अध्याय 5
“परमेश्वर को अपना राजा जानकर उसकी आज्ञा मानना ही हमारा फर्ज़ है”
प्रेषित सभी सच्चे मसीहियों के लिए एक मिसाल कायम करते हैं
प्रेषितों 5:12–6:7 पर आधारित
1-3. (क) प्रेषितों को क्यों महासभा के सामने लाया जाता है? उनके सामने अब कौन-सा बड़ा सवाल है? (ख) हमें यह जानने में क्यों दिलचस्पी है कि महासभा की धमकियों के बावजूद प्रेषित क्या करते हैं?
महासभा के न्यायी गुस्से से आग-बबूला हो रहे हैं। उनके सामने यीशु के प्रेषित खड़े हैं। अब उन पर मुकदमा चलाया जाएगा। उनका कसूर क्या है? महायाजक और महासभा का सभापति, यूसुफ कैफा प्रेषितों से सख्ती से कहता है, “हमने तुम्हें कड़ा आदेश दिया था कि इस नाम से सिखाना बंद कर दो।” कैफा यीशु से इतनी नफरत करता है कि अपनी ज़बान पर यीशु का नाम तक नहीं लाना चाहता। वह आगे कहता है, “तुमने सारे यरूशलेम को अपनी शिक्षाओं से भर दिया है और तुमने इस आदमी के खून का दोष हमारे सिर पर थोपने की ठान ली है।” (प्रेषि. 5:28) कैफा की चेतावनी साफ है: अपना यह प्रचार बंद करो वरना तुम्हारी खैर नहीं!
2 अब प्रेषित क्या करेंगे? प्रचार करने की आज्ञा उन्हें यीशु ने दी थी और यीशु को यह अधिकार परमेश्वर से मिला था। (मत्ती 28:18-20) क्या प्रेषित इंसानों से डरकर खुशखबरी सुनाना बंद कर देंगे? या वे हिम्मत के साथ डटे रहेंगे और प्रचार करते रहेंगे? उनके आगे सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या वे परमेश्वर का हुक्म मानेंगे या इंसानों का? इस बारे में उनके मन में कोई दो राय नहीं है। पतरस सब प्रेषितों की तरफ से आगे आता है और निडर होकर साफ-साफ अपना फैसला सुनाता है।
3 सच्चे मसीही होने के नाते, हमें यह जानने में खास दिलचस्पी है कि महासभा की धमकियों के बावजूद प्रेषित क्या करते हैं। आज हमें भी परमेश्वर से प्रचार करने की ज़िम्मेदारी मिली है। इसे पूरा करते वक्त हमें भी शायद विरोध का सामना करना पड़े। (मत्ती 10:22) हो सकता है, विरोधी हमारे काम पर पाबंदियाँ लगा दें या इसे पूरी तरह बंद करने की कोशिश करें। ऐसे में हम क्या करेंगे? आइए देखें कि प्रेषित क्या करते हैं और ऐसा क्या होता है जिस वजह से उन्हें महासभा के सामने लाया जाता है। a इन बातों पर गौर करने से हमें भी विरोध के बावजूद प्रचार करते रहने की हिम्मत मिलेगी।
प्रेषि. 5:12-21क)
“यहोवा के स्वर्गदूत ने जेल के दरवाज़े खोल दिए” (4, 5. कैफा और बाकी सदूकी क्यों “जलन से भर” जाते हैं?
4 याद कीजिए, जब महासभा ने पहली बार पतरस और यूहन्ना को प्रचार बंद करने का आदेश दिया, तो उन दोनों ने कहा था, “हम उन बातों के बारे में बोलना नहीं छोड़ सकते जो हमने देखी और सुनी हैं।” (प्रेषि. 4:20) इसके बाद, पतरस और यूहन्ना दूसरे प्रेषितों के साथ मिलकर मंदिर में प्रचार करते रहते हैं। वे बीमारों को ठीक करते हैं, लोगों में समाए दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालते हैं और इस तरह के कई बड़े-बड़े चमत्कार करते हैं। यह सब वे “सुलैमान के खंभोंवाले बरामदे” में करते हैं। यह एक तरह का छतवाला बरामदा था, जो मंदिर में पूरब की तरफ था और यहाँ बहुत-से यहूदी इकट्ठा होते थे। हैरानी की बात है कि पतरस की परछाईं पड़ते ही बीमार लोग ठीक होने लगते हैं। ठीक होनेवाले कई लोग खुशखबरी कबूल करते हैं। नतीजा, “प्रभु पर विश्वास करनेवाले आदमी-औरत बड़ी तादाद में [चेलों में] शामिल” हो जाते हैं।—प्रेषि. 5:12-15.
5 यह सब देखकर कैफा और बाकी सदूकी “जलन से भर” जाते हैं और प्रेषितों को जेल में डलवा देते हैं। (प्रेषि. 5:17, 18) आखिर वे क्यों इतने भड़क उठते हैं? क्योंकि प्रेषित लोगों को सिखा रहे हैं कि यीशु ज़िंदा हुआ है, जबकि सदूकी नहीं मानते थे कि मरे हुए फिर से ज़िंदा किए जाएँगे। प्रेषित यह भी सिखा रहे हैं कि सिर्फ यीशु पर विश्वास करने से ही उद्धार मिल सकता है। मगर सदूकियों को डर है कि अगर लोग यीशु को अपना अगुवा मानने लगे, तो रोमी सरकार उन्हें सज़ा देगी। (यूह. 11:48) इसलिए सदूकी कसम खाते हैं कि वे हर हाल में प्रेषितों को रोकेंगे!
6. यहोवा के सेवकों पर होनेवाले ज़्यादातर ज़ुल्मों के पीछे किसका हाथ है? हमें क्यों इस बात पर हैरानी नहीं होती?
6 आज भी यहोवा के सेवकों पर होनेवाले ज़्यादातर ज़ुल्मों के पीछे धर्म गुरुओं का ही हाथ है। अकसर इनकी पहुँच ऊपर तक होती है इसलिए वे हमारा काम बंद करवाने के लिए सरकारी अधिकारियों के कान भरते हैं और टीवी, अखबारों में हमारे बारे में झूठी अफवाहें फैलाते हैं। लेकिन हमें इस बात पर हैरानी नहीं होती। क्यों नहीं? क्योंकि हमारे संदेश से लोगों को एहसास होता है कि धर्म गुरु जो भी सिखा रहे हैं, वह सब झूठ है। और जब नेकदिल लोग सच्चाई कबूल करते हैं, तो वे झूठी शिक्षाओं और रीति-रिवाज़ों से आज़ाद होते हैं। (यूह. 8:32) इसलिए धर्म गुरु हमसे नफरत करते हैं और हमें सताते हैं।
7, 8. स्वर्गदूत की बात का प्रेषितों पर क्या असर हुआ होगा? हमें खुद से कौन-सा सवाल पूछना चाहिए?
7 प्रेषित जेल में अपने मुकदमे की सुनवाई का इंतज़ार कर रहे हैं। वे शायद सोच रहे होंगे कि अब उन्हें अपने विश्वास की खातिर मरना पड़ेगा। (मत्ती 24:9) लेकिन रात को अचानक एक ऐसी घटना घटती है जिसकी वे उम्मीद नहीं करते। ‘यहोवा का एक स्वर्गदूत जेल के दरवाज़े खोल देता है।’ b (प्रेषि. 5:19) फिर स्वर्गदूत उन्हें साफ-साफ कहता है, “जाकर मंदिर में लोगों को जीवन का संदेश सुनाते रहो।” (प्रेषि. 5:20) बेशक स्वर्गदूत की यह बात सुनकर प्रेषितों को यकीन हो जाता है कि वे जो कर रहे हैं, बिलकुल सही कर रहे हैं। साथ ही, उनका इरादा और पक्का हो जाता है कि चाहे जो हो जाए वे प्रचार काम में डटे रहेंगे। इसलिए “सुबह होते ही” प्रेषित पूरे विश्वास और हिम्मत के साथ ‘मंदिर में जाते हैं और सिखाने लगते हैं।’—प्रेषि. 5:21.
8 हममें से हरेक को खुद से पूछना चाहिए, ‘क्या मैं भी प्रेषितों की तरह विरोध के बावजूद हिम्मत और विश्वास से प्रचार करता रहूँगा?’ हमें याद रखना चाहिए कि “परमेश्वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही” देना बहुत ज़रूरी है और इस काम में स्वर्गदूत भी हमारे साथ हैं।—प्रेषि. 28:23; प्रका. 14:6, 7.
“इंसानों के बजाय परमेश्वर को अपना राजा जानकर उसकी आज्ञा मानना ही हमारा फर्ज़ है” (प्रेषि. 5:21ख-33)
9-11. जब महासभा प्रेषितों को प्रचार बंद करने का आदेश देती है, तो प्रेषित क्या जवाब देते हैं? इससे सच्चे मसीही क्या सीखते हैं?
9 यहाँ महासभा में कैफा और दूसरे न्यायी प्रेषितों को सज़ा सुनाने के लिए तैयार हैं। उन्हें नहीं पता कि रात को जेल में क्या हुआ था। वे पहरेदारों से कहते हैं कि जाकर जेल से कैदियों को ले आओ। ज़रा सोचिए, पहरेदारों को यह देखकर कैसा झटका लगा होगा कि प्रेषित जेल से गायब हैं! उन्हें समझ नहीं आता कि यह कैसे हो सकता है क्योंकि जेल के दरवाज़े अच्छी तरह बंद हैं और “दरवाज़ों पर पहरेदार भी तैनात हैं।” (प्रेषि. 5:23) इस बीच मंदिर के पहरेदारों के सरदार को खबर मिलती है कि प्रेषित मंदिर में हैं और यीशु मसीह के बारे में गवाही दे रहे हैं। वे फिर से वही काम कर रहे हैं जिसकी वजह से उन्हें जेल में डाला गया था! तब सरदार अपने पहरेदारों के साथ फौरन मंदिर जाता है और प्रेषितों को पकड़कर महासभा के सामने ले आता है।
10 जैसा कि इस अध्याय की शुरूआत में बताया गया है, धर्म गुरु प्रेषितों पर भड़क उठते हैं और कड़े शब्दों में उनसे कहते हैं कि अपना यह प्रचार बंद करो। तब प्रेषित क्या जवाब देते हैं? पतरस सभी प्रेषितों की तरफ से निडर होकर कहता है, “इंसानों के बजाय परमेश्वर को अपना राजा जानकर उसकी आज्ञा मानना ही हमारा फर्ज़ है।” (प्रेषि. 5:29) इस तरह प्रेषित एक मिसाल कायम करते हैं, जिस पर सदियों से सभी सच्चे मसीही चलते आ रहे हैं। यह सच है कि परमेश्वर कहता है कि हमें सरकारी अधिकारियों की बात माननी चाहिए। लेकिन अगर सरकार या अधिकारी हमें कुछ ऐसा करने को कहते हैं जो परमेश्वर के नियम के खिलाफ है, तो हम उनकी बात नहीं मानेंगे। इसलिए जब ‘ऊँचे अधिकारी’ प्रचार काम पर रोक लगाते हैं, तो हम प्रचार बंद नहीं करते। (रोमि. 13:1) इसके बजाय, हम होशियारी से काम लेते हैं और गवाही देने के ऐसे तरीके ढूँढ़ते हैं जिनसे हम अधिकारियों की नज़र में ना आएँ।
11 प्रेषितों का जवाब सुनकर महासभा के न्यायियों का खून खौल उठता है। वे ठान लेते हैं कि वे प्रेषितों का “काम तमाम कर” देंगे। (प्रेषि. 5:33) अब प्रेषितों को लग रहा है कि उनका बचना नामुमकिन है। मगर तभी यहोवा बड़े ही अनोखे तरीके से उनकी मदद करता है!
“तुम इन्हें मिटा नहीं सकोगे” (प्रेषि. 5:34-42)
12, 13. (क) गमलीएल दूसरे न्यायियों को क्या सलाह देता है और वे क्या करते हैं? (ख) आज यहोवा अपने लोगों के लिए क्या कर सकता है? अगर हमें ‘नेकी की खातिर दुख उठाना’ पड़े तो भी हम किन बातों का यकीन रख सकते हैं?
12 गमलीएल नाम का एक न्यायी प्रेषितों के पक्ष में बोलने के लिए खड़ा होता है। वह ‘कानून का शिक्षक है और लोगों में उसकी बड़ी इज़्ज़त है।’ c दूसरे न्यायी भी गमलीएल का बहुत सम्मान करते होंगे। इसलिए जब वह उन्हें हुक्म देता है कि प्रेषितों को कुछ देर के लिए बाहर ले जाया जाए तो वे उसकी बात मानते हैं। (प्रेषि. 5:34) फिर गमलीएल बीते ज़माने के कुछ विरोधी गुटों की मिसाल देता है, जो बड़ी तेज़ी से आए थे मगर फिर उनके अगुवों की मौत के बाद उतनी ही तेज़ी से गायब हो गए। इसके बाद वह न्यायियों से कहता है कि इन प्रेषितों का अगुवा अभी-अभी मरा है इसलिए वे थोड़ा रुक जाएँ। वह उन्हें सलाह देता है, “इन आदमियों के काम में दखल मत दो, पर इन्हें अपने हाल पर छोड़ दो। क्योंकि अगर यह योजना या यह काम इंसानों की तरफ से है तो यह मिट जाएगा, लेकिन अगर यह परमेश्वर की तरफ से है, तो तुम इन्हें मिटा नहीं सकोगे। कहीं ऐसा न हो कि तुम परमेश्वर से लड़नेवाले ठहरो।” (प्रेषि. 5:38, 39) अदालत के न्यायी उसकी सलाह मान लेते हैं और प्रेषितों को छोड़ देते हैं। लेकिन छोड़ने से पहले वे प्रेषितों को पिटवाते हैं और उन्हें कड़ा आदेश देते हैं कि वे “यीशु के नाम से बोलना बंद कर दें।”—प्रेषि. 5:40.
13 आज भी यहोवा गमलीएल जैसे लोगों को हमारे पक्ष में बोलने के लिए खड़ा कर सकता है। (नीति. 21:1) वह अपनी पवित्र शक्ति के ज़रिए बड़े-बड़े अधिकारियों, जजों या कानून बनानेवालों को उभार सकता है ताकि वे उसकी मरज़ी पूरी करें। (नहे. 2:4-8) लेकिन अगर यहोवा इस तरह से हमारी मदद नहीं करता और हम ‘नेकी की खातिर दुख उठाते हैं,’ तो ऐसे में भी हम दो बातों का यकीन रख सकते हैं। (1 पत. 3:14) एक यह कि परमेश्वर हमें उस मुश्किल घड़ी को सहने की ताकत देगा। (1 कुरिं. 10:13) और दूसरी, विरोधी कभी परमेश्वर का काम ‘मिटा नहीं सकेंगे।’—यशा. 54:17.
14, 15. (क) जब प्रेषितों को पीटा जाता है तो वे क्या करते हैं और क्यों? (ख) एक अनुभव बताइए जो दिखाता है कि यहोवा के लोग खुशी-खुशी ज़ुल्म सहते हैं।
14 जब प्रेषितों को पीटा जाता है तो क्या उनका हौसला टूट जाता है? क्या वे हार मान लेते हैं? बिलकुल नहीं! ‘वे महासभा के सामने से बड़ी खुशी मनाते हुए अपने रास्ते चल देते हैं।’ (प्रेषि. 5:41) इतना सब होने के बाद भी वे खुश क्यों हैं? इसलिए नहीं कि उन्हें पीटा गया। बल्कि इसलिए कि वे यहोवा के वफादार रहे और यीशु के नक्शे-कदम पर चले।—मत्ती 5:11, 12.
15 खुशखबरी सुनाने की वजह से आज हम पर भी जब ज़ुल्म किए जाते हैं तो हम इसे खुशी-खुशी सह लेते हैं। (1 पत. 4:12-14) ऐसी बात नहीं है कि हमें लोगों की धमकियाँ सुनने, तकलीफें झेलने या फिर जेल जाने में मज़ा आता है। लेकिन हमें इस बात से खुशी मिलती है कि हम यहोवा के वफादार हैं। भाई हेनरिक डॉरनीक की मिसाल लीजिए, जिन्होंने तानाशाह सरकारों की हुकूमत में कई सालों तक ज़ुल्म सहे। सन् 1944 के अगस्त में अधिकारियों ने उन्हें और उनके भाई को यातना शिविर में डालने का फैसला सुनाया। अधिकारियों ने कहा, “इन दोनों को किसी भी बात के लिए मजबूर करना नामुमकिन है। ये तो मौत को भी खुशी-खुशी गले लगा लेंगे।” भाई डॉरनीक कहते हैं, “मैं मरना नहीं चाहता था मगर मैं यहोवा का वफादार रहना चाहता था। इसलिए मैं पूरी गरिमा के साथ और हिम्मत से ज़ुल्मों को सहता रहा। इसी बात ने मुझे खुशी दी।”—याकू. 1:2-4.
16. प्रेषितों ने कैसे दिखाया कि उन्होंने परमेश्वर के बारे में अच्छी तरह गवाही देने की ठान ली है? आज हम किस तरह प्रेषितों का तरीका अपनाते हैं?
16 कैद से छूटने के बाद प्रेषित ठान लेते हैं कि वे परमेश्वर के बारे में अच्छी तरह गवाही देकर ही रहेंगे। वे ज़रा भी देर नहीं करते और फिर से गवाही देने के काम में लग जाते हैं। वे बिना डरे ‘हर दिन मंदिर में और घर-घर जाकर सिखाते हैं और मसीह यीशु के बारे में खुशखबरी सुनाते हैं।’ d (प्रेषि. 5:42) गौर कीजिए कि वे अपना संदेश सुनाने के लिए लोगों के घरों में जाते हैं, क्योंकि यीशु ने उन्हें घर-घर जाने के लिए कहा था। (मत्ती 10:7, 11-14) और बेशक इसी वजह से वे पूरे यरूशलेम को अपनी शिक्षाओं से भर देते हैं। आज भी यहोवा के साक्षी प्रेषितों का तरीका अपनाकर घर-घर का प्रचार करते हैं। हम अपने प्रचार के इलाके में हर घर का दरवाज़ा खटखटाते हैं जो दिखाता है कि हम अच्छी तरह गवाही देना चाहते हैं और हर इंसान को खुशखबरी सुनने का मौका देना चाहते हैं। क्या यहोवा ने घर-घर के प्रचार काम पर आशीष दी है? बिलकुल दी है। इसीलिए अंत के इस समय में लाखों लोगों ने राज का संदेश कबूल किया है। इनमें से कइयों ने पहली बार खुशखबरी तब सुनी जब कोई साक्षी उनके घर आया था।
“ज़रूरी काम की देखरेख” के लिए काबिल आदमियों को ठहराया जाता है (प्रेषि. 6:1-6)
17-19. ऐसा कौन-सा मसला उठता है जिससे भाइयों के बीच फूट पड़ने का खतरा है? उसे निपटाने के लिए प्रेषित क्या करते हैं?
17 यरूशलेम की नयी मंडली अब एक और खतरे का सामना करती है। इस बार खतरा मंडली के अंदर से आता है। कौन-सा खतरा? कई भाई-बहन दूसरे देशों से आए हैं और उन्होंने यरूशलेम में बपतिस्मा लिया है। अपने विश्वास के बारे में ज़्यादा सीखने के लिए वे यरूशलेम में कुछ समय के लिए रुक गए हैं। इन भाई-बहनों को खाना और ज़रूरत की चीज़ें देने के लिए यरूशलेम के भाई-बहन खुशी-खुशी दान देते हैं। (प्रेषि. 2:44-46; 4:34-37) मगर इसी दौरान एक नाज़ुक मसला उठता है। “रोज़ के खाने के बँटवारे में यूनानी बोलनेवाली विधवाओं को नज़रअंदाज़” किया जा रहा है। (प्रेषि. 6:1) वहीं दूसरी तरफ, इब्रानी बोलनेवाली विधवाओं की अच्छी देखभाल की जा रही है। ज़ाहिर है कि मसला भेदभाव का है। यह कोई मामूली मसला नहीं, इससे भाइयों के बीच फूट पड़ने का खतरा है।
18 उन दिनों प्रेषितों से बने शासी निकाय पर मंडली की देखरेख करने की भारी ज़िम्मेदारी थी। इसलिए वे इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि अगर वे “परमेश्वर का वचन सिखाना छोड़कर खाना बाँटने के काम में लग जाएँ,” तो यह सही नहीं होगा। (प्रेषि. 6:2) तो फिर प्रेषित इस मसले को कैसे निपटाते हैं? वे चेलों से कहते हैं कि ऐसे सात काबिल भाइयों को चुनें “जो पवित्र शक्ति और बुद्धि से भरपूर हों” ताकि वे खाना बाँटने के “ज़रूरी काम की देखरेख” कर सकें। (प्रेषि. 6:3) इस काम के लिए काबिल भाइयों की ज़रूरत इसलिए है क्योंकि यह काम सिर्फ खाने की चीज़ें बाँटने का नहीं है बल्कि इसमें पैसों का लेन-देन, खरीदारी और हर चीज़ का सही हिसाब-किताब रखना शामिल है। जिन भाइयों की सिफारिश की जाती है उन सबके यूनानी नाम हैं। इससे शायद यूनानी बोलनेवाली विधवाओं को तसल्ली मिले कि इन भाइयों पर भरोसा किया जा सकता है। जब प्रेषितों को इन सात भाइयों के नाम दिए जाते हैं तो वे प्रार्थना करके इस बारे में विचार करते हैं। और फिर उन्हें खाना बाँटने के “ज़रूरी काम की देखरेख” का ज़िम्मा सौंपते हैं। e
19 जब इन भाइयों को खाना बाँटने का काम मिलता है, तो क्या उन्हें खुशखबरी सुनाने की ज़िम्मेदारी से छूट मिल जाती है? बिलकुल नहीं! उनमें से एक भाई, स्तिफनुस के बारे में बाइबल बताती है कि वह एक निडर प्रचारक था और उसने जोश से गवाही दी। (प्रेषि. 6:8-10) फिलिप्पुस भी उनमें से एक था और उसे “प्रचारक” कहा गया है। (प्रेषि. 21:8) इससे पता चलता है कि उन सात भाइयों ने खाना बाँटने की ज़िम्मेदारी निभाने के साथ-साथ जी-जान से प्रचार भी किया।
20. आज यहोवा के लोग प्रेषितों के नमूने पर कैसे चलते हैं?
20 आज यहोवा के लोग भी प्रेषितों के नमूने पर चलते हैं। मंडली में ज़िम्मेदारी सँभालने के लिए ऐसे भाइयों की सिफारिश की जाती है जो परमेश्वर जैसी सोच रखते हैं और अपने अंदर पवित्र शक्ति के गुण बढ़ाते हैं। जो भाई बाइबल में बतायी योग्यताओं को पूरा करते हैं, उन्हें शासी निकाय के निर्देश पर प्राचीन या सहायक सेवक ठहराया जाता है। f (1 तीमु. 3:1-9, 12, 13) इन भाइयों के बारे में कहा जा सकता है कि वे पवित्र शक्ति के ज़रिए नियुक्त किए जाते हैं। ये मेहनती भाई मंडली में कई ज़रूरी कामों की देखरेख करते हैं। जैसे, मंडली में अगर कोई बुज़ुर्ग भाई-बहन हैं जो सालों से यहोवा की सेवा कर रहे हैं और अब उन्हें मदद की ज़रूरत है तो प्राचीन उनकी देखभाल का इंतज़ाम करते हैं। (याकू. 1:27) कुछ प्राचीन राज-घर के निर्माण काम में, अधिवेशनों का इंतज़ाम करने में या फिर अस्पताल संपर्क समिति के साथ काम करने में बहुत मेहनत करते हैं। जब प्राचीन रखवाली भेंट करने और सिखाने के काम में लगे होते हैं तो सहायक सेवक मंडली के दूसरे कामों में उनका हाथ बँटाते हैं। भले ही इन काबिल भाइयों के पास मंडली और संगठन में बहुत सारी ज़िम्मेदारियाँ हैं लेकिन उन्हें खुशखबरी सुनाने का काम भी करना है।—1 कुरिं. 9:16.
“परमेश्वर का वचन फैलता गया” (प्रेषि. 6:7)
21, 22. क्या बात दिखाती है कि नयी मंडली पर यहोवा की आशीष है?
21 यहोवा की मदद से पहली सदी की नयी मंडली अंदर-बाहर दोनों तरफ से आनेवाली मुश्किलों को पार करती है। और यहोवा की आशीष साफ देखी जा सकती है क्योंकि आयत बताती है, ‘परमेश्वर का वचन फैलता जाता है और यरूशलेम में चेलों की गिनती तेज़ी से बढ़ती है और बड़ी तादाद में याजक भी विश्वासी बन जाते हैं।’ (प्रेषि. 6:7) अब तक हमने मंडली की तरक्की का बस एक किस्सा पढ़ा। प्रेषितों की किताब इस तरह के किस्सों से भरी पड़ी है। (प्रेषि. 9:31; 12:24; 16:5; 19:20; 28:31) आज भी जब हमें दूसरे देशों से खबर मिलती है कि वहाँ प्रचार का काम कितनी तेज़ी से आगे बढ़ रहा है तो हमें बहुत हिम्मत मिलती है।
22 पहली सदी के धर्म गुरु चेलों को सताना नहीं छोड़ते। जल्द ही ज़ुल्मों की एक बड़ी आँधी उठती है और स्तिफनुस इन ज़ुल्मों का खास निशाना बनता है। इस बारे में हम अगले अध्याय में देखेंगे।
a यह बक्स देखें, “ महासभा—यहूदियों की सबसे बड़ी अदालत।”
b प्रेषितों की किताब में तकरीबन 20 बार स्वर्गदूतों का सीधे-सीधे ज़िक्र किया गया है। पहला ज़िक्र प्रेषितों 5:19 में है। इससे पहले प्रेषितों 1:10 में भी स्वर्गदूतों की बात की गयी है मगर वहाँ उन्हें स्वर्गदूत नहीं बल्कि ‘सफेद कपड़े पहने आदमी’ कहा गया है।
c यह बक्स देखें, “ गमलीएल—रब्बियों में जिसकी बहुत इज़्ज़त थी।”
d यह बक्स देखें, “ ‘घर-घर जाकर’ प्रचार किया।”
e खाना बाँटने के “ज़रूरी काम की देखरेख” करना एक बड़ी ज़िम्मेदारी थी, इसलिए इन भाइयों में काफी हद तक वे सारी योग्यताएँ रही होंगी जो प्राचीनों में होती हैं। लेकिन बाइबल यह साफ-साफ नहीं बताती कि मसीही मंडली में भाइयों को कब से प्राचीन या निगरान ठहराना शुरू हुआ था।
f पहली सदी में, काबिल भाइयों के पास अधिकार था कि वे प्राचीनों को नियुक्त करें। (प्रेषि. 14:23; 1 तीमु. 5:22; तीतु. 1:5) आज शासी निकाय सर्किट निगरानों को नियुक्त करता है और सर्किट निगरानों की यह ज़िम्मेदारी है कि वे प्राचीन और सहायक सेवक ठहराएँ।