिये मैं फारस के राजाओं के पास रहा।” वह स्वर्गदूत मीकाएल की मदद से ही दानिय्येल तक यह बेहद ज़रूरी पैगाम पहुँचाने का अपना काम पूरा कर सका। उसने दानिय्येल को यह पैगाम दिया: “मैं तुझे समझाने आया हूं, कि अन्त के दिनों में तेरे लोगों की क्या दशा होगी। क्योंकि जो दर्शन तू ने देखा है वह कुछ दिनों के बाद पूरा होगा।”—दानिय्येल 10:12-14.

17, 18. दूसरी बार दानिय्येल की किस तरह मदद की गई, और इससे वह क्या कर सका?

17 एक रहस्य-भरा दर्शन पाने की आशा में, उमंग से भर जाने की बजाय ऐसा लगता है कि दानिय्येल पर इसका कुछ उलटा ही असर हुआ। उसने लिखा: “जब वह पुरुष मुझ से ऐसी बातें कह चुका, तब मैं ने भूमि की ओर मुंह किया और चुपका रह गया।” लेकिन इस दूसरी बार भी वह स्वर्गदूत दानिय्येल की मदद करने और उसे सहारा देने के लिए तैयार था। दानिय्येल ने कहा: “तब मनुष्य के सन्तान के समान किसी ने मेरे ओंठ छूए, और मैं मुंह खोलकर बोलने लगा।” *दानिय्येल 10:15, 16क.

18 जैसे ही स्वर्गदूत ने दानिय्येल के होंठ छूए, तो उसकी जान में जान आ गई। (यशायाह 6:7 से तुलना कीजिए।) बोलने की ताकत पाकर, दानिय्येल ने स्वर्गदूत को बताया कि वह किस तकलीफ में था। उसने कहा: “हे मेरे प्रभु, दर्शन की बातों के कारण मुझ को पीड़ा सी उठी, और मुझ में कुछ भी बल नहीं रहा। सो प्रभु का दास, अपने प्रभु के साथ क्योंकर बातें कर सके? क्योंकि मेरी देह में न तो कुछ बल रहा, और न कुछ सांस ही रह गई।”—दानिय्येल 10:16ख, 17.

19. किस तरह तीसरी बार भी दानिय्येल की मदद की गई, और इसका नतीजा क्या हुआ?

19 दानिय्येल शिकायत नहीं कर रहा था ना ही वह बहाने बना रहा था। वह तो सिर्फ अपनी हालत बयान कर रहा था और स्वर्गदूत ने उसकी बात का एतबार भी किया। इसलिए, तीसरी बार फिर उस दूत ने दानिय्येल की मदद की। दानिय्येल कहता है, “तब मनुष्य के समान किसी ने मुझे छूकर फिर मेरा हियाव बन्धाया।” दानिय्येल को छूकर उसे बल देने के अलावा उस दूत ने यह कहकर दानिय्येल को तसल्ली दी: “हे अति प्रिय पुरुष, मत डर, तुझे शान्ति मिले; तू दृढ़ हो और तेरा हियाव बन्धा रहे।” इसका नतीजा क्या हुआ? डूबते को मानो तिनके का सहारा मिल गया! इस प्यार-भरे सहारे और हौसला देनेवाले शब्दों से दानिय्येल सँभल गया। वह लिखता है: “जब उस ने यह कहा, तब मैं ने हियाव बान्धकर कहा, हे मेरे प्रभु, अब कह, क्योंकि तू ने मेरा हियाव बन्धाया है।” इस तरह दानिय्येल एक और भारी ज़िम्मेदारी उठाने के लिए तैयार हो गया।—दानिय्येल 10:18, 19.

20. स्वर्गदूत को अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करने के लिए संघर्ष क्यों करना था?

20 जब स्वर्गदूत की मदद से दानिय्येल अपने होशो-हवास में आया और उसके शरीर में जान आयी तब उस स्वर्गदूत ने दोबारा दानिय्येल को अपने आने का मकसद बताया। उसने कहा: “क्या तू जानता है कि मैं किस कारण तेरे पास आया हूं? अब मैं फारस के प्रधान से लड़ने को लौटूंगा; और जब मैं निकलूगा, तब यूनान का प्रधान आएगा। और जो कुछ सच्ची बातों से भरी हुई पुस्तक में लिखा हुआ है, वह मैं तुझे बताता हूं; उन प्रधानों के विरुद्ध, तुम्हारे प्रधान मीकाएल को छोड़, मेरे संग स्थिर रहनेवाला और कोई भी नहीं है।”—दानिय्येल 10:20, 21.

21, 22. (क) यहोवा अपने सेवकों से कैसे बरताव करता है, इस बारे में हम दानिय्येल के किस्से से क्या सीख सकते हैं? (ख) किस काम के लिए दानिय्येल की हिम्मत बँधाकर उसे तैयार किया गया?

21 यहोवा अपने सेवकों से कितना प्यार करता है और उनकी कितनी परवाह करता है! वह उनसे सिर्फ उतना ही चाहता है जितना उनके बस में है और वह बहुत अच्छी तरह जानता है कि उनकी हद क्या है। जब परमेश्‍वर यहोवा अपने सेवकों को ज़िम्मेदारी सौंपता है तो वह उनकी काबिलीयत के मुताबिक ही उन्हें ये ज़िम्मेदारियाँ देता है और जानता है कि वे इन्हें ज़रूर पूरा कर पाएँगे। हालाँकि उसके सेवकों को लग सकता है कि वे उस ज़िम्मेदारी को सँभालने के काबिल नहीं हैं। फिर भी अगर उसके सेवकों में से कोई रिआयत के लिए बिनती करता है तो यहोवा उसकी सुनता है और वह तमाम मदद देने के लिए तैयार रहता है जिससे वह अपनी ज़िम्मेदारियाँ पूरी कर सके। आइए हम भी अपने स्वर्गीय पिता यहोवा की तरह बनें और अपने भाइयों से प्यार करें, उनकी हिम्मत बंधाएँ और उन्हें सहारा दें।—इब्रानियों 10:24.

22 उस स्वर्गदूत से संदेश पाकर दानिय्येल को चैन मिला और उसने बहुत हिम्मत पायी। हालाँकि दानिय्येल बहुत बूढ़ा हो चुका था, लेकिन जब परमेश्‍वर ने उसकी हिम्मत बँधाई तब वह उस स्वर्गदूत का पैगाम सुनने के लिए तैयार हो गया। जी हाँ, वह अब तैयार था कि उस शानदार भविष्यवाणी को हमारे लाभ के लिए लिख सके।

[फुटनोट]

^ पैरा. 13 हालाँकि इस दूत का नाम नहीं बताया गया लेकिन यह शायद वही स्वर्गदूत है जिसने जिब्राएल से कहा था कि दानिय्येल को दर्शन का भेद समझा दे। (दानिय्येल 8:2, 15, 16 की तुलना 12:7, 8 से कीजिए।) और जैसा दानिय्येल 10:13 से पता लगता है कि मीकाएल “जो मुख्य प्रधानों में से” है, इसी स्वर्गदूत की मदद करने आया था। तो ज़ाहिर है कि इस अनाम स्वर्गदूत को जिब्राएल और मीकाएल जैसे ऊँचा पद रखनेवाले स्वर्गदूतों के साथ काम करने का सुअवसर प्राप्त है।

^ पैरा. 17 जो स्वर्गदूत दानिय्येल से बात कर रहा था शायद उसी ने उसके होंठ छूए और उसे बल दिया। मगर जिस तरह से यह बात लिखी गयी है उससे इस बात की भी गुंजाइश रहती है कि किसी और स्वर्गदूत ने, शायद जिब्राएल ने ऐसा किया था। जो भी हो, वह परमेश्‍वर का भेजा हुआ एक स्वर्गदूत ही था जिसने दानिय्येल की हिम्मत बँधाई।

आपने क्या समझा?

• सा.यु.पू. 536/535 में, दानिय्येल की मदद करने के लिए आनेवाले यहोवा के स्वर्गदूत को देर क्यों हुई?

• परमेश्‍वर के दूत के वस्त्र और रूप से उसके बारे में क्या पता चलता था?

• दानिय्येल को किस मदद की ज़रूरत थी और उस स्वर्गदूत ने तीन बार उसकी कैसे मदद की?

• वह स्वर्गदूत दानिय्येल के लिए क्या पैगाम लेकर आया था?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 204, 205 पर बक्स]

रक्षा करनेवाले स्वर्गदूत या राज करनेवाली दुष्टात्माएँ?

दानिय्येल की किताब स्वर्गदूतों के बारे में हमें बहुत कुछ सिखाती है। यह बताती है कि यहोवा के वचन को पूरा करने में वे क्या ज़िम्मेदारी निभाते हैं और जो काम उन्हें दिया जाता है उसे कितने ज़बरदस्त तरीके से पूरा करते हैं।

परमेश्‍वर के दूत ने दानिय्येल को बताया कि जब वह उसके पास आ रहा था तो रास्ते में उसे ‘फारस के राज्य के प्रधान’ ने रोके रखा। लेकिन इक्कीस दिन तक इस दूत ने उसका जमकर मुकाबला किया। फिर भी, वह वहाँ से तभी निकल पाया जब ‘मुख्य प्रधानों में से एक मीकाएल’ ने आकर उसकी मदद की। उस स्वर्गदूत ने दानिय्येल को यह भी बताया कि उसे फिर जाकर उस दुश्‍मन से लड़ना होगा और इस बार शायद उसे ‘यूनान के प्रधान’ से भी लड़ना पड़े। (दानिय्येल 10:13, 20) एक स्वर्गदूत के लिए भी यह काम इतना आसान नहीं था बल्कि उसे भी कितना ज़बरदस्त संघर्ष करना पड़ा! लेकिन सवाल उठता है कि आखिर ये फारस और यूनान के प्रधान कौन थे?

ध्यान दीजिए कि मीकाएल को “मुख्य प्रधानों में से [एक]” और ‘तुम्हारा प्रधान’ कहा गया है। आगे एक और अध्याय में मीकाएल को ‘बड़ा प्रधान’ कहा गया है और बताया गया है कि वह “[दानिय्येल के] जाति-भाइयों का पक्ष करने को खड़ा रहता है।” (दानिय्येल 10:21; 12:1) इससे पता चलता है कि मीकाएल ही वह स्वर्गदूत है जिसे यहोवा ने दानिय्येल के जाति-भाइयों या इस्राएली जाति पर ठहराया था यानी वही वीराने में इस्राएल जाति को मार्ग दिखाने के लिए उनके आगे-आगे चला था।—निर्गमन 23:20-23; 32:34; 33:2.

यह स्वर्गदूत मीकाएल ही था, इसका सबूत हमें चेले यहूदा की पत्री में भी मिलता है। वह लिखता है कि ‘प्रधान स्वर्गदूत मीकाईल का शैतान से मूसा की लोथ के विषय में वाद-विवाद हुआ।’ (यहूदा 9) मीकाएल के पद, उसकी सामर्थ और उसके अधिकार की वज़ह से ही उसे “प्रधान दूत” कहा गया है, जिसका मतलब है “प्रमुख स्वर्गदूत” या ‘स्वर्गदूतों में सबसे बड़ा।’ स्वर्गदूतों में इतना ऊँचा पद, परमेश्‍वर के बेटे यीशु मसीह को छोड़ किसी और का नहीं हो सकता। यह पदवी सिर्फ उसी की है, चाहे ज़मीन पर आने से पहले की बात हो चाहे स्वर्ग जाने के बाद की बात।—1 थिस्सलुनीकियों 4:16; प्रकाशितवाक्य 12:7-9.

तो फिर, क्या इसका मतलब यह है कि यहोवा ने फारस और यूनान जैसे देशों की मदद करने और उनका मार्गदर्शन करने के लिए भी स्वर्गदूत ठहराए हैं? इसके बारे में परमेश्‍वर के बेटे यीशु मसीह ने साफ-साफ कहा था: ‘इस संसार के शासक का मुझ पर कोई अधिकार नहीं।’ यीशु ने यह भी कहा: “मेरा राज्य इस जगत का नहीं . . . मेरा राज्य यहां का नहीं।” (यूहन्‍ना 14:30, NHT; 18:36) और प्रेरित यूहन्‍ना ने भी कहा, “सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है।” (1 यूहन्‍ना 5:19) इससे साफ पता चलता है कि इस दुनिया के देश परमेश्‍वर यहोवा या मसीह के मार्गदर्शन में नहीं चल रहे, न तो पहले कभी परमेश्‍वर का उन पर शासन था न ही अभी है। यहोवा इस पृथ्वी पर सरकारें चलाने के लिए “प्रधान अधिकारियों” को इजाज़त ज़रूर देता है लेकिन उसने उनका मार्गदर्शन करने के लिए उन पर अपने स्वर्गदूतों को नहीं ठहराया। (रोमियों 13:1-7) इसका मतलब यह है कि इन देशों के ऊपर जो भी “प्रधान” या ‘हाकिम’ हैं उन्हें ‘इस संसार के शासक,’ शैतान इब्‌लीस ने ही ठहराया है। तो ये प्रधान, परमेश्‍वर की सेवा करनेवाले स्वर्गदूत नहीं बल्कि ऐसी दुष्टात्माएँ हैं जो संसार पर राज कर रही हैं। दुष्टात्माओं की यही फौज या “प्रधान,” इस दुनिया के देशों को आपस में लड़ा रहे हैं और इन देशों पर हुकूमत करनेवालों को कठपुतलियों की तरह अपनी उंगलियों पर नचा रहे हैं।

[पेज 199 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]

[पेज 207 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]